शूफ़िल फ़िल्यूष्का : रूसी लोक-कथा
Chufil Filyushka : Russian Folk Tale
एक बार की बात है कि एक जगह एक परिवार में तीन भाई रहते थे। एक का नाम था रैम यानी भैंसा, दूसरे का नाम था गोट यानी बकरा और तीसरे सबसे छोटे का नाम था शूफ़िल फ़िल्यूष्का।
एक दिन तीनों भाई जंगल गये। वहाँ एक पहरेदार रहता था जो उनका असली बाबा था। रैम और गोट ने अपने सबसे छोटे भाई शूफ़िल को बाबा के पास छोड़ा और वे जंगल में शिकार करने चले गये। फ़िल्यूशा अब अकेला रह गया सो अब वह अपनी मरजी का मालिक था।
उसका बाबा बहुत बूढ़ा था और कुछ बेवकूफ था। फ़िल्यूष्का बहुत ही दयावान बच्चा था। वह एक सेब खाना चाहता था। सो वह अपने बाबा की आँख बचा कर एक बागीचे में घुस गया और एक सेब के पेड़ पर चढ़ गया।
अचानक ही, भगवान जाने कहाँ से, वहाँ कौन आ गया? यागा बूरा । अपने हाथ में लोहे का मूसल लिये हुए लोहे की ओखली में बैठी हुई वह सेब के पेड़ पर ऊपर तक चढ़ आयी और बोली — “कैसे हो फ़िल्यूष्का? यहाँ तुम किसलिये आये हो?”
फ़िल्यूष्का बोला — “बस एक सेब तोड़ने के लिये।”
यागा बूरा बोली — “तब एक कौर मेरे सेब का भी खा लो।”
“नहीं वह तो सड़ा हुआ है।”
यागा बूरा फिर बोली — “तो यह लो यह दूसरा खा लो।”
“इसमें तो कीड़े पड़े हैं।”
यागा बूरा बोली — “नखरे मत करो। मेरे हाथ से यह सेब लो और खा लो।”
सो उसने अपना हाथ बढ़ाया तो यागा बूरा ने उसका हाथ कस कर पकड़ लिया और उसको अपनी ओखली में उठा कर रख लिया। पहाड़ियों जंगलों मैदानों के ऊपर से कूदती हुई वह अपनी ओखली मूसल से चलाती हुई तुरन्त ही उड़ चली।
तब फिल्यूष्का को होश आया तो वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगा और चीख चीख कर अपने भाइयों को पुकारने लगा — “ओ गोट ओ रैम जल्दी आओ। यागा मुझे ऊँचे ढालू पहाड़ों और काले घने अँधेरे जंगलों और घास के मैदानों के ऊपर से जहाँ बतखें घूमती हैं हो कर लिये जा रही है।”
इत्तफाक से रैम और गोट तब आराम कर रहे थे। एक जमीन पर लेटा हुआ था और उसने यह चिल्लाने की आवाज सुनी तो उसने दूसरे से कहा — “ज़रा यहाँ आ कर लेटो और सुनो।”
उसने वैसा ही किया तो वह बोला — “अरे यह तो अपना फ़िल्यूष्का है।”
वे तुरन्त ही उठे और आवाज के पीछे पीछे दौड़ने लगे। भाग भाग कर उन्होंने यागा बूरा को नीचे उतार लिया फ़िल्यूष्का को बचा लिया और बाबा के पास वापस लौट आये। यह सब देख कर उनके बाबा का तो डर के मारे दिमाग ही घूम गया था।
उन्होंने फिर से फ़िल्यूष्का को बाबा को सौंपा और फिर से शिकार पर चल दिये।
इर फ़िल्यूष्का तो वाकई एक बच्चा ही था। उसको अपने भाइयों के जाने के बाद जैसे ही पहला मौका मिला वह फिर से सेब के पेड़ की तरफ चल दिया। वहाँ जा कर वह फिर से पेड़ पर चढ़ गया पर वहाँ तो फिर से यागा बूरा थी और उसको सेब दे रही थी। फ़िल्यूष्का बोला — “इस बार तू मुझे नहीं पकड़ सकती ओ बूढ़ी जानवर।”
यागा बूरा बोली — “अरे तू इतना बेरहम न बन। तू मुझसे एक सेब ले ले। मैं तुझे यह फेंक कर दे दूँगी।” “ठीक है तो तू इसे नीचे फेंक दे।”
सो यागा बूरा ने वह सेब नीचे फेंक दिया। फिल्यूष्का ने उसे लेने के लिये अपना हाथ बढ़ाया तो तुरन्त ही यागा बूरा ने उसको पकड़ लिया और उसको ले कर उड़ चली – पहाड़ियों मैदानों अँधेरे जंगलों के ऊपर। वह इतनी तेज़ उड़ रही थी कि उसको ऐसा लगा कि बस वह तो पलक झपकते ही उसके घर पहुँच गया।
वहाँ ले जा कर उसने उसको नहलाया धुलाया और एक बक्से में बन्द करके चली गयी।
सुबह को वह फिर बाहर जाने को तैयार हुई तो उसने अपनी बेटी से कहा — “सुन ओवन को ठीक से गरम करना और शूफ़िल फ़िल्यूष्का को उसमें मेरे रात के खाने के लिये ठीक से भून कर रखना।” यह कह कर वह कोई और शिकार लाने के लिये चल दी।
उसकी बेटी गयी और ओवन को ठीक से गरम किया। फ़िल्यूष्का को बाहर निकाला बाँधा और फावड़े पर रख कर वह उसको ओवन में डालने ही जा रही थी कि फ़िल्यूष्का ने अपने पैर से अपने माथे पर मारा।
यागा बूरा बोली — “फ़िल्यूष्का इस तरह से नहीं।”
वह बोला — “तो फिर किस तरह से। मैं समझा नहीं।”
“इधर देखो। बस इसको ऐसे ही जाने दो। मैं बताती हूँ तुमको।” वह गयी और फावड़े पर जैसे लेटा जाना चाहिये वैसे ही लेट गयी।
हालाँकि शूफ़िल छोटा था पर बेवकूफ नहीं था। उसने तुरन्त ही वह फावड़ा ओवन के अन्दर खिसका दिया और उसका दरवाजा एक झटके के साथ बन्द कर दिया।
दो तीन घंटे के बाद फ़िल्यूष्का को भुने हुए माँस की सौंधी सौंधी खुशबू आयी तो उसने ओवन का दरवाजा खोला और उस यागा बूरा की भुनी हुई लड़की को बाहर निकाल लिया। उस पर मक्खन लगाया उसको एक कढ़ाई में रखा तौलिये से ढका और उसी बक्से में बन्द कर दिया जिसमें वह खुद बन्द था।
फिर वह छत वाले पेड़ पर चढ़ गया और यागा बूरा की ओखली और मूसल ले कर वहाँ से चल दिया।
शाम को यागा बूरा आयी तो सीधी उस बक्से के पास गयी और उसमें से भुना हुआ माँस निकाल कर खाने लगी। सारा माँस खा लेने के बाद उसने उसकी हड्डियाँ इकठ्ठी कीं और उनको बागीचे में जा कर एक लाइन में रख दिया। फिर वह उन पर लोटने लगी।
पर किसी वजह से उसको अपनी बेटी नहीं मिली। उसने सोचा कि शायद वह पड़ोस की किसी झोंपड़ी में गयी होगी। पर जब वह उन हड्डियों पर लोट रही थी कि अचानक उसके मुँह से निकला — “ओह मेरी प्यारी बेटी तू आ और फ़िल्यूष्का की हड्डियों को लपेटने में मेरी सहायता कर।”
फ़िल्यूष्का दूर से चिल्लाया — “माँ जी। आप लोटती रहें और फिर अपनी बेटी की हड्डियों पर खड़ी हो जायें।”
यह सुन कर यागा बूरा चिल्लायी — “अरे चोर तू अभी यहीं है। तू ज़रा रुक तो मैं अभी आती हूँ।,”
पर छोटा शूफ़िल यागा बूरा की इस बात से बिल्कुल नहीं डरा। और जब यागा बूरा अपने दाँत किटकिटाते हुए जमीन पर धम धम चलते हुए छत पर पहुँची इसने बड़े ज़ोर से उसका मूसल लिया और पूरी ताकत से उसके माथे पर मार दिया। वह उसकी मार सह न सकी और नीचे गिर गयी।
फ़िल्यूष्का अब छत पर आ गया। वहाँ उसने कुछ बतखें उड़ती हुई देखीं तो उन्हें अपने पास बुलाया और कहा — “मुझे अपने पंख उधार दे दो। मुझे तुम्हारे ये पंख अपने घर जाने के लिये चाहिये।”
उन्होंने उसको अपने पंख दे दिये और वह उनके पंख लगा कर अपने घर चला गया।
पर उसके माता पिता तो बहुत देर से उसके घर वापस आने के लिये प्रार्थना कर रहे थे तो जब वह घर पहुँचा तो वे कितने खुश थे। उन्होंने भगवान की प्रार्थना की।
बहुत दिनों तक खुशी खुशी ज़िन्दा रहे।