कॉर्वस (बांग्ला कहानी) : सत्यजित राय
Corvus (Bangla Story in Hindi) : Satyajit Ray
15 अगस्त
परिन्दों में मेरी दिलचस्पी बहुत पुरानी है। बचपन में हमारे घर एक पालतू मैना हुआ करती थी और मैंने उसे सौ से भी ज्यादा बांगला शब्द सिखला दिये थे। तब मेरा खयाल यह था पक्षी कभी कभार जिन शब्दों का ‘उच्चारण’ कर लिया करते हैं उन के मायनों से उन का कोई वास्ता नहीं हुआ करता । पर हमारी वह मैना एक दिन कुछ ऐसे आश्चर्यजनक ढंग से पेश आई कि मुझे अपनी यह धारणा बदलने पर मजबूर हो जाना पड़ा। दरअसल हुआ यों कि एक दुपहर स्कूल से लौट कर मैं खाना शुरू करने ही वाला था कि मैना डरे हुए स्वर में चिल्लाने लग पड़ी: “भूचाल.......भूचाल......” । हम में से तब किसी को भूकम्प आने की रत्ती भर हलचल महसूस नहीं हुई पर अगली सुबह के अखबार में यह खबर थी कि ‘सीस्मोग्राफ’ ने पिछली दुपहर भूकंप के हल्के धक्के रिकॉर्ड किए थे।
...और तभी से मैं पक्षियों की बुद्धिमत्ता को ले कर और ज्यादा जिज्ञासु हो उठा पर दूसरे वैज्ञानिक तजुर्बों में मशगूल हो जाने की वजह से मुझे इस दिशा में आगे गंभीर अनुसंधान की फुर्सत मिली ही नहीं।
हां, और दूसरी वजह थी न्यूटन, हमारा पालतू बिलाव, जिसे स्वभावतः पक्षी सख्त नापसन्द हैं। अब आप ही बतलाइए मैं भला ऐसी बात क्यों करता जो उसे पसन्द न हो? पर अब मुझे महसूस होता है कि बचपन की दहलीज पार कर चुकने पर मेरा बिल्ला न्यूटन परिन्दों के प्रति कुछ उदासीन सा हो चला है। शायद इसीलिए मेरी प्रयोगशाला में फिर से कौओं, गौरियों और मैनाओं का आना जाना शुरू हो गया है। सवेरे सवेरे मैं उन्हें दाना चुगाता हूँ और चुग्गे वे इन्तजार में ये मुंह-अंधेरे से ही मेरी खिड़की के आसपास मंडराने लगते हैं।
हर जानवर में कुछ जन्मजात गुण होते हैं, लेकिन जहां तक पक्षियों की बात है, मेरा खयाल तो यह है कि उनमें कुछ अद्भुत क्षमताएं हैं। अब बया के घोंसले को ही लीजिए। आप दंग रह जाते हैं, इसे देखते ही। अगर किसी भलेमानुस से ऐसा घोंसला ‘गढ़ने’ के लिए कहा जाय तो मैं समझता हूँ वह तो तौबा ही कर लेगा। क्यों है न? और अगर किसी तरह वह घोंसला बना भी डाले तो कम से कम एक महीना मेहनत मशक्कत तो उसे चाहिए ही।
एक आस्ट्रेलियन चिड़िया है- ‘मैली फाउल’, जो जमीन के भीतर अपना घोंसला बनाती है। कीचड़, रेत और घासफूस के ढेर की तरह बने इसके घोंसले में घुसने के लिए एक नन्ही सी सुरंग होती है। ‘मैली फाउल’, अंडे तो इसके भीतर ही देती है पर उन्हें कभी खुद सेती नहीं। अंडों से बच्चे निकलें इसके लिए जरूरी है-गर्मी और इसके लिए वह न जाने किस तरकीब से घोंसले का तापक्रम लगातार 78 डिग्री फॉरेनहाइट बनाए रखती है-चाहे घोंसले से बाहर का तापमान भले ही कुछ भी क्यों न हो।
इससे भी आश्चर्यजनक और रहस्यमय है - ग्रेबी। न जाने क्यों यह चिड़िया अपने पंख नोंच कर खा जाती है और अपने बच्चों को खिला देती है। ग्रेबी जब पानी में कोई खतरा मंडराता देखती है तो अत्यन्त रहस्यमय तरीके से एकदम हल्की हो कर शरीर की सारी हवा बाहर निकाल देती है। नतीजा यह होता है कि भार कम हो जाने के वजह से यह पानी में गर्दन तब डूबी आराम से तैरती रहती है।
हम सब चिड़ियों के दिषा-ज्ञान, गिद्ध की पैनी-दृष्टि, बाज की षिकारी-वृत्ति और कोयल की कूक से खूब परिचित हैं। मैं कई दिनों से सोच रहा हॅूं कि पक्षियों की तरफ ही अब क्यों न अपना थोड़ा बहुत ध्यान केन्द्रित करूं? सोच रहा हूं कि क्या उन्हें उनके जन्मजात गुणों से आगे भी नई चीजें सिखलाई जा सकती हैं? क्या आदमी की बुद्धि और समझदारी जैसी कोई चीज उनमें पैदा की जा सकती है? क्या ऐसी कोई मशीन बनाना संभव है, जो ऐसा कर दिखलाए?
20 अगस्त
पक्षियों को सिखलाने-पढ़ाने वाली मेरी मशीन बनाने का काम चल रहा है। मेरी आस्था मामूली तौर तरीकों में है। मेरा यंत्र भी बहुत मामूली ही होगा। इसके दो हिस्से होंगे। पिंजरे की तरह का एक भाग तो होगा पक्षी के रहने के लिए, और दूसरे हिस्से से से होगा विद्युत सम्पर्क-जो पक्षी के मस्तिष्क में बुद्धि की लहरें प्रसारित करता रहेगा।
पिछले एक महीने से मैं ध्यानपूर्वक उन पक्षियों का अध्ययन कर रहा हॅूं, जो मेरी प्रयोगशाला में दाना चुगने के लिए आया करते हैं। कौवों, गौरियों, और मैनाओं के अलावा कबूतर, कमेड़ियां, तोते और बुलबुल वगैरह यहां अक्सर देखने को मिल जाते हैं। पर इनमें से अगर किसी ने मेरा ध्यान आकर्षित किया है तो वह है-एक कौआ। सीधा सादा सामान्य सा कौआ है यह। मैं इसे पहचानने भी लगा हूं। इसकी दाहिनी आंख के नीचे छोटा सा सफेद एक निशान है, जिससे यह आसानी से और तुरन्त पहचान में आ जाता है। इसके अलावा दूसरे कौओं से इसका व्यवहार भी काफी अलग सा है। मैंने इसके अलावा किसी और कौए को पंजे के नीचे पैंसिल दबाए मेज पर लकीरें खींचते नहीं देखा। कल तो मैं इसकी हरकत देख कर आश्चर्य से ठगा सा ही रह गया। हुआ यों कि मैं अपनी मशीन के काम में व्यस्त था कि कमरे में हल्की खरखराहट सी सुनाई पड़ी। देखा तो पाया, यह हजरत माचिस के अधखुले डिब्बे से दियासलाई की एक सींक थामे उसे जलाने के लिए रोगन पर घिस रहे थे। अन्ततः मुझे उसे उड़ाने के लिए मजबूर हो जाना पड़ा। पर उड़ते समय इसने चोंच से जो विशिष्ट सी आवाज निकाली-वह कांव कांव करने वाले किसी मामूली कौवे की आवाज कतई नहीं थी। एक बार तो ऐसा लगा जैसे कौआ शैतानी से ‘हॅंस’ रहा हो।
सचमुच बड़ा होशियार है यह! ऐसा ही पक्षी तो मैं अपने परीक्षणों के लिए चाहता हूँ.... आगे-आगे देखते हैं होता है क्या?
2 सितम्बर
मैंने अपनी ‘ऑरनिथन’ मशीनबना डाली है। सवेरे से यह कौआ प्रयोगशाला में इधर उधर उछलकूद मचा रहा है। जैसे ही मैंने मशीन मेज पर रखी और पिंजरे की दरवाजा खोला, यह कौआ उछल कर अचानक भीतर जा घुसा। ऐसा लगता है कि यह पढ़ना सीखने के लिए बहुत बेताब है। भाषा का बुनियादी ज्ञान इसके लिए जरूरी होगा। इसलिए मैंने सोचा है कि पहले तो इसे बांगला की प्रारंभिक शिक्षा दूं। चूंकि सारे पाठ और निर्देश पहले से ही रिकार्ड किए हुए रखे हैं, इसलिए मुझे करना कुछ नहीं है , केवल कुछ बटन भर दबाने हैं। अलग-अलग चैनलों में अलग-अलग विषय वर्गीकृत किए हुए रखे गए हैं। एक और आश्चर्यजनक चीज मैंने नोट की है। जब भी मैं मशीन का बटन दबाता हूँ- कौए की सब हरकतें एकाएक रूक सी जाती हैं और इसकी आँखें मुदने लग जाती हैं। कौवे जैसे किसी चंचल पक्षी के लिए यकीनन कितनी अस्वाभाविक बात है न यह!
चिली की राजधानी सेन्टियागो में दुनिया भर के बड़े बड़े पक्षी विषेषज्ञों का एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन नवम्बर में होगा। मैंने मिनैसोटा के मेरे एक पक्षी विषेशज्ञ दोस्त, रूफस ग्रेनफैल को पत्र लिख डाला है। अगर भाई मेरा यह कौआ, थोड़ी बहुत मानव-बुद्धि विकसित कर डाले, तो मैं सम्मेलन में ले जा कर भाषण के साथ प्रदर्षित कर सकता हूँ ।
4 अक्टूबर
लैटिन में काग-परिवार को ‘कॉर्वस’ कहते हैं। अपने इस शिष्य का नाम भी मैंने ‘कॉर्वस’ ही रख दिया है। पहले शुरू शुरू में नाम लेते ही वह मेरी तरफ देखता भर था पर अब तो बोल कर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है । ‘कॉर्वस’ इन दिनों अंग्रेजी सीख रहा है। बाहर के मुल्कों में अंग्रेजी की जानकारी भी तो लाजिमी है न! सवेरे आठ से नौ बजे के बीच इसका प्रशिक्षण शुरू होता है । हां, बाकी वक्त यह कमरे में ही फुदकता फिरता है। रात को यह मेरे बगीचे के उत्तर पष्चिमी कोने में उगे आम के पेड़ पर सो जाता है।
मुझे लगता है कि न्यूटन ने अब कॉर्वस को मान्यता दे दी है। आज की घटना के बाद तो ऐसा लगता है कि दोनों में जल्दी ही गहरी छनने लगेगी। आज दोपहर का ही किस्सा है। मेरी आरामकुर्सी के पीछे बिल्ला न्यूटन लेटा सुस्ता रहा था, पर कॉर्वस नदारद था। मैं बैठा बैठा कुछ लिख रहा था कि पंखों की फड़फड़ाहट सुनाई दी और श्रीमान् कॉर्वस में कमरे में नमूदार हुए । उसकी चोंच में दबी हुई थी एक मछली, जिसे झुक कर उसने न्यूटन के कदमों में डाल दिया और आप खिड़की पर बैठ कर लगा नजारा देखने।
ग्रेलफैल का जवाब आ गया है। उसने लिखा है कि पक्षी विषेषज्ञों के सम्मेलन के लिए वह मुझे निमंत्रण भिजवा रहा है । मुझे निर्धारित तारीख को कॉर्वस के साथ सैन्टियागो पहुंचना ही होगा।
20 अक्टूबर
पिछले दो सप्ताहों में काम में आशातीत प्रगति हुई है। पंजों में पैंसिल दबाये हुए कॉर्वस अंग्रेजी वर्णमाला और संख्याएं लिख रहा है। उसने मेज पर रखे कागज पर खड़ा हो कर अपना नाम लिखा- सी-ओ-आर-वी-यू-एस। अब वह सीधी सरल जोड़ बाकी कर लेता है। उसे यह भी जानकारी है कि इंग्लैण्ड की राजधानी का क्या नाम है? यहां तक कि वह मेरा नाम भी लिख लेता है। पहले मैंने इसे माहों, तारीखों और दिनों के नाम सिखलाए थे। आज जब मैंने जानना चाहा कि आज कौन सा वार है तो साफ सुथरे अक्षरों में इसने लिखा- एफ-आर-आई-डी-ए-वाई।
कॉर्वस खाना खाने के तौर तरीकों में भी अपनी बुद्धिमानी और हुनर का परिचय दे रहा है। आज जब इसके लिए एक प्लेट में मैंने टोस्ट तथा दूसरे में जैली रखी तो चोंच से इसने जैली टोस्ट पर लगा कर टुकड़ा मुंह में डाला।
22 अक्टूबर
अब इस बात का स्पष्ट प्रमाण मुझे मिल गया है कि कॉर्वस दूसरे आम कौओं से अलग रहना चाहता है। आज दोपहर को मूसलाधार बरसात हुई और मैंने देखा कि गड़गड़ाहट की आवाज के साथ ही शीशम का एक पेड़ उखड़ कर धराशायी हो गया। जब बरसात रूकी और शाम हुई तो कौओं की कांव-कांव ने जैसे आसमान ही सिर पर उठा लिया। आस-पड़ौस के सब कौए टूटे हुए पेड़ को घेर कर क्रंदन कर रहे थे। मैंने यह जानने के लिए कि आखिर माजरा क्या है- अपने नौकर प्रहलाद को भेजा। उसने बतलाया - “साब। पेड़ के नीचे एक कौआ मरा पड़ा है और इसी से दूसरे कौंए चिल्ल-पौं मचा रहे हैं। “ मैं समझ गया कि वह कौआ निश्चय ही बिजली गिरने से मरा होगा। ताज्जुब है कॉर्वस ने न तो कमरे से बाहर कदम ही रखा और न ही इस दुर्घटना से वह किसी तरह प्रभावित ही दिखा।
वह तो अपने पंजों से पैंसिल दबाये -‘प्राइम नंबर्स’ लिख रहा था -3,5,7,9,11,13 ...........
7 नवम्बर
कॉर्वस को अब दुनिया के वैज्ञानिक समुदाय के सम्मुख पेश किया जा सकता है। हालांकि पक्षियों को सिखाने की मिसालें बहुतेरी हैं पर मैं नहीं समझता कि कौर्वस के बराबर किसी पक्षी को कभी दीक्षित किया गया हो।
‘आरनिथन’-मेरी मशीन ने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया है। गणित, भूगोल, इतिहास और प्राकृतिक विज्ञान के वे सवाल जिनका उत्तर संख्याओं के माध्यम से अथवा थोड़े बहुत शब्दों में दिया जा सकता है- कॉर्वस द्वारा हल किए जा सकते हैं। न केवल यह बल्कि उसने कुछ ऐसी ‘मानवीय’ समझ भी विकसित कर ली है जो किसी पक्षी में मिलने का तो सवाल ही नहीं है। यकीनन यह चीज अपने अपन में बहुत अनूठी है। एक उदाहरण से यह बात और साफ हो जाएगी। आज मैं अपनी सैन्टियागो-यात्रा के लिए सामान बांध रहा था। ज्योंकि ही मैं सूटकेस बन्द करने लगा- मैंने पाया कॉर्वस मुझे थमाने के लिए पहले से ही अपनी चोंच में चाबी दबाए खड़ा था।
कल ग्रेनफैल का एक पत्र और मिला है। आजकल वह सौन्टियागो में ही है। सम्मेलन के आयोजक मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। अब तक के आयोजनों में वैज्ञानिकों और विषेशज्ञों ने केवल नीरस भाषण ही दिए होंगे पर किसी पक्षी का इस तरह जीवन्त प्रदर्शन तो शायद पहली दफा ही हो।
पक्षियों के मस्तिष्क के बारे में जो अनूठा अनुसंधान मैंने पिछले दो महीनों में किया है उसी पर सम्मेलन में मैं अपना शोध-पत्र पढूंगा। और सब से बढ़ कर कॉर्वस तो वहां होगा ही जो आलोचकों की चोंच ही बंद कर देगा।
10 नवम्बर
ये पंक्तियां मैं दक्षिणी अमरीका की तरफ उड़ रहे हवाई जहाज में बैठा लिख रहा हूँ । यहां केवल एक घटना का ब्यौरा दूंगा। ज्यों ही हम घर से चलने को हुए कॉर्वस पिंजड़े से बाहर आने के लिए बहुत बेताब और बेचैन नजर आया। न जाने क्या चाहता था वह? मैंने आगे बढ़ कर पिंजरे का दरवाजा खोल दिया। कॉर्वस तेजी से उड़ कर मेरी लिखने की मेज तक गया और लगा उसकी दराज पर चोंच मारने। मैंने ज्यों ही दराज खोला तो देखा कि मेरा पासपोर्ट वहां पड़ा हुआ है।
मैंने कॉर्वस के लिए एक नया पिंजरा बनवा लिया है। जिस तापमान पर कॉर्वस सबसे ज्यादा आराम में रहता है- वही तापमान इस पिंजरे में बरकरार रहता है। इसके भोजन के लिए मैंने पौष्टिक विटामिनयुक्त कुछ गोलियां भी तैयार की हैं। कॉर्वस ने हवाई जहाज के हरेक यात्री का ध्यान आकर्षित किया है। शायद किसी ने भी आज तक कोई पालतू कौआ नहीं देखा। मैंने भी इसके चमत्कारी ‘स्वरूप’ के बारे में किसी को कुछ भी नहीं बतलाया है। वैज्ञानिक सम्मेलन तक मैं इस चीज को गुप्त ही रखना चाहता हॅूं। और शायद कॉर्वस भी इसी बात को भांप कर सामान्य कौओं का सा ही व्यवहार कर रहा है।
14 नवम्बर
होटल एक्सैल्सियर, सैन्टियागो। अभी रात के ग्यारह बजे हैं। दो दिन तक कुछ इस कदर व्यस्त रहा कि लिखने का फुर्सत मिली ही नहीं। मैं अपने भाषण तथा इसके बाद होने वाले सनसनीखेज घटनाक्रम का ब्यौरा ही दूंगा। संक्षेप में कहूं तो कॉर्वस ने मेरी शान में चार चांद लगा दिए हैं। मुझे अपना लिखित भाषण पढ़ने में करीब करीब आधा घण्टा लगा और एक घण्टा लगा कॉर्वस के सनसनीखेज प्रदर्शनों में।
ज्यों ही भाषण समाप्त कर मैं मंच से नीचे उतर कर आया, मैंने पिंजरे का दरवाजा खोल दिया और ठाठ से कॉर्वस महाशय मेज पर आये। महोगनी की उस लम्बी शानदार मेज पर जिसके पीछे एक कतार में समिति के सम्मानित सदस्य बैठे थे। कोने में पोडियम-माइक से मैंने अपना भाषण दिया।
भाषण खत्म होने तक कॉर्वस एक सूत भी अपनी जगह से नहीं हिला। किन्तु भाषण के दौरान बीच बीच में उसने सहमति में अपनी गर्दन हिलाई उसे देख कर ऐसा लगता था मानो ध्यानपूर्वक सुन कर वह मेरी बात का समर्थन कर रहा हो। भाषण की समाप्ति के बाद सारा हॉल तालियों की भारी गड़गड़ाहट से गूंज गया। कॉर्वस भी पीछे ही थोड़े रहने वाला था। उसने भी चोंच से मेज थपथपा कर इसमें अपना योगदान किया।
भाषण के बाद कॉर्वस के प्रदर्शनों ने तो बस समां ही बांध दिया। पिछले दो महीनों में उसने जो कुछ सीखा था उसका गवाह थी वैज्ञानिकों की वह आष्चर्यचकित भीड़। लोगों ने एकमत से इस बात को स्वीकार किया कि अपनी जिन्दगी में इन्होंने कभी इतने बड़े चमत्कार की आशा नहीं की थी। स्थानीय अखबार ‘कॉराइरा डैल सैन्टियागो’ ने चोंच में पैंसिल थामे कॉर्वस का सचित्र समाचार अपने सांयकालीन संस्करण के मुखपृष्ठ पर सुर्खियों में छापा था।
अधिवेशन के बाद में ग्रेनफैल तथा सम्मेलन अध्यक्ष कॉवेरूबियस के साथ सैन्टियागो शहर की सैर के लिए निकला। सैन्टियागो एक आकर्षक महानगर है, जिसके पूर्व में ऐंडीज पहाड़ चिली और अर्जेन्टाइना राज्यों को दो हिस्सों में बांटता शान से खड़ा है। कुछ देर बाद कॉवेरूबियस ने कहा “तुम्हें अतिथियों के स्वागत में किए जाने वाले मनोरंजक सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बारे में तो सूचना है न? मैं चाहता हूं कि तुम आज रात चिली के मशहूर जादूगर ऑर्गस का प्रोगाम जरूर देखो। उसकी खासियत यह है कि अपने कार्यक्रमों में वह पक्षियों से खूब काम लेता है।”
एकायक मेरे कान खड़े हो गये। मेरी दिलचस्पी जगाने के लिए इतनी सूचना ही काफी थी।
शाम ग्रेनफैल को ले कर मैं ऑर्गस का जादू देखने प्लाजा थियेटर जा पहुंचा। वस्तुतः ऑर्गस के प्रदर्शन में पक्षियों की भरमार है। और मानना पड़ेगा कि बत्तखों, तोतों, कबूतरों, मुर्गियों, सारसों, मुर्गाबियों सब को काफी मेहनत के साथ काम सिखलाया गया है। पर कॉर्वस का दूर दूर तक कोई सानी नहीं है।
हां, पंछियों से यादा रोचक लगा मुझे उनका मालिक जादूगर ऑर्गस । तोते जैसी नुकीली नाक, चमकते हुए बीच में मांग काढ़ कर बनाए हुए लम्बे बाल और नाक पर टिका एक हाई पावर चश्मा । उसका कद शायद 6 फीट से भी कहीं लम्बा था। काले लम्बे लबादे से बाहर झांकती अपनी लम्बी लम्बी बाहों के बलबूते पर वह दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देने में कामयाब रहा। जादू के नाम पर तो उसके पास कोई उल्लेखनीय चीज़ न थी पर उसके हावभाव और अंदाज इतने जानदार थे कि प्रदर्शन में बस मजा ही जाता था। जादू के शो के बाद हॉल से बाहर निकलते समय मैंने अपने साथी ग्रेनफैल से मजाक ही मजाक में कहा “ऑर्गस ने तो हमें जादू का खेल दिखलाया है तो क्यों न बदले में हम उसे अपना कॉर्वस दिखाएं? “
रात 9 बजे मैंने भोजन खाया और शानदार चिली कॉफी की चुस्कियां लेकर ग्रेनफैल के साथ हॉटल के बगीचे में कुछ देर चहलकदमी की। अपने कमरे में बिस्तर पर जा कर मैंने सोने के लिए बत्तियां बुझाई ही थी कि पास रखा टेलीफोन घनघनाने लगा।
“श्रीमान शोंकू ?”
“हां” मैंने जवाब दिया।
“मैं स्वागत कक्ष से बोल रहा हूँ सर। मुझे अफसोस है कि मैंने इस वक्त फोन कर श्रीमान के आराम में खलल डाला पर एक सज्जन आपसे मिलने के लिए बेताब हैं और बहुत देर से जिद कर रहे हैं।”
मैंने कहा कि मैं बेहद थका हुआ हूँ और बेहतर अगर वह आगन्तुक महोदय मुझसे कल सवेरे मिलें । मैंने सोचा जरूर यह कोई सिरफिरा अखबारनवीस ही होगा। आज पत्रकारों को मैंने चार लम्बे-लम्बे इन्टरव्यू दिये थे और उनके बेहूदा सवाल सुन सुन कर तो मेरे जैसे धीरजवान आदमी तक का सब्र का बांध टूट गया था। मसलन एक अखबारची ने तो मुझे यहां तक पूछा और वह भी बहुत संजीदगी से कि “क्या हिन्दुस्तान में कौओं की पूजा भी की जाती है? “
स्वागत कक्ष के रिसेप्शनिस्ट ने आगन्तुक से कुछ बातचीत की और फिर कहा श्रीमान ये कह रहे हैं कि ये आपका 5 मिनट से ज्यादा वक्त नही लेंगे क्यों कि ये सवेरे कहीं और व्यस्त रहेंगे।
ये कोई पत्रकार हैं क्या? मैंने सवाल दागा।
नहीं सर। ये यहां के मशहूर जादूगर ऑर्गस हैं।
ऑर्गस ! मैं थोड़ा चौंका। नाम सुन कर उसे मिलने के लिए ऊपर बुलाने के अलावा मेरे पास अब कोई चारा ही न था। मैंने बिस्तर के सहारे लगा लैम्प फिर जला दिया और उसका इन्तजार करने लगा कोई तीन मिनट बाद ही दरवाजे की घण्टी बजी। मैंने दरवाजा खोला। मैंने आज तक इतना लम्बा आदमी नहीं देखा था।
ऑर्गस स्टेज पर करीब 6 फीट का लगता था पर निकला साढे़ छः। झुक कर मेरा अभिवादन करने के दौरान भी वह मुझ से पूरा आधा फुट तो ऊंचा रहा ही होगा । मैंने उसे भीतर चले आने के लिए कहा। वह जादूगर के लबादे में नहीं बल्कि एक सूट में था पर रंग इसका भी था काला ही। मैंने देखा कि “कॉराइरा डैल सैन्टियागो” का सायंकालीन संस्करण उसकी जेब से बाहर झांक रहा था। हम सोफे पर जा बैठे। मैंने उसके जादू की तारीफ करते हुए कहा-
“जहां तक मुझे याद आ रहा है ‘ऑर्गस’ ग्रीक-पुराणों में एक ऐसे प्रतिभाशाली आदमी का नाम था जिसके सारे जिस्म पर आंखें ही आँखें थीं। जादूगर को ही ‘ऑर्गस’ कहते हैं न?”
आंर्गस मुस्कराया और बोला “फिर तो आप मानेंगे न कि ऑर्गस का और पक्षियों का सम्बन्ध पुराना है।”
मैंने सहमति में सिर हिलाया।
“हां। कथा है कि ग्रीक देवी ‘हेरा’ ने ऑर्गस वे शरीर से आंखें निकाल कर मोर की पूंछ पर लगा दीं थीं। कहा जाता है कि इसीलिए उसके पंख पर गोल गोल निशान होते हैं। पर मुझे तो हैरत आपकी आंखों को देख कर हो रही है। माफ कीजिए - आपके चश्मे का नंबर कितना है?”
“माइनस बीस” ऑर्गस ने जवाब दिया। “पर इससे फर्क क्या पड़ता है। मेरे पक्षी चश्मा थोड़े ही लगाते हैं।” और स्वयं ही अपने इस मजाक पर हॅंस पड़ा।
एकाएक हॅंसते हुए वह चुप हो गया और विस्मय से उसका मुंह खुला का खुला रह गया। उसकी आंखें प्लास्टिक के उस पिंजरे पर जमी हुई थीं जिसमें कॉर्वस सो रहा था। ऑर्गस के ओरदार ठहाके से चौंक कर कॉर्वस अचानक उठा बैठा था और आंखें फाड़ कर उसकी तरफ देख रहा था। आष्चर्य में डूबा हुआ ऑर्गस कुर्सी से उठा और पिंजरे की तरफ बढ़ा कॉर्वस को एक मिनट गौर से देखते रहने के बाद वह बोला “तुम क्या जानो दोस्त आज के अखबार में तुम्हारे बारे में पढ़ कर मैं तुमसे मिलने के लिए किस कदर बेताब था। मेरा दुर्भाग्य है कि मैंने तुम्हें बोलते हुए नहीं सुना। मैं कोई पक्षी विषेशज्ञ तो नही पर चिड़ियों को ट्रेनिंग जरूर देता हूँ।”
वह लौट कर आया और वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गया। उसके चेहरे पर खेद के भाव उभरे “मैं जानता हॅूं कि आप इस वक्त थकान में किस कदर चूर होंगे - पर बड़ी मेहरबानी होगी अगर आप एक बार, केवल एक बार, इसे पिंजरे से बाहर निकाल सकें। इसकी बुद्धिमानी का एक छोटा सा नमूना मुझे............”
मैंने उसकी बात काट कर कहा - “केवल मैं ही थका हुआ नहीं हूं - कॉर्वस भी है। मैं उसकी इच्छा के विपरीत उसे कोई आदेश नहीं दे सकता। मैं पिंजरा खोलता हूं- बाकी कॉर्वस जाने और उसका काम।”
“बिलकुल ठीक है। बजा फरमाते हैं आप।” वह बोला।
मैंने पिंजरे का दरवाजा खेाला। कॉर्वस बाहर आया, बिस्तर के सहारे लगे लैम्प तक गया और अपनी चोंच से उसका स्विच दबा दिया। कमरा एकाएक अंधेरे में डूब गया।
खिड़की से छन कर सड़क पार के होटल मैट्रोपोल की हरी रोशनियां भीतर आ रहीं थीं। मैं चुप था। कॉर्वस दोबारा उड़ा और पिंजरे में जा कर अपनी चोंच से उसने दरवाजा बन्द कर लिया। हरी नियॉन बतियों की हल्की रोशनी में ऑर्गस की सांप जैसी आंखें चश्मे के सुनहरे फ्रेम में चमक रहीं थीं।
ताज्जुब में डूबा वह स्तब्ध था। ऑर्गस समझ गया था कि कॉर्वस के बत्ती बुझा कर यों पिंजरे में लौट जाने का प्रयोजन क्या था। कॉर्वस आराम करना चाहता था। वह रोशनी नहीं अंधेरा चाहता था, आराम से सोने के लिए।
ऑर्गस के पतले होंठों से अचानक निकला “कमाल है।” अपने हाथ ठोढ़ी के नीचे दबाए हुए वह अब भी हैरत में, अविश्वास में डूबा हुआ था। मैंने देखा उसके नाखून बहुत लम्बे थे और सिल्वर रंग की नेलपालिश की वजह से वे हल्के अंधेरे में भी दमक रहे थे। बार बार जल बुझ रही रोशनियों के अक्स उसके जगमगाते नाखूनों पर पड़ कर एक अजीब सा प्रभाव पैदा कर रहे थे।
“मुझे यह चाहिए।” अंग्रेजी में ऑर्गस खरखराती आवाज में फुसफुसाया। अब तक वह मुझसे स्पेनी में बोल रहा था। अब उसकी आवाज में लालच का पुट नहीं बल्कि धमकी थी।
“मुझे यह पक्षी चाहिए।” उसने दोहराया।
मैंने चुप रह कर उसे घूरा । ऐसे में कहने को मेरे पास था भी क्या? मैं केवल इंतजार करने लगा कि आगे क्या कहता है वह? वह जो अब तक खिड़की की तरफ देखता रहा था मुड़ कर मेरी तरफ मुखातिब हुआ। जलती बुझती नियॉन बत्तियां अंधेरे उजाले के प्रतिबिम्ब कमरे में रच रहीं थीं, जहां यह नाटक चल रहा था। रोशनियां बुझ जाने पर वह जैसे कमरे से गायब हो जाता और जलने पर कुर्सी पर बैठा फिर दीख पड़ता। जैसे कोई इंद्रजाल हो।
ऑर्गस ने अपनी तरफ उंगली का इशारा किया - “मेरी तरफ देखो प्रोफेसर! मैं ऑर्गस हूं...... ऑर्गस। दुनिया का मशहूर जादूगर। अमरीका के हर शहर में बेशुमार लोग मुझे जानते हैं - मेरे जादू के कायल हैं। अगले महीने मैं दुनिया भर में अपने जादू दिखलाने के लिए जा रहा हूँ । रोम, मैड्रिड, पैरिस, लंदन, स्टॉकहोम, टोक्यो, हांगकांग.... सारी दुनिया के लोग मेरा लोहा मानेंगे। पर जानते हैं आप क्या होगी इस बार असली चीज? कौआ....यही भारतीय कौआ !! प्रोफेसर! मुझे किसी भी कीमत पर यह चहिए। यही कौआ....!”
ऑर्गस अपने चमकीली नाखूनों वाली उंगलियों को मेरी आंखों के सामने कुछ ऐसे नचा रहा था मानो कोइ्र संपेरा हो। मैं मन ही मन मुस्कराया। मेरी जगह अगर उस समय कोई दूसरा आदमी होता तो निष्चय ही उसके हावभाव और आवाज से हिप्नोटाइज़ हो चुका होता और ऑर्गस पक्षी पर हाथ साफ कर जाता। पर मैंने से दृढ़ और स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि उसका जादू मुझ पर नहीं चलने वाला!
मैंने कहा - “मिस्टर ऑर्गस। आप बेकार में अपना कीमती वक्त बर्बाद कर रहे हैं। मुझे हिप्नोटाइज़ करने की कोशिश करना बेकार है। मैं आपके झांसे में नहीं आने का। आपकी बात मानना मेरे लिए कतई संभव नहीं है। कॉर्वस मेरा शिष्य ही नहीं मेरे बेटे के समान है। उसे कितनी मेहनत और लगन से मैंने तैयार किया है मेरा दिल ही जानता है...”
“प्रोफेसर...!” ऑर्गस मेरी बात काट कर एकाएक तीव्र स्वर में चिल्लाया फिर उसका स्वर एकएएक मन्द पड़ गया। “प्रोफेसर....क्या तुम्हें पता नहीं कि मैं करोड़पति हूं? इसी शहर के पूरब में मेरी पचास मंजिला इमारत है? मेरे यहां 26 नौकर और चार कैडलक कारें हैं? मेरे लिए कोई चीज महंगी नहीं है...प्रोफेसर! मैं अभी हाथों हाथ इस कौए के लिए तुम्हें बीस हजार एस्क्यूडोज़ दे सकता हॅूं।”
बीस हजार एस्क्यूडोज़ का मायना था करीब एक लाख रूपये। पर ऑर्गस को शायद पता नहीं था कि जैसे अनापशनाप खर्च कर डालना उसके बाएं हाथ का खेल था ठीक वैसे ही मेरे लिए भी पैसे टके का कोई मूल्य न था। मैंने उस पर यह दो टूक जाहिर कर दिया।
आखिर ऑर्गस ने आखिरी पासा फैंका-”आप तो भारतीय हैं न प्रोफेसर। क्या आप हिन्दुस्तानी रहस्यमय सम्बन्धों में विष्वास नहीं करते? ऑर्गस और कॉर्वस .....कॉर्वस और ऑर्गस ....कितना साम्य है दोनों लफ्जों में? क्यों है न प्रोफेसर?”
अब मैं अपने आप पर काबू न रख सका। मैं कुर्सी से उठ गया और बोला- “मिस्टर ऑर्गस। आपकी धन दौलत, कारें, कोठियां और प्रसिद्धि आपको ही मुबारक हो। मेरा कॉर्वस मेरे साथ ही रहेगा। उसका प्रशिक्षण भी अभी समाप्त नहीं हुआ है और मुझे उस पर अभी भी और मेहनत करनी है। मैं आज बुरी तरह थका हुआ था। आपने मुझसे सिर्फ पांच मिनट चाहे थे और मैं आपको बीस दे चुका हूँ । मैं अब और बातें करने की स्थिति में नहीं हॅूं। मैं और कॉर्वस अब दोनों ही सोना चाहते हैं। अच्छा - गुडनाइट !”
उसका चेहरा फक्क हो गया। उसकी उतरी हुई सूरत देख कर मेरा दिल भर आया। पर बाहर से ऐसा कुछ भी व्यक्त नहीं होने दिया मैंने। अंततः ऑर्गस आदर के अंदाज में अभिवादन के लिए झुका और जल्दी से स्पेनी में “शुभरात्रि” बुदबुदा कर कमरे से विदा हो गया।
मैंने दरवाजा बन्द कर लिया और पिंजरे तक गया। कॉर्वस अब तक जाग रहा था। मुझे देखते ही उसने चोंच खोली और मानो पूछा “कौन?” उसकी आवाज में जो जिज्ञासा थी मुझ से छिपी न रही।
“एक पागल जादूगर!” मैंने उसे बतलाया “पैसे की धौंस जमा रहा था। तुम्हारा मोल-भाव करने आया था। मैंने अंगूठा दिखा दिया। तुम अब चैन से सो जाओ।”
(रुपांतरकार - हेमन्त शेष)