दवा (व्यंग्य) : हरिशंकर परसाई
Dava (Hindi Satire) : Harishankar Parsai
कवि ‘अनंग’ जी का अन्तिम क्षण आ पहुंचा था।
डाक्टरों ने कह दिया कि यह अधिक से अधिक घंटे भर के मेहमान हैं। अनंग जी पत्नि ने कहा कि कुछ ऐसी दवा दे दें जिससे पांच छः घण्टे जीवित रह सकें
ताकि शाम की गाड़ी से आने वाले बेटे से मिल लें। डाक्टरों ने कहा कि कोई भी दवा इन्हे घण्टे भर से अधिक जीवित नहीं रख सकती।
इसी समय अनंग जी के मित्र आए। वे बोले ‘‘मैं इन्हे मजे से कई घण्टे जीवित रख सकता हूं।’’
डाक्टरों ने हंस कर कहा ‘‘यह असंभव है।’’
मित्र ने कहा ‘‘खैर मुझे कोशिश तो कर लेने दीजिए । आप सब लोग बाहर हो जाइये।’’
सब बाहर चले गए। मित्र अनंग जी के पास बैठे और बोले ‘‘अनंग जी, अब तो आप सदा के लिए चले। यह सुललित कण्ठ अब कहां सुनने को मिलेगा। जाते जाते कुछ सुना जाइये।’’
यह सुनते ही अनंग जी उठ कर बैठ गए और बोले, ‘‘मन तो नहीं है पर आपकी प्रार्थना टाली भी नहीं जा सकती। अच्छा अलमारी में से कापी निकालिये न’’।
मित्र ने कापी उठा कर हाथ में दे दी और अनंग जी कविता पाठ करने लगे। घण्टे पर घण्टे बीतते गए। शाम को गाड़ी आ गयी और लड़का भी आ गया। उसने कमरे में घुसते ही देखा कि पिता जी कविता पढ़ रहे हैं और उनके मित्र मरे पड़े हैं।