धुन की सनक : मणिपुरी लोक-कथा
Dhun Ki Sanak : Manipuri Lok-Katha
मणिपुरी जाति का एक युवक खंगबा संगीत प्रेमी था। उसका घर
एक ऊँची पहाड़ी पर था। धन-धान्य की कमी न थी अतः वह सारा दिन
प्रकृति की गोद में ही रहता। चिडियों की मधुर चहचहाहट, नदी की
कलकल, हवा की सर-सर व तितलियों के पंखों की रंगीनी उसे बहुत
भाती।
उसे हर चीज में संगीत ढूँढने की आदत थी। वह घंटों पहाड़ी
झरने के पास बैठकर पानी गिरने की आवाज सुनता रहा। यूँ भी पहाड़ी
लोग संगीत के दीवाने होते हैं।
एक बार वह एक अनजान गाँव में किसी काम से गया। जब वह
सांझ ढले लौटने लगा तो सीटी की मधुर ध्वनि उसके कानों में पड़ी। वह
अपना रास्ता छोड़कर सीटी बजाने वाले को ढूँढ़ने लगा।
शीघ्र ही मधुर धुन बजाने वाला उसके सामने था। खंगबा ने जेब
से कीमती कंगन निकाला और उस युवक से बोला, 'देखो, तुम इसे ले
लो, मुझे यह धुन सिखा दो।' वह युवक अचकचा उठा, “क्या?"
खंगबा ने समझा कि वह कुछ ज्यादा की उम्मीद में है उसने
रुपयों की थैली भी उसके सामने धर दी। सीटी बजाने वाला समझ गया
कि उसका पाला किसी सनकी से पड़ा है। उसने झट हामी भर दी। सब
कुछ लेकर उसने सीटी की धुन सिखा दी और लौट गया।
खंगबा इतना खुश हुआ मानो खजाना हाथ लग गया हो। वह
सारे रास्ते उस धुन को बजा-बजाकर आनंदित होता रहा। तभी उसे ध्यान
आया कि वह पशुओं का बाड़ा खुला छोड़ आया था। कहीं जंगली
जानवर उन्हें खा तो नहीं गए। यह विचार आते ही वह एकदम परेशान
हो गया।
मुँह से बजती सीटी भी बंद हो गई थी। कुछ समय तक दिमाग
पर जोर डालने से खंगबा को याद आ गया कि उसकी पत्नी ने बाड़े का
दरवाजा बंद कर दिया था।
यह याद आते ही उसने चैन की साँस ली!
अचानक चलते-चलते उसे लगा कि कोई बेशकीमती चीज खो
गई है। उसने अपनी जेबें व कपड़े टटोले मानो कुछ ढूँढ रहा हो।
मजे की बात तो यह थी कि उसे ध्यान ही नहीं आ रहा था कि
क्या खो गया है? उसने दिमाग पर बहुत जोर डाला किंतु सब बेकार रहा।
हाँ, दिल में इस बात का अफसोस जरूर था कि कहीं कुछ खो गया है।
वह मन मार कर एक पेड़ के नीचे बैठ गया। जब कुछ नहीं
सूझा तो वह भाग्य को कोसने लगा-
कैसी किस्मत है मेरी
खोई चीज का नाम ही भूला
बुद्धि तू ही कुछ बता री
जाने कैसे मति गई मारी?
वहाँ से एक राहगीर जा रहा था। उसने रुककर पूछा, 'क्यों भई
मुँह लटकाए क्यों बैठे हो?'
भई, मेरा खजाना लुट गया है। खंगबा निराश होकर बोला।
“अच्छा, ऐसा क्या था उसमें?" राहगीर ने दुखी स्वर में पूछा।
खंगबा ने माथे पर हाथ मारा-
'अरे, वही तो भूल गया हूँ।'
राहगीर खिलखिलाकर हँस दिया।
'जब याद ही नहीं तो गम किस बात का करना।' कहकर उसने
जेब से तंबाकू निकाला और उसे मसलने लगा।
अचानक राहगीर के मुँह से वही स्वर निकला, जिसे खंगबा
सीखकर आ रहा था। धुन सुनते ही खंगबा चिल्लाया-
'वो मारा पापड़ वाले को। यही धुन तो खो गई थी। इसे ही तो
खोज रहा था। मरी का नाम भी याद नहीं आ रहा था।'
उसने लपककर राहगीर को गले से लगा लिया और मनपसंद
धुन बजाने लगा। राहगीर ने हमारे खंगबा को पागल समझ लिया और
बेचारा सिर पर पाँव रखकर भागा।
(भोला यामिनी)