यहूदी की कब्र (जर्मन कहानी) : रिकार्डा हख (अनुवाद : रामप्रताप गोंडल)
Das Judengrab (The Jewish grave; German Story in Hindi) : Ricarda Huch
जेद्दाम में सिर्फ एक यहूदी था और वह वहां इस प्रकार पहुँच गया था उसकी स्त्री, जिसे वह बहुत प्यार करता था, जेद्दाम में पैदा हुई थी। जब उस स्त्री का पिता एक बड़ी जायदाद छोड़ कर मरा तो उसने यह उचित समझा कि वह स्वयं जाकर अपनी जायदाद की देख-भाल करे। अपने बचपन का घर देखने के विचार मात्र से ही उसका घर के प्रति प्रेम उमड़ पड़ा और सारा परिवार - पिता, माता और दो जवान सन्तानें सब लम्बी यात्रा के लिये प्रस्तुत हो गये । जेद्दाम को देखकर, जिसे कस्बे की बजाय गांव ही कहना चाहिये, जो छोटी छोटी पहाड़ियों के बीच में बसा हुआ था, जिसके उपजाऊ खेत और हरी घास से ढके हुए मैदान एक छोटी सी नदी मेल्क से सींचे जाकर आँखों को लुभाते थे, उसकी स्त्री की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। केवल इसी कारण ही उसके आरामतलब पति ने वहां रहने का निश्चय कर लिया। इतनी बड़ी जायदाद स्वयं सम्भालना कठिन समझकर उसने एक युवक ओवरसियर का प्रबन्ध किया और स्वयं कस्बे में पहले जैसी ही दूकान कर ली । जेद्दाम में यह इस प्रकार की पहली ही दूकान थी । वहां के निवासी पड़ोस के एक शहर से अपना बाजार किया करते थे । इसलिये इसमें सन्देह नहीं था कि दूकान में बिक्री बड़ी अच्छी होती, बशर्ते कि उसका मालिक एक यहूदी न होता, क्योंकि यहूदियों से जेद्दाम वाले किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रखना चाहते थे । बिक्री तो बहुत होती थी, परन्तु अधिक उधार ही और जिसके देने का कोई समय ही नहीं आता था। जब सेम्युल ने अपने कर्जाइयों पर दावा किया तो अदालत ने उसके दावे लेने से इन्कार कर दिया। जिसके कारण उसे दावों के सारे खर्चे भरने पर भी न्याय का हाथ न मिला। उसे यह चिंता रहने लगी कि इस सब का परिणाम क्या होगा ? अगर कहीं उसका कर्जा वसूल हो जाता और उसकी स्त्री की जायदाद बगैर घाटे के बिक जाती तो वह खुशी-खुशी सपरिवार इस स्थान को छोड़ देता ।
इस प्रकार कुछ साल बीत गये । अकस्मात् एक दिन सेम्युल बीमार पड़ा और उसने पास के एक कस्बे से डाक्टर को बुला भेजा । जिस डाक्टर को पहले बुलाया गया था उसके मना करने पर जब दूसरे को बुलाया गया और उसने भी काम अधिक होने का बहाना कर आने से इन्कार कर दिया तो वह बहुत ही घबरा गया। उसे आज पहली बार ही यह अनुभव हुआ कि वह इस गांव में किस बुरी तरह से मर सकता है। अपने परिवार वालों से, जो उसके पलंग के चारों ओर बैठे सलाह-मशवरा कर रहे थे, उसने कहा, "मेरे लिये अब यही बहतर है कि मैं मर जाऊं और तुम लोगों को शान्ति और सुख से जीवन काटने दूँ ।" उसकी स्त्री रोज़ेटी और दो बच्चे, एनिटज़ा और एम्मान्युल, उसे ऐसा कहने से रोकते थे और कहते थे कि बगैर उसके वे स्वर्ग में भी सुखी नहीं रह सकेंगे । इवे- वही ओवरसियर, जिसकी अब सगाई एनिटज़ा से हो चुकी थी— ने कहा कि इस प्रकार यह समस्या सुलझती दिखाई नहीं देती। कारण यह था कि जेद्दाम निवासी एक विधर्मी यहूदी से शादी करने वाली स्त्री और उसके बच्चों का भी अपने बीच में रहना सहन नहीं कर सकते थे।
एनिटज़ा ने कहा, "पिताजी, अगर हम यह घोषित कर दें कि आपकी मृत्यु हो गई है और आपको दफना दिया गया है जब कि आप अपने पुराने कस्बे में चले जावें और इवे, हमारा मित्र तथा रक्षक, यहां के काम-धन्धे को समेटकर आपके पास लिवा लावे तो यह कैसा रहेगा ?"
पहले तो सेम्युल इस योजना को मानने के लिये तैयार नहीं हुआ, परन्तु जब ओवरसियर ने विश्वास दिलाकर कहा कि यह काम सफलतापूर्वक निपटाया जा सकता है और साथ ही जब उसकी स्त्री तथा बच्चे जेद्दाम निवासियों की आँखों में धूल झोंक कर उस खुशी का मज़ा लेना चाहते हैं तो वह इसके लिये तैयार हो गया । ज्यों ही वह यात्रा के लायक हुआ वह रात में जेद्दाम से चल पड़ा और छिप छिपाकर पास के एक बन्दर पर पहुंच गया। वहां से वह जहाज में सवार हो गया ।
इसी में रोज़ेटी और एनिटज़ा ने इवे की मदद से सेम्युल की एक अच्छी सी घास भरकर पुतली बना ली। इस पुतली की दाढ़ी घोड़े के बालों से बनाई गई थी। इस पुतली को सफेद चादर में लपेटकर सेम्युल के पलंग पर लिटा दिया गया । उन्होंने मुख को एक रूमाल से ढक दिया, परन्तु मोम के हाथों को जिनकी एक उंगली पर हीरे की अंगूठी चढ़ी हुई थी खुला रखा, जिससे कि लोग अच्छी तरह धोखे में आजावें । अगर यहूदी का घर एक कोढ़ी की तरह बहिष्कृत न होता तो यह चालाकी, इतना सब कुछ करने पर भी, पकड़ ली जाती। इसमें सन्देह नहीं कि सेम्युल की मृत्यु का समाचार लोगों को विदित होते ही उनकी उत्सुकता शव को देखने को होती थी, परन्तु वे दूर से ही झांकते थे।
इवे अब गिरजे के पदाधिकारियों के पास मृत्यु का समाचार देने और उसके दफनाने का प्रबन्ध करने के लिये गया; परन्तु उन लोगों ने उसे एक पादरी के पास भेज दिया जो इसका प्रबन्ध करता था। इस आदमी के बाल बड़े घने और चारों ओर निकलते हुए थे, सिर छोटा सा परन्तु चपटा था जो एक चौड़े चेहरे पर जड़ा हुआ था। वह आदमी बहुत कम बोलता था, इसलिये नहीं कि उसका स्वभाव ही इस प्रकार का था अथवा वह जान-बूझ कर ही कम बोलता था बल्कि इसलिये कि उसके पास बोलने को कुछ होता ही नहीं था । उसकी बड़ी-बड़ी आँखें उसके खोखले सिर में से चिन्ता और डर के कारण झपकती रहती थीं । वह मूर्ख अवश्य था परन्तु साधारणतः किसी का बुरा चाहने वाला नहीं था । हां, जब मज़हब की कोई बात अटक जाती थी तो फिर उससे बुरा भी कोई नहीं था । जब कभी उसके सामने ऐसा प्रश्न आजाता था जिस पर वह अपनी सम्मति अधिकार के साथ दे सकता था तो वह निडर होकर उसमें दखल देता था और दुश्मन के विपरीत मनमाना ज़हर उगलता था और बदला लेने को दाव पेंच खेलने लगता था । जब इवे उसके घर पहुँचा तो उसे सब खबर मिल चुकी थी और उसने इन शब्दों से उसका स्वागत किया, “हेर इवे यह क्या मामला है ? अवश्य ही कोई विशेष घटना घटी है। जो तुम्हें मेरे पास आना पड़ा है । साधारणतः न तुम मेरे घर पर ही आते हो और न गिरजे में ही। चूंकि तुम्हारे उन आदमियों को अपनी आत्मिक उन्नति के लिये सहायता की ज़रूरत नहीं पड़ती, इसलिये मैं समझता हूँ कि तुम या तो जायदाद की विरासत के लिये आये हो अथवा विवाह के सिलसिले में।"
इवे ने नम्रतापूर्वक बात को टालते हुए कहा कि वह तो केवल हेर सेम्युल की मृत्यु का समाचार दर्ज कराने आया था; परिवार का संरक्षक होने के नाते से वह उसका काम था । "आहा, कितना अच्छा काम तुमने अपने जिम्मे लिया है," पादरी ने कहा, "क्या तुम यह नहीं जानते कि कोयले की दलाली में हाथ काले होते हैं ? अपने मृत यहूदी का मेरे सामने नाम भी न लो, मुझे उससे कुछ भी वास्ता नहीं। मुझे अपना काम करने दो।"
इवे ने बताया कि उसे गिरजे की समिति ने उसके पास भेजा है जिसका काम मृतक का अन्तिम संस्कार करना होता है । "हां", पादरी ने गुस्से में चिल्लाकर कहा, "ईसाइयों के अन्तिम संस्कार, अवश्य! यहूदियों के गुरुओं को चाहिये कि इसका तथा अपना प्रबन्ध आप कर लें। इससे अच्छा भला उनके और हमारे वास्ते क्या होगा ?"
पादरी यह जानता था कि जेद्दाम में न तो कोई यहूदियों के गुरु रहते हैं और न ही उनका कोई कब्रिस्तान है, इसलिये यह सम्भव था कि पादरी की आज्ञा का पालन किया जाय । मृत सेम्युल को जेद्दाम के अन्य मृतक नागरिकों के सदृश दफ़नाना तो पड़ेगा, चाहे इसका परिणाम अच्छा हो अथवा बुरा। अपनी पतली भोहों को गोल घूमती हुई आंखों के ऊपर स्थिरकर पादरी ने तीन बार अपना बन्द हाथ सामने रखी हुई मेज पर मारते हुए कहा, "ऐसा कुछ भी सम्भव नहीं ! निकल जाओ बाहर ! उस मृतक यहूदी को कहीं भी गढ़े में फेंक दो, परन्तु अपना चेहरा उसके साथ ईसाइयों के कब्रिस्तान में न दिखाना ।" इस पर इवे, जिसका खून गुस्से के मारे खौलने लगा था, उठ खड़ा हुआ और तेजी से दरवाजे के बाहर निकल गया। उसके निकलते ही खट से दरवाज़े के बन्द होने का शब्द हुआ ।
वहाँ से निकलने के बाद वह गिरजे की समिति के पास पहुंचा परन्तु उनके सलाह-मशवरा करने का कुछ भी परिणाम नहीं निकला, आखिरकार इवे मज़बूर होकर मेयर के घर पहुँचा । आम तौर पर मेयर लोगों का आना-जाना और उसे परेशान करना पसंद नहीं करता था । मेयर बड़े रौब-दाब वाला आदमी था। वह समझता था कि इस पद पर वह केवल इसलिये चुना गया है कि वह अन्य लोगों से अधिक बुद्धिमान है और साथ ही अधिक शिष्ट भी है। उसका मुख्य काम अपनी इज्ज़त को कायम रखना तथा अपने आपको किसी प्रकार की भूल से बचाना था, इसलिये बोलचाल में वह जितना अच्छा था उतना ही किसी प्रकार के निष्कर्ष पर पहुँचने के अयोग्य ।
क्रोध से लाल इवे ने, पादरी से जो बातचीत हुई थी, वह मेयर को सब सुना दी। बीच-बीच में मेयर छोटी-मोटी बातों की व्याख्या करवाता जाता था; इन प्रश्नों से एक तो वह अपनी योग्यता और सहृदयता आगन्तुक पर प्रदर्शित करना चाहता था और दूसरे कुछ विचार करने के लिये समय । जब इवे सारा किस्सा सुना चुका और उसके निर्णय का व्यग्रता से इन्तजार कर रहा था तो मेयर ने अपना सिर एक ओर झुका लिया, अपने पेट पर अपने हाथों को बांध लिया और विचारपूर्वक कहा, "अफसोस, सख्त अफसोस कि हेर सेम्युल को मरना पड़ा! एक परिश्रमी व्यक्ति, एक भला मानस, एक योग्य पिता और एक उपयोगी नागरिक, परन्तु एक यहूदी, निःसन्देह एक यहूदी | अच्छा तो यह होता कि वह कुछ दिन और जीता रहता !"
इवे ने आतुर होकर कहा, " श्रीमान, उस योग्यता और न्याय- प्रियता का परिचय इस बार भी देंगे जिसके लिये आप इतने प्रसिद्ध हैं। जिसे आपने एक उपयोगी नागरिक कहा है उसे एक सड़े हुए फल के समान किसी गड्ढ़े में नहीं फेंकने देंगे। उसे तो उपयुक्त मृतक संस्कार मिलना ही चाहिये ।"
मेयर भयभीत होकर चिल्लाया, "एक सड़े हुए फल के समान किसी गड्ढ़े में । यह तो एक अपराध होगा जिसके लिये मैं भरपूर सजा दूंगा । पादरी लोग धार्मिक जोश में कभी-कभी बह जाते हैं। परन्तु मेयर से यह सम्भव नहीं। वह तो सदैव न्याययुक्त कार्य करता है। यह किस प्रकार हो सकता है कि एक शिष्ट जीवन व्यतीत करने वाला यहूदी एक गले हुए फल की तरह गलियों में फेंक दिया जाय ?"
इवे ने इससे अन्दाजा लगाया कि मेयर मृतक के अन्तिम संस्कारों के लिये इजाज़त दे देगा और उसे सार्वजनिक कब्रिस्तान में जगह मिल जायगी । मेयर ने फिर कहा, "निःसन्देह, मैं सभा के विचार जानकर इसकी इजाजत दे दूंगा ।" उसने मुस्कराकर कहा, “अधिकार का मैं दुरुपयोग कर एक अत्याचारी नहीं बनना चाहता।"
इवे को इस प्रकार के अधूरे उत्तर से सन्तोष कर वहां से जाना पड़ा । वह सीधा सेम्युल परिवार को अपनी भेंट का वृत्तान्त बताने के लिये चल पड़ा | बातचीत के उस सिलसिले में और वादविवाद की गर्मी में वह लगभग भूल ही गया था कि उसका भावी श्वसुर मरा नहीं है । जब उसने घर पर हंसमुख चेहरे देखे तब उसे यथार्थ बात का ज्ञान हो आया और उसे मेयर के कल्पित वस्तु- स्थिति के प्रति आवेश दिखाने पर खूब हंसी आई । सुन्दरी एनिटज़ा हंसी के मारे पलंग पर लोट-पोट हो गई और उसे हंसी का दौरा रोकने के लिये तकिये को बार-बार पेट पर दोनों हाथों से दबाना पड़ता था । उसकी मां, जो लम्बे-चौड़े कद की मजबूत औरत थी और जिसे इस प्रकार का बकवास पसंद नहीं आता था, उठी और कहने लगी; "इवे, तुम बहुत अच्छे हो परन्तु तुम्हारा दिल भेड़ का है, तुम यह नहीं समझते कि इन लोगों से कैसे निपटना चाहिये; इनके साथ शिष्टता का व्यवहार करने से कोई लाभ नहीं, इनसे तो तुम्हें उजड्ड और कठोर बनना पड़ेगा, क्योंकि वे तो इससे ही काबू में आते हैं। मेरा विचार है कि तुम संकोचवश दरवाजे पर खड़े होकर अन्दर आने की अनुमति ही मांगते रह गये थे, तुम्हें उसके विरोध में कहना चाहिये था, 'मैं अपने श्वसुर को कल दफनाऊंगा, और अगर तुम मुझे ऐसा करने से रोकोगे तो मैं घूंसों के मारे तुम्हारा मलीदा बना डालूंगा' ।”
"मैंने एक पुरुष के सदृश वीरता से और निश्चयपूर्वक काम लिया था", इवे ने, जिसका सुन्दर मुख कायरता के आरोप को सुनकर लाल हो गया था, कहा, "समय आने पर मैं लड़ता-लड़ता मर भी सकता हूँ, परन्तु मैं ऐसा तब नहीं सोच सका था कि उसका समय आ गया है ।"
बालक एम्मान्युल ने कहा, "मां! तुम तो जानती ही हो। ये लोग ठीक कहते हैं। ईसाइयों का कब्रिस्तान ईसाइयों के लिये है और यहूदियों का यहूदियों के लिये । यह इतना सरल मामला नहीं, जितना तुम समझती हो ।"
रोज़ेटी के नथुने क्रोध से फूल गये । उसने चिल्लाकर कहा, "तेरे बाल की खाल निकालने से मेरी तसल्ली नहीं होती । तेरा पिता कोई चोर अथवा हत्यारा तो है ही नहीं, वह तो जेद्दाम के उन सब मूर्खों से अच्छा है, जिसे अपने कब्रिस्तान में पाकर उन्हें बड़प्पन अनुभव होना चाहिये । क्या तू समझता है कि वे तुझे, मुझे और एनिटज़ा को कुछ अधिक आदर से देखेंगे केवल इसलिये कि हम भले ईसाई हैं ? उन्होंने इस मामले में मेरी कुछ परवाह ही नहीं की । उस खर-दिमाग पादरी और खोखले दिमाग़ मेयर को मैं समझूंगी।"
खुशी में तालियां बजाते हुए एनिटज़ा ने अपने भाई से कहा, " मां, अब उस पादरी से बदला लेने के लिये और पिता को ईसाइयों के कब्रिस्तान में दफन करवाने के लिये हम दोनों को मरवायेगी । और एम्मान्युल ने, जिसे अपनी मां को चिढ़ाने में मज़ा आता था, उत्तर दिया, "नहीं मां, स्त्री और बच्चे पिता के अनुसार अपना स्थान समाज में पाते हैं, इसलिये मुझे सन्देह होता है कि हमें जेद्दाम के कब्रिस्तान में स्थान मिल भी सकता है।"
"मूर्ख", उसकी मां चिल्लाई । "मेरा परदादा, दादा और बाप सब वहीं दफ़नाये गये हैं। देखती हूं कौन ऐसा माई का लाल निकलता है जो मुझे उनके पास दफ़न होने से रोकता है। मैं सम्राट् तक इस मामले को ले जाऊंगी जिससे कि इन मद-मन्त अफसरों को यह पता चल जावे कि मेरे दफ़नाने का स्थान कौन- सा है।"
इवे ने उस जिद्दी औरत को मनाने की भरसक कोशिश की और कौंसिल के फैसले की प्रतीक्षा करने के लिये कहा, परन्तु वह कुछ जोर चलता न देखकर दोबारा फिर मेयर की तरफ चल पड़ा । कौंसिल के कमरे में, जहां पादरी तथा और सभासद् बैठे सलाह- मशवरा कर रहे थे, उसके पहुँचाये जाने से पहले मेयर ने उनसे कहा, "यह जानते हुए कि न्याय के अनुसार एक यहूदी ईसाइयों के कब्रिस्तान में स्थान नहीं पा सकता, मैं कानून की खिलाफवर्जी कर उसे तोड़ना-मरोड़ना नहीं चाहता । इस पर भी मैं उस नवयुवक से कठोरता से पेश नहीं आना चाहता। मैं बड़े मीठे शब्दों में उसे यह निर्णय सुना दूँगा ।"
इसलिये जब इवे अन्दर दाखिल हुआ तो मेयर ने उसका स्वागत किया और मिनट-बुक को जो उसके सामने खुली रखी थी धीरे-धीरे उंगलियों से बजाते हुए कहा, "इवे, जहां तक नागरिकता का नाता है तुम एक योग्य नागरिक हो और हेर सेम्युल भी इसी प्रकार का था, परन्तु धर्म के दृष्टिकोण से वह मेरे सामने एक विधर्मी था। अच्छा, तुम ही बतलाओ कि क्या यहां कोई यहूदी समाज है ?"
इवे इस प्रश्न का उत्तर नहीं के अतिरिक्त और क्या दे सकता था । मेयर ने आगे कहना आरम्भ किया, "जब यहां कोई यहूदी समाज ही नहीं तो यहां यहूदी भी कोई नहीं है। जब यहूदी ही यहां कोई नहीं है तो फिर कानूनन हेर सेम्युल यहां कभी रहा ही नहीं । उसके परिवार वाले भले ही उसके मरने पर रोवें और मित्र शोक प्रदर्शित करें परन्तु समाज इस परिस्थिति में उसकी स्थिति यहां मानता ही नहीं और इसलिए उसका अन्तिम संस्कार भी नहीं कर सकता ।"
इवे ने आवेश में आकर तब कहा, "पूज्यवर, तो मैं उसे दफ़नाऊ कहां ? आखिर कहीं तो उसे दफनाना ही पड़ेगा ।"
"यह तो सचमुच ही आवश्यक है, और मैं यह भी नहीं चाहता कि तुम लोगों के कार्य में कोई बाधा डालूं । परन्तु ईसाइयों के कब्रिस्तान से तुम लोगों को उसके शव को दूर ही रखना पड़ेगा और साथ ही शहर की हद से भी ।"
इवे का धैर्य टूट गया; चिल्लाने के साथ खून उसके मुख पर दौड़ गया। वह बोला, "अगर तुम एक जीवित यहूदी को अपने शहर में जगह दे सकते हो तो एक मृतक को भी सहन कर सकते हो । मैं तुमसे न तो उसके लिये घन्टों का शब्द करने के लिये ही कहता हूँ और न मन्त्रोच्चारण के लिये मैं तो केवल यह चाहता हूं कि उसे गाड़ने भर की जगह मिल जाये और वह जगह तुम्हें देनी ही होगी । मैं तुम्हें यह चेतावनी दिये देता हूँ कि मैं स्वयं उसे कब्रिस्तान में लेकर आऊंगा और जो कोई मेरे रास्ते में आयेगा उसे आड़े हाथों लूंगा ।"
उत्तेजना के इन शब्दों से बड़ा तेज वादविवाद शुरू हो गया जो रोज़ेटी के अकस्मात् आने से ही बन्द हुआ । इन्तजार से थक- कर वह स्वयं ही आ खड़ी हुई, और स्पष्ट शब्दों में युक्तियां पेश कर वह मामला एक बारगी ही तय कर लेना चाहती थी। जब उन्होंने उसे पैर से लेकर सिर तक काले कपड़े पहने हुए दरवाजे में रौब से खड़े देखा तो वे सब चुप हो गये और मेयर सांत्वना देने के लिये आगे बढ़ा । "शोक प्रकट करने की कोई आवश्यकता नहीं, पूज्यवर", उसने उसे दूर रहने के लिये संकेत करते हुए कहा, "मेरे पास उनके रखने के लिये कोई स्थान नहीं । मैं अपने अधिकारों के अतिरिक्त और कुछ नहीं मांगती । मैं अपने पति को उस कब्रिस्तान में दफनाना चाहती हूँ जिसमें मेरे माता-पिता, मेरे दादा-दादी और मेरे पड़दादा-पड़दादी चिरकाल के लिये आराम कर रहे हैं, और मैं आपसे यही चाहती हूँ कि आप बजाय इसमें बाधा डालने के मेरी सहायता करें ।"
मेयर ने रेशमी रूमाल से अपने माथे से पसीना पोंछते हुए कहा, "आपके मृत पिता मेरे आदरणीय मित्र थे, और उनकी कब्र हमारे कब्रिस्तान के लिये शोभा की वस्तु है । वह एक अच्छे नागरिक और भले ईसाई थे, और इसके अतिरिक्त जेद्दाम में आदर पाने के लिये चाहिये भी कुछ नहीं ।"
श्रीमती रोज़ेटी ने कहा, “मैं समझती हूँ, यह सम्मान मेरे अपने ही परिश्रम का फल है । परन्तु मेरी इच्छा है कि मरने पर मुझे भी अपने मृत पति के पास ही स्थान मिले और इसके लिये एक ईसाई पत्नी किसी प्रकार के दोष की भागी नहीं ।"
मेयर ने एक बार फिर पसीना पोंछा । वह खड़ा खड़ा सोच रहा था। पादरी, जो अभी तक चुप था, अवसर पाते ही बोल उठा, "क्या आप इस बेशरम और गर्वीली औरत के सामने माथा नवायेंगे ! ए स्त्री ! तुमने अपने परिवार में और हमारे बीच एक राक्षस को जगह दी है परन्तु तुम अब उसे ख़ुदा के पवित्र स्थान नहीं ला सकोगी। इस भूमि पर जगह-जगह कूड़े-करकट के ढेर पड़े हुए हैं और उनमें से किसी पर भी तुम उस नास्तिक की हड्डियां फेंक सकती हो परन्तु वे हमारे पवित्र कब्रिस्तान को अपवित्र नहीं कर पायेंगी ।"
पादरी के नज़दीक आकर श्रीमती रोज़ेटी ने ताना मारते हुए कहा, "सुनो, तुम्हारे इस मरघट में दफन होना मेरे लिये कोई विशेष इज्जत की बात नहीं, परन्तु जिस पर मेरा जन्म सिद्ध और पैतृक अधिकार है उसे मैं लुटने नहीं दूंगी, और मैं तो अभी वहीं मरना पसन्द करूंगी जिससे कि तुम्हारे हड्डीखाने में मेरा पहुंचना तुम बखूबी देख सको ।"
सभासदों को भी श्रीमती रोज़ेटी के इस ताने से गुस्सा आ गया और उनमें से एक ने कहा, "यहूदी की स्त्री के जेद्दाम में कोई अधिकार नहीं ।"
"हां, भूखे कुत्तो ! तुम मेरी जायदाद को हड़प करना चाहते हो", उसने मुंह बनाते हुए कहा ।
दूसरे किसी ने कहा, "सूर से कुत्ते भले ।" जेद्दाम में यहूदियों को यह उपनाम मिला हुआ था ।
गुस्से में लाल, श्रीमती रोज़ेटी ने चिल्लाया, "ए कुत्ते ! तुझे शरम नहीं आती, मृतक के प्रति ऐसे शब्द निकालते हुए । इवे के कन्धे पर अपना हाथ रखते हुए उसने उसे बाहर ले जाते हुए कहा, "आओ हम अपने इस मामले को अब आप ही निपटेंगे ।"
मेयर जब कि धारावाहिक रूप में अभी यह स्पष्ट करने में लगा हुआ था कि एक बुद्धिमान् व्यक्ति को ऐसी स्थिति में एक सांसारिक व्यक्ति को विनम्र भाषा में कानूनी बातें किस प्रकार समझानी चाहियें, उस समय पादरी को यह डर बैठने लगा कि कहीं हठीली श्रीमती रोज़ेटी कब्रिस्तान में मृतक को किसी प्रकार लेकर पहुंच ही न जाये।
वह सचमुच ऐसा ही करना चाहती थी; चोरी-चोरी नहीं बल्कि सरेआम और उचित रस्म-रिवाजों के साथ दिन के समय । उसका ऐसा विचार था कि कब्रिस्तान में कोई झगड़ा करने के लिये खड़ा नहीं होगा | परन्तु पादरी को कुछ देहाती झगड़ा खड़ा करने को मिल गये थे । उसने कहा, "मेरे बच्चो, यह मृतक यहूदी हमारी पवित्र भूमि को दूषित कर देगा ! भला उसके लिये तुम कष्ट क्यों सहो ! अच्छा है कि वह खेतों में कौवों और गिद्धों के लिये फेंक दिया जाय । अगर तुम लोग उससे अपना बचाव नहीं करोगे तो विषाक्त हवा और बीमारियां फैल जायेंगी ।" इसका नतीजा यह हुआ कि जब इवे वगैरह लोग नकली सेम्युल की अर्थी लेकर कब्रिस्तान में पहुँचे तो उन्होंने दरवाजे के सामने आदमियों की भीड़ खड़ी पाई जो लड़ने-मरने को तैयार थी और जिन्होंने उन्हें अन्दर दाखिल होने से रोक दिया। श्रीमती रोज़ेटी इवे और बच्चों ने, जो बग्घी में बैठे हुए थे, देखा कि उनके नौकरों में और अन्य आदमियों में लड़ाई शुरू हो गई है और उनके नौकर बुरी तरह पिट रहे हैं । कुछ देर तक इवे बड़ी सावधानी और उत्सुकता से लड़ाई देखता रहा । आखिरकार वह अपने आपको और न रोक सका और गाड़ी में से कूदकर उसने कोट उतारकर फेंक दिया और कमीज़ की आस्तीने ऊपर चढ़ा लीं। वह ललकारता हुआ लड़ाई के मैदान में पहुंच गया। एम्मान्युल, जिसकी काली काली आँखें लड़ाई के जोश से भर उठी थीं, अपने जीजे के पीछे भागना ही चाहता था कि श्रीमती रोज़ेटी ने बड़ी कोशिश के साथ उसे रोक लिया, और साथ ही वह भावुक एनिटज़ा को, जो अपने प्रेमी की कार्यकुशलता पर खूब खुश हो रही थी, अपनी आँखों के इशारे से तथा गुस्से के भावों से चुप रहने के लिये कह रही थी । यद्यपि श्रीमती रोज़ेटी, इवे की बहादुरी की प्रशंसा कर रही थी, परन्तु विपक्षी अधिक देखकर उसने वहां जाकर उससे फिलहाल गम खाने के लिये कह दिया । एक बार जोश में आ जाने पर फिर इवे लड़ाई बन्द नहीं करना चाहता था परन्तु यह देखकर कि श्रीमती रोज़ेटी का कथन ठीक है वह पीछे हट गया और उसने और आदमियों को भी वापिस लौटने को कह दिया | बच्चे खूब हंस रहे थे परन्तु श्रीमती रोज़ेटी क्रोध में आग बबूला हुई जा रही थी ।
जो पीछे रह गये थे उन्होंने इतनी जोर से लड़ाई जारी रखी कि रात को भी पुलिस को उन्हें अलग करने में बड़ी कठिनाई हुई । इस दंगे-फसाद का मेयर तथा सभासदों पर इतना प्रभाव पड़ा कि उन्होंने उसी समय पास की सराय के एक कमरे में सभा की और इस नाजुक समस्या को सुलझा डाला ।
मेयर ने अपने शराब के गिलास के ढक्कन से खेलते हुए नम्र स्वर में कहा, "एक मृतक को कहीं न कहीं गढ़वाना ही पड़ेगा । यह तो हम आशा नहीं कर सकते कि श्रीमती रोज़ेटी अपने पति को अपने गेहूं और बालू के खेतों में गाड़ देगी ।"
पादरी ने धमकी देते हुए कहा, "वह हमारी ईसाइयों की ज़मीन को किसी प्रकार भी दूषित न कर सकेगा । मेरी ओर से वह भाड़ में जाय ! फेंक दो उसको बाहर । उसे कब्रिस्तान के बाहर कुत्ते और घोड़ों के समान कहीं भी गाड़ा जा सकता है ।" मेयर विचारमग्न उस ढक्कन को हिलाता रहा। उसने कहा, "महोदय, मैं यह मानता हूँ कि यहूदी ईसाई नहीं है, परन्तु क्या उसे इसलिए ही पशुओं में गिना जावे ? "
इसके बाद बड़ी देर तक बहस होती रही। तब एक सभासद् ने सुझाया, "सज्जनों, आप जानते हैं कि कनिस्तान में एक कोना है जिसमें घास-फूंस बढ़ रहा है, और जिसकी कोई देख-रेख भी नहीं होती । जहां केवल वे बच्चे गाड़े जाते हैं जो मृत पैदा होते हैं अथवा जिनका बपतिस्मा नहीं होता । ये बच्चे बपतिस्मा न होने के कारण यहूदी ही माने जा सकते हैं। इसलिये उसको गुप-चुप वहां गाड़ देना क्या ठीक नहीं रहेगा ?"
मेयर के इस प्रस्ताव के कई शर्तों के साथ समर्थन करने से पूर्व ही गुस्से में अपने हाथ रगड़ता हुआ पादरी चिल्ला उठा, "क्यों यही तुम्हारा ईसाई मत है ? तुम लोग नास्तिकों और जंगलियों की तरह बातें कर रहे हो। क्या तुम लोग नहीं जानते कि वे शिशु जो जन्मने से पहले या पीछे मर जाते हैं देवता होते है ? वे छोटे-छोटे देवता हैं जिन्होंने अपने चमकते हुए नेत्र ही कभी नहीं खोले अथवा इस पापी संसार को देखकर उन्हें धुंधला नहीं किया ! जीवन के साथ उन्होंने अपने पंख खोले और वापिस स्वर्ग में उड़कर पहुंच गये ।”
बच्चों का इस प्रकार का हृदयग्राही वर्णन करते हुए पादरी की आंखों में भी आंसू झलकने लगे तथा कुछ और सभासद् भी अपने आँसू पोंछते हुए दिखाई दिये । मेयर ने एतराज़ उठाते हुए कहा, "बच्चों को स्वर्ग में उड़कर जाने अथवा यहूदी को नरक में जाने से कौन रोक रहा है ? इस पर भी कानून की दृष्टि में एक बच्चे का और यहूदी का दर्जा एक ही समान है क्योंकि बपतिस्मा उनमें से किसी का भी नहीं पढ़ा गया ।" वह यह नहीं भुला सका कि सेम्युल के सम्बन्धी साधारण व्यक्ति नहीं । वे इज़्ज़तदार और धनी नागरिक हैं, जो सेम्युल के साथ किये गए दुर्व्यवहार को उसके साथ कोई विशेष सम्पर्क जीवन में न होने पर भी कदाचित् सहन न कर सकें ।
पादरी सभासदों में अपनी दाल न गलते देख देहातियों और गंवारों के झुण्ड के पास पहुंचा और उन्हें वह उकसाने लगा । खुदा के नाम पर उसने उन्हें इस घोर अन्याय के विरोध में घूसे तानकर खड़े होने का आदेश दिया, “क्या तुम लोग चुपचाप गाय बने रहोगे जब कोई भेड़िये को तुम्हारी भेड़ों पर छोड़ दे ?" उसने चिल्लाकर कहा, "वे तुम्हारे बच्चों के बीच में, जिनके देव-तुल्य प्रेत स्वर्ग में पापी लोगों की ईश्वर के सामने पैरवी कर रहे हैं, यहूदी को लाने के प्रयत्न में लगे हुए हैं। अगर तुमने कहीं उस नास्तिक को अपनी पवित्र भूमि में स्थान दे दिया तो प्लेग, लड़ाई, तूफान, आग और दुष्काल वगैरह तुम्हें घेर लेंगे ।"
जेद्दाम निवासियों को अधिक भड़काने की जरूरत नहीं पड़ी ? वे सब के सब कमर कसकर तैयार हो गये । उन्होंने प्रण कर लिया कि जो भी मृत सेम्युल को गिरजे में लाने का प्रयत्न करेगा वह सीधा मौत के घाट उतरेगा। उनमें जो सबसे तेज था वह पोमिल्को नामक हृष्ट-पुष्ट, लम्बा-चौड़ा सुनहले घने बालों वाला धनी किसान था । वह अपने मजदूरों, रिश्तेदारों, नौकरों और आश्रितों को लेकर गाँव तक को जड़ से उखाड़कर फेंक सकता था । यह सच है कि उसने पहले कभी इस मामले पर सोचा ही नहीं था | परन्तु ज्यों ही यह समाचार उस तक पहुंचाया गया तो वह गालियां देता हुआ और दाँत पीसता हुआ अपने खेतों की ओर भाग खड़ा हुआ, और दो दिन तक घर नहीं लौटा। वह यह कैसे सहन कर सकता था कि उसके बच्चे के पास में एक यहूदी दफ़नाया जाय । भला इससे अधिक और बेइज्ज़ती उसकी क्या हो सकती थी ? उसने ताल ठोकर ऐलान कर दिया कि मेयर तो क्या सम्राट् भी पोमिल्को के साथ इतनी लापरवाही के साथ पेश नहीं आ सकता। वह उन्हें भी इसका फल चखाये बगैर नहीं रहेगा । उसके पहले विवाह को सोरका नामक एक युवा लड़की थी- शरीर की तगड़ी, कद में लम्बी, बड़ी-बड़ी चमकदार आँखें, मुख उसका सुन्दर और दाँत पीले संगमरमर के समान चमकते थे । इस लड़की को जब यह मालूम हुआ था कि उसका पिता दूसरी शादी कराने जा रहा है तो उसने उससे साफ-साफ कह दिया था वह इसके लिये भूलकर भी कोशिश न करे । वह इसे सहन नहीं कर सकेगी। । उसके कहने का परिणाम यह हुआ कि पिता ने शादी और भी जल्दी कर डाली। भोजन के पहले ही मौके पर सोरका खाना खाने न पहुंची, परन्तु बाप ने उसे बुला लिया और उसकी सौतेली मां ने रकेबी भरकर भद्दे तरीके से उसे शोरबा परोसा । सोरका ने रकाबी को इतने ज़ोर से धक्का मारा कि मेजपोश भीग गया और वह चिल्लायी, "जो तुमने भोजन पकाया है मैं उसे नहीं खाऊंगी।" बाप ने गुस्से में कहा, "मेरी बला से, जाओ भूखी मरो; तुम्हारे लिये मेरे पास कोई और भोजन नहीं ।" निन्दा- सूचक हंसी हंसते हुए सोरका ने कहा, "तो मैं आप कमाकर खाऊंगी," और अपना सामान समेट कर उसी समय चल पड़ी ।
जल्दी में और कहीं न जाकर उसने एक छोटे किसान के पास नौकरी कर ली और थोड़े दिन बाद ही उस किसान के लड़के से उसकी सगाई हो गई। वृद्ध डारनिको ने कोई आपत्ति नहीं की । वह जानता था कि पोमिल्को लड़की की जायदाद को जो उसकी मां से मिली है अपने पास नहीं रख सकेगा । इस सम्बन्ध ने पोमिल्को को इतना उत्तेजित कर दिया कि गुस्से में वह मामूली सी बात को लेकर किसी से भी लड़ने और मारने को तैयार था ।
लोगों में विद्रोह की आग भड़क रही है इसे मेयर अपने तक न रख सका । घबराहट में उसने यह ऐलान कर दिया कि वह यहूदी की कब्र का मामला सम्राट् के सामने रखेगा। सब लोगों को चाहिये कि अपने-अपने काम-धन्धों में नियमित रूप से लगे रहें । सब कुछ सही-सलामत निपट जायगा । वह स्वयं सम्राट् के पास न जाकर पास में कस्बे के एक अफसर के पास गया । यह अफसर भी सेम्युल को एक कोने में, जहां बग़ैर बपतिस्मा हुए बच्चों को गाड़ा जाता था, गाड़ने के लिये तैयार हो गया । उसने मेयर के साथ फौज का एक दस्ता भी कर दिया जिससे कि दफनाते समय गर कोई गड़बड़ हो तो वह दबाई जा सके ।
श्रीमती रोज़ेटी के पास अब यह समाचार भेज दिया कि वह अपने मृत पति को दफना सकती है । परन्तु उसे यह संस्कार रात में करना होगा जिससे कि अन्य लोगों को बुरा न लगे । यद्यपि मर्यादा को ऐसा करने में धक्का लगता था फिर भी उसने यह सोच कर तसल्ली कर ली कि वह अपने पति को गाड़ने नहीं जा रही बल्कि उसके एक पुतले को । उसने यह भी सोचा कि जितनी जल्दी यह निपट जाय उतना ही अच्छा है। कहीं अन्य लोगों को उनकी इस चाल का पता न लग जाय । लोग जितनी जल्दी इसे भूल जायें उतना ही ठीक भी है। बस वह मेयर के आदेशानुसार प्रबन्ध में लग गई।
फौजी सिपाहियों को अपने सामने पाकर जेद्दाम-निवासियों ने 'यह निश्चय किया कि वे अर्थी के रास्ते में कोई बाधा न डालेंगे। अर्थी रात के समय गांव में से निकली। सड़कों पर किसी प्रकार का गुलगपाड़ा नहीं था । ऐसा मालूम होता था कि किसी ने गांव पर मंत्र फूंक दिया है। केवल घोड़े के चलने का टपटप, गाड़ी के पहियों की चू चू तथा रोज़ेटी और इवे की बातचीत का धीमा- धीमा शब्द हो रहा था। कब्र खोदने वाले की सहायता से झूठ- मूठ का सेम्युल एक कोने में उसके निश्चित स्थान पर जल्दी से दबा दिया गया और परिवार के ये लोग, जिन्होंने सामान पहले से ही बांध रखा था, अपने पिता के स्थान के लिये चल पड़े। इवे थोड़े समय के लिये व्यापार को समेटने के लिये रह गया ।
परन्तु यह झगड़ा यहां पर ही नहीं निबटा दफन के दूसरे दिन ही उस जमीन के इर्द-गिर्द की दीवार पर खड़िया से 'सुअर बाज़ार,' 'जेद्दाम का कूड़ा-करकट' वगैरह भद्दे शब्द लिखे पाये गये । जिन माता-पिता के बच्चे उस स्थान में गड़े हुए थे उनके कानों में ये शब्द पहुँच गये। पोमिल्को के लिये, जिसने अधिकारियों का इस मामले में साथ दिया था, यह असह्य था। उसे पूरा विश्वास था कि वृद्ध डारनिको ने, जिसके पास उसकी लड़की रहती थी, उसका अपमान करने के लिये यह निन्दनीय काम किया है। इस प्रकार डारनिको उस पार्टी का नेता बन गया जो पादरी के साथ थी और जिसका यह कहना था कि मृत सेम्युल कब्रिस्तान में गाढ़ा ही नहीं गया। डारनिको इस दोषारोपण का, कि उसने खड़िया से दीवार पर गालियां लिखी थीं, विरोध करता रहा, परन्तु इस कांड में जो महत्व उसे मिल रहा था उससे वह कम खुश नहीं था और उसने पादरी और गिरजे की छाया में खुशी-खुशी इस झगड़े को कायम रखा । धीरे-धीरे दोनों फिरके मृत यहूदी को, जो इस झगड़े के मूल में था, भूल गये और आपस के इस पुराने वैर-भाव के कारण छोटी-मोटी बातों पर लड़ बैठते थे । वे एक दूसरे को परेशान करने का मौका नहीं चूकते थे। परिणाम यह हुआ कि सिर-फुटव्वल होती, हाथ-पांव छूटते अनाज के ढेरों में आग लगती; पुलिस, जर्राह और आग बुझाने वाले दिन-रात काम में लगे रहते । मेयर पोमिल्को का साथ देना चाहता था। उसके दो कारण थे, एक उसका धनाढ्य होना और दूसरा उसका मेयर की तरफदारी करना, परन्तु विरोधी दल वाले संख्या में अधिक थे और इसलिये उसने किसी को भी नाराज करना उचित न समझा । पादरी अपना महत्व दिखाने के लिये बार-बार कहता, "जिधर देखो आग की लपटें ही नज़र आती हैं। बाप-बेटे के भाई-भाई के कत्ल यहां हो रहे हैं। क्या मैंने यह भविष्य वाणी नहीं की थी ? क्या मैंने तुम्हें इससे सावधान नहीं किया था कि जेद्दाम का वातावरण दूषित हो जायगा और अविश्वास का बाज़ार गरम हो जायगा । इस बढ़ते हुए फोड़े को जेद्दाम से निकाल फेंको, उस यहूदी की अपवित्र हड्डियों को उखाड़ फेंको, और अपना सर्वनाश होने से बचा लो ! बच्चो, मैं तुम्हें फिर कहता हूं, कि हम बड़ी बुरी तरह से नष्ट हो जायेंगे ।" वह बोलते-बोलते जोर-जोर से रोने लगा । वह यह समझता था कि उसका यह रोना व्याख्यान के प्रभाव के कारण है । मेयर ने, जिसकी आँखों में आंसू छलक रहे थे, पादरी से विनीत स्वर में उसे इस प्रकार के उत्तेजक भाषण के देने से मना किया और कहा कि उसे जनता को शान्त करना चाहिये परन्तु इसका प्रभाव उस पर उलटा ही पड़ा । वह गुस्से में लाल हो रहा था और किसी प्रकार भी, चाहे उसे कोई एक हज़ार रुपये क्यों न दे, वह अपने ईश्वर को बेचने को तैयार नहीं था ।
अगर मेयर एक बार फिर फौज की सहायता न लेता तो जेद्दाम में खून की नदियां बह निकलतीं । गांव वाले यह जानकर कि एक रेज़ीमेन्ट स्वयं सम्राट् की अध्यक्षता में विद्रोह दबाने के लिये आ रही है भयभीत हो गये और चुपके से घरों में खिसक गये तथा अपने-अपने काम में लग गये ।
"डारनिको", उस दिन पादरी ने वृद्ध किसान के लड़के से कहा जो पादरी के आदेशानुसार काम कर रहा था, "मैं वायदा करता हूं कि सोरका से तुम्हारा विवाह हो जायगा और तुम्हें दहेज भी सब मिल जायेगा, बशर्ते कि तुम मरघट में आज रात को पहुंच जाओ, यहूदी को उसकी कब्र से खोद निकालो और उसे मेल्क में फेंक दो ।"
युवक डारनिको ने कहा, "मैं इस काम के लिये तैयार हूँ । आश्चर्य यह है कि हमने पहले इसके लिये क्यों नहीं सोचा ?"
पादरी ने कहा, "आज रात को यह काम कर डालो। तुम्हें इसके लिये कोई पश्चात्ताप नहीं करना पड़ेगा ।" डारनिको ने यही सारा किस्सा ज्यों का त्यों सोरका को सुना दिया। वह अपने प्रेम की सहायता करने के लिये स्वयं ही तैयार हो गई । डारनिको के लिये अकेले यह काम करना कठिन था । उसे न केवल कब्र खोदने के लिये औज़ार ही ले जाने थे बल्कि गड्ढ़े में से सन्दूक भी ऊपर उठाना था और फिर उसे नदी में भी फेंकना । यह वह अकेले नहीं कर सकता था ।
जब वे खेतों से रवाना हुए और मरघट की ओर चले तो उनके चारों ओर अंधेरा और सुनसान था । कब्र पर किसी प्रकार का कोई चिन्ह न होने के कारण उन्हें उसे तलाश करने में भी बड़ा समय लगा। अन्त में उन्हें वह सन्दूक मिल गया जिसकी वे तलाश में थे। पश्चात् वे दोनों मिट्टी के ढेर पर बैठ गये और शीघ्र ही सोरका ने रोटी, पनीर और शराब, जो वे साथ में लेते आये थे, निकालकर सामने रख लिये । अपने विवाह की खुशी में उन्होंने इक्ट्ठा खाना खाया, हाथ मिलाये और आलिंगन किया । सोरका ने कहा, “जहां तक मुझसे सम्बन्ध है अच्छा ही हुआ जो यहूदी को यहां दफनाया गया, मुझे बाप को उसकी दूसरी शादी पर छोड़ने का मौका मिल गया ।"
"क्या वह स्त्री इतनी बुरी थी ?" डारनिको ने आश्चर्य से पूछा ।
सोरका ने गर्दन मारते हुए कहा, "इतनी बुरी नहीं जितनी मैं । परन्तु मुझे वह अच्छी नहीं लगी और इसलिये मैं भाग आई और उसके स्वभाव की खिल्लियां उड़ाती रही ।" वह खूब हंसी, यहां तक कि उसके पीले दांत अंधेरे में चमकने लगे ।
शीघ्र ही वे फिर अपने काम में लग गये । सन्दूक खोलना और भी कठिन काम था। शोर किसी प्रकार का करने का मौका नहीं था । सन्दूक खोल लेने पर डारनिको ने कहा, "अब बड़ा दुस्तर काम करना है; बिलकुल अंधेरी रात है और हम दोनों ही यहां पर इसके लिये हैं ।" सोरका ने आँख मटका कर कहा, "क्या तुम अब घबरा रहे हो ? तुम तब नहीं घबराये जब तुमने पहली बार मेरा चुम्बन लिया था, जब कि एक मृत यहूदी से अच्छी तरह मैं तुम्हारे कान ऐंठ सकती थी । "
यह सुनकर डारनिको जोश में आ गया । उसने ढक्कन एक ओर फेंका और मुर्दे को कमर से पकड़कर उठा लिया। वह चाहता था कि यह काम जितनी जल्दी हो सके उतना ही अच्छा है और उसे वह बग़ैर देखे नदी में फेंक देना चाहता था । उसने उसे पकड़ा ही था कि चिल्लाकर उसे एकदम छोड़ दिया। घास की वह पुतली मुर्दे से बिल्कुल ही भिन्न प्रतीत हुई । सोरका उसके आश्चर्य पर जोर से खिलखिलाकर हंस पड़ी। वह पुतली को देखने के लिये उस पर झुकी। जब उन्हें यह ज्ञान होगया कि वह केवल मोम के चेहरे और हाथों वाला भूसे का ही आदमी है तो डारनिको अचम्भे में खड़ा एकटक देखता रह गया, सोरका जमीन पर हंसी के मारे लोट-पोट होने लगी ।
"इसका मतलब ?" डारनिको ने आखिर कहा- वह यह निश्चय नहीं कर सका कि यह किसी जादू के कारण है अथवा किसी शैतान का काम है। सोरका ने कहा, "हमारी बला से। हम उसी यहूदी को तो मेल्क में फेंकेंगे जो हमें यहां मिला है, किसी दूसरे को तो नहीं; हमें यह जानने की जरूरत नहीं कि असली यहूदी यही है अथवा दूसरा कोई ।" वह बोलते-बोलते उठ खड़ी हुई और हीरे की उस अंगूठी को ग़ौर के साथ देखने लगी जो पुतली के मोमी हाथ की एक उंगली पर थी। यह अंगूठी श्रीमती रोज़ेटी ने वहीं छोड़ दी थी । सम्भव है वह भूल गई हो अथवा अपनी योजना की सफलता की खुशी में उस पुतली को उसकी विदाई की यह भेंट थी । अब सोरका के भयभीत होने की बारी आई | उसने सोचा पता नहीं क्या मुसीबत खुदा की ओर से उन पर इस पुतली द्वारा आने वाली है। उस विचित्र स्थिति पर शीघ्रता से विचार करने के बाद उसने सोचा कि बहुमूल्य अंगूठी एक बहूमूल्य अंगूठी है, और क्या हो सकती है और अपने इतने परिश्रम के बदले में इस इनाम के पाने के वे अधिकारी भी है । आपस में यह निश्चय कर कि वे इस बात को किसी पर प्रकट नहीं होने देंगे, उन्होंने वह अंगूठी अपने काबू में कर ली। उनकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था । कुछ देर तक इस खुशी में वे वहाँ लेटे रहे, बाद में डारनिको उस विचित्र पुतली को नदी की ओर घसीटकर ले चला और सोरका ने फावड़े से मिट्टी गड्ढे में भर दी और ज़मीन एकसार कर दी ।
फौजी सिपाही जो अगले दिन जेद्दाम में आये उनके लायक कोई काम उन्हें न दिखाई दिया । असली अपराधियों का पता न लगने के कारण साधारण सजायें ही लोगों को मिलीं।
कुछ दिन बाद सेम्युल ने, जिसे जेद्दाम का किस्सा नहीं बतलाया गया था, अपने बाल-बच्चों का स्नेहालिंगन किया, उसका चेहरा खुशी से चमक उठा : परन्तु ठीक उसी समय मेयर ने जेद्दाम के पादरी से जो कि सामने मेज के सहारे बैठा हुआ था कहा, "यह तो प्रत्येक जानता है कि आप धार्मिक बातों को मुझसे अधिक जानते हैं, फिर भी इतना मैं अवश्य कहूंगा कि फौजी सिपाहियों के आने के बाद से बीमारी, आग, और लड़ाई वगैरह बन्द हो गये हैं जबकि मृत सेम्युल बच्चों के बीच में अब भी गड़ा हुआ है । " मेज़ पर जोर के साथ घूंसा मारते हुए पादरी ने फूला न समाकर कहा, "खुदा की कसम, वह वहाँ नहीं है। फौजी सिपाहियों के आने से पहले ही रात में मैंने उसे खुदवा कर मेल्क में फेंकवा दिया है जिसे वह बहाकर समुद्र में ले गई है और जहां वह अन्य मरी मछलियों और कड़े में पढ़ा सड़ा करेगा ।"
मेयर इतना अचम्भे में पड़ा कि वह यह न समझ सका कि उसे हंसना चाहिये अथवा विस्मय दिखाना । आखिर उसने पूछा, "क्या आप वास्तव में इस पर विश्वास करते हैं कि शान्ति और एश्वर्य के दुबारा अपने बीच आने का यही कारण है ?"
पादरी ने चिल्लाकर कहा, "और क्या कारण हो सकता है ? गांव का जीवन भीषण खतरे में था, और मैंने उसे बचा लिया है। इसका श्रेय मैं अपने ऊपर नहीं लेता बल्कि ईश्वर को ही देता हूँ ।" उसने शराब का ऊपर तक भरा हुआ गिलास उठाया और मेयर के नाम पर पी गया। मेयर यद्यपि अपनी हार के कारण चिढ़ गया था परन्तु उसने चुपचाप पी लेना ही उचित समझा ।