डायन : पंजाबी लोक-कथा

Dayan : Punjabi Lok-Katha

बहुत समय पहले की बात है एक गाँव में दो आजड़ी बड़े प्यार से इकठे रहते थे और सांझ-साझ में ही काम-धंधे कर लिया करते थे। उनमें से एक जब चालीस वर्ष का हुआ तो उसकी मृत्यु हो गई, परन्तु दूसरा अभी यौवनावस्था में ही था।

एक बार उसके घर में एक डायन आ गई। वह डायन रात को उसकी भेड़ें खाकर, दिन में छुप जाती थी। छोटा आजड़ी सुबह उठकर देखता है कि भेडों की गिनती कम हो रही है। उसे इस बात का पता ही नहीं चल रहा था कि आखिरकर भेड़ें कहाँ जाती हैं ?

जब भेड़ें खत्म हो गईं तो वह डायन उस भेड़ों वाले के ही पीछे पड़ गई। वह अब आजड़ी को खाने के लिए तड़प रही थी। आजड़ी उसके आगे दौड़ पड़ा और वह डायन उसका पीछा करते-करते एक घने जंगल में से गुजरी। जाते-जाते ही उसने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर लिया, तो रास्ते में आजड़ी और डायन एक राजा से टकरा गए, उस राजा की डोली जा रही थी, राजा ने पूछा, “भई तुम इसके आगे क्यों भागे जा रहे हो ?" आजड़ी ने कहा, "यह मेरी पत्नी बनना चाहती है, परन्तु मैं इससे विवाह नहीं कर सकता। यदि आपकी इच्छा है तो आप इससे विवाह कर सकते हो।" यह बात सुनकर राजा मान गया। उसने अपनी इच्छा से उस स्त्री को अपनी सातवीं पत्नी बना लिया। इस प्रकार आजड़ी ने बड़ी कठिनता से उस डायन से छुटकारा प्राप्त कर लिया और अपनी जान बचाकर सकुशल घर को वापस आ गया।

राजा जब अपनी नगरी में वापस लौटा तो अपनी सातवीं रानी को सबसे ज्यादा प्यार करने लगा, परन्तु वह रानी डायन बनकर रात को राजा के हाथी, घोड़े खा जाया करती थी और राजा को इस बात की भनक तक न पड़ी। जब वह ऐसे ही खाती रही तो हाथी, घोड़ों की मात्रा कम हो गई। एक दिन उस डायन ने बाकी रानियों के मुँह पर खून लगा दिया, जब सुबह उठकर राजा ने यह देखा, तो वह अत्यन्त क्रोधित हो उठा। सातवीं रानी ने राजा को उन सबके प्रति खुब भडकाया और राजा ने रानियों को बुलाकर उनको कुएँ में गिरवा दिया। अब डायन रानी महल में खुशी से रहने लगी। इसका कारण यह था कि अब वह पूरे राज्य की रानी जो बन चुकी थी।

ईश्वर की कृपा से जिस कुएँ में रानियों को गिराया गया था, उस कुएँ का पानी सूख गया। कुएँ में रहती हुई रानियाँ खूब तड़पने लगीं। एक रानी के यहाँ पुत्री ने जन्म लिया तो दूसरी रानियों ने कहा, “चलो बहन । हम इसको खा लें।" उन्होंने उस लड़की के छः टुकड़े कर दिए। पाँच रानियों ने तो अपना-अपना हिस्सा खा लिया, परन्तु सबसे छोटी रानी ने अपना हिस्सा संभाल कर रख दिया। इस प्रकार पाँचों रानियों के यहाँ बेटियाँ हुई और वे उनके हिस्से करके खाती रहीं। छोटी रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। वह चार वर्ष का हुआ, तो रानियों ने कहा, “चलो हम इसे भी खा लेते हैं। यह कौन-सा हमें अपनी पुत्रियों से प्यार है।” छोटी रानी ने उत्तर दिया, "लो ये अपनी बेटियों के हिस्से । मैंने तो तुम्हारी बेटियों के टुकड़े खाए नहीं, तो तुम मेरे पुत्र को कैसे खा सकती हो ? रानियों ने अपनी पुत्रियों के टुकड़े लेकर उन्हें भी खा लिया।

अब वह लड़का दस वर्ष का हुआ तो रानियाँ मेंढक और कीड़े-मकौड़े खाकर अपना जीवन निर्वाह करती रहीं या कभी फूल-पत्ते, जो कुछ भी मिलता, उनको खा कर अपना निर्वाह करने लगी। अब लड़का कुएँ में से बाहर जाने लगा। वह गाँव जाकर रानियों के लिए भोजन माँग कर लाता। रानियाँ अपना अच्छे से गुज़ारा करने लगी और उस लड़के को आशीर्वाद देने लगी। छोटी रानी की भी वे इज्जत करने लगी। उस लड़के की शक्ल-सूरत राजकुमारों जैसी थी। एक बार डायन रानी ने उसे कुएँ में से बाहर निकलते देख लिया था। वह ईर्ष्या के मारे राख हो गई और उसे यह भी पता चल गया कि ये उनको खाना भी लाकर देता है। डायन रानी ने लड़के को अपने पास बुलाया और कहा, “बेटा ! तुम खाना देकर मेरे पास आना।" लड़का रोटी देकर चला गया और डायन बनी रानी के पास पहुंच गया। उस डायन ने लड़के को एक पत्र दिया और कहा, 'मेरे माता-पिता दैत्य हैं, मेरे मामे शेर और चीते हैं तथा चाचे और ताये गीदड़ हैं। तुम उनको यह पत्र दे आओ, वे तुम्हारा स्वागत करेंगे।" मार्ग में लड़के को भगवान के कुछ फरिश्ते मिल गए। उन्होंने उस पत्र को पकड़ लिया और पूछने लगे कि, 'इस पत्र में क्या लिखा है ?" उन्होंने उस पत्र को पढ़ा तो पाया कि उसमें लिखा था, "शेरो, चीतो ! तुम्हारा भानजा आ रहा है। इसे खा लेना।” फरिश्तों ने वह पत्र फाड़ दिया और उसके स्थान पर लिख दिया, "शेरों, चीतों ! तुम्हारा भानजा आ रहा है। तुम इसका अच्छे से स्वागत करना।

पत्र शेरों के देश में पहुँच गया। शेर लड़के के सामने आए तो लड़के ने उनके आगे पत्र रख दिया। पत्र देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए। वह शेरों के राजा के पास उस लड़के को ले गए और राजा ने उसे अपनी पीठ पर बैठाकर सैर करवाई। शेर ने कहा, "तुम मेरी पीठ से एक बाल खींच लो, जोकि तुम्हारे बहुत काम आएगा। जब भी तुम संकट में होगे, तो इस बाल को हिला देना। हम हाजिर हो जाएंगे। अब तुम आगे जा आओ, जिससे मिलना है उनसे मिल आओ।"

अब लड़का दैत्यों के देश में जा पहुँचा और वे भी उसे खाने के लिए आगे बढ़े। परन्तु लड़के ने पहले ही उनको पत्र दे दिया। वे सभी उस पत्र को पढ़कर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने लड़के को उठाया और अपने महाराज के पास ले गए। दैत्य यह जानकर बहुत ही प्रसन्न हुआ कि यह तो मेरा दोहता है। दैत्य ने उस लड़के की बहुत सेवा-सुश्रुषा की और रोज उसे नए-नए व्यंजन खिलाने लगे। इस प्रकार उस देश में रहते हुए उसे एक वर्ष बीत गया। उसने अपनी नानी माँ से पूछा, "यह चक्की कैसी है ? इसके मध्य और इर्द-गिर्द मुर्गी क्यों रखी हुई है और इन कबूतरों, तोतों का यहाँ क्या काम है ?" यह सुनकर नानी ने बताया, “बेटा ! यदि इस चक्की को उल्टा घुमा दिया जाए तो सभी दैत्य देश छोड़ जाएंगे हैं और कभी भी वापस नहीं आ सकते। इस मुर्गी में तुम्हारी अम्मा के प्राण हैं। कबूतर में तुम्हारे मामा के प्राण हैं और इन तोतों में तुम्हारे फूफा और मौसा के प्राण हैं।"

एक दिन नानी जब किसी काम से बाहर गई तो लड़के ने चक्की को उल्टा चक्र दे दिया। इस प्रकार वह दैत्य देश छोड़ गए। लड़का कबूतर, तोते और मुर्गी को उठाकर अपने देश चल पड़ा। जब लड़का अपने देश में पहुँचा, तो यह देखकर डायन रानी चकित हो गई और सोचने लगी कि, “ये बच कैसे गया ?" डायन यह देखकर उसे खाने के लिए जब आगे आने लगी, तो उसने मुर्गी की टाँगें तोड़ दी और इसके साथ ही डायन की टाँगे भी टूट गईं। इस कारण अब वह चल नहीं पा रही थी। जब वह किसी सहारे से उस लड़के के पास आने लगी, तो लड़के ने उसका गला दबा दिया। डायन की वहीं पर मृत्यु हो गई।

राजा को जब इस बात का पता चला, तो वह लड़के के पास आकर कहने लगा, "हे बदमाश ! दुष्ट ! तुमने मेरी रानी का खून कर दिया है। मैं तुम्हें कड़ा दण्ड दूंगा।" यह सुनकर लड़के ने डरते हुए कहा, "महाराज ! मैंने तो तुम्हारी रानी का स्पर्श भी नहीं किया। मैंने तो इस मुर्गी को ही मारा है। आप चाहे तो देख लो।" राजा क्रोधित होकर आगे आया तो लड़के ने हिम्मत करते हुए बड़े निडर भाव से कहा, “महाराज ! आप अकेले मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे।" लड़के ने राजा को बहुत समझाने का प्रयत्न किया और कहा कि, “आप शान्त होकर मेरी बात सुनिए। परन्तु राजा पहले से भी ज्यादा भड़क गया और उसने अपनी सेना को बुला लिया।

लड़के ने उसी समय उस शेर राजा का बाल अपनी जेब से निकाला और उसे जोर-जोर से हिलाना आरम्भ कर दिया। इस कारण जंगल के सभी प्रकार के शेर और चीते राजा की सेना पर टूट पड़े। अब राजा लड़के के चरणों में गिर पड़ा और 'मुझे बचा लो, मुझे बचा लो' कहकर त्राहिमाम करने लग गया। लड़के ने उसे खड़ा किया और कहा, “मैं तो तुम्हारा ही पुत्र हूँ, परन्तु आपने मेरी बात सुनने से इन्कार कर दिया था। लड़के ने एक ईशारा किया, तो सभी शेर और चीते अदृश्य हो गए।

फिर लड़के ने राजा को बताया कि यह आपकी सातवीं रानी वास्तव में एक डायन थी। अच्छा हुआ उसकी मृत्यु हो गई। आपकी शेष सभी रानियाँ कुएँ में जीवित हैं। उन्हें जाकर निकलवा लीजिए। नौकर रानियों को डोली में बिठाकर राजमहल लेकर आए। इसके उपरान्त राजा ने अपना राज्य अपने पुत्र के नाम कर दिया और स्वयं भगवान की भक्ति में लीन हो गया।

साभार : डॉ. सुखविन्दर कौर बाठ

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