धंधे के बिना (अंग्रेज़ी कहानी) : आर. के. नारायण

Dhande Ke Bina (English Story in Hindi) : R. K. Narayan

करीब एक साल पहले रामाराव, जिस ग्रामोफोन कम्पनी का वह मालगुडी में एजेंट था, उसके अचानक बंद हो जाने के कारण, बेकार हो गया। एजेंसी में उसने, सिक्योरिटी के तौर पर, कुछ पैसा भी, जो उसे विरासत में मिला था, लगा दिया था। पाँच साल तक उसे इससे काफी आमदनी होती रही, जिससे वह अपने बीवी-बच्चों के सुखपूर्वक रहने का इन्तजाम कर सका। उसने एक्सटेंशन में एक छोटा-सा बंगला बनवा लिया और अपने इस्तेमाल के लिए एक बेबी कार भी खरीदने का विचार करने लगा था।

और एक दिन जैसे अचानक यह वज्रपात हुआ। इसका कारण दुनिया के व्यापार, बैंकिग और राजनीति में आया परिवर्तन था। ग्रामोफोन कम्पनी, जिसकी फैक्टरी कहीं उत्तर भारत में थी, लाहौर के एक बैंक के बंद हो जाने के कारण, जो बंबई निवासी उसके मालिक की मृत्यु का परिणाम था, एकदम खत्म हो गई थी। मालिक सड़क के किनारे-किनारे नीचे की ओर गाड़ी चला रहा था, जो तीन सौ फीट नीचे जा गिरी-लोगों ने कहा कि उसने आत्महत्या की थी क्योंकि पिछली शाम उसकी बीवी उसके कैशियर के साथ भाग गयी थी।

रामाराव ने अचानक अपने को सड़क पर खड़ा पाया। पहले तो उसे इस हादसे के नतीजों का अंदाज ही नहीं हुआ। बैंक में कुछ पैसा था, कुछ कंपनी शेयर भी थे। लेकिन शेयर गिरने लगे, कीमतें घटने लगीं और उसे कुछ सौ रुपये ही हाथ लगे। जब उसने सिक्योरिटी वापस करने की बात की तो दूसरी तरफ अर्जी लेने वाला भी कोई नहीं था।

बैंक में रखा पैसा तेजी से पिघल रहा था। रामाराव की बीवी ने खर्चा कम करने की कोशिश की। उसने नौकर और रसोइये को निकाल दिया, बच्चों को बड़े नर्सरी स्कूल से हटाकर सरकारी स्कूल में भर्ती करा दिया। बंगला किराये पर चढ़ा दिया और बाजार में एक छोटा-सा घर लेकर रहने लगे।

रामाराव रोज नौकरी के लिए एक दर्जन अर्जियाँ भेजने लगा और हर दफ्तर में चक्कर लगाने शुरू किये। चालीस साल की उम्र को पहुँचे आदमी के लिए, जो अब तक अपना व्यापार करता रहा हो, नौकरी पाना आसान नहीं है। नौकरी माँगने का उसका ढंग भी व्यापारियों जैसा था। वह अपना कार्ड भेजता और मिलने पर कहता : 'सर, शायद आप मेरे लिए कुछ कर सकें। मेरा व्यापार अचानक डूब गया जिसके लिए मैं दोषी नहीं हूँ। आप मुझे अपने दफ्तर में कोई काम दे सकें तो मैं बहुत आभार मानूँगा...?"

'रामाराव, यह तो बड़े अफसोस की बात है। इस वक्त मेरे पास आपके लायक कोई काम नहीं है। लेकिन जैसे ही कुछ होगा, मैं तुरंत आपको सूचित करूंगा।'

सब जगह यही कहानी थी। शाम को वह घर लौट आता, और सड़क से घर की दिशा में मुड़ते ही उसका दिल बैठ जाता। उसकी बीवी दरवाजे पर खड़ी होती, पीछे बच्चे सड़क को चुपचाप देखते उसका इन्तजार करते होते। उनके चेहरों पर कितनी प्रतीक्षा होती। काँपते-से वे आशा करते होते कि कुछ अच्छी खबर सुनने को मिलेगी। वे हमेशा सोचते कि रामाराव जादू की तरह कुछ लेकर आयेंगे। वह सोचता कि जिस तरह सफाई से लोग उसे टाल देते हैं, उसे देखते हुए इन्हें उस पर ज्यादा विश्वास नहीं करना चाहिए। बीवी उसकी तरफ देखते ही समझ जाती कि क्या हुआ है, वह चुपचाप पीछे मुड़ जाती और बच्चे भी इशारा समझकर उसका अनुगमन करते। रामाराव बनावटी ढंग से उन्हें खुश करने की कोशिश करता, 'आज क्या हो रहा है?' इसके जवाब में वे लोग भी ऊपरी मिठास से उसे भीतर ले जाते। इनकी यह दशा देखकर उसका मन रो उठता। एक्सटेंशन वाले बंगले में उसकी बीवी सजी-धजी इधर-उधर घूमती रहती, पड़ोसियों से गप-शप करती, शाम को क्लब चली जाती। लेकिन अब यहाँ शाम तक वह एक ही कपड़े पहने रहती, और सारा वक्त किचेन में बीतता। एक्सटेंशन वाले घर में बड़ा-सा कम्पाउंड था, जिसमें बच्चे दिन भर उछल-कूद करते रहते और अच्छे स्कूल में पढ़ते और सीखते। लेकिन यहाँ उनके कोई दोस्त नहीं थे और खेलने के लिए भी घर के पीछे ही जरा-सी जगह थी। उनकी कमीजें फटने को आ रही थीं। पहले इन्हें हर तीन महीने में नए कपड़े दिये जाते थे। रामाराव यही सब सोचता सोने की कोशिश करने लगा।

उसके पास जो भी पैसा था, खत्म हो चुका था। आमदनी का अकेला जरिया एक्सटेंशन वाले घर का किराया था। उन्हें यह सोचकर डर लगता था कि अगर उसका किरायेदार घर खाली कर दे तो क्या होगा ! कठिनाइयों के इन दिनों में रामाराव को जुबली रीडिंग रूम में एक पत्रिका मिली। इसका नाम था, 'दि कैप्टेन'। इसमें सिर्फ चार पन्ने थे और सब में वर्ग पहेलियाँ दी हुई थीं। सही हल के लिए हर हफ्ते यह चार हजार रुपये का पहला इनाम देती थी।

रामाराव इन्हें हल करने में लग गया और कुछ दिन तक वह सब चिंताओं से मुक्त रहा। क्या शब्द होगा-TALLOW या FOLLOW, BAD, SAD या MAD में से इस प्रश्न के उत्तर के लिए कौन-सा शब्द सही है : 'ऐसे आदमी से हमेशा दूर रहना चाहिए।' शाम को जब घर वापस लौटता तो दरवाजे में खड़े बीवीबच्चों की तरफ उसका ध्यान ही न जाता। हर हफ्ते वह उत्तर डाक से भेजने में कुछ पैसा खर्च करता और धड़कते दिल से जवाब का इन्तजार करता। उत्तर प्राप्त होने की तारीख को वह अखबार-विक्रेता की दुकान पर मीठी-मीठी बातें करके बिना पैसे दिये 'दि कैप्टेन' का नया अंक देख लेने के लिए फुसलाने की कोशिश करता। रीडिंग रूम की मेज पर पत्रिका पहुँचने में एकाध दिन लगता और वह इसका इन्तजार नहीं कर पाता था। कभी-कभी अखबारवाला ना-नुकुर करता तो वह उसे यह कहकर मनाने की कोशिश करता, 'परेशान मत होओ। मुझे इनाम मिलेगा तो मैं एकदम तीन साल के लिए ग्राहक बन जाऊँगा..।" नतीजे वाले पन्ने को वह काँपते हुए हाथों से खोलता। इनाम मिलने वालों में कोई बलूचिस्तान का होता, कोई ढाका या लंका का होता-रामाराव का शब्द हमेशा गलत हो जाता था। यह धक्का बरदाश्त करने में उसे पूरे तीन घंटे लगते थे। उससे निकल पाने का उपाय अगले हफ्ते की वर्ग पहेली में लग जाना ही होता, जो उसे अगले सात दिन तक फिर काम में लगाये रहती।

आशा और निराशा के इस भयंकर उतार-चढ़ाव से कुछ ही दिन में उसके बदन की नसें चकनाचूर हो उठीं और मानसिक संतुलन बिगड़ने लगा। घर पर वह किसी से भी नहीं बोलता था। सिर हमेशा झुका रहता, जैसे हर वक्त कुछ सोचता रहता है। उसकी बीवी अगर उसे हर हफ्ते पहेलियों के लिए एक रुपया न देती तो वह उससे झगड़ता। उसका स्वभाव ज्यादा बुरा नहीं था और देर तक झगड़ने की उसमें ताकत भी नहीं थी, इसलिए वह कुछ देर बाद उसे रुपया दे देती और घर खर्च में उतनी कटौती कर लेती।

एक दिन पत्रिका ने आठ हजार रुपये के विशेष पुरस्कार की घोषणा की। यह पढ़कर रामाराव का मन दस गुने उत्साह से भर उठा। उसने वर्ग पहेली का गहराई से अध्ययन किया। इसमें चार जगह कुछ संशय की स्थिति थी, और प्रवेश के लिए कम-से-कम चार प्रविष्टियाँ भेजनी थीं। इसलिए ज्यादा पैसे की जरूरत थी। उसने बीवी से कहा, 'इस बार तुम्हें मुझे पाँच रुपये देने होंगे।' यह सुनकर वह तो हक्की-बक्की रह गयी। इतने पैसे में तो परिवार का एक हफ्ते का काम चलता था। रामाराव इन बातों के प्रति अब उदास हो चला था, फिर भी इतने पैसों की माँग उसे भी ज्यादा लगी और एक क्षण के लिए वह भी संकुचित हो उठा। पर वह ध्यान बदलने के लिए सही शब्द सोचने में लग गया-कि, 'कुछ लोग निराशा से बचने के लिए यह करते हैं। प्रश्न के लिए HOPE उचित होगा या DOPE या ROPE. इस तरह उसने अपने मन पर काबू पा लिया।

वर्ग पहेली भरकर रजिस्ट्री से भेज देने के बाद उसने हवाई महल बनाना आरंभ कर दिया। भले ही उसे इनाम का एक हिस्सा ही मिले, फिर भी यह रकम काफी बड़ी होगी। वह किरायेदार को निकाल देगा, बीवी-बच्चों को लेकर फिर उसी घर में रहने लगेगा और सारा पैसा बीवी को सौंपकर उससे कहेगा कि इससे दो साल तक गृहस्थी मजे से चलाओ। खुद इसमें से सौ रुपये लेकर मद्रास चला जायेगा और वहाँ अपना भाग्य आजमायेगा। फिर जब बीवी का पैसा खत्म होने लगेगा, तब तक मद्रास में उसे कोई-न-कोई अच्छा काम जरूर मिल जायेगा।

नतीजा आने के दिन रामाराव ने पत्रिका का नया अंक खोला तो पाया कि उसने जो हल भेजा था उसमें बहुत-सी गलतियाँ हैं। उसका दिल एकदम बुझ गया। अब उसे कुछ पैसे भी वापस नहीं मिल सकते थे। वह दिनभर इधर उधर घूमता रहा। इस पर वह जितना सोचता, उतनी ही जिन्दगी असह्य लगने लगती.। पिछले दिनों के सारे नुकसान, निराशाएँ और परेशानियाँ इकट्ठी होकर उस पर टूट पड़ने लगीं।

शाम को घर की तरफ कदम बढ़ाने की जगह वह रेलवे स्टेशन की तरफ चलने लगा। वह क्रासिंग पार करके रेल लाइन पर आ गया। करीब दो मील तक उस पर चलता रहा। चारों तरफ अँधेरा था, दूर कस्बे के मकानों की रोशनियाँ हलकीहलकी चमक रही थीं। पीछे एक फलाँग की दूरी पर सिग्नल खड़ा था जिसकी लाल-नीली रोशनी उसे दिखाई देती थी। वह फैसला कर चुका था कि जिन्दगी जीने लायक नहीं है, इसलिए अगर इस दुनिया में पैदा होना उसका दुर्भाग्य रहा है तो उसे खत्म कर देने की सबसे अच्छी जगह रेलवे लाइन ही हो सकती है, दूसरा उपाय है-रस्सी! वर्ग पहली में भी यह एक उपाय था; दूसरे थे DOPE, जहर, HOPE, आशा...।

नहीं, ये सभी उपाय बेकार हैं, वह पत्नी और बच्चों के बारे में फिर सोचने लगा। कुछ समझ में नहीं आ रहा था. पूर्ण विनाश ही सबसे आवश्यक है।

वह पटरी पर आड़ा लेट गया। लोहा अब भी गरम था। दिन में भी तो बहुत गरमी थी। रामाराव यह सोचकर खुश होने लगा कि दस मिनट में त्रिचनापल्ली वाली ट्रेन आ जायेगी। वह पटरी पर बहुत देर तक लेटा रहा है। कान लगाकर ट्रेन आने की आवाज सुनने की कोशिश की. लेकिन बहुत दूर हवा या किसी और चीज की 'खू-सँ और खड़-खड़ के अलावा और कोई आवाज उसे सुनाई न दी। लेटे-लेटे वह थकने लगा था। हारकर उठा और स्टेशन पहुँच गया। प्लेटफार्म पर काफी भीड़ थी। उसने किसी से पूछा, 'ट्रेन को क्या हुआ?"

जवाब मिला, 'तीन स्टेशन पहले एक मालगाड़ी उलट गयी है। रास्ता बंद हो गया है। यहाँ से मदद भेज दी गयी है। अब हर गाड़ी तीन घंटे लेट आयेगी।'

'भगवन्, तुम बड़े दयालु हो!" रामाराव जोर से बोला और घर लौट आया।

बीवी बाहर सड़क पर खड़ी इन्तजार कर रही थी। उसे देखकर चैन की साँस ली और इतनी गर्मजोशी से स्वागत किया जैसा अब तक कभी नहीं किया था।

'इतनी देर क्यों हुई?" उसने पूछा। 'पता नहीं क्यों, मैं आज पूरी शाम बहुत परेशान रही। बच्चे भी परेशान थे। बेचारे अभी सोने गये हैं।'

जब वह खाना खाने बैठा, वह बोली, 'हमारे मकान के किरायेदार शाम को आये थे और पूछ रहे थे कि क्या हम मकान बेचना चाहेंगे। वे हमें तुरंत अच्छा पैसा देने को तैयार हैं।' फिर धीरे से कहा, 'मैं सोचती हूँ कि हमें बेच देना चाहिए।'

'अरे, यह तो बहुत अच्छी बात है, 'रामाराव ने उत्साह से कहा। हमें उसके साढ़े चार हजार मिल सकते हैं। पाँच सौ मुझे दे देना-उसे लेकर मैं मद्रास चला जाऊँगा और कुछ करने की कोशिश करूंगा। बाकी, तुम रख लेना और घर चलाना। सबसे पहले हम अच्छी जगह नया घर किराये पर लेंगे...।'

वह धीरे से पूछने लगी, 'ये पाँच सौ रुपये तुम इन पहेलियों पर खर्च करोगे?'

यह सुनकर रामाराव एक क्षण के लिए चुप हो गया, फिर जोर से बोला, 'हरगिज नहीं।'

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