कौवी और बाज : अमरीकी लोक-कथा
Crow and Hawk : American Lok-Katha
(Folktale from Native American Indians/मूल इन्डियन्स जनजाति की लोककथा)
अमेरिकन इन्डियन्स की सबसे प्रिय कहानियों में हैं जानवरों की कहानियाँ। उनमें जानवरों की कुछ ऐसी कहानियाँ भी हैं जिनमें कमजोर जानवर अपने से अधिक ताकतवर और चालाक जानवर को बेवकूफ बना देता है।
कुछ तो उनमें हँसी की कहानियाँ हैं जिनमें मुकाबला है और कुछ में मेहनत और न्याय का इनाम दिखाया गया है, जैसे यह कोचिटी कौवी और बाज़ की कहानी। तो लो पढ़ो यह कोचिटी कौवी और बाज़ की कहानी।
एक बार कोचिटी कौवी ने अपने घोंसले में दो अंडे दिये। एक दो दिन तो वह कौवी अपने अंडों पर बैठी पर फिर वह थक गयी तो वह अपने लिये खाना ढूँढने चली गयी। दिन पर दिन गुजरते चले गये पर कौवी नहीं लौटी।
इधर एक दिन एक मादा बाज़ ने देखा कि एक घोंसले में दो अंडे लावारिस से पड़े हैं उनको कोई भी नहीं से रहा है।
तो एक दिन उस मादा बाज ने सोचा कि जिस कौवी का यह घोंसला है उसे तो इन अंडों की बिल्कुल भी चिन्ता नहीं है पर इन अंडों को किसी को तो सेना ही चाहिये तो चलो मैं ही इन अंडों पर बैठती हूँ। जब इनमें से बच्चे निकलेंगे तो ये बच्चे मेरे हो जायेंगे।
सो वह मादा बाज़ बहुत दिनों तक उन अंडों पर बैठती रही पर कौवी का अभी भी कहीं पता नहीं था। अंडों में से बच्चे भी निकल आये पर कौवी फिर भी नहीं लौटी।
मादा बाज उन बच्चों को खाना खिलाती रही, पालती रही, उड़ना सिखाती रही पर कौवी फिर भी नहीं लौटी।
जब कौवी को अपने बच्चों का ध्यान आया तो वह वापस अपने घोंसले में आयी। उसने देखा कि उसके अंडों में से बच्चे निकल आये हैं और एक मादा बाज़ उनकी देखभाल कर रही है।
जब कौवी ने अपने बच्चों को देखा तो उस समय वह मादा
बाज़ उनको खाना खिला रही थी। कौवी आ कर ज़ोर से बोली —
“तुम क्या समझती हो कि तुम यह क्या कर रही हो?”
मादा बाज़ बोली — “मैं इसमें कोई गलत काम तो नहीं कर रही हूँ।”
कौवी बोली — “तुमको मेरे ये बच्चे मुझे वापस कर देने चाहिये।”
मादा बाज ने पूछा — “क्यों?”
तो कौवी बोली — “क्योंकि ये बच्चे मेरे हैं इसलिये।”
मादा बाज़ ने कहा — “तुमने तो केवल अंडे दिये हैं पर तुमने उनको सेया कभी भी नहीं। तुम तो उनको छोड़ कर चली गयीं। उनको सेने वाला तो यहाँ कोई था ही नहीं।
मैं आयी और मैंने उनको सेया, मैंने उनको खाना खिलाया, मैंने उनको उड़ना सिखाया। अब वे बच्चे मेरे हैं मैं उनको तुम्हें वापस नहीं करूँगी।”
कौवी गुस्से में बोली — “मैं उनको वापस ले कर रहूँगी।”
मादा बाज बोली — “मैंने उनके साथ बहुत मेहनत की है। तुम तो अंडे देने के बाद ही उनको छोड़ कर चली गयी थीं। आज जब मैंने उनको पाल पोस कर बड़ा कर दिया है तो तुम इनको मुझसे क्यों वापस लेना चाहती हो?”
इस पर कौवी ने बच्चों की तरफ देखते हुए कहा — “मेरे बच्चों, आओ मेरे साथ आओ। मैं तुम्हारी माँ हूँ।”
बच्चे बोले — “हम तुम्हें नहीं जानते। यह मादा बाज़ ही हमारी माँ है। हम तुम्हारे साथ नहीं जायेंगे।”
कौवी ने जब देखा कि वह अपने बच्चों को अपने साथ नहीं ले जा पा रही है तो बोली — “कोई बात नहीं है मैं यह मामला गरुड़ (Eagle) के पास ले कर जाती हूँ। वही चिड़ियों का राजा है वही इस मामले का फैसला करेगा।”
मादा बाज़ बोली — “मुझे कोई ऐतराज नहीं है। तुम जिसके पास भी जाना चाहो जा सकती हो।”
सो दोनों चिड़ियें गरुड़ के पास गयीं।
कौवी पहले बोली — “मैं जब अपने घोंसले में वापस आयी तो मैंने देखा कि मेरे अंडों में से बच्चे निकल चुके हैं और यह मादा बाज़ मेरे बच्चों की देखभाल कर रही है। ओ गरुड़, मैं आपके पास यह कहने आयी हूँ कि यह मादा बाज़ मेरे बच्चों को वापस कर दे।”
गरुड़ ने कौवी से पूछा — “पर तुमने अपना घोंसला छोड़ा ही क्यों था?”
इस बात का कौवी के पास कोई जवाब नहीं था सो वह चुप रही और उसका सिर झुक गया।
गरुड़ बोला — “कोई बात नहीं। हाँ मादा बाज़, अब तुम बताओ कि तुमको यह घोंसला मिला कैसे?”
मादा बाज़ बोली — “मैं कौवी के घोंसले की तरफ से रोज गुजरती थी पर मैंने उस घोंसले में कभी किसी को नहीं देखा। बस केवल दो अंडे रखे थे उसमें।
कई दिनों तक कोई आया भी नहीं तो मैंने सोचा कि जिस माँ ने इस घोंसले को बनाया उसको शायद इन अंडों की चिन्ता नहीं है। मैं ही इन अंडों को से देती हूँ सो मैंने उन अंडों को सेया और बच्चों के पैदा होने पर उनकी देखभाल की।”
कौवी बीच में ही बोली — “पर वे बच्चे मेरे हैं।”
गरुड़ ने कौवी को घूरा और बोला — “बीच में नहीं बोलो कौवी, जब तुम्हारी बारी आये तब बोलना।”
फिर वह मादा बाज़ से बोला — “और कुछ कहना है तुमको, मादा बाज़?”
मादा बाज बोली — “अब जब ये बच्चे बड़े हो गये हैं तब यह कौवी कह रही है कि ये बच्चे उसके हैं। मैंने उन अंडों को सेया, मैंने उन बच्चों को खाना खिलाया, मैंने उनका घोंसला गर्म रखा, उनको उड़ना सिखाया। मैं अब इन बच्चों को नहीं छोड़ सकती।”
गरुड़ मुँह ही मुँह में बोला — “ऐसा लगता है कि यह मादा बाज इन बच्चों को छोड़ने वाली नहीं है। अगर ये बच्चे कौवी के हैं तो उसने अपना घोंसला छोड़ा ही क्यों और अगर छोड़ा भी तो फिर वह इतने दिनों तक वापस क्यों नहीं आयी।
इस सबसे ऐसा लगता है कि यह मादा बाज़ ही इन बच्चों की सच्ची माँ है इसलिये ये बच्चे उसी को मिलने चाहिये।”
कौवी ने जब यह सुना तो वह गरुड़ से बोली — “आप ऐसा कैसे सोच सकते हैं कि ये बच्चे मादा बाज़ के हैं? आप बच्चों से क्यों नहीं पूछते कि वे किसके पास रहना चाहते हैं? अब वे इतने बड़े हैं कि वे जानते हैं कि वे कौए हैं बाज़ नहीं।”
गरुड़ ने हाँ में अपना सिर हिलाया — “यह तो तुम ठीक कहती हो।”
और फिर बच्चों से पूछा — “तुम लोग किस माँ के साथ रहना चाहोगे, कौवी के साथ या मादा बाज़ के साथ?”
दोनों छोटे कौए बोले — “हम तो मादा बाज़ को ही अपनी माँ जानते हैं और किसी को नहीं।”
कौवी चिल्लायी — “नहीं, तुम मेरे बच्चे हो।”
बच्चे बोले — “तुमने तो हमें जन्म लेने से पहले ही छोड़ दिया था। मादा बाज़ ने हमारी सारी देखभाल की, अब वही हमारी माँ है।”
गरुड़ बोला — “बस अब यह मामला तय हो गया। बच्चों ने अपनी माँ चुन ली है।”
कौवी रोने लगी तो मादा बाज़ बोली — “अब रोने से क्या फायदा। तुमने तो कभी अपने बच्चों को देखा ही नहीं। अब ये बच्चे तुम्हारे कैसे हो गये।”
और बच्चे मादा बाज़ के साथ चले गये।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)