धीरज का फल (बोध कथा) : यशपाल जैन

Dheeraj Ka Phal (Bodh Katha) : Yashpal Jain

आस्ट्रेलिया की घटना हैं उसके पश्चिमी किनारे छ: मील की दूरी पर एक जहाज चट्टान से टकरा गया। जहाज के सारे कर्मचारी बड़े तत्परता से सुरक्षा का काम करने लगे। जहाज में साढ़े चार सौ मुसाफिर थे। वे सब शान्ति से अपनी-अपनी जगह पर रहे।

इतने में जहाज से अधिकारी न हुक्म दिया, "डोंगियों पर चढ़ो!"

सारे मुसाफिरों ने सुरक्षा की पेटियां पहन लीं। उनमें एक आदमी नेत्रहीन था। वह अपने नौकर का हाथ थामे डेक पर आया। एक आदमी बीमार था। वह भी किसी का सहारा लेकर आया। सब लोगों ने एक ओर हटकर उनके लिए रास्ता कर दिया। अपनी-अपनी बारी से वे सब नावों में उतर गये। जहाज खाली हो गया। फिर उनके देखते-देखते वह समुद्र के पेट में समा गया।

डोंगी पर बैठी एक स्त्री गाने लगी:

प्यारे नाविक, बढ़ो किनारा पास है;

कर्म करो जबतक इस तन में सांस है

यह जीवन साहस का दूजा नाम है-

प्यारे नाविक, बढ़ो किनारा पास है।

मल्लाहों का हौसला बढ़ गया और सारे यात्री सकुशल किनारे पहुंच गये। यदि मुसाफिर घबरा गये होते और उन्होंने धीरज न रक्खा होता तो उनमें से बहुतों की जानें चली गई होतीं।

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