दार्शनिक का पत्थर : कश्मीरी लोक-कथा

Darshnik Ka Patthar : Lok-Katha (Kashmir)

यह बहुत पुरानी बात है कि एक बार एक राजा फाक परगना में शिकार करने गया। वहाँ दाछीगाम के पास उसने एक बारहसिंगे को देखा तो वह उसके पीछे भाग लिया और कई मील तक उसका पीछा किया पर फिर वह एक जंगल में चला गया और गायब हो गया। राजा अपनी इस बदकिस्मती पर बहुत दुखी और नाउम्मीद हुआ और लौट पड़ा।

जब वह अपने खेमे की तरफ लौट रहा था तो उसने सड़क के किनारे लगी हैज के पीछे से किसी के रोने की आवाज सुनी। उसने उसके अन्दर झाँका कि वहाँ कौन था तो उसने देखा कि वहाँ सत्रह साल की एक बहुत सुन्दर लड़की थी। उसको देख कर वह उसे देखता ही रह गया।

उसने उससे बड़ी नम्रता से पूछा — “तुम कौन हो और यहाँ क्या कर रही हो?”

वह बोली — “जनाब मैं चीन के एक राजा की बेटी हूँ। मेरे पिता एक लड़ाई में बन्दी बना लिये गये हैं और मैं अपने पिता के दुश्मन की बन्दी बनाये जाने के डर से वहाँ से भाग निकली हूँ। मैं पहले एक जगह गयी जहाँ मैं डूब जाना चाहती थी पर गाँव वालों को मेरे इरादों का पता चल गया उन्होंने आ कर मुझे बचा लिया। उसके बाद मैं यहाँ चली आयी। आपने मेरी कहानी तो सुन ली अब आप अपनी बतायें।”

राजा बोला — “ओ सुन्दरी। मैं इस देश का राजा हूँ और शिकार करने निकला हूँ। यह मेरी खुशकिस्मती है कि मैंने तुम्हें देख लिया वरन तुम यहाँ पता नहीं कब तक अकेली पड़ी रहतीं।” यह सुन कर वह लड़की रो पड़ी।

राजा ने फिर पूछा — “सुन्दरी तुम क्यों रोती हो?”

लड़की बोली — “मैं अपने माता पिता और देश के लिये रोती हूँ। मैं अपने लिये भी रोती हूँ। मैं यहाँ क्या करूँगी। मेरा यहाँ कोई घर नहीं है मेरा यहाँ कोई दोस्त नहीं है। बिना घर और दोस्त के मैं कैसे रहूँगी।”

राजा बोला — “तुम रोओ नहीं। आगे से मैं तुम्हारी देखभाल करूँगा। आओ मेरे साथ मेरे महल चलो अबसे तुम वहीं रहना।”

लड़की बोली — “हाँ मैं आपके साथ खुशी खुशी चलूँगी। आप मुझे अगर अपनी पत्नी बनायेंगे तो मैं आपसे शादी भी कर लूँगी। मैं आपको किसी भी चीज़ के लिये मना नहीं कर सकती।”

राजा बोला — “तो चलो प्रिये तब तुम मेरे साथ चलो।”

महल पहुँच कर उन दोनों की शादी हो गयी। राजा अपनी इस चीन वाली पत्नी को धीरे धीरे और प्यार करने लगा। उसने उसके लिये डल झील के पास पाँच मंजिल का एक महल बनवाया और उसके साथ ज़्यादा से ज़्यादा समय बिताने लगा। उससे भी ज़्यादा जितना कि वह अपनी दूसरी पत्नियों के साथ कुल मिला कर बिताता था।

पर उसको यह पता ही नहीं था कि वह किस नीच लड़की के साथ रह रहा था जिससे उसको इतना प्यार हो गया था। और न उसको यह पता था कि वह एक बहुत ही बुरी बीमारी उसको दे रही थी।

धीरे धीरे राजा के पेट में दर्द रहने लगा। उसने कई हकीमों को बुला भेजा। कुछ ने उसको किसी एक बात की सलाह दी कुछ ने किसी और की। पर किसी की दवा और सलाह उसको ठीक नहीं कर सकी।

एक दिन एक जोगी अपने गुरू के लिये दूध गंगा से उसका पानी लाने और हरि पर्वत से मिट्टी लाने के लिये इस देश के ऊपर से उड़ा तो उसने यह शानदार महल देखा जो राजा ने अपनी चीन वाली पत्नी के लिये बनवाया था। कुछ आराम करने के इरादे से वह नीचे उतरा और उस महल में घुस गया।

उसने वह पवित्र पानी एक कमरे में एक कोने में रखा वह पवित्र मिट्टी उसके दूसरे कोने में रखी और एक कीमती मरहम तकिये के नीचे रखा और राजा के बिस्तर पर लेट गया।

इसी बीच राजा आ गया। वह अपने बिस्तर पर एक जोगी को आराम करते देख कर बड़े आश्चर्य में पड़ गया। फिर उसकी निगाह मरहम की उस छोटी सी डिबिया पर गयी जो उसके तकिये के नीचे रखी हुई थी पवित्र पानी एक कोने में रखा हुआ था और दूसरे कोने में पवित्र मिट्टी रखी हुई थी। यह सब देख कर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।

उसके मन में यह इच्छा जाग उठी कि देखूँ कि यह जोगी उठ कर क्या करता है। सो वह वहीं बैठ गया और उसके उठने का इन्तजार करने लगा। उसको जोगी के उठने का बहुत देर तक इन्तजार नहीं करना पड़ा।

पर जब जोगी उठा तो वह तो यह देख कर भौंचक्का रह गया कि न तो वहाँ वह पवित्र पानी था न पवित्र मिट्टी थी और न ही कीमती मरहम की डिबिया थी। असल में राजा ने उनको ले लिया था।

जोगी को जागा हुआ देख कर राजा बोला — “ओ जोगी तुम डरो नहीं मैंने वे सब चीज़ें सँभाल कर रख दी हैं। अब तुम मुझे यह बताओ कि तुम यहाँ कैसे और क्यों आये। फिर मैं तुम्हें वे दे दूँगा।” जोगी ने उसे सब कुछ बता दिया और राजा ने भी उसकी वे चीज़ें उसे वापस कर दीं। उसने राजा को फिर सिर झुकाया और महल छोड़ कर चला गया।

वह बहुत जल्दी ही अपने गुरू के पास पहुँच गया। गुरू ने उसके देरी से आने की वजह पूछी तो उसने उनको अपने देरी से आने की वजह बता दी। उसने उनको यह भी बताया कि कैसे वह राजा के बिस्तर में सोता पाया गया और राजा ने उससे कैसे बातचीत की।

गुरू ने जब यह सुना तो बोला — “वह अच्छा आदमी था। मैं उसका आभारी हूँ कि उसने तुम्हें तम्हारा कीमती मरहम और दूसरी चीज़ें वापस कर दीं। चलो मुझे तुम उसके पास ले चलो।”

उस मरहम की सहायता से वे दोनों उस देश के ऊपर उड़े और राजा के पास पहुँचे। जोगी ने राजा से कहा कि उसके गुरू उससे मिलने के लिये और उसे धन्यवाद देने के लिये आये हैं कि वह आपके बहुत आभारी है कि आपने मुझे उनकी चीज़ें वापस कर दीं। तब गुरू ने कहा — “हाँ मैं आपको धन्यवाद देने के लिये आया हूँ। आप अपनी खुशी से मुझसे कोई भी चीज़ माँग लें मैं आपको वह दे दूँगा।”

राजा उसके सामने झुकते हुए बोला — “ओ ॠषि मुझे एक रोग लग गया है। मेरा पेट बहुत दर्द करता है। सारे हकीमों की कोई जानकारी उसको ठीक नहीं कर सकी। अगर आप उसको ठीक कर दें तो मैं आपका बहुत आभारी होऊँगा।”

ॠषि ने उसकी तरफ देखते हुए कहा “ठीक है आप मुझे अपना पेट दिखाइये।” कुछ देख कर उसने राजा से पूछा — “क्या आपने अभी अभी कोई नयी शादी की है?”

“हाँ।” कह कर राजा ने उसको अपनी चीनी पत्नी से मिलने के हालात और फिर उससे शादी की बात पूरी तरीके से बता दी। ॠषि बोला — “मुझे इसी का शक था। अगर आप बिना दवा के चालीस दिन और रहते तो आप मर जाते। पर अब आप सुरक्षित हैं। मैं आपको ठीक कर सकता हूँ। जो मैं कहता हूँ आप वही करें तो आपको डरने की कोई जरूरत नहीं है।

आप आज की शाम अपने रसोइये को अपनी पत्नी के खाने ज़्यादा नमक डालने के लिये कहिये और फिर उस कमरे में जहाँ वह सोती है वहाँ यह पक्का कर लीजिये कि पीने के लिये पानी न हो। आप खुद भी सारी रात जागते रहिये और सुबह होने पर मुझे बताइये कि क्या हुआ। आप डरना नहीं आपका कोई नुकसान नहीं होगा।”

इतना कह कर ॠषि और उसका चेला दोनों चले गय। राजा ने ॠषि का कहना माना।

राजा ने देखा कि बीच रात में रानी उठी। उसको प्यास लगी थी। उसने पहले अपने कमरे में पानी खोजा पर पानी न मिलने पर पहले उसने देखा कि उसका पति सोया हुआ है या नहीं फिर उसने एक साँपिन का वेश रखा और बाहर चली गयी।

वह झील पर पानी पीने के लिये गयी। वहाँ जा कर उसने पानी पिया और पानी पी कर अपने कमरे में वापस आ कर फिर एक स्त्री का रूप रखा और अपने बिस्तर पर सो गयी।

राजा ने यह सब देखा और ॠषि को बताया तो ॠषि बोला — “राजा साहब यह स्त्री नहीं है बल्कि एक वीहा है। अब आप मेरी बात सुनें। अगर किसी साँप पर सौ साल तक किसी आदमी की नजर नहीं पड़ती तो उसके सिर पर एक ताज बन जाता है और वह शाहमार बन जाता है।

और अगर उसके अगले सौ साल तक भी उस पर किसी आदमी की नजर नहीं पड़ती तो वह अजगर बन जाता है। और अगर तीन सौ साल तक उस पर किसी आदमी की नजर नहीं पड़े तो वह वीहा बन जाता है।

वीहा अपने आपको कितना भी लम्बा कर सकता है। उसके पास बहुत ताकत होती है और वह अपनी शक्ल भी बदल सकता है। उसको स्त्री की शक्ल लेना बहुत अच्छा लगता है ताकि वह आदमियों के साथ रह सके। राजन आपकी पत्नी वही है।”

राजा एकदम से चिल्ला पड़ा — “उफ़। काश मुझे यह पहले से मालूम होता। पर इस भयानक जीव से बचने का कोई उपाय है?”

ॠषि बोला — “हाँ जरूर है पर आपको थोड़ा सब्र करना होगा। आप अपनी पत्नी के पास वैसे ही जाते रहिये जैसे अब तक जाते रहे हैं। क्योंकि अगर उसको शक हो गया तो वह आपको मार देगी। उसकी एक साँस से ही सारा देश नष्ट हो जायेगा।

इस बीच आप लाख का एक घर बनवाइये और उस पर सफेद रंग की कलई पुतवा दीजिये ताकि उसकी लाख दिखायी न दे। उसमें चार कमरे होने चाहिये – एक बैठने का कमरा एक खाने का कमरा एक सोने का कमरा और एक नहाने का कमरा। खाने के कमरे में एक कोने में एक बड़ा ओवन होना चाहिये जो ढका हुआ हो।

जब यह सब कुछ तैयार हो जाये तो आप बहाना करें कि आप बीमार हैं। आप हकीम से कहलवायें कि राजा को चालीस दिन अकेले रहना है। उससे यह कहलवा कर आप उस लाख के मकान में चले जायें। उसमें उस स्त्री के अलावा और कोई नहीं आयेगा।”

जब यह सब तैयार हो गया तो वह चीनी स्त्री तो बहुत खुश हुई क्योंकि अब राजा कम से कम चालीस दिन के लिये केवल उसी का था। अब वह उसकी बीमारी में जो चाहे कर सकती थी। ऐसा कुछ दिन तक चला। उसके बाद ॠषि राजा से बात करने के लिये फिर वहाँ आया और राजा से कहा कि एक दिन वह खाने के कमरे का ओवन जला कर रखे और अपनी पत्नी से एक खास रोटी बनाने के लिये कहे।

जब वह यह देखने में लगी हो कि वह रोटी कैसी पक रही है तो वह उसको भट्टी में धक्का दे दे और जितनी जल्दी हो सके उस ओवन का दरवाजा बन्द कर दे ताकि कहीं ऐसा न हो कि वह बाहर निकल आये और सारे देश को ही नष्ट कर दे।

राजा ने ऐसा ही किया। जब यह सब हो गया तो गरमी बढ़ाने के लिये उसने घर में भी आग लगा दी। ॠषि ने जब यह सुना कि राजा ने क्या किया तो वह बोला — “यह आपने बहुत अच्छा किया। अब आप अपने महल जाइये और वहाँ दो दिन तक इन्तजार कीजिये। तीसरे दिन आप मेरे पास आइये तो मैं आपको एक आश्चयजनक दॄश्य दिखाऊँगा।”

तीसरे दिन ॠषि राजा को साथ ले कर उस जगह गया जहाँ वह लाख का घर खड़ा था पर वहाँ तो राख के सिवा और कुछ नहीं था। ॠषि बोला — “राजा साहब ध्यान से देखिये आपको यहाँ एक पत्थर दिखायी देगा।”

राजा ने ध्यान से देखा तो उसको वह पत्थर मिल गया। वह बोला — “हाँ यह रहा पत्थर।”

ॠषि ने पूछा — “यह तो ठीक है पर आप क्या लेना चाहेंगे पत्थर या राख?”

राजा बोला — “पत्थर।”

ॠषि बोला — “ठीक। आप पत्थर ले लीजिये मैं राख ले लेता हूँ।” कह कर उसने वह सारी राख समेटी उसे अपने कपड़े में बाँधा और अपने चेले के साथ गायब हो गया। उसके बाद राजा अपने महल को चला आया।

उस दिन के बाद से राजा ठीक हो गया। वह पत्थर जो उसने चुना था बाद में वह संगीपारस साबित हुआ जिसके छूने से कोई भी धातु सोना बन जाती है। पर उस राख में क्या गुण था यह राजा को कभी पता नहीं चला क्योंकि वह फिर कभी उस ॠषि और जोगी से मिला ही नहीं।

कथा का दूसरा रूप

यह कथा एक और तरीके से भी कही जाती है। एक बार की बात है कि काशमीर में अली मदान खान नाम का एक राजा राज करता था।

एक दिन वह शालीमार के पास शिकार खेलने के लिये गया। वहाँ दो आदमी उसके पास आये और उससे बोले — “राजा साहब अगर आप हमारी बात सुन लेंगे तो हमें बड़ी खुशी होगी। हमारी प्रार्थना है कि आप इस जगह से आगे न जायें। कहीं ऐसा न हो कि अजगर आपको निगल जाये। यह अजगर यहाँ अक्सर घूमता रहता है।”

राजा बोला — “आप लोग यह क्या बेहूदी बात कर रहे हैं।”

वे आदमी बोले — “नहीं हम कोई बेहूदा बात नहीं कर रहे हैं। हम आपको सच बता रहे हैं। हमने उसे अपनी आँखों से देखा है। वह हर शाम पानी पीने के लिये झील के किनारे जाता है और इसी जंगल से गुजरता है। आपको पहले से सावधान करना हमारा फर्ज था बाकी आप जानें। हम आपसे फिर प्रार्थना करते हैं कि आप यहाँ से आगे न जायें।”

“ठीक है।” कह कर राजा ने अपना घोड़ा वापस किया और अपने घर चला गया। घर जा कर उसने अपने वजीरों को जो कुछ उसने आज सुना था वह सब कहने के लिये बुलाया। यह सब बता कर उसने उनसे उनकी सलाह माँगी कि उस अजगर को कैसे मारा जाये।

उन्होंने उसको सलाह दी कि बहुत सारी भेड़ों की खाल चूने से भर कर उसी रास्ते पर डाल दी जायें जहाँ से वह अजगर रोज पानी पीने जाता था। साथ ही जहाँ वह अजगर पानी पीता था उसी जगह के पास दो गड्ढे खोद दिये जायें जिनमें तेल भरवा दिया जाये।

उनका सोचना यह था कि जब अजगर चूना भरी भेड़ की खाल देखेगा तो सोचेगा कि वे असली भेड़ हैं और उनको निगल लेगा। इसके अलावा जब वह तेल से भरे गड्ढे देखेगा तो उसे लगेगा कि वे पानी से भरे हैं और उनमें से तेल पी कर अपनी प्यास बुझाने की कोशिश करेगा।

इस तरह से उसके पेट में बहुत ज़ोर की जलन होगी जो उसको मार देगी। राजा ने उनकी सलाह मान ली उसको काम में लाया गया और इस तरह से अजगर को मार दिया गया।

अली मर्दान खान उसका ढाँचा देखने के लिये गया और अपने सिपाहियों से उसको जलाने के लिये कहा। उसने दो बूढ़े लोगों की सहायता से उसकी वह गुफा भी ढूँढी जिसमें वह रहता था और उसके अन्दर गया।

वहाँ उसको एक बन्द दरवाजा मिला जिसे उसने खोला। यह दरवाजा एक कमरे में खुलता था। इस कमरे में उसको एक छोटा सा बक्सा मिला और इस बक्से को खोलने पर उसमें रखा एक पत्थर मिला। इत्तफाक से यह पत्थर संगी पारस निकला जिसके छूने से हर धातु सोना बन जाती है। वह उसे उठा लाया।

कथा का एक और रूप

एक बार की बात है कि एक आदमी तख्ते सुलैमान पर चढ़ने के लिये चला। उस दिन दिन बहुत गरम था सो उसको बहुत जल्दी ही प्यास लग आयी। उसने अपनी जेब से एक नाशपाती निकाली और उसे छीलने लगा।

जब वह नाशपाती छील रहा था तो उसके हाथ से चाकू फिसल गया और उसका हाथ कट गया। उस आदमी ने खून चाकू से साफ करके फिर उसे एक पत्थर पर घिस कर उसका खून साफ करके अपनी जेब में रख लिया।

पहाड़ी पर पहुँच कर वह वहाँ बैठ गया। वहाँ पहुँच कर उसको भूख भी लग आयी सो उसने एक दूसरी नाशपाती निकाली और अपनी जेब से चाकू निकाला और उसको छीलने ही वाला था कि उसने देखा कि उसका चाकू तो सोने का हो गया था। “यह कैसे हुआ?”

यह देख कर उसको कोई शक नहीं रहा कि उसने अपना चाकू जरूर ही किसी संगी पारस पर घिस दिया था। वह तुरन्त ही वापस आया पर अफसोस उसको वह पत्थर फिर नहीं मिला। पर हम यह जानते हैं कि वह पत्थर अभी भी जरूर ही वहीं कहीं होगा।

(सुषमा गुप्ता)

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