दानवों का प्रतिशोध : सिक्किम की लोक-कथा

Daanvon Ka Pratishodh : Lok-Katha (Sikkim)

ऐसी धारणा है कि लेपचा जाति के पूर्वजों ने अपने सात बच्चों को जन्मते ही जंगल में फेंक दिया था। यही बच्चे बड़े होकर शक्तिशाली सात राक्षस बन गए। उनमें जो सबसे बड़ा लासो मूंग पानू था, वह राक्षसों का राजा बना। राजा बनने के पश्चात् लासो मूंग पानू ने लेपचा जातियों से बदला लेने की सोची। शैशवावस्था में बच्चों को जंगल में फेंककर अपनी क्रूरता का परिचय देनेवाली लेपचा जाति के प्रति इनमें भारी आक्रोश भरा हुआ था।

राक्षस लेपचा जाति को युद्ध के लिए ललकारा—‘हे पापियो! मैं तुम्हें बरबाद कर दूँगा और तुम्हारी बरबादी के पश्चात् मैं इस डेन्जोंग में राज करूँगा। अगर हिम्मत है तो आओ और मेरा सामना करो।’ जब लेपचाओं में उसका मुकाबला करने के लिए कोई आगे नहीं आया तो लासो मूंग पानू ने गुस्से से कहा, ‘कायरो! तुम क्यों छिपे खड़े हो?’ उसके ऐसे वचनों से लेपचा लोगों के पास मुकाबला करने के सिवा कोई उपाय शेष नहीं था। उन्हें उसकी ललकार का सामना करना था, वरना उनकी जाति पर कायर होने का कलंक लग जाता। उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्र लिये और युद्ध के लिए तैयार हो गए।

राक्षसों और लेपचा जाति के मध्य युद्ध कई दिनों तक खिंचता चला गया। लेपचा लोग बड़ी बहादुरी से युद्ध लड़ रहे थे। दोनों ओर से भारी संख्या में नरसंहार हो रहा था। लेपचा जन, जिस फुरती से तीर-भाले का इस्तेमाल कर रहे थे, उससे लासो मूंग पानू की सेना बड़ी संख्या में हताहत हो रही थी। जिससे लासो मूंग पानू का क्रोध बढ़ता जा रहा था। वह बड़ा क्रोधित होकर कह रहा था, ‘लेपचा जन की इतनी हिम्मत कि वे मेरा मुकाबला करें!’

अपनी राक्षसी शक्ति का प्रयोग कर उसने युद्ध भूमि में कई भ्रम पैदा कर दिए। कभी लेपचा जन चूहों की सेना के संग युद्ध करते, वहीं दूसरे ही क्षण उनके प्रतिरोधी बैलों में बदल जाते। लेपचा जन ने देखा कि ताम्सिंग थिंग और लासो मूंग पानू के मध्य भयंकर मुकाबला हुआ, जिसमें अंत में ताम्सिंग थिंग ने दैत्य राजा लासो मूंग पानू को परास्त कर दिया। तमाशबीन लोगों ने देखा, ताम्सिंग थिंग ने दैत्य राजा को जमीन पर पटक दिया। लेकिन उस दैत्य का लेपचा जन के मध्य इतना भय समाया हुआ था कि किसी की उसके पास जाकर देखने की हिम्मत नहीं हुई कि वह मरा कि जीवित है? भयानक दैत्य का इतनी आसानी से खत्म होना लोगों को संभव नहीं लग रहा था। उन्हें उसकी मौत पर संदेह हो रहा था। वे सोच रहे थे, शायद लासो मूंग पानू मूर्च्छित हुआ है! इसलिए कभी भी उसके होश आने की संभावना थी, किसी की उसके समक्ष जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। उसका निर्जीव शरीर लकड़ी के कुंदे की तरह सुन्न जमीन पर पड़ा हुआ था, जो न हिल रहा था और न उसमें जीवन का कोई संकेत मिल रहा था। सभी दर्शक चिंतित-परेशान! उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या होगा? लासो मूंग पानू अपनी दानवीय शक्ति का इस्तेमाल कर कभी भी उठकर बैठ सकता है। चारों ओर लेपचा लोगों का मन इस बात को सोचकर घबराया हुआ था। इसलिए जल्द ही इसकी संभावना को खत्म करना जरूरी था। यह सोचकर एक लेपचा व्यक्ति ने म्यान से तलवार निकाली और लासो मूंग पानू के शरीर को धड़ से अलग कर दिया। दृश्य की भयानकता से वह व्यक्ति स्वयं घबरा गया और दौड़कर अपने दोस्तों के मध्य पहुँच गया।

एक दूसरे बहादुर व्यक्ति ने आगे बढ़कर दानव को देखा। उसे इस बात का बड़ा आश्चर्य हुआ कि शरीर के टुकड़े होने के बावजूद दानव का शरीर गरम था और उसके हृदय की गति अब भी चल रही थी। उसकी दोनों आँखों से खून की धारा बह रही थी। वहीं शरीर के कटे हिस्से से भी लगातार खून रिस रहा था। हृदय की धड़कन को देख सबको यह यकीन हो गया कि इसकी मृत्यु नहीं होगी, वह अमर है। उसके शरीर के कटे हिस्से जुड़ जाएँगे और वह जीवित हो उठेगा! सबने जब यह सोचना शुरू किया तो लगा, दानव के इस शरीर को रखने में बहुत से खतरे हैं। यह दानव कभी भी जीवित हो सकता है, अगर यह जीवित होगा तो किसी को भी जिंदा नहीं छोड़ेगा, इसलिए उन्होंने दानव के शरीर के अनेक टुकड़े करने का निर्णय लिया। उसके टुकड़े-टुकड़े किए गए। उसकी हड्डियों को भी तोड़ा गया। उसके पश्चात् उसके टुकड़ों को हवा में यहाँ-वहाँ फेंक दिया। जब उन्हें लगा, अब दानव का शरीर पूरी तरह से समाप्त हो चुका है तो वे निश्चिंत हुए और अपने मित्रों के मध्य जाकर चैन की साँस ली। अंत में सबको इस बात पर यकीन हुआ कि दानव की मौत हो चुकी है, पर उसके शरीर का अंत हुआ था, उसकी आत्मा यहाँ-वहाँ भटक रही थी, जो अपनी मौत का बदला लेने की चेष्टा अवश्य करेगा।

लासो मूंग पानू का मांस मच्छर में परिवर्तित हुआ, जिसने लेपचा लोगों के जीवन में कई मुश्किलें खड़ी कीं। दानव के शरीर से मच्छर, मक्खी, जूँ, कीड़े-मकोड़े बनें, जो आज भी मनुष्य के लिए तकलीफ का कारण होते हैं। दानव के रक्त से जोंक, बिच्छू, साँप और अन्य कई भयानक कीड़े-मकोड़ों की उत्पत्ति हुई, जो मानव समाज के शत्रु हैं। इस प्रकार दानवों के राजा ने मानव समाज से अपना प्रतिशोध लिया। जब दानव से पूरी तरह से लेपचा समाज को मुक्ति मिली, सब लोग प्रसन्न होकर एक स्थान पर एकत्र हुए और जश्न मनाया गया। इस जश्न में ताम्सिंग थिंग स्वयं नेतृत्व कर रहे थे। उन्होंने अपनी जीत का जश्न मनाया, जो निरंतर सात दिनों तक चलता रहा। अंतिम दिनों में ताम्सिंग थिंग ने इस बात पर अपना ध्यान केंद्रित किया कि लेपचा और दानवों के संघर्ष में जिन लोगों की भूमिका रही है, उन्हें सम्मानित किया जाए। जिस व्यक्ति ने निडर होकर मृतक दानव को देखने की हिम्मत दिखाई। उसे ‘लुट सांग मून’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। दूसरे निडर व्यक्ति को भी सम्मानित किया गया। इन निडर पुरुषों के वंशज द्वारा भिन्न कुल बने, जिन्हें ‘ताम्सिंग थिंग’ कहा गया।

केवल वीर-योद्धाओं का ही सम्मान नहीं हुआ, बल्कि उनका भी सम्मान हुआ, जिन्होंने तीर-तलवार और भालों का निर्माण किया, जिसका इस्तेमाल युद्ध में किया गया। उन्हें ‘कर भो मून’ से सम्मानित किया गया। जो लोग तीर-भाले के इस्तेमाल में बड़े पारंगत रहे, वे ‘फुएंग-ताली-मून’ से सम्मानित हुए। जिन लोगों ने युद्ध की स्थिति में योद्धाओं के लिए खाद्य-पदार्थों की व्यवस्था की, उन्हें भी भिन्न-भिन्न उपाधि देकर सम्मानित किया गया। इस युद्ध के साथ जुड़े सभी वीरों का सम्मान हुआ। कोई भी इससे अछूता नहीं रहा। इस युद्ध में किसी भी प्रकार की सहायता प्रदान करने की स्थिति में उसका सम्मान हुआ। समाज के हर तबके को उसकी भूमिका अनुसार मान मिला। इस प्रकार लेपचा समाज में सभी वर्गों के अपने उपनाम हैं। वहाँ जो जातिगत आधार पर भेद देखने को मिलता है, वह उनके द्वारा प्रदर्शित वीरता और सहायता पर केंद्रित है।

(साभार : डॉ. चुकी भूटिया)

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