चूहा और हाथी : हिमाचल प्रदेश की लोक-कथा

Chuha Aur Hathi : Lok-Katha (Himachal Pradesh)

एक नदी के तट पर हाथी स्नान करने आता था। वहीं पर एक चूहा भी नहाने आता था। उन दोनों की आपस में अच्छी जान पहचान हो गई थी। एक दिन अचानक दोनों के बीच बोल-ठोकर हो गई। बहस करते-करते वे आपस में लड़ ही पड़े। एक दूसरे को अपनी-अपनी हेकड़ी दिखाने लगे। आखिरकार हाथी ने अपनी ताकत और पहाड़ से तन सा बड़े होने की बात कह दी। चूहे को छोटा सा प्राणी बताते उसकी खूब खिल्ली उड़ाई। हाथी ने तो यह भी कह दिया कि वह छोटा सा पैर उस पर रखेगा तो उसकी आंतड़ियां-पेट बाहर निकल जाएगा। महाराज, है तो सच्च ही था। हाथी तो होता ही है बहुत ताकत वाला। उसे अपनी ताकत पर घमण्ड होता भी क्यों नहीं।

चूहे ने भी कहा कि किसी को अपने से कम नहीं समझना चाहिए और अपनी ताकत पर घमण्ड नहीं करना चाहिए। पर हाथी तो और भी दो गज उच्छला, उसने चूहे को और भी धमकाया। चूहे ने कुछ सोचते-सोचते कहा- तूं अपने को बड़ा समझता है तो आना इस रास्ते पर कला

तूं क्या करेगा, तूं राजा है यहां का? तूं यहां से भाग जा वर्ना एक थप्पड़ दूंगा तो इक मील दूर पहुंचेगा।

ओ हाथी, किसी को कम मत आंक। तुझे अपनी ताकत की इतनी ही अकड़ है तो आना भला इस रास्ते। निडरता से चूहे ने कहा।

तूं नहीं आ सकता। तूं डरपोक नहीं आ सकता। चूहे ने अब हाथी को उकसाया।

ओ चूहे की औलाद, भाग यहां से एक मारूंगा मां जाए। मैं हाथी हूं, समझा। मैं इसी रास्ते आऊंगा। हाथी ने जलकर कहा।

दोनों जन अपने-अपने घर आ गए। ओ महाराज जी। चूहे ने क्या किया कि अपने-बेगाने सब चूहे इकटटे किए। उसने रास्ते को भीतर ही भीतर से आगे तक सुरंग बनवा दी। बाहर से रास्ता वैसा ही था। प्रातः हुआ सवेरा। हाथी बड़े घमण्ड से मस्तानी चाल से चलता उस रास्ते पर आ गया। उसके सामने ही एक चट्टान पर बैठा चूहा अपनी मूंछ को मरोड़ देने लगा था। चूहे को अपनी मूंछ पर ताव देते देख हाथी के कलेजे में हौल पड़ गया। उसने जल-भुन कर और बड़ी अकड़ से कदम बढ़ाया। परन्तु जी गुस्से में तो अक्ल भी काम नहीं करती है। हाथी ने रास्ते पर उच्छाल भरा लम्बा कदम जैसे ही रखा वह रास्ते के बीच ध ड़ाम के साथ कमर से उपर तक घुस गया। बाहर निकलने को उसने बहुत हाथ-पांव मारे किन्तु बाहर निकल न पाया। प्रातः से धुपली दोपहर हो गई किन्त हाथी बाहर न आ सका। अब तो हाथी की सारी अकड और घमण्ड चूर-चूर हो गया था। थक हार कर उसने चूहे से कहा-धर्म भाई चूहे, तूं सच्च ही बड़ा है, क्षमा कर दे।

चूहे ने उसे पछताता देखकर क्षमा कर दिया। चूहे ने झट अपने चूहों की फौज एकत्र की और रास्ते को काटनफांट कर मैदान बना दिया। अब हाथी आसानी से बाहर निकल गया। हाथी ने अब चूहे को बहुत प्यार से कहा- धर्म भाई, कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता। भगवान ने सभी को सुन्दर और अच्छी लियाकते भेंट की है। अपने-अपने स्थान पर सभी बढ़िया और अच्छे है। अब हम दोनों सदा मित्र बन कर रहेगे। कभी बहस करेगें और लड़ेगें नहीं।

चूहे ने उसकी बातें मान ली थी। अब चूहा भी खुश था और हाथी भी खुश था।

(साभार : कृष्ण चंद्र महादेविया)

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