क्रिसमस डिनर (अंग्रेजी कहानी) : चार्ल्स डिकेंस
Christmas Dinner (English story in Hindi) : Charles Dickens
क्रिसमस का समय! शायद ही कोई ऐसा आदमी होगा, जिसके मन में क्रिसमस के समय हर्षोल्लास नहीं होगा, जिसके मन में बीते साल के क्रिसमस के समय की खुशनुमा यादें नहीं होंगी। कुछ लोग तो ऐसे भी होंगे, जो यह भी कहते पाए जाएँगे कि अब क्रिसमस के त्योहार में वह बात नहीं रही, जो पिछले सालों में हुआ करती थी। आनेवाले सालों में कुछ आशाएँ, जो पिछले सालों में जगी थीं, क्षीण या मंद होती गई। अब हाल यह है कि वर्तमान में उनके पास केवल अच्छी यादें और कम आय ही रह गई थी। उनको याद आ रही थी, जब वे अपने खस्ता हाल खब्ती दोस्तों को बड़े दिन पर खाना खिलाते थे और अब वही लोग इस तंगहाली के दिनों में उनसे नजरें चुराते हैं। इस तरह के बद-खयालों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। इस दुनिया में कुछ ही आदमी ऐसे हैं, जो साल के किसी भी दिन ऐसे खयालों से सामना नहीं करते थे। वे साल के 365 दिनों में से एक भी खुशहाल या मस्ती में गुजारे दिनों को याद नहीं करते थे। परंतु अपनी कुरसी फायर प्लेस (आतिशदान), जहाँ आग जल रही होती थी, वहाँ पर खींचकर ले आते हैं। अपने गिलास को भर लेते और घर में चारों ओर गीत गाते विचरने लगते और यदि आपका गिलास पंच (पंच मेल शराब) से महक रहा था, इसके बजाय कि चमकती हुई वाइन के, तब भी आप अपने चेहरे पर खुशी सँजोए रखिए और उसको जल्दी से खाली करके दूसरा गिलास भर लीजिए और जो आपको पुराने गाने, क्रिसमस के रोगी आदि याद हों, उन्हें गाना शुरू कर दीजिए और ईश्वर को धन्यवाद दीजिए कि इससे कमतर या बदतर कोई सूरत नहीं पैदा हुई। अपने बच्चों के, यदि वे आपके घर में हैं, तो उनके खुशनुमा चेहरे देखिए, जब वे आग के इर्द-गिर्द बैठे हों। हो सकता है कि एक छोटी सी सीट खाली हो, जो कि पिता के चेहरे पर खुशी ला देती थी और माता की छाती गर्व से फूल जाती थी, वह अब वहाँ न हो। अपने बीते हुए दिनों को याद करिए, उस छोटे से बच्चे के बारे में सोचिए, जो पिछले साल धूलमिट्टी में खेल रहा था। वह अब बड़ा होकर आपके सामने छोटी सी कुरसी पर बैठा उसे इधर-उधर घुमा रहा है, जिसके बच्चों की तरह गुलाबी गाल हैं और उसकी खुशी भरी आँखों में बाल-सुलभ भोलापन हो। ईश्वर प्रदाय अपने वरदानों को गिनिए, जो हर आदमी के पास कमोबेश होते हैं, न कि अपने दुर्भाग्य भरे दिनों को याद करें। खुशनुमा चेहरे और संतोषपूर्ण दिल से अपने गिलास को फिर से भर लीजिए। मैं शर्त लगा सकता हूँ कि आपका क्रिसमस बहुत ही हर्षोल्लास से भरा होगा और नववर्ष तो और भी खुशनुमा होगा।
कौन ऐसा आदमी होगा, जो इस समय वातावरण में व्याप्त हँसी-खुशी के माहौल के प्रति उदासीन हो सकता है? क्रिसमस की एक पारिवारिक पार्टी! हम जानते हैं कि इससे ज्यादा आनंदानुभूति कोई अन्य चीज नहीं प्रदान कर सकती। क्रिसमस के नाम में ही एक जादू-सा है। आपस की छोटी-मोटी लड़ाइयाँ और ईर्ष्या सब लोग भूल जाते हैं। वे छोटी-मोटी ईर्ष्या की चीजें, जिन्हें कि वह अपने भीतर दिल में छिपाए थे, सामाजिक और मिलने-जुलने की भावनाएँ उभरकर ऊपर आती हैं। बाप-बेटे और भाई-बहनें, जो कुछ समय पहले एकदूसरे से नजरें चुरा रहे थे या इस तरह से देखते थे जैसे उन्हें कभी जानते ही न हों, इस त्योहार के मौसम में अपनी दुश्मनी भुलाकर एक-दूसरे से प्यार से गले मिल रहे होते थे। वे कृपालु और दयालु दिल, जो एकदूसरे से मिलना तो चाहते थे पर अपने अहं और ईर्ष्यावश एक-दूसरे से खिंचे-खिंचे रहते थे, वे अब एकदूसरे से पुनः जुड़ गए थे। क्या ऐसा क्रिसमस साल भर चल सकता था और क्या पूर्वग्रह और भावावेश, जो हमारे अच्छे स्वभाव को दबाकर रखते हैं, वे उन सब लोगों के प्रति फिर कभी उभरकर ऊपर नहीं आएँगे, जिनके लिए वे हमेशा से अजनबी बन जाएँगे?
क्रिसमस पार्टी, जिसका हम यहाँ जिक्र कर रहे हैं, वह साल में एक बार केवल सब रिश्तेदारों का एक समय में एक घर में इकट्ठा होना ही मात्र नहीं है, जो कि एक या दो हफ्ते की नोटिस पर एकत्र हुए हों, जिनका पहले से कोई रिवाज नहीं था या पिछले साल नहीं मनाया गया था और अगले साल होने की भी संभावना नहीं थी। नहीं, इस साल में सारे रिश्तेदार, जिन तक पहुँचा जा सकता है, चाहे वे जवान हों या वृद्ध, अमीर हों या गरीब और सारे बच्चे इस दिन का लगभग दो माह पहले से इंतजार करने लगते थे। पहले यह मिलन दादा-दादी के घर होता था, पर अब जब दादाजी बूढ़े हो गए हैं और दादी भी बूढ़ी व निर्बल हो गई थीं तो उन्होंने इस पार्टी की जिम्मेदारी अंकल जॉर्ज पर छोड़ दी थी और अब स्वयं भी जॉर्ज चाचा के घर पर जश्न मनाने में लग गए थे। पर दादाजी इस मौके के लिए तरह-तरह के व्यंजन बनाकर चाचा जॉर्ज के यहाँ भेज देते थे। दादाजी खुद भी लुढ़कते-पुढ़कते घर से काफी दूर न्यूगेट मार्केट जाते थे, जहाँ से वह एक टर्की खरीदते थे और फिर एक कुली उसे जॉर्ज अंकल के घर पहुँचाता था। घर पर वह विजयी मुद्रा में पहुँचते तथा इस बात पर जोर देते कि उसे (पोर्टर को) एक गिलास शराब पिलाकर ही विदा किया जाए और अंकल जॉर्ज तथा परिवार के अन्य सदस्यों को, खासकर मैरी और जॉर्ज को, क्रिसमस कहकर ही विदा करें।
जहाँ तक दादी माँ का सवाल था, वह बहुत गुपचुप तरीके से, पर इस बात की अफवाह तो फैल ही जाती थी कि उन्होंने सारे नौकरों के लिए एक नई टोपी खरीदी थी, जिसमें गुलाबी रंग का रिबन लगा था और सब बच्चों के लिए छोटी-मोटी चीजें, जैसे—पेंसिल बॉक्स, किताबें, पेन, नाइस आदि उपहार में देने के लिए खरीदे थे और साथ ही वह पेस्ट्री बनानेवाले को अपने पुराने ऑर्डर के अलावा डिनर के लिए दर्जनों मिस-पाई और एक बड़ा सा प्लम-केक बच्चों के लिए बनवाती थीं।
क्रिसमस की पूर्व संध्या पर दादी माँ हमेशा ही बहुत खुश व जोश-खरोश में नजर आती थीं और सब बच्चों की तरह-तरह की एक्टिविटी या कामों में उलझाए रखती थी, जैसे कि प्लमों (आलूचों) को इकट्ठा करना तथा शाम को इस बात पर जोर देती थी कि शाम को जॉर्ज अंकल कोट उतारकर किचन में आएँ और आधे घंटे तक चूल्हे पर पक रही पुडिंग (खीर) को अवश्य करछी से चलाते रहें, जो कि अंकल जॉर्ज बहुत खुशीखुशी करते थे और बच्चे तथा नौकरों को इसमें बड़ा मजा आता था। शाम का खाना-पीना और फिर आँखमिचौली के खेल से अंत होता था, जिसमें दादाजी इस बात का खयाल रखते थे कि वे जल्दी से पकड़ लिये जाएँ, जिससे उन्हें अपने हाथ की सफाई दिखाने का मौका मिल सके।
दूसरे दिन सुबह वे वृद्ध दंपती दादा-दादी तमाम बच्चों को साथ लेकर चर्च जाते थे और आंट जॉर्ज को घर पर पीछे से साफ-सफाई करने के लिए छोड़ देते थे और अंकल जॉर्ज बोतलों को डाइनिंग रूम में ले जाएँ और सबसे कार्क स्क्रू की ढूँढ़-खोज करवाते रहते थे तो सब लोगों के रास्ते में आ जाते थे।
जब चर्च-पार्टी लंच के समय घर लौटती थी, तब दादाजी अपनी जेब से बाँदा (मिसलटों) की एक टहनी अपनी जेब से निकालते थे और बच्चों से कहते थे कि वे उसके नीचे से गुजरें और अपनी छोटी कजन सिस्टर्स को 'किस' करें। यह एक ऐसी कारवाई थी, जिसे दादी माँ पसंद नहीं करती थीं। पर इससे दादाजी को बहुत संतोष मिलता था और उन्होंने बताया कि जब वे 13 साल 3 महीने के थे तो उन्होंने ऐसे ही एक मिसलटो की टहनी के नीचे उन्होंने दादी को पहली बार किस किया था। जिस बात पर बच्चे खुश होकर जोर-जोर से तालियाँ बजाते थे और अंकल जॉर्ज भी खूब मुदित होते थे और दादी माँ भी बहुत खुश होती थीं और बताती थीं कि दादाजी एक बहुत ढीठ कुत्ते की तरह थे, जिस पर बच्चे जोर-जोर से हँसकर तालियाँ बजाते थे तथा दादाजी भी उसमें खुशी-खुशी पूरे जोश से शामिल हो जाते थे।
पर यह सब तो कुछ भी नहीं था, इसकी तुलना में जब दादी माँ अपने सलेटी रंग के गाउन पहने और ऊँची टोपी लगाए तथा दादाजी अपनी सुंदर सी फ्रिलवाली कमीज पहने और तमाम छोटे-मोटे बच्चों और उनके कजन्स के साथ आग के सामने बैठकर आनेवाले मेहमानों का इंतजार कर रहे होते थे। अचानक एक बग्घी दरवाजे के सामने आकर रुकती है तथा अंकल जॉर्ज, जो खिड़की पर खड़े होकर उनकी राह देख रहे होते थे, वह खुशी से चिल्ला उठते, "यह देखो, जेन आ गई।"
और सब बच्चे खुशी से चिल्लाते, सीढियों से आपा-धापी करते हुए नीचे दरवाजे की ओर भागते और चाचा रॉबर्ट व जेन को सब लोग ऊपर लेकर आते। उनके साथ उनका छोटा सा बच्चा और उसकी आया भी होती थी। सब बच्चे उस छोटे से शिशु को देखकर बोलते, "अरे, कितना सुंदर है!" और बार-बार मना करने के बाद भी सारे बच्चे उसका गाल चूम रहे थे या छू रहे थे तथा दादी माँ अपनी बेटी का चुंबन लेती है और अभी पहले आगंतुक का स्वागत समारोह और शोरगुल समाप्त भी नहीं हुआ था कि कुछ और चाचा-चाचियाँ तथा भतीजे-भतीजियाँ आना शुरू हो जाते हैं। जवान भतीजे-भतीजियाँ एक-दूसरे से फ्लर्ट करना शुरू कर देते हैं और उनकी देखा-देखी छोटे-छोटे कजन्स (लड़के-लड़कियाँ) आपस में हँसी-मजाक करना शुरू कर देते हैं और उसके बाद सबकुछ हँसी, शोर-शराबे और गुल-गपाड़ों की आवाज में गुम हो जाता है।
और जब शोर में थोड़ी सी कमी आती है तो बाहर सड़क पर खुलनेवाले दरवाजे पर हलके से दस्तक (दो बार खट-खट) सुनाई पड़ती है और सब लोग निगाहें उठाकर दरवाजे की ओर 'अब कौन आया?' की मुद्रा में देखने लग जाते थे। दो बच्चे, जो खिड़की पर खड़े बाहर देख रहे थे, ने बताया, "यह तो बेचारी मारिट आंट हैं।"
इसके बाद जॉर्ज अंकल उठकर नीचे उनका स्वागत करने दरवाजे पर गए। अब दादी माँ ने उठकर अपने ड्रेस को ठीक-ठाक किया तथा एक राक्सी पर कड़ा रुख अख्तियार कर लिया, क्योंकि मार्गरेट ने एक गरीब लड़के से दादी की आज्ञा के बगैर शादी कर ली थी। और जैसे कि गरीबी अपने आप में एक बड़ी सजा नहीं थी, उसके घनिष्ठ रिश्तेदार व दोस्तों ने उसका बहिष्कार कर दिया था और उससे मिलना-जुलना बंद कर दिया था। पर क्रिसमस जैसे त्योहार के समय इस तरह की कड़वी भावनाएँ ऐसे पिघल गई थीं, जैसे कि नदी या झील के ऊपर जमी बर्फ की परत सूरज की किरणें पड़ने से पिघल जाती हैं। एक माता-पिता के लिए अपने ढीठ और अनुशासनहीन या आज्ञा-पालन न करनेवाले बच्चों को कुछ समय तो उसकी धृष्टता के लिए सजा के तौर में अकेले कमरे में उन्हें बंद तो कर सकते हैं, पर हमेशा के लिए तो उसे छोड़ नहीं सकते। उसे इस प्रकार से जो बच्चा एक घर में पला-बढ़ा है और आतिशदान (फायर प्लेस) के सामने बैठकर सबके साथ आग सेंकी है और गपशप तथा हँसी-मजाक किया है, उसे हम हमेशा के लिए अपने परिवार से कैसे अलग कर सकते हैं? वह लड़की, जो हमारे ही घर में पली-बढ़ी और फिर युवा हुई तथा विवाह करके (चाहे अपनी मरजी से ही) अन्यत्र चली गई, उसे हम एकदम से कैसे भुला सकते हैं? तो उसे वृद्ध महिला इस प्रकार से कड़ा और बेरुखा व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जा सकती थी। पर फिर भी, वह बेरुखी से वहाँ बैठी रही। फिर भी, वह लड़की अपनी बहनों द्वारा जिस वक्त अंदर लाई गई, वह उपेक्षा और अकृपालु व्यवहार से उसका चेहरा पीला पड़ गया था। वह लड़की अपनी बहन से अपना हाथ छुड़ाकर भागती हुई अपनी माँ के पास दौड़कर गई और उसके गले में हाथ डालकर और वक्ष-स्थल में अपना मुँह छुपाकर जोर-जोर से रोने लगी। एक क्षण के बाद उसके पिता उठे और उसके पति का हाथ पकड़कर उसका अभिनंदन किया। इससे वहाँ पर एक खुशी का माहौल बन गया। सब लोगों ने उन्हें बधाइयाँ दी तथा बच्चों ने तालियाँ बजाई।
जहाँ तक डिनर का सवाल था, वह बहुत ही लजीज व स्वादिष्ट था और उसमें मौके के अनुकूल तरहतरह के व्यंजन थे तथा सभी आदमी, औरतें व बच्चे उल्लसित एवं प्रसन्न मुद्रा में थे। दादाजी ने बताया कि वह किस प्रकार से टर्की बाजार से ले आए थे, और फिर कुछ बहकते हुए उन्होंने इस तरह से बयान किया, जिसकी दादी माँ ने बहुत सूक्ष्मता से पुष्टि की। जॉर्ज कहानियाँ सुनाते हुए उसे चिडिया टर्की को काटते और मदिरा पीते हुए, बच्चों के साथ हँसी-मजाक करते हैं और उन कजन्स को आँख मारते हैं, जो एक-दूसरे से प्रेम का इजहार कर रहे थे या फ्लर्ट कर रहे थे। वह अपने मजाकिया स्वभाव से सबको हँसते-हँसाते रहते हैं तथा अपने आतिथ्य-सत्कार से भी। इसके बाद जब एक मोटा-नाटा नौकर भारी सी पुडिंग लेकर आता है, जिसके ऊपर एक 'हॉली' पेड़ की टहनी रखी हुई होती थी, तब सब लोग जोर-जोर से हँसने, चिल्लाने व तालियाँ बजाने लगे। छोटे-छोटे बच्चे अपने गुदैले हाथों से और अपने मोटे-मोटे पैरों को उछालते हुए इतने उत्साह और जोरों से तालियाँ पीटने लगते हैं कि उसकी बराबरी अन्य लोगों, अतिथियों की करतल-ध्वनि से तभी की जा सकती थी, जब उन लोगों द्वारा मिस-पाई (केक) में वाइन या ब्रांडी डालते वक्त होती थी। उसके बाद डिसर्ट, फिर वाइन! फिर हँसी-मजाक और गुल-गपाड़ा। मार्गरेट के पति बहुत सुंदर-सुंदर भाषण देते हैं और खूब सुंदर-सुंदर गाने गाते हैं। और वे इतने अच्छे आदमी साबित होते हैं और 'वंस मोर वंस मोर' (एक बार और, एक बार और) चिल्लाते हैं। तब दादाजी एक नया गाना, जो पहले कभी किसी ने नहीं सुना था-केवल दादी और एक दूर-दराज की कजन के-गाते हैं, जिसको सुनकर सब लोग हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाते हैं। यह सबसे हास्यप्रद कॉमिक गाना था, जो उन लोगों ने इससे पहले कभी भी नहीं सुना था। इस तरह से यह क्रिसमस की संध्या/रात हँसी-खुशी से बीत जाती है और सब लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते, गले मिलते, झूमते-झामते वहाँ से विदा हो जाते हैं अगले साल फिर मिलने के वादे के साथ।