डिकेन्स (रूसी कहानी) : कोंस्तांतीन पाउस्तोव्स्की

Dickens (Russian Story in Hindi) : Konstantin Paustovsky

(लेखक की डायरी से)

फ़ियोदोसिया के ऊपर आकाश में पीले बादल छाए हुए हैं-उनका आकार ऐसा है कि उन्हें देखकर प्राचीन, मध्ययुगीन नगरों की याद ताजा होती है। गर्मी का प्रकोप बढ़ा हुआ है। लहरें जोर-जोर से टकरा रही हैं। छोटे-छोटे लड़के, बबूल के वृक्ष पर बैठे हुए उसके सूखे और मीठे फूलों का मजा ले रहे हैं। दूर क्षितिज पर ओदेसा की ओर से आते हुए जलपोत द्वारा छोड़ गये धुएँ का बादल दिखायी देता है। पेटी की जगह कमर में मछलियाँ पकड़ने के जाल का एक टुकड़ा बाँधे हुए एक उदास माहीगीर केवल ऊब से तंग आकर सीटी बजाता और पानी में थूकता जा रहा हैं उसके पास एक लड़का बैठा कोई क़िताब पढ़ रहा है। ‘‘नौजवान, जरा अपनी क़िताब तो दिखाना,’’ मछेरा अपनी खरखरी आवाज़ में कहता है। लड़का तनिक सहम कर क़िताब उसे सौंप देता है। माहीगीर पढ़ना शुरू करता है। पाँच मिनट, फिर दस मिनट गुजरते हैं। वह आवेश में आकर नकियाता है।

लड़का बैठा हुआ प्रतीक्षा कर रहा है। मछेरा आधे घण्टे से पढ़ रहा है। बादल आकाश में ऊँचे चले गये हैं। छोटे-छोटे लड़कों ने बबूल का एक वृक्ष साफ़ कर दिया है और अब दूसरे पर चढ़ गये हैं। माहीगीर अब भी पढ़ता जा रहा है। लड़का चिन्तित होकर उसकी ओर देखता है। एक घण्टा गुजर जाता है। ‘‘जी,’’ लड़का धीरे से फुसफुसाता है, ‘‘मुझे घर जाना है।’’ ‘‘माँ के पास?’’ मछेरा दृष्टि ऊपर किये बिना ही पूछता है। ‘‘हाँ,’’ लड़का उत्तर देता है। ‘‘तुम्हारी माँ प्रतीक्षा कर सकती है,’’ माहीगीर गुर्राता है। लड़का चुप हो जाता है। माहीगीर जल्दी-जल्दी पृष्ठ उलटता और थूक निगलता जाता है। आध घण्टा और भी बीत जाता है। लड़का धीरे-धीरे सिसकने लगता है। जहाज बन्दरगाह में आ चुका है और उसका भोंपू ऊँची और अन्यमनस्क सीटियाँ बजाता है। माहीगीर मानो कुछ भी नहीं सुनता है।

अब लड़का खुलकर सुबकने लगा है और उसके काँपते हुए गालों से आँसू बहने लगे हैं। मछेरा न कुछ सुनता है, न देखता है। तब तट का चैकीदार उससे चीख कर कहता है, ‘‘ऐ पेत्या, तुम्हें कुछ शर्म आती है? लड़के को सताना बन्द करो और क़िताब लौटा दो।’’

माहीगीर हैरान होकर लड़के की ओर देखता है और निराश होकर क़िताब उसकी तरफ़ पटक देता है।

‘‘लो सम्भालो, रोनी सूरत। मैं आशा करता हूँ कि यह तुम्हारा दम घोंट देगी।’’

लड़का झपटकर क़िताब उठा लेता है और पीछे मुड़कर देखे बिना तेजी से घाट के साथ-साथ भाग जाता है।

‘‘कौन-सी पुस्तक थी वह?’’ मैंने मछेरे से पूछा।

‘‘अरे डिकेन्स,’’ उसने जवाब दिया। वह अभी तक चिढ़ा हुआ था। ‘‘क्या लेखक है-गोंद की भाँति चिपक जाता है। तुम उससे छुटकारा ही नहीं पा सकते।’’

1939

('समय के पंख' में से)

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