दयावती गाय : पंजाबी लोक-कथा
Dayawati Gaay : Punjabi Lok-Katha
एक शहर में एक राजा रहता था। उसकी एक रानी थी। रानी के एक लड़का और एक लड़की थी। एक दिन रानी चारपाई पर लेटी छत की ओर एकटक देख रही थी, तभी उसकी नज़र एक चिड़िया के घोंसले पर गई। उस चिड़िया के दो बच्चे थे। तभी चिड़िया की मृत्यु हो गई और वहाँ एक नई चिड़िया आ गई। उसने पहली चिड़िया के बच्चों को घोंसले से बाहर कर दिया। यह देखकर रानी के हृदय में यह विचार आया कि भगवान न करे यदि कल को मेरी मृत्यु हो जाती है, तो राजा दूसरा विवाह करवा लेगा और फिर मेरे बच्चों के साथ भी ऐसा ही होगा जैसा कि चिड़िया के बच्चों के साथ हुआ है। रानी को बड़ी चिन्ता होने लगी। वह चादर ओढ़ कर लेट गई।
जब राजा बाहर से आया तो उसने कहा, “रानी ! तुम इस तरह क्यों लेटी हो ?" रानी ने कहा, "कुछ न पूछो।" राजा ने फिर से पूछा, “रानी तुम इस तरह क्यों लेटी हो ?" फिर भी रानी ने कोई उत्तर नहीं दिया। राजा ने तीसरी बार यही प्रश्न पूछा तो रानी ने कहा, “वायदा करो, तुम मेरी मृत्यु के बाद दूसरा विवाह नहीं करवाओगे। राजा ने कहा, “यह तो बड़ी साधारण-सी बात है। मैं दूसरा विवाह नहीं करवाऊँगा।" रानी की कुछ समय पश्चात् मृत्यु हो गई।
पहले तो राजा ने दूसरा विवाह नहीं करवाया, परन्तु अन्त में लोगों के कहने और समझाने पर उसने दूसरा विवाह करवा लिया। नई रानी के घर दो लड़कों ने जन्म लिया। रानी एक दिन चादर लेकर लेट गई।
राजा आया तो उसने रानी से पूछा, “रानी ! क्या बात है, तुम आज बहुत उदास क्यों हो?' यह सुनकर रानी ने कहा, “राजन् ! कोई विशेष बात नहीं है।” परन्तु राजा को लगा कि हो न हो, ज़रूर कोई बात है। राजा ने फिर से रानी से यही प्रश्न किया तो रानी कहने लगी, "आप एक गाय लाओ। पहली रानी का पुत्र उस गाय को चराया करे।" इस पर राजा ने कहा, "बस इतनी-सी बात है। मैं आज ही गाय लेकर आता हूँ।" राजा ने गाय अपने पुत्र को लाकर दे दी और वह अब अपने पिता की आज्ञा के अनुसार उस गाय को चराने लगा। गाय चराते-चराते उसमें और गाय में काफी स्नेह हो गया।
जिस वन में वह उस गाय को चराने के लिए जाया करता था, वहाँ उसकी छोटी बहन रोटी लेकर जाती थी और दोनों भाई-बहन बैठ कर चोकर की रोटियाँ खाया करते थे। गाय ने उनका यह हाल देखकर भगवान से प्रार्थना की। गाय की प्रार्थना सुनकर भगवान ने एक बाँसुरी भेज दी और यह कहा कि जब भी कोई व्यक्ति यह बाँसुरी बजाएगा, तब भोजन का थाल उसके आगे प्रस्तुत हो जाएगा। आगे ऐसा ही होते रहने से वे दोनों भाई-बहन स्वादिष्ट भोजन का सेवन करने लगे और महल से लाई हुई चोकर की रोटियाँ वे गाय को डालने लगे। रानी ने सोचा कि पहली रानी का पुत्र और पुत्री अब पहले से बहुत अधिक स्वस्थ होते चले जा रहे हैं। एक दिन रानी ने छिप कर सब देख लिया। उसने अनुमान लगा लिया कि हो न हो, इसी गाय की किसी दैवीशक्ति के कारण वह बाँसुरी इन बच्चों को मिली है। तो वह एक बार फिर से रूठ कर बैठ गई।
राजा महल में आया और पूछने लगा, "रानी ! क्या बात है ?” रानी ने उत्तर दिया, “कुछ नहीं। राजा ने फिर से पूछा तो रानी ने कहा, “आप उस गाय को बेच दो, जो आपने पुत्र को चराने के लिए दी थी। राजा ने कहा, "बस इतनी-सी बात है !" अगले दिन राजा ने शहर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि राजा की गाय जिसे चाहिए, वह आ कर उसे ख़रीद सकता है। यह बात सुनकर दोनों भाई-बहन रोने लगे। गाय ने कहा, “बेटा ! दुःखी मत हो, मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगी। जब कोई मुझे ख़रीदने आएगा तो उसे तुम मेरे पास फटकने मत देना। जहाँ तक हो सके, उसे मारने की ही कोशिश करना।” उधर पूछने पर एक पण्डित ने राजा को कहा कि गाय, लड़का और लड़की तीनों को खुला छोड़ दो, वे जिधर भी जाना चाहें, उन्हें बिना किसी रोक-टोक के जाने दो। पण्डित की बात राजा को जँच गई। राजा ने ठीक वैसा ही किया। उसने गाय को खुला छोड़ दिया। फिर लड़का और लड़की भी उसके पीछे चलने लगे। गाय अब एक नदी के तट पर पहुँच गई । इसके बाद उसी गाय के साथ लड़का और लड़की भी वहीं पर रहने लगे। उन्होंने वहाँ पर अपने रहने के लिए एक कुटिया भी बना ली।
एक दिन गाय ने कहा, "जितना दूध पीना चाहते हो, पी लिया करो और शेष बचा हुआ दूध उस पीतल के बर्तन के नीचे साँप के एक बिल में डाल आया करो। सवा महीने के बाद उस बिल में से एक बड़ा-सा साँप निकलेगा। तुम उससे डरना मत। वह तुम्हें कहेगा, “माँगो बेटा, तुम क्या माँगते हो। तुम उससे उसके सिर की मणि माँग लेना।" गाय की बात सुनकर अब वह लड़का रोज़ाना जाकर उस बिल में दूध डालने लगा।
सवा महीने बाद उस बिल में से एक साँप निकला, साँप ने लड़के से कहा, "मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ। माँगो, तुम्हें क्या चाहिए ?" लड़का कहने लगा, "आपकी कृपा से सब कुछ हमारे पास है।” इस पर उस बड़े साँप ने फिर पूछा, “माँगो, तुम्हें क्या चाहिए ?” लड़के ने फिर से कहा, “महाराज ! आपकी कृपा से सब कुछ हमारे पास है।” साँप ने फिर से कहा, 'यह तीसरा वचन है, माँगो, क्या माँगना चाहते हो?” लड़के ने कहा, "यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं, तो मुझे आपके सिर की मणि चाहिए। आप मुझे अपने सिर की यह मणि दे दें।” साँप ने लड़के को अपनी मणि दे दी। जब लड़के ने वह मणि अपने सिर पर रखी, तब उसके सभी बाल सोने के हो गए। उसने मणि जब जाकर कुटिया में रखी तो उसी समय उनकी सभी कुटिया भी सोने की बन गई।
एक दिन लड़के ने अच्छी प्रकार से अपने केश सँवार कर, कंघी साफ करके कुछ बाल दरिया में फेंक दिए। उस समय वहाँ पर किसी शहर की लड़कियाँ एक धार्मिक रस्म पूरी करने के लिए वहाँ आई हुई थीं। उनमें से एक तो किसी राजा की बेटी थी, जो विवाह नहीं करवाना चाहती थी। उसकी दृष्टि उन बालों पर पड़ी और उसने दरिया में से वे बाल निकाल लिए और राजा के पास ले गई। वह राजकुमारी अपने पिता से कहने लगी, 'पिताजी ! जिस लड़के के ये सोने के बाल हैं, मैं उसी से विवाह करना चाहती हूँ।" राजा ने चारों दिशाओं में उसके रिश्ते के लिए अपने दूत भेज दिए और कहा कि जिसे भी सोने के बालों वाला वह लड़का मिले, उसे विवाह के शगुन के रूप में एक सिक्का दे दिया जाए। उनमें से दो दूत उस ओर भी आ गए, जिस ओर वह लड़का कुटिया में रहता था। जब दूत उसी ओर आए, तो रास्ते में चलते-चलते उनको रात हो गई। दूतों ने जब उस लड़के से उसकी कुटिया में रात बिताने के लिए पूछा तो लड़के ने कहा, "तुम यहाँ रात बिता सकते हो।" उस समय लड़का और उसकी बहन खाना खा चुके थे। लड़के ने फिर से दो बार बाँसुरी बजाई और रोटी के थाल वहीं प्रस्तुत हो गए। खाना खाने के बाद फिर से बाँसुरी बजाई तो थाल फिर से वापस चले गए। उन दूतों ने देखा कि कुटिया सोने की है और इस लड़के के बाल भी अवश्य ही सोने के होंगे।
सुबह उठ कर लड़के ने सबसे पहले दूतों को स्नान करवाया और उसके बाद जब स्वयं स्नान किया तो लड़के द्वारा बाल सँवारते हुए उन दूतों ने देखा कि उसके बाल सचमुच ही सोने के हैं। फिर उन दूतों ने उस लड़के के हाथ में राजा का दिया हुआ सिक्का थमाया और सारी बात बताई। लड़के ने निशानी के रूप में उनको दो मुट्टियाँ राख की बाँध दीं। फिर उनसे कहा, “देखना, इस गठरी को राजा ही खोले। तुम इसे स्वयं मार्ग में मत खोल लेना। वापसी पर पथ में ही राजा के दूतों ने सोचा कि राजा उनको इस बात के लिए अवश्य ही फटकार देगा कि तुम ऐसे व्यक्ति से मेरी बेटी का रिश्ता तय करके आए हो, जिसने शगुन के रूप में केवल राख की दो मुट्ठियाँ भर बाँध कर तुम्हें दे दी हैं। फिर भी लड़के की बात मानते हुए उन्होंने मार्ग में उसकी दी हुई गठरी को खोलने की गलती नहीं की।
जब राजा ने गठरी खोली, तो उसमें से सोने के ढेर सारे सिक्के और मोहरें निकलीं। राजा ने विवाह का दिन निश्चित करने के लिए दूत को भेजा। लड़के ने कहा, "बारात में मैं, मेरी बहन और हमारी एक गाय आएगी। राजा ने कहा, “जैसी आपकी इच्छा हो, ले आना और हमारी लड़की से विवाह करके उसे ले जाना।"
बारात चल पड़ी और विवाह बहुत अच्छे ढंग से सम्पूर्ण हो गया। अब वे फिर से कुटिया में रहने लगे। एक दिन उस लड़के की पत्नी ने कहा, "आप जहाँ इस कुटिया से पूर्व रहा करते थे, वहाँ मुझे ले चलो। लड़का गाय को साथ लेकर उस शहर में जा पहुँचा। सारी शहर में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई कि राजा का बेटा विवाह करके लौट आया है।
लड़के ने देखा कि अब तक उसकी सौतेली माँ की मृत्यु हो चुकी है और उसका पिता राजा इन दिनों बहुत अस्वस्थ है। उसने अपने पिता की चिकित्सा करके उसको ठीक कर दिया और स्वयं राज्य करने लगा। अब दोनों ही प्रसन्नतापूर्वक रहने लगे। शहर में ढिंढोरा पिटवा दिया गया कि जिस भी व्यक्ति के पास गाय हो, वे आकर राजदरबार में अपना नाम दर्ज करवाएँ। ऐसा करने से हरेक गाय के स्वामी को नित्य ही राजदरबार की ओर से दाना और घास मुफ्त प्रदान किये जाएँगे। ऐसी घोषणा उस राज्य में पहली बार हुई थी, इससे सारी प्रजा बहुत प्रसन्न हुई और राजा, रानी आदि राजपरिवार के सभी सदस्यों के चिरंजीवी होने के लिए ईश्वर से प्रार्थनाएँ करने लगी। इस प्रकार उस लड़के ने स्वयं राजा बनकर एक आदर्श राज्य की नींव डाली और अपनी प्रजा को भी सुखी किया।
साभार : डॉ. सुखविन्दर कौर बाठ