डिंगडंग (असमिया बाल कहानी) : सत्यरंजन कलिता/সত্যৰঞ্জন কলিতা

Dingdang (Assamese Baal Kahani in Hindi) : Satyaranjan Kalita

उसका नाम था डिंगडंग। लेकिन यह उसका असल नाम नहीं था । वह कुछ दबंग प्रकृति का था । इसी कारण लोग उसे इस नाम से पुकारते थे। हाँ, यों डिंगडंग का भी कोई माने नहीं है। डिंगडंग था तो नटखट, पर बड़ा साहसी था । कितना भी ताकतवर लड़का हो किसी से वह डरता नहीं था । किसी से दबता भी नहीं था । ऐसा कि भूत-प्रेत से भी वह डरता नहीं था । वह कहता था कि भूत तो भ्रम का नाम है। उसकी बातें सुनकर बड़े लोग भी दंग रह जाते थे । एक दिन एक ने तो कह ही दिया, 'छोटे मुँह बड़ी बात । '

उसके गाँव के पास एक कब्रिस्तान था और एक श्मशान भी । वहाँ मुसलमानों को दफनाया तथा हिन्दुओं को जलाया जाता था। उसी से सटा हुआ एक बड़ा जंगल था । उस जंगल में जानवरों के सिवा कोई आदमी कभी घुसता ही नहीं था। लोगों का मानना था कि वहाँ जो जाता है, वापस नहीं आ पाता। इसे लेकर कितनी ही कहानियाँ हैं। इसे लोग भूत नगरी भी कहा करते थे ।

एक दिन की बात है। डिंगडंग के पिता कहीं दूर चले गये थे। और वह रात तक आने वाले नहीं थे। ऐसे ही किसी दिन की ताक में था डिंगडंग । उस दिन डिंगडंग ने माँ के पास जाकर कहा- 'माँ, मैं मामा के घर जाऊँगा ।' माँ ने पूछा, 'किसके साथ जाओगे।' 'माँ, मैं अकेले ही चला जाऊँगा, तुम डरो नहीं। मैं तो अब बड़ा हो गया हूँ।' माँ ने उसको दिन ही में वहाँ जाने को कहा, 'पहुँचते-पहुँचते साँझ हो जाएगी तो तुम्हें डर लगेगा ।'

डर की बात सुनकर उसे हँसी आ गयी। डर क्या चीज है, वह जानता ही नहीं था। फिर भी माँ की बात मानकर वह घर से दिन ही में चल पड़ा।

वह गया लेकिन मामा के घर नहीं, भूत के घर रास्ते में एक-दो ने पूछा, कहाँ जा रहे हो ।' उसने सीधा बता दिया, 'भूत के घर ।' किसी ने कहा, उस पर भूत सवार हुआ है। फिर किसी ने इसे उसका पागलपन कहा, लेकिन जब सचमुच मरघट की ओर उसे जाते देखा तो लोग चिंतित हुए।

जंगल में जाकर एक आम के पेड़ पर वह चढ़ गया। उस पेड़ में से पके आम तोड़कर खाने लगा। उसे बड़ा आनन्द आया । इस तरह पेड़ से तोड़कर फल खाने का आनन्द और ही होता है। आम के पेड़ पर ही साँझ हो गयी, उसको इसका पता नहीं चला। धीरे-धीर पेड़ के ऊपर से उतर आया। लेकिन बाहर निकल आने का रास्ता ही उसे नहीं सूझा। अब चारों ओर से जंगली जानवरों की डरावनी आवाजें वह सुनने लगा। कई बार कई चिड़ियाँ अपनी बोली बोलकर उसके सिर पर से ही मानो उड़ गयीं, कहीं से कुछ अजीब सी आवाजें वह सुनने लगा ।

ऐसे में एक जलती हुई आग उसके पास दौड़ती हुई आयी और चली गयी। वह सोच में पड़ गया। क्या यही भूत है ! नहीं तो यह क्या है ! क्या ये आवाजें भी भूतों की ही हैं, उसे थोड़ा-सा डर लगा ।

इसके बाद वह देखता है कि उसकी पीठ पर किसी ने हाथ रखा । डिंगडंग ने पूछा, 'तुम कौन हो !' उस हाथ रखने वाले ने कहा, 'मैं भूतराज का दूत हूँ । तुम्हें हमारे राजा ने निमन्त्रण दिया है।'

'किस बात का निमंत्रण ! कैसा निमन्त्रण ?' डिंगडंग ने पूछा।

भूत ने जवाब दिया, 'भूत नगरी में आज महोत्सव है, उसका निमंत्रण है। चलो आदमी, मेरे साथ-साथ चलते रहो । '

उसको कहीं कुछ भी दिखाई नहीं दिया, लेकिन किसी का हाथ पकड़कर वह आगे बढ़ता रहा।

वह भूतनगरी पहुँच गया । वहाँ के राजा से उसकी मुलाकात हुई। उस नगरी के सारे लोग कंकाल ही हैं। वह देखता है कि यहाँ के लोगों में से कोई पैरों के बल पर चलता है तो कोई हाथ पैरों के बल, तो कोई सिर के बल पर चलता है।

भूतराज से डिंगडंग ने पूछा, 'तुम कैसे भूत हुए हो ?' एक ने जवाब दिया, 'मरने के बाद कुछ लोग इस तरह भूत होते हैं।' डिंगडंग ने फिर पूछा, 'तुम लोगों में हिन्दू-मुसलमान ईसाई का भेद नहीं है क्या ?' भूतराज ने कहा, 'ऐ मानव बच्चा, आदमी अपने को हिन्दू-मुसलमान और ईसाई मानकर लड़-झगड़ कर मरते हैं। जन्म से पहले जैसे कोई हिन्दू-मुसलमान- ईसाई नहीं होता, मरने के बाद भी हिन्दू-मुसलमान- ब्राह्मण- चाण्डाल नहीं होता । हमारे भूतों में जाति भेद नहीं है ।

परिचय पर्व के बाद नाचने-गाने का प्रोग्राम शुरू हुआ। भूतों का नृत्य देखकर डिंगडंग कुछ डर ही गया था । भूतराज ने डिंगडंग से भी नाचने का अनुरोध किया । नाचने का कार्यक्रम खत्म हुआ तो खाने-पीने का इन्तजाम हुआ । तरह-तरह की चीजों सहित खाना परोसा गया।

सुबह होने पर डिंगडंग ने वापस आना चाहा। भूतराज ने कहा, 'नहीं भाई, आप हमारे मेहमान हैं। आपको इस तरह जाने नहीं दिया जायेगा । हम आपको आपके घर के बिस्तर पर छोड़ आएँगे । '

डिंगडंग भूतराज के रथ पर बैठकर आने लगा। उसे बड़ा आनन्द आया । इतने में माँ चिल्लाने लगी, 'मुन्ना बेटे उठो, काफी देर हो गयी - तुम्हें पढ़ना है न, उठो बेटे।' जागकर देखता है कि डिंगडंग अपने बिस्तर पर ही सोया हुआ है।

(अनुवाद : चित्र महंत)

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