डेज़ी (गुलबहार-डैनिश कहानी) : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन

Dasy (Danish Story in Hindi) : Hans Christian Andersen

मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ। किसी गाँव के एक घर में सुंदर बगीचा था, जिसके चारों तरफ सफेद बाड़ थी। बाड़ की दूसरी तरफ नाला और एक सड़क थी। उसके किनारे पर लगी घास में एक डेज़ी का पौधा खिला था। सूरज उस छोटे-से जंगली पौधे पर वैसे ही अपनी धूप डालता था जैसे कि बगीचे में बोए गए सुंदर फूलों पर। डेज़ी का पौधा लंबा होता जा रहा था। एक सुबह उसमें फूल फूटा, उसकी पत्तियाँ सफेद थीं और बीच में पीला बटन जैसा था, जैसे सूरज हो। वह यह नहीं जानती थी कि लंबी घास में कोई उसे देख नहीं पाएगा, और न ही वह यह जानती थी कि लोग जंगली फूलों से नफरत करते हैं। नहीं, वह संतुष्ट थी; वह गरम सूरज की तरफ चेहरा किए उसे देखती रहती थी और लवा पक्षी का गीत सुनती रहती थी।

उस दिन छोटी-सी डेज़ी ऐसी खुश थी जैसे वह दिन सोमवार न होकर कोई छुट्टी का दिन हो। सब बच्चे स्कूलों में अपने डेस्कों पर कुछ सीख रहे थे और यह अपनी टहनी पर लगी कुछ सीख रही थी। उसने यह जाना कि सूरज का स्पर्श गरम होता है और जीवन खुशियों से भरा होता है। उसका मानना था कि लवा पक्षी का गाना संसार में सबसे अच्छा है। उसके सुरों में उसे अपनी भावनाएँ छिपी लगती थीं। वह उसे देखती थी कि वह गाने के साथ उड़ भी सकती थी। पर उसे इस बात से न उदासी होती थी, न जलन कि उसके पास यह चीजें नहीं थीं। वह सोचती थी कि मैं सुन सकती हूँ और देख सकती हूँ। सूरज मुझे गरमाई देता है और हवा मुझे चूमती है; मैं तो बहुत अमीर हूँ।

बाड़ की दूसरी तरफ वाले बगीचे में बड़े सुंदर फूल लगे थे जो बड़े हो रहे थे। उनमें खुशबू कम थी, पर गर्व बहुत था । पियोनिया फूल अपने को फुलाकर गुलाब से बड़ा होना चाहता था हालाँकि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। ट्यूलिप फूलों का रंग बड़ा सुंदर था और वे इस बात को जानने की वजह से सीधे तने खड़े थे जिससे सबकी नज़र उन पर पड़े। उनमें से किसी ने भी बाड़ के बाहर डेज़ी की तरफ ध्यान तक नहीं दिया। पर वह उन्हें देख रही थी और सोच रही थी 'ये फूल कितने महँगे और सुंदर लग रहे हैं। मैं जानती हूँ कि सुंदर गीत गाने वाली वह चिड़िया उनके पास ज़रूर जाएगी। भगवान का शुक्र है कि मैं इनके पास ही हूँ। मैं यहीं से सब कुछ देख सकूँगी।'

उसी वक्त लवा जमीन पर उतरी लेकिन वह पियोनिया या ट्यूलिप के पास न जाकर डेज़ी के पास की घास पर उतरी। बेचारी डेज़ी इतनी इज्ज़त पाकर ऐसी अचकचा गई कि समझ ही नहीं पा रही थी कि क्या सोचे।

छोटी-सी चिड़िया डेज़ी के आस-पास नाच-नाचकर गा रही थी, 'घास कितनी नरम है, यह छोटा-सा फूल कितना प्यारा है। इसके दिल में सोना है, इसकी पोशाक चाँदी की है। असल में लवा को डेज़ी के बीच का पीला रंग सोने जैसा लगा और उसकी सफेद पत्तियाँ चाँदी जैसी चमक रही थीं।

डेज़ी की खुशी का बयान नहीं किया जा सकता। चिड़िया ने अपनी चोंच से उसे चूमा, उसके लिए गाना गाया; और फिर नीले आकाश में उड़ गई। डेज़ी को सहज होने में पन्द्रह मिनट लगे। उसने शरमाते हुए बगीचे की तरफ नजर डाली, उसे लगा सब फूलों ने उसे इज़्ज़त पाते हुए देखा होगा। पर ट्यूलिप पहले जैसे सीधे खड़े थे, सिर्फ गुस्से से उनके चेहरे कुछ और लाल हो गए थे। पियोनिया मोटे दिमाग के थे। अच्छी बात यह थी कि वे बोल नहीं सकते थे, नहीं तो शायद डेज़ी को एक-दो बात सुना देते । पर जंगली फूल को उनकी नाराज़गी का पता चल गया था जिससे वह दुखी हुई। उसी समय एक नौकरानी तेजधार वाला चाकू हाथ में लिए हुए बगीचे में गई और सीधी ट्यूलिप तक गई और एक के बाद एक सारे फूल काट लिए।

डेज़ी ने ठंडी साँस लेते हुए सोचा, 'कितनी बुरी बात है कि उनके लिए जीवन खत्म हो गया।' नौकरानी फूल लेकर घर में चली गई। अब डेज़ी खुश थी कि वह बाड के दूसरी तरफ घास में थी और सिर्फ एक जंगली फूल थी। रात आने पर उसने अपने पत्ते मोड़े और सोकर चिड़ियों और सूरज की गरमाई के सपने देखने लगी।

अगले दिन जब सुबह की ताजी हवा में डेज़ी ने खुशी-खुशी अपने पत्ते ऐसे खोले जैसे गोरी-गोरी नन्ही बाँहें हों तो उसे फिर चिड़िया का गाना सुनाई दिया, पर अब उसकी आवाज़ और गाना दुःखी और उदास था। उसके दुःख का कारण यह था कि उसे पकड़कर पिंजड़े में डाल दिया गया था। पिंजड़ा खुली खिड़की में रखा था पर वह उसमें बंद थी और बहुत उदास थी। वह उस वक्त के गीत गा रही थी जब वह ऊँचे आकाश में उड़ते हुए या अनाज के हरे-भरे खेतों में गाया करती थी। तब उसके पंखों में आज़ादी की ताकत होती थी।

छोटी डेज़ी उसकी मदद करना चाहती थी पर कैसे करती? यह मुश्किल काम कैसे किया जाए, इसी सोच में डेज़ी अपने आस-पास की और अपने सफेद पत्तों की खूबसूरती सब भूल गई। वह सिर्फ उस चिड़िया के बारे में सोच रही थी जो पिंजरे में थी और जिसकी वह मदद नहीं कर सकती थी। तभी दो छोटे लड़के बगीचे में गए; एक के हाथ में तेज़ चाकू था। वह ठीक वैसा ही था जैसे चाकू से नौकरानी ने फूल काटे थे। लड़के डेज़ी के सामने रुके, वह समझ गई कि वे क्या करने वाले हैं।

जिस लड़के के हाथ में चाकू था उसने घास पर एक चौकोर निशान लगाया, डेज़ी उनके बीच में थी। लड़का बोला, 'यह घास काट कर पक्षी के लिए ले जाते हैं।' उसने ज़मीन में सिर्फ इतना गहरा काटा कि घास की जड़ न कटे।

दूसरा लड़का बोला, 'फूल को उखाड़ दो।' डेज़ी उखाड़े जाने के डर से काँपने लगी, क्योंकि उखड़ने का मतलब मरना था जबकि वह पिंजरे में पक्षी के पास जाना चाहती थी।

चाकू वाला लड़का बोला, 'रहने दो, यह अच्छा लग रहा है।' डेज़ी को पिंजरे के नीचे रखी गई घास में छोड़ दिया गया।

बेचारी चिड़िया अभी भी अपनी आज़ादी के छिन जाने पर रो रही थी। वह अपने पंख पिंजरे के लोहे के जाल पर मार रही थी। डेज़ी कुछ बोल नहीं सकती थी, इसलिए तसल्ली नहीं दे पा रही थी।

सुबह से दोपहर हो गई। बेचारी कैद चिड़िया दुखी थी, 'पानी नहीं है। वे सब चले गए। मुझे एक बूंद पानी तक नहीं दे गए कि मैं पी लूँ। मेरा गला सूखकर जल रहा है। ऐसा लग रहा है कि मेरे अंदर बर्फ और आग है। हवा भारी है। मैं मर जाऊँगी। और फिर कभी ईश्वर की बनाई खूबसूरती, सूरज की गरम धूप, यह हरियाली कुछ भी नहीं देख पाऊँगी।'

चिड़िया ने अपनी चोंच घास में गड़ा दी क्योंकि वहाँ ठंडक थी। फिर उसने डेज़ी को देखा, गरदन हिलाई, उसे चूमा, 'बेचारे फूल, तुम्हें भी यहाँ मुरझाकर मरना पड़ेगा। सारी दुनिया के बदले में मुझे यह छोटा-सा घास का टुकड़ा दिया गया है। अब घास को पेड़ और तुम्हारी हरी पत्ती को खुशबू वाला पेड़ मानना पड़ेगा। सिर्फ तुम मुझे मेरी आज़ादी की कहानी सुना सकती हो।'

डेज़ी सोच रही थी, काश मैं उसे तसल्ली दे पाती, पर वह तो अपने पत्ते भी नहीं हिला पा रही थी। पर उससे आने वाली खुशबू आम डेज़ी के फूलों की खुशबू से कहीं ज्यादा तेज़ थी। चिड़िया यह समझ रही थी। इसीलिए दर्द से बेचैन होकर जब वह घास उखाड़ रही थी तब भी उसने फूल को नहीं छुआ।

शाम हुई, पर कोई उस बेचारी चिड़िया के लिए पानी नहीं लाया। उसने अपने पंख फैलाए, उसका छोटा-सा शरीर काँपा, फिर उसने अपना सिर फूल की तरह मोड़ा। दिल में आज़ादी की चाहत और पानी की इच्छा लिए, एक आखिरी आवाज़ के साथ वह मर गयी। डेजी उस रात पिछली रात की तरह अपने पत्ते नहीं मोड़ पाई। उसने दुखी होकर अपना छोटा-सा सिर नीचे की तरफ झुका दिया।

अगली सुबह लड़के आए। पक्षी को मरा हुआ देखकर बहुत दुखी हुए। उन्होंने एक छोटी-सी कब्र खोदी। उसमें पत्ते बिछाए। पक्षी के शरीर को एक सुंदर लाल डिब्बे में रखा और बड़े शाही ढंग से बेचारे को दफना दिया। जब वह जिंदा थी, गा सकती थी तब बेचारी को पिंजरे में बंद कर दिया, प्यास से तड़पती को पानी तक नहीं दिया, पर मरने के बाद उसके ठाठ हो गए और उन्होंने उसके लिए आँसू भी बहाए।

घास का टुकड़ा डेज़ी के साथ धूल-भरी सड़क पर फेंक दिया गया। किसी ने उस छोटे-से फूल की तरफ ध्यान भी नहीं दिया। पर उसे पक्षी के लिए बहुत दुःख हुआ था। और वह उसे तसल्ली दिलाने की पूरी कोशिश करती रही थी।

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