धान की बाली-हाथों की ताली : आदिवासी लोक-कथा
Dhaan Ki Baali-Hathon Ki Taali : Adivasi Lok-Katha
एक लड़की थी जिसका नाम था सोनई। उसके माता-पिता का देहांत हो चुका था। वह अपने चाचा-चाची के पास रहती थी। सोनई की चाची बहुत क्रूर स्वाभाव की थी। वह सोनई से घर के सारे काम कराया करती किंतु उसे भरपेट खाने को भी नहीं देती। एक बार सोनई रसोईघर की सफ़ाई कर रही थी कि उसके हाथ से अचार का मर्तबान टूट गया।
‘जाने दो, मिट्टी का बर्तन था, टूट गया तो टूट गया।’ चाचा ने कहा।
‘अरे वाह! ऐसे कैसे टूट गया? यह मन लगाकर काम नहीं करती है। यदि ये इसी तरह मेरे बरतन तोड़ती रही तो मैं तो कंगाल हो जाऊँगी।’ सोनई की चाची ने चीख़ते हुए कहा।
‘अब जाने भी दो!’ चाचा ने चाची को समझाना चाहा।
मैं कुछ नहीं जानती हूँ, तुम तो इस लड़की को अभी, इसी समय मेरे घर से निकाल दो वरना मैं घर छोड़कर चली जाऊँगी।’ चाची ने चाचा को धमकी देते हुए कहा।
चाचा ने सोचा कि बात बढ़ाने से क्या लाभ है और फिर सोनई को भी इस घर में कौन-सा सुख है? इससे तो अच्छा है कि वह कहीं और जिए, खाए। चाचा ने चाची के कोप से डरकर सोनई को घर से निकाल दिया। घर से निकाले जाने पर गाँव में भटकने लगी। सोनई की चाची के डर से किसी ने भी उसे सहारा नहीं दिया। भूखी-प्यासी सोनई अपना गाँव छोड़कर दूसरे गाँव की ओर निकल पड़ी। उसे दूसरे गाँव का रास्ता पता नहीं था। वह भटकती-भटकती एक जंगल में जा पहुँची। उस जंगल में एक आदमख़ोर शेरनी रहती थी। शेरनी ने सोनई को देखा तो उसकी बाँछें खिल गईं।
‘मैं तुम्हें खा जाऊँगी।’ शेरनी ने दहाड़ते हुए सोनई से कहा।
‘ठीक है, तुम मुझे खा लेना लेकिन अभी तो मैं स्वयं कई दिनों की भूखी हूँ, मेरे शरीर में ऐसा कुछ है ही नहीं जिसे तुम खा सको।’ सोनई ने शेरनी से कहा।
‘तो फिर मैं क्या करूँ? मैं तो हर इंसान को खा जाती हूँ फिर तुमको कैसे छोड़ दूँ?’ शेरनी ने पूछा।
‘तुम ऐसा करो कि पहले मेरे खाने-पीने की व्यवस्था करो। जब मैं खा-पीकर थोड़ी सेहतमंद हो जाऊँ फिर तुम मुझे खा लेना।’ सोनई ने कहा।
शेरनी को सोनई की बात उचित लगी। उसने सोनई को अपनी माँद में रहने को जगह दे दी। मगर खाने को क्या दे, वह सोचने लगी। फिर शेरनी ने एक हिरण मारा और सोनई के सामने रख दिया।
‘लो इसे खा लो।’ शेरनी ने कहा।
‘नहीं मैं हिरण नहीं खा सकती हूँ। मैं तो सिर्फ़ चावल पका कर भात खाती हूँ।’ सोनई ने कहा।
अब शेरनी फिर सोच-विचार में पड़ गई कि सोनई के लिए भात की व्यवस्था कहाँ से की जाए? उसी समय उधर से वनदेवी निकलीं। उन्होंने शेरनी को सोच-विचार में डूबे देखा तो उससे उसकी चिंता का कारण पूछा। शेरनी ने अपनी समस्या वनदेवी को बताई।
वनदेवी उस शेरनी की वास्तविकता जानती थीं। वह शेरनी वस्तुत: सोनई की माँ थी जिसे सोनई चाची ने आदमख़ोर शेरनी बनाकर जंगल में छोड़ दिया था और यह शाप दिया था कि जब शेरनी को उसकी सगी बेटी अपने हाथों से धान की बाली से चावल के दाने निकाल कर भात पका कर खिलाएगी तो वह फिर इंसान बन जाएगी। इस शाप के पीछे सोनई की चाची का सोचना था कि सोनई की माँ आदमख़ोर बन जाने पर यदि अपनी बेटी से कभी मिलेगी भी तो उसे मारकर खा जाएगी। यदि मारकर नहीं खा सकी तो कम से कम भात तो कभी नहीं खाएगी। सोनई की चाची ने एक डायन से मिलकर यह सारा खेल रचा था।
शेरनी के बारे में विचार करके वनदेवी ने शेरनी से कहा, ‘मैं तुम्हारी समस्या दूर किए देती हूँ। मैं सोनई को एक वरदान दे रही हूँ जिससे सोनई जब भी धान की बाली के बारे में सोचकर अपने हाथों से ताली बजाएगी, उसके हाथों से धान की बालियाँ झरने लगेंगी।’
वनदेवी ने सोनई को वरदान दिया और वहाँ से चली गईं। सोनई ने अपने हाथों से ताली बजाया तो उसके हाथों से धान की बालियाँ झरने लगीं। सोनई ने बालियाँ इकट्ठी की और उनमें से चावल के दाने निकाल लिए। फिर मिट्टी की एक हाँडी बनाई और उसे आग पर चढ़ा दिया। हाँडी गर्म होने पर सोनई ने उसमें पहले पानी डाला फिर चावल के दाने डाल दिए। थोड़ी देर में चावल का भात पक गया। सोनई ने महुए के दो पत्ते तोड़े और उन पत्तों पर भात परोस दिया। उसने एक पत्ता अपने सामने रखा और दूसरा शेरनी के सामने।
‘मैं तो भात खाती नहीं हूँ। तुम मेरा हिस्सा भी खा लो ताकि तुम जल्दी मेरे खाने योग्य हो जाओ।’ शेरनी ने कहा।
‘ठीक है यदि तुमको भात नहीं खाना है तो मत खाओ लेकिन मेरा साथ देने को कम से कम चख तो लो। यदि तुम नहीं चखोगी तो मैं भी नहीं खाऊँगी।’ सोनई ने हठ करते हुए कहा।
‘ठीक है, तुम्हारी मुट्ठी भर भात खा लेती हूँ।’ कहते हुए शेरनी ने सोनई की मुट्ठी भर भात खा लिया।
शेरनी ने जैसे ही भात खाया, वैसे ही चमत्कार हो गया। शेरनी एक स्त्री में बदल गई। यह देखकर सोनई को बहुत आश्चर्य हुआ। फिर सोनई और वह स्त्री परस्पर बातें करती हुई भात खाने लगीं। बातों-बातों में सारी कहानी सामने आ गई। सोनई यह जानकर बहुत ख़ुश हुई कि वह स्त्री उसकी माँ है। माँ ने भी सोनई को अपने गले से लगा लिया। इसके बाद माँ-बेटी अपने गाँव पहुँचीं। गाँव में जिसने भी सोनई की माँ को जीवित देखा, वह चकित रह गया। तब सोनई ने गाँव वालों को एकत्र किया और अपनी चाची के बारे में सबको बता दिया कि उसने कैसे उसकी विधवा माँ को एक आदमख़ोर शेरनी में बदलवा दिया था। गाँव वालों को जब चाची की इस करतूत का पता चला तो उन्होंने चाची को मार-मारकर गाँव से भगा दिया। चाचा ने भी सोनई और उसकी माँ से क्षमा माँग ली।
सोनई अपनी माँ के साथ अपने गाँव में हँसी-ख़ुशी से रहने लगी।
(साभार : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं, संपादक : शरद सिंह)