दो भाई : कश्मीरी लोक-कथा

Do Bhai : Lok-Katha (Kashmir)

महल में लोगों के दिन बहुत खुशी से गुजर रहे थे क्योंकि वहाँ का राजा अपनी पत्नी को बहुत प्यार करता था। रानी भी राजा को बहुत प्यार करती थी।

उनके दो बेटे थे जो चतुर थे अच्छे थे और अपने माता पिता की आज्ञा पालन करने वाले थे। वे यह सोचते थे कि उनके माता पिता के जैसा दुनियाँ भर में कोई नहीं था।

अब ऐसे घर में तो खुशी का रहना जरूरी था ही जब तक कि यमराज ने अपने कुत्तों को उनमें से एक को अपने नरक में लाने के लिये न भेजा होता।

रोज सुबह राजा को थोड़ी देर के लिये अपनी पत्नी के साथ महल के एक बरामदे में बैठने की आदत थी। अपने इस शान्त समय में वे दोनों चिड़ियों के एक जोड़े को अपने बच्चों के लिये खाना ले जाते देखते रहते।

एक दिन उन्होंने देखा कि एक नयी चिड़िया कुछ और चिड़ियों के साथ अपनी चोंच में कुछ काँटे दबाये उस घोंसले की तरफ उड़ी जा रही है। राजा को यह जानने की बड़ी उत्सुकता हुई कि वहाँ क्या हुआ था सो उसने अपने एक नौकर से कहा कि वह उस पेड़ पर चढ़े और पता करे कि वहाँ क्या हुआ।

वहाँ जा कर नौकर को पता लगा कि उस घोंसले के चिड़े की पत्नी मर गयी थी और उसने दूसरी शादी कर ली थी। अब नयी चिड़िया जो घर में आयी थी वह अपने सौतेले बच्चों का कोई काम नहीं करना चाहती थी।

उसने सोचा कि अगर वह उनके खाने के लिये बाहर से काँटे ले आयेगी तो वह मर जायेंगे और वह उनकी सेवा करने से बच जायेगी। उसने ऐसा ही किया और वे काँटे खा कर वे बच्चे मर गये। वे सब अपनी माँ की लाश के ऊपर पड़े हुए थे।

जब राजा और रानी ने यह सुना तो वे बहुत दुखी हुए। राजा बोला — “क्या हमारे और चिड़ियों के साथ ऐसे ही होता है।”

रानी बोली — “हाँ होता तो ऐसा ही है पर हमारे साथ ऐसा नहीं होना चाहिये। प्रिय मुझसे वायदा करो कि अगर मैं तुमसे पहले चली जाऊँ तो तुम फिर कभी दोबारा शादी नहीं करोगे।”

राजा बोला — “प्रिये अपना हाथ दो। मैं तुम्हारा हाथ पकड़ कर कसम खाता हूँ कि तुम ज़िन्दा रहो या मर गयी हो मैं कभी दूसरी शादी नहीं करूँगा। ताकि कहीं ऐसा न हो कि हमारे दोनों बच्चों को भी इसी तरह का कुछ सहना पड़े जैसा इन चिड़ियों के बच्चों को सहना पड़ा है।”

कह कर राजा ने रानी को ढाँढस बँधाया। रानी भी यह सब सुन कर शान्त हुई और राजा को पहले से भी ज़्यादा प्यार करने लगी।

पर इत्तफाक की बात कि इस घटना के कुछ दिन बाद ही रानी चल बसी। राजा तो उसके बिना इतना दुखी हो गया कि लोगों ने सोचा कि अब तो वह भी मर जायेगा। कुछ समय बीत जाने पर वह कुछ सँभला और देश का राजकाज सँभालने लगा।

कुछ और समय बीत जाने पर उसके वजीरों दरबारियों और दूसरे कुलीन लोगों ने उससे दूसरी शादी करने की प्रार्थना की। जैसा कि सोचा जा सकता है उसको यह काम करने में जरूर ही बहुत परेशानी हो रही होगी।

पहले तो राजा उनसे बात ही नहीं करते थे पर वे भी अपनी प्रार्थना लगातार करते ही रहे। यहाँ तक कि उन्होंने राजा से दोबारा शादी करने के लिये हाँ करवा ही ली। उनके एक वजीर की बेटी का उनके लिये प्रस्ताव आया और राजा ने उसको स्वीकार कर लिया। जल्दी ही उन दोनों की शादी हो गयी।

अब दुख के दिन शुरू हुए। जैसी कि उम्मीद की जाती थी नयी रानी दोनों राजकुमारों से जलने लगी और उनके खिलाफ कुछ जाल रचने लगी। राजकुमारों ने उसकी इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए उसको खुश रखने की बहुत कोशिश की। कभी उसकी इच्छाओं के खिलाफ जाने की जुर्रत नहीं की। पर सब बेकार।

रानी उन दोनों से बहुत नफरत करती थी और उसको उस दिन की इच्छा थी जब वह उनको देश से बाहर निकाल कर बरबाद कर देगी।

उसने उतने समय तक इन्तजार किया जब तक उसने यह नहीं देख लिया कि राजा उसको बहुत प्यार करता है और वह उसके लिये कुछ भी कर सकता है।

तब उसने राजा से राजकुमारों की अपने साथ बुरा व्यवहार करने की और अपना कहना न मानने की शिकायतें करनी शुरू कर दीं। इसके अलावा उसने उससे यह भी कहा कि अगर राजा उसको इतना प्यार न करता तो वह उनका ऐसा व्यवहार बिल्कुल नहीं सह सकती थी।

राजा यह सुन कर बहुत गुस्सा हुआ। उसने तुरन्त ही अपने आदमियों को हुकुम दिया कि वे उसके दोनो बेटों को सबकी आँख बचा कर जंगल में ले जा कर मार दें। बच्चों को अपने पिता के हुकुम के ऊपर कोई सवाल पूछने की आदत नहीं थी सो वे दोनों बच्चे सिपाहियों के साथ खुशी चले गये।

उनको पिता के बेरहम हुकुम का तो पता नहीं था। उन्होंने सोचा कि शायद उनके पिता ने उनको जंगल में घूमने के लिये भेजा होगा।

जब वे सब जंगल में एक जगह पहुँचे तो सिपाहियों ने अपनी अपनी तलवारें निकाल लीं और उनको मारने के लिये ऊपर उठाया तो बच्चों को बहुत आश्चर्य हुआ। उनको पता ही नहीं चला कि उन्हें क्या करना चाहिये।

वे चिल्लाये — “हे भगवान हमारी सहायता करो।”

भगवान ने उनकी सुन ली। सिपाहियों की लोहे की तलवारें लकड़ी की तलवारों में बदल गयीं और पत्थर दिल सिपाहियों के दिल में दया भर गयी। उनसे उन नन्हें बच्चों को मारा नहीं गया। उन्होंने उन्हें छोड़ दिया।

उनके प्रति भगवान को उसकी दया के लिये धन्यवाद देते हुए दोनों राजकुमार अपने अपने घोड़ों पर सवार हो कर वहाँ से जितनी तेज़ी से भाग सकते थे भाग लिये।

कुछ देर बाद वे एक साफ पानी की नदी के पास आये तो उन्होंने सोचा कि वे वहाँ पर खाना खा लें और आराम कर लें।

उन्होंने यह भी निश्चय किया कि वे दोनों एक साथ नहीं सोयेंगे कहीं ऐसा न हो कि कोई डाकू आ जाये या फिर कोई जंगली जानवर आ जाये और उनको और उनके घोड़ों को खा जाये। इस प्लान के साथ बड़ा भाई पहले सो गया और छोटा भाई

जाग कर पहरा देने लगा। जब वह पहरा दे रहा था तो दो चिड़ियें सूडाब्रोर और बूडाब्रोर वहाँ आयीं और पास के एक पेड़ पर आ कर बैठ कर बातें करने लगीं।

सूडाब्रोर बोला — “देखो उस पेड़ पर जिसकी डाल उस नदी तक जा रही है दो गाने वाली चिड़ियाँ बैठी हैं। क्या तुम्हें पता है कि वे कौन सी चिड़ियें हैं?”

बूडाब्रोर बोला — “हाँ, वे तो बहुत ही बढ़िया चिड़ियें हैं। मैंने उनको यह कहते सुना है कि जो कोई भी उनमें से एक का माँस खायेगा वह राजा बन जायेगा और जो दूसरे का माँस खायेगा वह वजीर बन जायेगा।

वह सबसे ज़्यादा अमीर आदमी होगा और वह हर सुबह जहाँ भी लेटेगा वहाँ अपने नीचे की जगह पर इतने कीमती सात जवाहरात पायेगा जिसकी लोग कीमत नहीं आँक पायेंगे। यह सुन कर छोटा भाई तो बहुत उत्सुक हो गया।

उसने तुरन्त ही उन दोनों को एक तीर मारा और मार दिया। फिर उसने दोनों चिड़ियों को पकाया। एक चिड़िया उसने खुद खायी और दूसरी चिड़िया भाई के लिये छोड़ दी। भाई जब सो कर उठा तो उसने छोटे भाई की वह छोड़ी हुई चिड़िया खा ली।

अगली सुबह दोनों भाई फिर अपनी यात्रा पर चल दिये। रास्ते में छोटे भाई को अचानक याद आया कि उसका चाबुक तो वहीं रह गया। वह अपने इस चाबुक को बहुत पसन्द करता था सो वह उसे लेने के लिये वापस दौड़ गया।

चाबुक उसको नदी के किनारे दिखायी दे गया। वह उसको उठाने के लिये अपने घोड़े से उतरने ही वाला था कि एक बहुत बड़ा ड्रैगन पानी में से बाहर निकल आया और उसने उसके पैर में काट लिया और वह बेहोश हो कर जमीन पर गिर पड़ा। इस हालत में वह बेचारा कई घंटे पड़ा रहा।

बड़ा भाई जब उसका इन्तजार करते करते थक गया तो वह आगे चल दिया कि उसका छोटा भाई शाम तक उसको पकड़ लेगा।

आगे चल कर वह एक शहर में पहुँचा तो वहाँ जा कर उसको पता चला कि वहाँ के राजा की अभी अभी मौत हो कर चुकी है और वहाँ की जनता उसके वारिस की खोज में है।

ऐसा लगता था कि वहाँ का यह रिवाज था कि जब वहाँ का राजा मर जाता था तो एक हाथी को राजा चुनने के लिये भेजा जाता था। जिस किसी को भी वह हाथी चुन लेता था वहाँ के लोग उसी को अपना राजा मान लेते थे चाहे वह कोई अमीर हो या गरीब, पढ़ा लिखा हो या गँवार, अपने देश और भाषा का हो या फिर किसी दूसरे देश या भाषा का।

जब बड़ा राजकुमार वहाँ आया तो राजा को चुनने वाला यह हाथी वहीं चक्कर काट रहा था। जैसे ही उसने राजकुमार को देखा तो तुरन्त ही उसको सिर झुकाया। सो लोग उस राजकुमार को शहर के अन्दर ले गये और उसको राजगद्दी पर बिठा कर राजा घोषित कर दिया गया।

उधर छोटा राजकुमार भी होश में आ गया था। वह इस तरह होश में आया था कि उस नदी के पास एक योगी रहता था जो उस नदी पर हर छठे महीने वहाँ से थोड़ा सा पानी लेना आता था। जिस दिन राजकुमार को वहाँ ड्रैगन ने काटा था वह दिन उसके वहाँ से पानी लेने का दिन था। सो जब वह वहाँ आया तो उसने वहाँ उस नौजवान का बेहोश शरीर देखा। उसको उस पर दया आ गयी।

वह समझ गया कि ड्रैगन ने ही यह सब किया है। सो उसने जादू के कुछ शब्द पढ़े जिन्होंने नदी का पानी सुखा दिया और ड्रैगन नदी में से बाहर निकल आया।

ड्रैगन ने बाहर निकल कर पूछा — “तुमने यह नदी खाली क्यों की?”

योगी ने जवाब दिया — “क्योंकि तुमने इस नौजवान को काटा। तुमने ऐसा क्यों किया?”

ड्रैगन बोला — “ओ योगी, दो चिड़ियें थीं जो अक्सर यहाँ आया करती थीं और अपने गीतों से यहाँ की हवा को भर दिया करती थीं। इस राजकुमार ने उनको मार दिया। इसलिये मैंने इसको काट लिया।”

योगी बोला — “यह तुमने अच्छा नहीं किया। सुनो, अब तुम अपना जहर इसके पैर से निकाल लो ताकि यह ज़िन्दा हो सके वरना तुम मर जाओगे।”

ड्रैगन बोला — “मुझे माफ करें। जैसा आपने कहा है मैं वैसा ही करता हूँ।”

इस तरह राजकुमार फिर से ज़िन्दा हो गया। उसने योगी को धन्यवाद दिया और आगे चल दिया। पर बदकिस्मती से उसने वह सड़क नहीं ली जिस पर उसका भाई गया था। वह दूसरी सड़क पर चला गया।

उस सड़क पर चलते चलते वह एक गाँव में आ पहुँचा जहाँ कई भयानक डाकू रहते थे। इत्तफाक से उनमें से उसने एक डाकू के घर का दरवाजा खटखटाया और उससे रहने की जगह माँगी तो उसने उसको तुरन्त ही अपने घर में ठहरा लिया।

उन्होंने उसका बड़े ज़ोर शोर से स्वागत किया और अच्छी सी रहने की जगह दी। पर अफसोस जब वह सोने के लिये लेटा तो वह और उसका पलंग दोनों फर्श में से हो कर नीचे एक बहुत ही भयानक तहखाने में गिर पड़े।

वह बेचारा तो वहाँ मर ही गया होता अगर उन डाकुओं की एक लड़की ने उसको वहाँ देख न लिया होता और वह उससे प्यार न करने लगी होती तो। वह तो उस घर को अच्छी तरह जानती थी।

यह भाँपते हुए कि अजनबी को इस कब्र में पसीना आ गया होगा जैसा कि डाकू लोग उस जगह को कहते थे वह छिपे रूप से उसके पास गयी और उसके लिये खाना ले गयी। इस खाने के बदले में राजकुमार ने उसको सात जवाहरात दिये। वह लड़की रोज सुबह खाना लाती रही और राजकुमार उसको रोज सात जवाहरात देता रहा।

जैसे जैसे वह राजकुमार से मिलती रही उसके लिये उसकी मुहब्बत बढ़ती ही चली गयी। और वह खुद क्योंकि बहुत सुन्दर और अक्लमन्द थी तो राजकुमार भी उसकी तरफ आकर्षित हो गया। उसने उससे जल्दी ही शादी करने का वायदा किया। आखिर वे वहाँ से आजाद हो गये और वहाँ से जल्दी से जल्दी एक तेज़ घोड़े पर सवार होकर समुद्र की तरफ भाग गये जहाँ वे

एक जहाज़ पकड़ कर वहाँ से निकल लिये जो तभी किनारा छोड़ने वाला था।

दूसरी सवारियों के साथ उस जहाज़ पर एक सौदागर भी था।

उसको वह लड़की इतनी अच्छी लगी कि वह राजकुमार को मार कर उससे खुद शादी कर लेना चाहता था।

इस प्लान के अनुसार एक दिन जब वह और राजकुमार नाडखेल खेल रहे थे सौदागर ने राजकुमार को समुद्र में धक्का दे दिया।

खुशकिस्मती से उसकी पत्नी वहीं जहाज़ के एक हिस्से में खड़ी हुई थी। उसने देखा कि उसके पति का शरीर ऊपर से नीचे आ रहा है तो उसने तुरन्त ही अपने हाथ बढ़ा दिये और उसको बचा लिया। जब यह बात कि राजकुमार जहाज़ से गिर गया था सारे जहाज़ में फैली तो यह सब जान कर जहाज़ पर काम करने वाले और उसमें यात्रा करने वाले दोनों ही बहुत दुखी हुए।

राजकुमार ने अपनी पत्नी को मना कर दिया था कि जब तक वे अपनी जगह पर नहीं पहुँच जाते इस मामले की खोज नहीं करनी है। इस तरह वह वहाँ छिपे छिपे रहता रहा। सौदागर इस मामले में राजकुमार की अपनी पत्नी के बाद अपने आपको सबसे ज़्यादा दुखी दिखा रहा था।

खैर फिर वह सौदागर जल्दी ही ठीक हो गया और उसने राजकुमार की पत्नी की तरफ ध्यान देना शुरू कर दिया और उससे अपने साथ शादी करने के लिये कहा।

लड़की ने शादी छह महीने के लिये यह कहते हुए टाल दी कि अगर छह महीने तक उसके पति का कुछ पता नहीं चला तो वह उसके साथ शादी कर लेगी।

कुछ महीने में ही जहाज़ अपनी जगह पहुँच गया। वहाँ पहुँच कर राजकुमार ने अपने आपको प्रगट किया और सौदागर पर इलजाम लगाया कि उसने उसको डुबोने की कोशिश की। इस बीच सौदागर को जेल में डाल दिया गया जब तक उसके मुकदमे की सुनवायी होती है।

इत्तफाक से वे एक बहुत बड़े शहर के बराबर की जगह पर ही उतरे थे जहाँ वह बड़ा राजकुमार राज कर रहा था। बड़ा राजकुमार उस समय अपने छोटे भाई के बारे में बहुत दुखी था कि उसका भाई इस समय कहाँ था।

सो अपने आपको थोड़ी सी तसल्ली देने के लिये उसने अपने वजीर को कह रखा था कि वह रोज शाम को उसको एक कहानी सुनाये। क्योंकि उसका वजीर उसको दिन में जो कुछ सुनता था उसी पर उसको अपनी कहानी सुनाता था इसलिये इस तरह से उसको यह आशा हो गयी थी कि शायद उसको किसी तरह अपने भाई की खबर मिल जाये।

जिस दिन जहाज़ किनारे पर लगा था इस वजीर की बेटी समुद्र के किनारे गयी थी जहाँ उसको राजकुमार और उसकी पत्नी और नीच सौदागर की अजीब कहानी सुनने को मिली। वह कहानी उसने आ कर अपने पिता को सुना दी।

अगली शाम को वजीर ने वह कहानी राजा को सुना दी। राजा को यह कहानी सुन कर बहुत उत्सुकता हो गयी तो उसने अपने वजीर से कहा — “राजकुमार और उसकी पत्नी कहाँ हैं। उनको तुरन्त ही हमारे सामने पेश किया जाये। मुझे लगता है कि मुझे अपना इतने दिनों का खोया हुआ भाई मिल गया है।”

राजकुमार और उसकी पत्नी को तुरन्त बुलवाया गया। तुम लोग सोच सकते हो कि दोनों भाई इतने दिनों के बाद मिल कर कितने खुश हुए होंगे। वे दोनों आपस में गले मिल कर बहुत रोये। छोटे राजकुमार को उस देश का वजीर बना दिया गया। और सौदागर को फाँसी लगा दी गयी।

कुछ साल बाद उनके पिता के कुछ दूत उस देश में आये और उन्होंने बताया कि राजा उन लोगों को देखना चाहता था। जब उसको अपनी नीच पत्नी की नीच हरकत का पता चला तो उसने उसको मार दिया।

यह सुन कर दोनों भाई अपने पिता से मिलने तुरन्त ही चल दिये। वे लोग वहाँ सुरक्षित पहुँच गये और जा कर अपने पिता से मिले। अब दोनों आपस में मिल कर बैठे।

कुछ समय बाद ही राजा मर गया। बड़ा राजकुमार उसके वारिस की हैसियत से उस देश का राजा बन गया और छोटा राजकुमार उस देश का राजा बन गया जहाँ उसका बड़ा भाई राज कर रहा था। दोनों राजकुमार बहुत फले फूले और अपनी होशियारी न्याय और दया के लिये मशहूर हुए।

(सुषमा गुप्ता)

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