धूर्त लोमड़ी : यूक्रेन लोक-कथा
Dhurt Lomdi : Lok-Katha (Ukraine)
लोमड़ी ने किसी जगह से मुर्ग़ी चुराई और सरपट भाग चली। दौड़ती रही, दौड़ती रही कि शाम का अन्धेरा छाने लगा, काली रात गहराने लगी। अचानक लोमड़ी ने एक झोपड़ी देखी। वह लपक ली उस तरफ़ | और झोंपड़ी पर पहुंचकर बड़े अदब से सिर नीचे झुकाकर बोली :
"नमस्ते, भले मानसो !"
"नमस्ते, लोमड़ी दीदी !"
"मेहरबानी करके रात यहीं बिता लेने दीजिए !"
"अरे, लोमड़ी बहन, हमारी झोंपड़ी वैसे ही बहुत छोटी है, तुम्हारे लिए जगह कहां से लाएं ?"
"फ़िक्र न करें ! मैं तख्ते के नीचे सिमटकर दुम मोड़कर सो जाऊंगी। किसी तरह रात काट लूंगी।"
झोंपड़ी के मालिक ने कहा : "अच्छा, तो रात तुम यहीं बिता लो ! "
"लेकिन अपनी यह मुर्गी कहां ले जाऊं ?"
"उसे अलावघर के नीचे छोड़ दो।"
लोमड़ी ने वैसा ही किया । और रात में जब सभी लोग सो गए तो लोमड़ी ने चुपके से उठकर मुर्गी को खा डाला। फिर उसके नुचे हुए पंखों को एक कोने में छिपा दिया। अगले दिन भोर होते ही वह उठ बैठी, उसने अपना मुंह चमकाकर धोया और सबसे नमस्ते करके बोली :
"अरे, मेरी मुर्गी कहां गई ?"
"वहीं अलावघर के नीचे देख लो। "
"मैं देख चुकी हूं, वहां नहीं है ।" लोमडी लगी बैठकर रोने :
"हाय, मेरी मुर्गी कहां गई ? मुर्गी ही मेरी दौलत थी, वही मेरा खजाना था, उसे भी चुरा लिया ! मैं तो लुट गई !"
इसके बाद वह मालिक से बोली :
"मेरी मुर्गी यहीं खोई है। लाओ, मुर्गी नहीं, तो बत्तख दो !"
मजबूर होकर मालिक को मुर्गी के बदले में बत्तख देनी पड़ी। लोमड़ी ने बत्तख लेकर बोरे में डाली और आगे चल दी । लोमड़ी भागती रही, भागती रही कि फिर अन्धेरा हो गया, रास्ते में ही रात हो गई। उसने एक झोंपड़ी देखी, भीतर पहुंचकर बोली :
"नमस्ते, भले मानसो ! "
"नमस्ते, लोमड़ी दीदी !"
"मेहरबानी करके रात यहीं बिता लेने दीजिए !"
"अरे, लोमड़ी बहन हमारी झोंपड़ी वैसे ही बहुत छोटी है, तुम्हारे लिए जगह कहां से लाएं ?"
"फ़िक्र न करें। मैं तख्ते के नीचे सिमटकर दुम मोड़कर सो जाऊंगी। किसी तरह रात काट लूंगी । "
झोंपड़ी के मालिक ने कहा :
"अच्छा, तो रात तुम यहीं बिता लो !"
" लेकिन अपनी बत्तख कहां ले जाऊं ?"
"उसे हंसों के बाड़े में छोड़ दो ।"
लोमड़ी ने वैसा ही किया । और रात में, जब सभी लोग सो गए तो लोमड़ी ने चुपके से उठकर बत्तख को खा डाला फिर उसके नुचे हुए पंखों को एक कोने में छिपा दिया। अगले दिन भोर होते ही वह उठ बैठी, उसने अपना मुंह चमकाकर धोया और सबसे नमस्ते करके बोली :
"मेरी बत्तख कहां गई ?" तब मालिक बोला :
"शायद हंसों के साथ उसे भी बाहर निकाल दिया है ?"
"हंसोंवाले बाड़े में जाकर देखा, बत्तख वहां नहीं थी ।"
लोमड़ी पहले की तरह लगी बैठकर रोने :
"हाय, मेरी बत्तख ! वही मेरी दौलत थी, वही मेरा खजाना था । उसे भी चुरा लिया । हाय, मैं लुट गई! मेरी बत्तख यहीं गुम हुई है ! लाओ; बत्तख नहीं, तो हंस दो ! "
मजबूर होकर मालिक को बत्तख के बदले में हंस देना पड़ा। लोमड़ी ने हंस को लेकर बोरे में डाल लिया और आगे बढ़ ली ।
वह चलती रही, चलती रही कि रास्ते में शाम हो चली। उसने एक झोंपड़ी देखी, वहां पहुंचकर बोली :
"नमस्ते भले मानसो !"
"नमस्ते, लोमड़ी दीदी !"
"मेहरबानी करके रात यहीं बिता लेने दीजिए !"
"माफ़ करना, लोमड़ी बहन हमारी झोंपड़ी वैसे ही बहुत छोटी है, तुम्हारे लिए जगह कहां से लाएं ?"
" फ़िक्र न करें ! मैं तख्ते के नीचे सिमटकर दुम मोड़कर सो जाऊंगी। किसी तरह रात काट लूंगी ।" झोंपड़ी के मालिक ने कहा :
"अच्छा, तो रात तुम यहीं बिता लो !"
" लेकिन अपना हंस कहां ले जाऊं ? "
"उसे मेमनेवाले बाड़े में छोड़ दो । "
लोमड़ी ने वैसा ही किया। रात में जब सभी लोग सो गए तो लोमड़ी ने चुपके से उठकर हंस को खा डाला और उसके नुचे हुए पंखों को एक कोने में छिपा दिया। अगले दिन भोर होते ही वह उठ बैठी, उसने अपना मुंह चमकाकर धोया सबसे नमस्ते की और बोली : " लेकिन मेरा हंस कहां गया ? मेमनेवाले बाड़े में जाकर देखा - हंस वहां नहीं मिला । "
तब लोमड़ी ने मालिक से कहा :
"मैं जहां कहीं गई, मैंने रात कहीं भी गुजारी, लेकिन ऐसा अनर्थ तो मेरे साथ कभी नहीं हुआ ! "
"शायद मेमनों ने उसे कुचल दिया है," मालिक बोला ।
लोमड़ी लगी अपना पुराना राग अलापने :
"खैर, जो है, सो है ! लाओ, हंस नहीं, तो मेमना दो ! "
मजबूर होकर मालिक को हंस के बदले में मेमना देना पड़ा। लोमड़ी ने मेमने को अपने बोरे में छिपा लिया और फिर आगे चल दी। वह दौड़ती रही, दौड़ती रही, फिर रात हो गई। रास्ते में उसने एक झोंपड़ी देखी। वहां जाकर प्रार्थना करने लगी :
"मेहरबानी करके रात यहीं गुजार लेने दीजिए !"
"माफ़ करना, लोमड़ी बहन । हमारी झोंपड़ी वैसे ही बहुत छोटी है, तुम्हारे लिए जगह कहां से लाएं ?"
" फ़िक्र न करें ! मैं तख्ते के नीचे सिमटकर दुम मोड़कर सो जाऊंगी । किसी तरह रात काट लूंगी ।"
झोंपड़ी के मालिक ने कहा :
"अच्छा, तो रात तुम यहीं बिता लो ! "
"लेकिन अपना मेमना कहां ले जाऊं ?"
" बाड़े में छोड़ दो। "
लोमड़ी ने वैसा ही किया । और रात में जब सभी लोग सो गए तो लोमड़ी ने चुपके से उठकर मेमने को खा डाला। अगले दिन भोर होते ही वह उठ बैठी, उसने अपना मुंह चमकाकर धोया सबसे नमस्ते की और फिर अपना वही राग अलापने लगी :
"अरे, मेरा मेमना कहां गया ?"
लोमड़ी दहाड़ें मार-मारकर रोने लगी :
“मैं जहां कहीं गई. मैने रात कहीं भी गुजारी, लेकिन ऐसा अनर्थ तो मेरे साथ कभी नहीं हुआ !"
मालिक ने कहा :
"शायद मेरी बहू ने ही उसे बैलों के साथ-साथ बाड़े के बाहर हांक दिया हो ?”
इस पर लोमड़ी बोली :
"मुझे इससे क्या लेना-देना? लाओ, मेमना नहीं, तो अपनी बहू ही दो !"
फिर क्या ? कोहराम मच गया। ससुर रोया, सास रोई और बच्चे बिलखने लगे। उधर लड़के ने लोमड़ी के बोरे में चुपके से एक कुत्ता डालकर बोरे का मुंह रस्सी से बांध दिया और बोला :
"ले, पकड़ ! " लोमड़ी ने खुश होकर कुत्तेवाला बोरा संभाला और उसे उठा- कर आगे चल दी। बोरा उठाए चलती रही और बीच-बीच में यह गुनगुनाती रही :
"मुर्गी के बदले में बत्तख पाई, बत्तख के बदले में पाया हंस; हंस के बदले में मिला मेमना मेमने के बदले में मिली बहू !"
"बोरा जोर-जोर से हिचकोले खा रहा था, भीतर बैठा हुआ कुत्ता गुर्रा रहा था।
पर लोमड़ी ने समझा :
"शायद बहू डर के मारे रो रही है ! ठहरो, एक नज़र तुम्हें देख तो लूं ! आखिर कैसी हो तुम ?"
लोमड़ी ने बोरे का मुंह पकड़ा और उसे खोलने लगी। जैसे ही उसने बोरे का मुंह खोला, " भौं !" की आवाज के साथ उछलता हुआ कुत्ता निकल आया । लोमड़ी की तो जैसे जान ही निकल गई। वह सिर पर पैर रखकर भागी, कुत्ता था कि उसके पीछे-पीछे दौड़ता चला जा रहा था । लोमड़ी आगे-आगे जंगल की तरफ़ दौड़ रही थी और कुत्ता जी-जान से उसे पकड़ने पर तुला था । उसे बस दबोचने ही वाला था कि लोमड़ी अपनी मांद में घुसकर बैठ गई । लोमड़ी मांद में और कुत्ता मांद के ऊपर । लोमड़ी की मांद भी ऐसी थी कि कुत्ता अन्दर घुस न सकता था। लोमड़ी मज़े से मांद में बैठी पूछने लगी :
"मेरे प्यारे-प्यारे कान, बताओ, किधर था तुम्हारा ध्यान, भागे जान बचाकर कैसे कुत्ते ने दौड़ाया जैसे ?"
उसके कानों ने जवाब दिया :
"लोमड़ी दीदी, लोमड़ी दीदी, हमें था बस यही ध्यान, स्वर्णतुल्य है खाल तुम्हारी कुत्ता उसे नोच लेगा । "
"प्यारे-प्यारे कान मेरे ! मैं इस उपकार के लिए तुम्हें सोने के कुण्डल उपहार में दूंगी !"
फिर लोमड़ी अपनी टांगों से पूछती है :
"मेरी प्यारी-प्यारी टांगो, बताओ, किधर था तुम्हारा ध्यान, भागीं जान बचाकर कैसे कुत्ते ने दौड़ाया जैसे ? "
उसकी टांगों ने जवाब दिया :
"लोमड़ी दीदी, लोमड़ी दीदी, हमें था बस यही ध्यान, स्वर्णतुल्य है खाल तुम्हारी, कुत्ता उसे नोच लेगा । इसीलिए हम भागीं ऐसे, जान बचाकर जैसे- तैसे, तुमको हमें बचाना था, तुरन्त भागकर आना था। "
"प्यारी-प्यारी टांगो, तुम्हें धन्यवाद ! मैं तुम्हारे लिए चांदी की नालवाले सोने के जूते खरीद दूंगी। "
इसके बाद लोमड़ी ने अपनी दुम से पूछा :
"मेरी भारी-भरकम दुम बताओ, किधर था तुम्हारा ध्यान, भागी जान बचाकर कैसे कुत्ते ने दौड़ाया जैसे ? "
लोमड़ी की दुम ने इस प्रकार जवाब दिया :
"मैने यह सोचा था, बहना, साफ़-साफ़ मुझको है कहना, मैंने जो दुम फटकारी थी, टांग में लंगड़ी मारी थी । चाह रही थी मैं कहना, तुम्हें सिखाए कुत्ता क्यों ना ! चम चम चमके खाल तुम्हारी, चाह रही थी वह नोचे !"
यह सुनकर लोमड़ी को बड़ा गुस्सा आया । फिर क्या था ? लोमड़ी ने अपनी मांद से दुम बाहर निकाल दी :
"ठहर जा, अभी मज़ा चखाती हूं तुझे ! ले कुत्ते, मेरी दुम को जी भरके नोच ले ! "
कुत्ते ने लोमड़ी की दुम ऐसे धर दबोची कि सारी की सारी दुम ही उखाड़ डाली ।
तब लोमड़ी खरगोशों के यहां जा पहुंची। उन्होने देखा कि लोमड़ी बेदुम हो चुकी है, और उसका मजाक उड़ाने लगे, उस पर हंसने लगे । लेकिन लोमड़ी बोली :
"अरे, दुम भले नहीं है, लेकिन झूमर नाच तुम सबसे अच्छा नाच सकती हूं ! "
"वह कैसे ?"
" ऐसे ! मुझे बस तुम सबकी दुम एक दूसरे के साथ बांधनी होगी - इसके बाद तुरन्त सीख जाओगे ! "
"तो फिर बांध दो हमारी दुमें ! "
लोमड़ी ने उनकी दुमें एक दूसरी के माथ बांध दीं और खुद छलांग लगाकर एक टीले पर चढ़ गई और जोर-जोर से चिल्लाने लगी :
"जान बचाओ ! भागो, भेड़िये आ रहे हैं !"
सारे खरगोश अपनी-अपनी जान बचाकर ऐसे भागे, ऐसे भागे कि उन सबकी पूंछें उखड़ गईं । जब उन सबने एक दूसरे की दुमों को देखा, तो वे जड़ से उखड़ी हुई थीं !
वे सब मिलकर लोमड़ी से बदला लेने की योजना बनाने लगे । लोमड़ी ने उनकी बातें चुपके से सुन लीं । उसने यह अच्छी तरह समझ लिया कि अब खैरियत नहीं है । फिर क्या था ? लोमड़ी ने सोचा कि उस जंगल से ही खिसक लिया जाए । लोमड़ी रफू चक्कर हो गई । और खरगोश तब से आज तक बिना दुम के जी रहे हैं।