ध्यान से सुनने का परिणाम : हिंदी लोक-कथा
Dhyan Se Sunne Ka Parinam : Folktale in Hindi
एक असभ्य देहाती था। कला और संस्कृति से एकदम कोरा। पर उसकी पत्नी संस्कारवान थी। पति को संस्कारवान बनाने और जीवन की गहनता के बारे में उसकी कुछ रुचि जगाने की पत्नी ने बहुत कोशिश की, पर व्यर्थ। यह सब पति को बिलकुल नीरस लगता था।
एक बार गाँव में एक रामायणी आया। हर शाम को वह रामायण का पाठ और टीका करता था और बीच-बीच में दोहे-चौपाइयाँ भी गाता था। रामायणी को सुनने के लिए सारा गाँव उमड़ पड़ता था। मानो कोई दुर्लभ भोज हो।
असभ्य देहाती की पत्नी ने भी प्रयत्न किया कि उसका मंदबुद्धि पति भी रामायण सुनने जाए। इसके लिए पत्नी ने उसे बहुत कौंचा। पति हमेशा की तरह इस बार भी झींका, बड़बड़ाया, पर आख़िरकार उसने पत्नी का मन रखने का निश्चय किया। सो वह शाम को रामायण का पाठ सुनने गया और सबसे पीछे बैठ गया। रामायण का पाठ रातभर चलता रहा, पर उसे कुछ ही देर में नींद आ गई और सारी रात सोता रहा। तड़के जब एक सर्ग समाप्त हो गया और रामायणी उस दिन का अंतिम छंद गा चुका, प्रथा के अनुसार प्रसाद बाँटा जाने लगा। नींद में डूबे असभ्य देहाती के मुँह में किसी ने कुछ बतासे-मखाने डाल दिए। इससे उसकी आँख खुल गई और वह घर चला गया। पत्नी बहुत ख़ुश थी कि उसने पूरी रात वहाँ बिताई। पत्नी ने उत्सुकता से पूछा कि उसे रामायण का पाठ कैसा लगा। पति ने कहा, “बहुत मीठा!” सुनकर पत्नी का दिल बाग़-बाग़ हो गया।
अगले दिन पत्नी ने उसे फिर भेजा। वह गया और रामायणी के नज़दीक दीवार से पीठ टिकाकर बैठ गया। कुछ ही देर में उसे नींद आ गई। उस दिन वहाँ बहुत भीड़ थी और कोई जगह न पाकर एक बच्चा उसके कंधे पर बैठ गया। बच्चे को यह जगह आरामदेह लगी। वह मुँह फाड़े हुए रामायण की मज़ेदार कहानी में डूब गया। तड़के पाठ पूरा होने पर सब उठ खड़े हुए। वह भोंदू पति भी खड़ा हो गया! बच्चा उसके कंधों पर से पहले ही उतर गया था। पर रात भर उसका बोझ लदे होने से उसे कंधों, गर्दन और पीठ में दर्द महसूस हुआ। घर पहुँचने पर पत्नी ने पूछा कि कैसा लगा तो पति ने कहा, “सुबह होते-होते वह काफ़ी बोझिल हो गया।” पत्नी ने कहा, “रामायण तो है ही ऐसी।” उसे ख़ुशी हुई कि आख़िर उसका पति रामायण की महानता और उसका भाव अनुभव करने लगा है।
तीसरे दिन वह भीड़ से थोड़ा हटकर बैठा। कुछ ही समय में नींद उस पर हावी हो गई और वह ज़मीन पर लेटकर ख़र्राटें भरने लगा। अल्ल-सवेरे एक कुत्ता आया और उसके खुले मुँह में मूतकर चला गया। इसके तत्काल बाद भोंदू उठा और घर आ गया। पत्नी ने पूछा कैसा लगा तो उसने मुँह बिगाड़कर कहा, “बहुत ख़राब, एकदम खारा।” पत्नी समझ गई कि दाल में कुछ काला है। वह सचाई जानने के लिए पति के पीछे पड़ गई। आख़िर पति को बताना पड़ा कि वह तीनों दिन रात भर सोता रहा था।
चौथे दिन पत्नी उसके साथ गई। उसने पति को सबसे आगे बिठाया और सख़्त हिदायत दी कि चाहे जो हो वह सोएगा नहीं। सो वह सतर्क होकर बैठा और रामायण का पाठ सुनने लगा। कुछ ही पलों में वह महाकाव्य के रोमांच और चरित्रों में खो गया। उस दिन उस अध्याय का पाठ चल रहा था जिसमें हनुमान राम की अँगूठी लेकर समुद्र को लाँघते हैं और सीता की ख़ोज में जाते हैं। हनुमान छलाँग लगाते हैं। तभी राम की अँगूठी हनुमान के हाथ से छूटकर समुद्र में गिर जाती है। हनुमान को समझ में नहीं आता कि वे क्या करें। अँगूठी के बिना वे सीता को राम की क्या निशानी देंगे? निशानी के बिना वे कैसे भरोसा करेंगी कि वह राम का दूत है? पहली कतार में बैठा भोंदू बहुत ध्यान से कथा सुन रहा था। हनुमान को परेशान देखकर उसने कहा, “हनुमान, तुम चिंता मत करो। मैं अभी अँगूठी ला देता हूँ।” यह कहकर वह समुद्र में कूदा और समुद्र के तल से अँगूठी लाकर हनुमान को दे दी।
सब भौंचक्के रह गए। उन्हें लगा कि इस आदमी में ज़रूर कोई ख़ास बात है। इसे निश्चित ही राम और हनुमान की कृपा प्राप्त है। उस दिन के बाद से गाँव वाले उसे सयाना और समझदार मानकर उसका आदर करने लगे। और ख़ुद उसकी भी अपने बारे में यही धारणा थी। जब हम ध्यान से कथा सुनते हैं, ख़ासकर रामायण, तो ऐसा ही होता है।
(साभार : भारत की लोक कथाएँ, संपादक : ए. के. रामानुजन)