चोरों का सरदार (कहानी) : विक्टर ह्यूगो

Choron Ka Sardar (French Story in Hindi) : Victor Hugo

(इस कहानी में विक्टर ह्यूगो ने तत्कालीन सामाजिक एवं न्याय व्यवस्था पर गहरा प्रहार किया है। विक्टर ह्यूगो के अनुसार क्लाड ग्युकस कुछ निश्चित कारणों से हत्यारा बन गया था। यदि उसके साथ पृथक् व्यवहार किया जाता तो वह अपने देश के लिए उपयोगी कार्य कर सकता था। वे कहते हैं—‘‘अपराध तथा कष्टों को जन्म देनेवाली सीढ़ी को हटा लेने पर अपराध को समाप्त करने के लिए तलवार अथवा कुल्हाड़ी की जरूरत नहीं पड़ेगी।’’)

क्लाड ग्युक्स एक गरीब कारीगर था। लगभग आठ साल से वह पेरिस में अपनी पत्नी और बच्चे के साथ रहता था। यद्यपि वह अनपढ़ था, कुछ लिख-पढ़ नहीं सकता था तथापि स्वभाव से कुशल और बुद्धिमान था। हर बात पर गंभीरतापूर्वक विचार करता था। सर्दी का मौसम अपने सहायक कष्टों—काम का अभाव, खाने का अभाव, ईंधन का अभाव के साथ आ गया था। आदमी, औरत, बच्चे भूख से बिलबिलाने और सर्दी से ठिठुरने लगे। नहीं मालूम कि उसने क्या चुराया था। महत्त्वपूर्ण बात थी कि उसके कारण बच्चे और औरत को तीन दिन के लिए खाना और गरमी मिल गई थी, आदमी को पाँच साल की जेल। उसको क्लेयवाक्स की जेल, जो किसी समय गिरजाघर था, में ले जाया गया। गिरजाघर के कमरों को जेल की कोठरियों तथा पूजा की बेदी को लकड़ी के कठघरे (जिसमें अपराधी का सिर और हाथ फँसा दिए जाते थे) में बदल दिया गया था। यही विकास का दूसरा रूप था।

हालात से मजबूर होकर चोर बननेवाला क्लाड ग्युक्स एक ईमानदार कारीगर था। उसका तेजस्वी चेहरा, ऊँचा माथा, मस्तक की गहरी रेखाएँ, काले बाल, जिनमें कहीं-कहीं सफेदी दिखाई देने लगी थी, सहृदयता से परिपूर्ण दो जगमग करती आँखें आत्मसम्मान से भरपूर दृढ़निश्चय की परिचायक थीं। बहुत कम बोलता था। उस व्यक्ति में निश्चित रूप से आत्मगौरव था।

इसी कारण से लोग उसका आदर करते थे तथा उसकी आज्ञा का पालन करते थे। वह एक सभ्य, सुसंस्कृत व्यक्ति था। आइए, देखते हैं कि समाज ने उसको क्या बना दिया था!

जेल के वर्कशॉप में एक जेलर था। अपने अधीनस्थ कैदियों के सामने वह यह बात कभी नहीं भूलता था कि वह एक जेलर था। एक हाथ से उनको औजार पकड़ाता था तो दूसरे हाथ से उनपर जंजीर बाँधता था। वह एक तर्कहीन विचारोंवाला, जिसके लिए याचिका का प्रावधान नहीं था, दृढ़निश्चयी, कठोर, विनोदप्रिय स्वभाव का, एक अच्छा पिता, एक अच्छा पति था। वह क्रूर नहीं था, अपितु दुष्ट तथा निरंकुश था। वह उन व्यक्तियों में से था, जिनके दिमाग में नए विचार आते ही नहीं, जो संवेदनहीन होते हैं तथा क्रोध एवं घृणा से लकड़ी के गट्ठों की तरह जलते रहते हैं। बाहर से तपते हुए तथा भीतर से बर्फ की तरह जमे हुए। उस व्यक्ति के चरित्र की विशिष्टता थी उसका जिद्दी स्वभाव। अपने जिद्दी स्वभाव पर उसको बेहद अभिमान था तथा वह अपनी तुलना नेपोलियन से करता था—उसी प्रकार का मिथ्या भ्रम, जिस प्रकार मोमबत्ती की नन्ही लौ को आकाश का तारा मान लिया जाए। वह यदि कोई निर्णय कर लेता, भले ही वह कितना ही निरर्थक क्यों न हो, उसको पूरा करके ही चैन की साँस लेता था। भयानक मुसीबतों के कारणों की जाँच-पड़ताल करने पर पता चलता कि वे अपनी शक्ति पर ज्यादा विश्वास करनेवाले किसी अयोग्य व्यक्ति की जिद के कारण उपजी थीं।

क्लेयरवाक्स जेल की वर्कशॉप का इंस्पेक्टर ऐसा ही व्यक्ति था। समाज ने उस कठोर हृदय को दूसरों पर हुक्म चलाने के लिए बैठा दिया। वह अपने हुक्म से व्यवस्था में चिंगारी भड़का सकता था। वहाँ से निकली चिंगारी भी भीषण अग्निकांड में बदलने के लिए काफी थी।

इंस्पेक्टर ने जल्दी ही क्लाड ग्युक्स को सबसे अलग कर दिया। नंबर देकर वर्कशॉप में काम पर लगा दिया। वह उसको बुद्धिमान समझकर उससे अच्छा व्यवहार करता था। क्लाड को उदास देखकर (वह हर समय अपनी पत्नी के बारे में सोचता रहता), विनोदी स्वभाव का होने के कारण तथा समय बिताने के विचार से उसको तसल्ली देने के लिए कहता कि उसकी पत्नी एक बदनाम महिला संघ में शामिल होने के कारण स्वयं भी बदनाम हो गई थी, बच्चे के बारे में उसको कुछ मालूम नहीं था।

कुछ ही दिनों में क्लाड ने अपने आपको जेल के नियमों के अनुरूप ढाल लिया। अपने शांत व्यवहार, चेहरे पर दिखाई देनेवाले विशिष्ट दृढ़संकल्प के कारण उसके साथी उसको बहुत ज्यादा इज्जत देने लगे थे। वे उसके प्रशंसक थे और उससे सलाह-मशवरा लेते रहते थे। हर काम को उसकी तरह करने की कोशिश करते थे। उसकी आँखों के भावों से ही उस व्यक्ति का चरित्र स्पष्ट हो जाता था। आँख आत्मा की खिड़की है। बुद्धिमान आत्मा में ही व्यक्तियों को आकृष्ट करनेवाले विशिष्ट विचार उसी प्रकार निहित रहते हैं, जिस प्रकार चुंबक में धातु को आकृष्ट करने का गुण विद्यमान रहता है। तीन महीने से कम समय में ही क्लाड एक प्रकार से वर्कशॉप का प्रमुख बन गया था। कभी-कभी उसको संदेह होता कि वह उन लोगों का सरदार था। कई बार उसके साथ अधीनस्थ पादरियों से घिरे पोप की तरह व्यवहार किया जाता था। लोकप्रियता के साथ-साथ उसके लिए घृणा भी उपजने लगी थी। कैदियों में क्लाड की लोकप्रियता को देखकर इंस्पेक्टर उससे घृणा करने लगा था। उसके लिए दो आदमियों का खाना भी कम पड़ता था। स्वयं पेटू होने के कारण इंस्पेक्टर उस पर हँसता था, परंतु जो बात एक ड्यूक के लिए प्रसन्नतादायक थी, वही कैदी के दुर्भाग्य का कारण थी। जब क्लाड आजाद था, तब वह हर रोज कमाकर चार पाउंड की डबलरोटी आराम से खाता था। कैदी होने पर उसको हर रोज काम करने के बाद भी डेढ़ पाउंड की डबलरोटी और चार औंस मीट खाने को मिलता था। स्वाभाविक था कि उसका पेट कभी भरता ही नहीं था, वह हमेशा भूखा रहता था। थोड़ा खाना खाने के बाद वह दोबारा काम शुरू करनेवाला था, उसको आशा थी कि काम करते समय वह अपनी भूख भूल जाएगा, तभी एक दुबला-पतला नौजवान अपने हाथ में खाना और चाकू लेकर उसके पास आया। वह उससे बात करते हुए डर रहा था। ‘‘तुम्हें क्या चाहिए?’’ क्लाड ने रूखे स्वर में पूछा।

‘‘क्या आप मुझ पर एक अहसान करेंगे?’’ उसने डरते-डरते कहा।

‘‘क्या बात है?’’

‘‘मुझे मेरे खाने में मदद कीजिए, मैं इतना ज्यादा खाना नहीं खा सकता।’’

पलभर के लिए क्लाड भौचक्का रह गया लेकिन ज्यादा दिखावा किए बिना उसने खाने को दो हिस्सों में बाँटा और आधा हिस्सा खा लिया।

‘‘धन्यवाद,’’ नौजवान ने कहा, ‘‘हर रोज अपना खाना आपके साथ बाँटकर खाने की इजाजत चाहता हूँ।’’

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’ क्लाड ने पूछा।

‘‘एल्बीन,’’

‘‘किस अपराध में बंदी हो?’’ क्लाड ने आगे कहा।

‘‘मैंने चोरी की थी।’’

‘‘मैंने भी।’’

हर रोज समय से पहले बूढ़े हो गए उस आदमी (वह केवल छत्तीस साल का था) तथा उस बीस साल के नौजवान, जो केवल सत्तरह साल का दिखाई देता था, के बीच यही दृश्य देखने को मिलता। दोनों में एक भाई की दूसरे भाई के प्रति प्रेमभावना की अपेक्षा पिता-पुत्र की भावना अधिक थी। उनके संबंध प्रगाढ़ होते जा रहे थे। दोनों एक साथ मिलकर कठोर परिश्रम करते, एक ही क्वार्टर में सोते तथा एक ही मैदान में कसरत करते थे। वे खुश थे। उनकी दुनिया एक-दूसरे में सिमट गई थी।

कैदी वर्कशॉप के इंस्पेक्टर से बहुत ज्यादा नफरत करते थे, अपना काम करवाने के लिए उसको अक्सर क्लाड ग्यूक्स की मदद लेनी पड़ती थी। लड़ाई-झगड़ा होने की स्थिति में दस वार्डरों को आदेश देने की अपेक्षा क्लाड के कुछ शब्द अधिक प्रभावशाली होते थे। इंस्पेक्टर इस पर खुश होने के साथ-साथ ईर्ष्या भी करने लगा था। वह उस सज्जन कैदी से असंतोष, ईर्ष्या भावना के साथ घृणा करता था। ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी। मन-ही-मन विकसित हो रही यह भावना अत्यधिक भयावह थी। क्लाड एल्बीन का पूरा ध्यान रखता था। इंस्पेक्टर के बारे में सोचने के लिए उसके पास समय नहीं था।

एक सुबह जब वार्डर अपना दौरा कर रहे थे, तब एक वार्डर ने क्लाड के साथ काम कर रहे एल्बीन को अपने पास बुलाया और इंस्पेक्टर के पास जाने के लिए कहा।

‘‘तुम्हें किसलिए बुलाया है?’’ क्लाड ने पूछा।

‘‘मुझे नहीं मालूम,’’ एल्बीन ने जवाब दिया और वार्डर के पीछे चला गया।

पूरा दिन क्लाड अपने साथी की प्रतीक्षा करता रहा, रात के समय भी वह नहीं आया। उसने अपनी सामान्य चुप्पी तोड़ी और बाहर खड़े सिपाही से पूछा, ‘‘क्या एल्बीन बीमार है?’’

‘‘नहीं,’’ उसने जवाब दिया।

‘‘क्या बात है, वह आज सुबह से दिखाई नहीं दिया है?’’

‘‘उसका क्वार्टर बदल दिया गया है,’’ उसका जवाब था।

क्षण भर के लिए क्लाड काँप गया। फिर शांतिपूर्वक पूछने लगा, ‘‘यह आदेश किसने दिया है?’’

‘‘मिस्टर डी...’’, यह इंस्पेक्टर का नाम था।

अगली रात इंस्पेक्टर डी हमेशा की तरह अपने दौरे पर गए। क्लाड ने उन्हें दूर से आते देखा। जेल के नियमों के अनुसार अपने से उच्च व्यक्ति के प्रति आदरस्वरूप उसने जल्दी से अपने सिर पर अपनी ऊनी टोपी रखी और अपनी सफेद ऊनी बनियान गले तक चढ़ा ली।

इंस्पेक्टर जब पास से गुजरा, तब क्लाड ने कहा, ‘‘सर, क्या एल्बीन को सचमुच दूसरे क्वार्टर में भेज दिया गया है?’’

‘‘हाँ,’’ इंस्पेक्टर ने जवाब दिया।

‘‘सर, मैं उसके बिना नहीं रह सकता। आपको मालूम है कि मुझे भरपेट खाना नहीं मिलता और एल्बीन अपना खाना मेरे साथ बाँटकर खाता है। क्या आप उसे दोबारा मेरे पास पुरानी जगह पर नहीं भेज सकते?’’

‘‘नामुमकिन, आदेश वापस नहीं लिया जा सकता।’’

‘‘किसने दिया है यह आदेश?’’

‘‘मैंने।’’

‘‘मिस्टर डी, मेरी जिंदगी आपके हाथों में है।’’

‘‘मैं अपना आदेश कभी वापस नहीं लेता।’’

‘‘सर, मैंने आपके साथ कौन सा गलत व्यवहार किया है?’’

‘‘कुछ नहीं।’’

‘‘तब किसलिए मुझे एल्बीन से जुदा किया गया है?’’ क्लाड चिल्लाया।

‘‘क्योंकि यह मेरी इच्छा थी।’’ इंस्पेक्टर जवाब देकर आगे चलता बना।

क्लाड का सिर उसी तरह चकराने लगा, जिस तरह पिंजरे में बंद शेर का उसके भोजन (कुत्ते) से दूर रखने पर चकराता है। उसकी मानसिक वेदना उसकी भूख को किसी तरह से शांत नहीं कर सकती थी। वह भूखा रहने लगा। दूसरों ने उसके साथ खाना बाँटना चाहा, लेकिन उसने इनकार कर दिया। हमेशा की तरह चुपचाप काम करता रहता। हर रोज गुस्से तथा मानसिक वेदना से आहत इंस्पेक्टर से विनती तथा धमकी भरे स्वर में मौन तोड़कर दो शब्द कहता, ‘‘और एल्बीन?’’

इंस्पेक्टर कंधे उचकाकर चुपचाप उसके पास से निकल जाता। ध्यान से देखने पर सभी मौजूद लोगों को दिखाई देनेवाले क्लाड में आए परिवर्तन को वह स्पष्ट देख पाता। वह आदरपूर्वक, परंतु दृढ़ता के साथ कहे गए इन शब्दों को सुनता, ‘‘सर, मेरी बात सुनिए, मेरे साथी को मेरे पास भेज दीजिए। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि ऐसा करने में ही बुद्धिमानी होगी। मेरी बात याद रखिएगा।’’

रविवार को वह अपना सिर हाथों में लिये दालान में बैठा रहा। जब एक कैदी फेलेट हँसता हुआ आया, तब क्लाड बोला, ‘‘मैं किसी को परख रहा हूँ।’’

25 अक्टूबर, 1931 को जब इंस्पेक्टर दौरा कर रहा था, तब क्लाड ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए रास्ते में पड़ी एक घड़ी के शीशे को तोड़ डाला। इसका अनुकूल प्रभाव पड़ा। ‘‘यह मैं था,’’ क्लाड ने कहा, ‘‘सर, मुझे मेरा साथी लौटा दीजिए।’’

‘‘नामुमकिन।’’ जवाब था।

इंस्पेक्टर के चेहरे पर नजरें जमाकर क्लाड ने दृढ़तापूर्वक कहा, ‘‘देखिए, आज 25 अक्टूबर है, मैं आपको 4 नवंबर तक का समय देता हूँ।’’

मिस्टर डी को क्लाड को धमकी देते हुए देखकर एक वार्डर ने उसको फौरन कोठरी में बंद करना चाहा।

‘‘नहीं, यह कोई बाहर का आदमी नहीं है।’’ इंस्पेक्टर ने घृणा से मुसकराते हुए कहा, ‘‘हमें ऐसे लोगों के साथ विवेक से काम लेना चाहिए।’’

अगले दिन आँगन में घूमते समय क्लाड का सामना पेरनोट नामक कैदी से हुआ। ‘‘क्लाड, तुम सचमुच उदास हो, क्या सोचते रहते हो?’’

‘‘मुझे डर है कि इन भद्र पुरुष मिस्टर डी पर संकट के बादल मँडरा रहे हैं।’’ क्लाड ने जवाब दिया।

क्लाड हर रोज इंस्पेक्टर को इस बात का एहसास दिलाने की कोशिश करता कि एल्बीन के चले जाने से वह कितना दुखी था, परंतु चौबीस घंटे अकेले बंदी जीवन बिताने के सिवाय और कोई परिणाम नहीं निकला। 4 नवंबर को उसने अपनी कोठरी में बंदीजीवन के अतीत के बचे-खुचे स्मृतिचिह्नों को देखा। कैंची, अपनी प्रियतमा व अपने बच्चे की माँ की पुरानी पुस्तक ‘एमिली’ को देखा। उसके लिए, जो न काम कर सकता था, न ही पढ़ सकता था, वह पुस्तक बेकार थी।

क्लाड अपने पुराने गलियारे में घूम रहा था। वहाँ के नए कैदियों तथा ताजा रंग-रोगन की गई दीवारों द्वारा खुद को तिरस्कृत उसने देखा कि अपराधी फेरारी खिड़की पर लगे लोहे के सीकचों को बहुत ध्यान से देख रहा था। क्लाड ने अपने हाथ में पकड़ी कैंची की तरफ इशारा करके उससे कहा, ‘‘आज रात मैं इस कैंची से इन सीकचों को काट डालूँगा।’’

फेरारी अविश्वास के साथ हँसने लगा। क्लाड भी उसकी हँसी में शामिल हो गया। दिन में उसने हर रोज की अपेक्षा ज्यादा उत्साह के साथ काम किया। वह तिनकों का एक हैट पूरा कर देना चाहता था, ट्रॉय के एक व्यापारी एम-बेसियर ने उसको इसके लिए एडवांस पेमेंट दे रखी थी।

दोपहर से कुछ देर पहले वार्डर गैरहाजिर होते हैं, वह उस समय कोई बहाना बनाकर नीचे वाली मंजिल के कारपेंटर्स ए क्वार्टर्स में चला गया। सब ने क्लाड का स्वागत खुशी के साथ किया और जगहों की तरह वह यहाँ भी कैदियों का चहेता था।

‘‘क्या कोई व्यक्ति मुझे अपनी कुल्हाड़ी उधार दे सकता है?’’ उसने पूछा।

‘‘किसलिए?’’

बिना कुछ छिपाए उसने तुरंत जवाब दिया, ‘‘आज रात को इस इंस्पेक्टर की हत्या करूँगा।’’

तुरंत क्लाड के सामने अनेक कुल्हाड़ियाँ रख दी गईं। उसने उनमें से सबसे छोटी कुल्हाड़ी चुनकर अपनी जैकेट के नीचे छिपा ली और ऊपर आ गया। उस समय वहाँ पर सत्ताईस कैदी मौजूद थे। किसी ने भी उसको धोखा नहीं दिया। यही नहीं, उन्होंने इस बारे में आपस में भी कोई बात नहीं की। सब भावी दुर्घटना की प्रतीक्षा करने लगे।

जाते समय उसने सोलह साल के अपराधी को वहाँ पर खाली बैठे जम्हाई लेते देखा। उसने उसको जोर देकर समझाया कि उसको पढ़ना-लिखना सीख लेना चाहिए। उसी समय फेलेट ने पूछा कि उसने जैकेट में क्या छिपा रखा था।

क्लाड ने निडरता से जवाब दिया, ‘‘मिस्टर डी को आज रात मारने के लिए कुल्हाड़ी, क्या तुम्हें यह दिखाई दे रही है?’’

‘‘हाँ, थोड़ी-थोड़ी,’’ फेलेट ने कहा। सात बजे कैदियों को उनके अलग-अलग वर्कशॉप के अंदर ताले में बंद कर दिया गया। नियम के मुताबिक वार्डर उनको इंस्पेक्टर के दौरे पर आने तक अकेला छोड़ देते थे।

क्लाड के वर्कशॉप में अपनी तरह का एक खास दृश्य देखने को मिला। क्लाड ने अपने चौरासी साथियों को संबोधित कर निम्नलिखित शब्द कहे—

‘‘तुम सबको मालूम है कि मैं और एल्बीन भाइयों की तरह थे। पहले मैं उसको अपने साथ खाना बाँटने के लिए पसंद करता था, बाद में इसलिए करने लगा कि वह मेरा ध्यान रखता था। मुझे अब भरपेट खाना नहीं मिलता है, जो थोड़ा-बहुत कमाता हूँ, वह डबलरोटी पर खर्च कर देता हूँ। हमारे एक साथ रहने से मिस्टर डी को कोई फर्क नहीं पड़नेवाला था। उसने केवल हमें यातना देने के विचार से अलग कर दिया है। वह एक क्रूर आदमी है। मैं उससे एल्बीन को वापस भेजने के लिए बार-बार अनुरोध करता रहा, परंतु सफलता नहीं मिली। जब मैंने उसको 4 नवंबर तक का समय दिया, तब उसने मुझे अँधेरी कोठरी में फेंक दिया। दो घंटे बाद वह यहाँ पर आएगा। मैं तुम सबको सावधान कर रहा हूँ कि मैं उसको मारना चाहता हूँ। क्या तुम लोगों को कोई आपत्ति है?’’

वहाँ पर मौत की तरह सन्नाटा छा गया। क्लाड ने अपने चौरासी साथियों (चोरों) के सामने इस बारे में अपने विचार व्यक्त करने जारी रखे, ‘‘मुझे यह भयावह निर्णय लेने के लिए विवश कर दिया गया है। विवश होकर ही मैं कानून को अपने हाथों में ले रहा हूँ। मैं अच्छी तरह से यह बात जानता हूँ कि इंस्पेक्टर का जीवन लेने के बाद मुझे अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ेगी। न्यायोचित कारण के लिए मैं यह परिणाम भुगतने के लिए तैयार हूँ। दो महीने तक शांतचित्त से विचार करने के बाद यह निर्णय लिया है। यदि आपमें से किसी को यह लगता है कि मैं यह कदम द्वेषभाव से उठा रहा हूँ तो वह तत्काल जाकर उसको बता दे तथा इस दंड के विरोध में अपने विचार प्रकट कर दे।’’

जवाब में केवल एक ही आवाज सुनाई दी, वह अपराधी कह रहा था, ‘‘मारने से पहले तुम्हें इंस्पेक्टर को नरम पड़ने का एक अवसर देना चाहिए।’’

‘‘यह पूरी तरह से न्यायोचित है,’’ क्लाड ने कहा, ‘‘उसे संदेह का लाभ जरूर मिलेगा।’’ एक गरीब कैदी के पास जो थोड़ा-बहुत सामान होता है, वह सब क्लाड ने एल्बीन के बाद जिन साथियों का वह ज्यादा ध्यान रखता था, उनको दे दिया। अपने पास केवल कैंची रख ली। उसके बाद सबसे गले मिला। कुछ कैदी उस समय अपने आँसू नहीं रोक पाए। अंतिम समय भी क्लाड शांतिपूर्वक बात करता रहा। बचपन में खेला गया एक जादुई खेल, नाक से फूँक मारकर मोमबत्ती बुझाने का, दिखाया। उसको इस प्रकार सहज देखकर बाद में उसके साथियों ने बताया कि उन्हें आशा थी कि उसने अपने मन से वह भयावह विचार निकाल दिया था। एक नौजवान कैदी भावी दुर्घटना की आशंका से उसको एकटक देखे जा रहा था।

‘‘हिम्मत रखो नौजवान,’’ क्लाड मृदु स्वर में बोला, ‘‘इस काम में केवल एक मिनट लगेगा।’’

एक लंबे कमरे में वर्कशॉप था, दोनों तरफ दरवाजे थे। बेंचों के ऊपर दोनों तरफ खिड़कियाँ थीं। इंस्पेक्टर के जाने के लिए बीच में रास्ता था ताकि वह आसानी से अपनी दोनों तरफ होनेवाले काम का निरीक्षण कर सके। जेक्स क्लेमन, जो कभी प्रार्थना करना नहीं भूलता था, की तरह क्लाड ने भी काम करना शुरू कर दिया।

घड़ी में पौने नौ बजते ही क्लाड उठा और बाह्य रूप से शांत भाव से प्रवेश द्वार के पास जाकर खड़ा हो गया। सन्नाटे के बीच घड़ी ने नौ के घंटे बजाए, दरवाजा खुला, हमेशा की तरह इंस्पेक्टर अंदर दाखिल हुआ। वह बेहद खुश और संतुष्ट दिखाई दे रहा था। किसी की तरफ हैट उठाकर देखता, किसी से दाँत पीसते हुए बात करता हुआ और अपने ऊपर टिकी खूँखार आँखों को अनदेखाकर तेजी से आगे बढ़ता रहा। क्लाड के कदमों की आहट सुनकर तेजी से पीछे मुड़ा और कहा, ‘‘तुम यहाँ पर क्या कर रहे हो, अपनी जगह पर क्यों नहीं हो?’’ वह ऐसे बोल रहा था मानो किसी कुत्ते से बात कर रहा हो।

क्लाड ने आदरपूर्वक कहा, ‘‘मैं आपसे कुछ बात करना चाहता हूँ, सर।’’

‘‘किस बारे में?’’

‘‘एल्बीन।’’

‘‘दोबारा।’’

‘‘हमेशा उसी के बारे में बात करूँगा।’’ क्लाड ने कहा।

‘‘तो,’’ इंस्पेक्टर ने जवाब दिया, ‘‘क्या उस अँधेरी कोठरी में तुम्हारे लिए चौबीस घंटे बिताने काफी नहीं हैं?’’

क्लाड उसका पीछा करते हुए पास जाकर बोला, ‘‘सर, मेरा साथी मुझे लौटा दीजिए।’’

‘‘नामुमकिन।’’

एक ऐसे दयनीय स्वर में, जिसे सुनकर शैतान का दिल भी पसीज जाता, क्लाड ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘सर, मैं आपसे विनती करता हूँ कि एल्बीन को मेरे पास भेज दीजिए, उसके बाद देखना कि मैं किस तरह काम करता हूँ। आप आजाद हैं, इस बात से आपको कोई फर्क नहीं पड़ता। आपको दोस्त न होने का एहसास नहीं है। जेल की इन बंद दीवारों में मेरे लिए वह सबकुछ है। आप अपनी मर्जी से कहीं भी आ-जा सकते हैं; मेरे पास केवल एल्बीन है। आपसे प्रार्थना करता हूँ कि उसे मेरे पास वापस भेज दीजिए। आप अच्छी तरह से जानते हैं कि वह मेरे साथ अपना खाना बाँटकर खाता था। आपको इस बात से क्या फर्क पड़ने वाला है कि क्लाड ग्यूक्स नामक आदमी के साथ एल्बीन नाम का दूसरा आदमी रहता है। आपको केवल ‘हाँ’ कहना है, ज्यादा कुछ नहीं। सर, मेरे अच्छे सर, मैं ईश्वर के नाम पर आपसे भीख माँगता हूँ। मुझे एल्बीन लौटा दीजिए।’’

भावुक क्लाड जवाब का इंतजार कर रहा था।

‘‘नामुमकिन,’’ इंस्पेक्टर ने बेरुखी से जवाब दिया, ‘‘मैं अपना आदेश वापस नहीं लूँगा। तुम नीच, दुखदायी आदमी जा सकते हो,’’ इसके साथ ही चौरासी चोरों के दमघोंटू सन्नाटे में वह तेजी से बाहरी दरवाजे की तरफ बढ़ा।

क्लाड ने उसका पीछा किया, उसको छूकर धीमी आवाज में पूछा, ‘‘क्या मैं जान सकता हूँ कि मुझे मृत्युदंड क्यों दिया जा रहा है, आप हम दोनों को अलग क्यों करना चाहते हैं?’’

‘‘मैं तुम्हें पहले ही जवाब दे चुका हूँ कि यह मेरी इच्छा है,’’ इंस्पेक्टर ने जवाब दिया।

आगे बढ़कर वह साँकल खोलनेवाला था कि क्लाड ने कुल्हाड़ी निकाली, बिना आवाज किए इंस्पेक्टर फर्श पर गिर पड़ा। बिजली की तेजी से तीन भारी वार करने पर उसकी खोपड़ी पूरी तरह से चकनाचूर हो गई थी। चौथे वार में उसका चेहरा पूरी तरह से क्षत-विक्षत हो गया था। गुस्से में पागल क्लाड ने एक और बेकार का वार किया, लेकिन इंस्पेक्टर मर चुका था।

क्लाड कुल्हाड़ी को एक तरफ फेंककर चिल्लाया, ‘‘अब दूसरे के लिए।’’

दूसरा वह खुद था। उसने अपनी पत्नी की कैंची अपनी छाती में घोंप ली। कैंची छोटी थी और उसकी छाती गहरी। उसने अपने ऊपर घातक वार करने का असफल प्रयास किया। आखिरकार खून में लथपथ वह मृत इंस्पेक्टर के पास बेहोश होकर गिर पड़ा। उन दोनों में से किसको पीड़ित माना जाएगा?

होश में आने पर क्लाड ने खुद को सावधानी के साथ पट्टियों में लिपटा बिस्तर पर पड़े हुए पाया। उसके पास ‘सिस्टर्स ऑफ चैरिटी’ बैठी थी। बयान लेने के लिए एक रिकॉर्डर रखा हुआ था। उसने उत्सुकता के साथ यह जानने की कोशिश की कि उसका इतना ज्यादा खून कैसे बह गया था? कैंची ने उसको नुकसान पहुँचाया था, अनेक जख्म हो गए थे, लेकिन घातक कोई भी नहीं था। उसका एकमात्र घातक वार केवल मिस्टर डी के शरीर पर पड़ा था। उसके बाद प्रश्नकर्ता ने उससे सवाल पूछने शुरू किए, ‘‘क्या तुमने क्लेयरवाक्स जेल के वर्कशॉप के इंस्पेक्टर की हत्या की है?’’

‘‘हाँ,’’ जवाब था।

‘‘तुमने ऐसा क्यों किया?’’

‘‘क्योंकि मैं करना चाहता था।’’

क्लाड के जख्मों में संक्रमण फैल गया था। उसको जीवन के लिए घातक बुखार हो गया था। नवंबर, दिसंबर, जनवरी, फरवरी उसके ठीक होने और मुकदमे की तैयारी में बीत गए। उसके बाद बारी-बारी डॉक्टर और वकील आते थे। एक उसके स्वास्थ्य को ठीक करने के लिए तो दूसरा उसको फाँसी के तख्ते तक पहुँचाने के लिए आवश्यक सबूतों को इकट्ठा करने के लिए।

पूरी तरह से स्वस्थ हो जाने के बाद 16 मार्च, 1832 को क्लाड अपने विरुद्ध लगाए गए आरोपों का जवाब देने के लिए ट्रायस की अदालत में उपस्थित हुआ। उसकी हजामत बनी हुई थी तथा वह नंगे सिर था, उसने अभी भी कैदियों के ही कपड़े पहन रखे थे। गवाहों को, जो सभी के सभी अपराधी थे, शांत रखने के लिए शक्तिशाली सैन्यबल पहरा दे रहा था। आशा के विपरीत एक समस्या उत्पन्न हो गई, इनमें से एक भी आदमी गवाही देने के लिए तैयार नहीं था। न तो सवालों, न ही धमकियों से डरकर उन्होंने अपनी खामोशी तोड़ी। क्लाड के आग्रह करने पर उन्होंने उस भयावह दुर्घटना का विवरण निष्ठापूर्वक बताया। यदि कोई भूल से अथवा अपराधी के प्रति प्रेमभाव के कारण पूरा सच नहीं बताता था तो क्लाड खुद उस सच्चाई को बता देता था। एक बार तो औरतों की आँखों से आँसू बहने लगे।

पेशकार ने अपराधी एल्बीन को पुकारा। वह भावावेग में काँपता हुआ तथा दुःख के कारण सुबकता हुआ भीतर आया और क्लाड की बाँहों में गिर पड़ा। सरकारी वकील की तरफ मुड़कर क्लाड कहने लगा, ‘‘आपके सामने एक ऐसा अपराधी है, जो अपना खाना भूखे को देता था,’’ उसने झुककर एल्बीन का हाथ चूम लिया।

सभी गवाहों की गवाही पूरी हो जाने के बाद अभियोग पक्ष का वकील अदालत को संबोधित करने के लिए उठा, ‘‘ज्यूरी के माननीय सदस्यो, इस जैसे जघन्य अपराध करनेवालों को दंड न देने पर समाज में पूर्णरूप से अव्यवस्था फैल जाएगी, इत्यादि-इत्यादि।’’ अभियोग पक्ष के लंबे-चौड़े भाषण के बाद क्लाड का वकील उठा। उसके बाद पक्ष-प्रतिपक्ष के बीच, जैसा कि किसी भी सामान्य अदालत में होता है, बहस होने लगी।

अपनी बारी आने पर क्लाड ने गवाही दी। सब लोग उसकी बुद्धिमत्ता पर हैरान रह गए। वह गरीब कारीगर हत्यारे की बजाय एक कुशल वक्ता दिखाई दे रहा था। आत्माभिमान के साथ उसने स्पष्ट तथा ईमानदारी के साथ सभी तथ्य विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किए। उसने पूर्ण सच्चाई बताने का संकल्प लिया था। कई बार उपस्थित भीड़ उसकी वाक्पटुता पर भावविह्वल हो उठती थी। जजों को पूरा सम्मान देते हुए वह अनपढ़ आदमी दलीलों के गंभीर मुद्दों को भी आसानी से समझ लेता था। अभियोग पक्ष के वकील की इस दलील पर कि उसने इंस्पेक्टर की हत्या अकारण की थी, क्लाड आत्मसंयम खो बैठा, ‘‘क्या?’’ क्लाड चिल्लाया, ‘‘क्या मेरे पास हत्या करने के लिए कोई कारण नहीं था, कोई शराबी मुझ पर हमला करता है, मैं उसकी हत्या कर देता हूँ, तब क्या तुम मुझे कारण बताने के लिए कहोगे, उसके लिए मृत्युदंड को कठोर कारावास में बदल दोगे? जो आदमी पिछले चार साल से मुझे हर प्रकार से कष्ट दे रहा था, चार साल से अपमानित कर रहा था, हर रोज मुझ पर ताने कसता था, मेरे ऊपर हर तरह के लांछन लगाता रहा, तब उसके साथ क्या करता? आपके विचार में मेरे पास कोई कारण नहीं था! मेरी एक पत्नी थी, जिसके लिए मैंने चोरी की थी, वह उसको लेकर मुझे प्रताड़ित करता रहता था; मेरा एक बच्चा था, जिसके लिए मैंने चोरी की थी, वह उस बच्चे को लेकर ताने कसता था। मैं भूखा रहता था, एक दोस्त मेरे साथ खाना बाँटने लगा, उसने मुझसे मेरा दोस्त अलग कर दिया। मैं अपने दोस्त को लौटाने की भीख माँगता रहा, उसने मुझे अँधेरी कोठरी में बंद कर दिया। मैं उसको अपनी कष्टों भरी कहानी सुनाता तो वह कहता कि उसको वे सब बातें सुनने से खीझ थी। ऐसे में आप मुझे क्या करने के लिए कहते? मैंने उसको मार डाला। ऐसे आदमी को मारने के लिए आप मुझे राक्षस कह रहे हैं। आप मेरा सिर काटना चाहते हैं तो काट सकते हैं।’’

इस प्रकार की दलीलों को कानून मान्यता नहीं देता, क्योंकि ऐसे जख्मों के निशान दिखाई नहीं देते।

उसके बाद जज ने केस का स्पष्ट तथा पक्षपातरहित मसौदा तैयार किया—क्लाड किस प्रकार का जीवन जी रहा था, किस प्रकार एक चरित्रहीन युवती के साथ खुलेआम रह रहा था, पहले चोरी की और बाद में हत्या। यह सब सच्चाई थी। ज्यूरी के निर्णय लेने से पहले जज ने क्लाड से पूछा, ‘‘क्या वह कुछ कहना अथवा पूछना चाहता है?’’

‘‘हाँ,’’ क्लाड ने कहा, ‘‘मैं हत्यारा हूँ, मैं एक चोर हूँ, परंतु क्या मैं ज्यूरी के माननीय सदस्यों से एक सवाल पूछ सकता हूँ, मैंने हत्या क्यों की, मैंने चोरी क्यों की?’’

ज्यूरी के सदस्य पंद्रह मिनट के लिए अपने चैंबर में गए। बारह नागरिकों के निर्णयानुसार (ज्यूरी के सम्मानित सदस्य जैसा कि उनको कहा जाता है) क्लाड को मृत्युदंड दिया गया। शुरू में ही अनेक सदस्यों को ग्युक्स अर्थात् आवारागर्द नाम ने प्रभावित कर दिया था। इसका असर उनके निर्णय पर भी पड़ा।

निर्णय सुनने के बाद क्लाड ने सहज स्वर में कहा, ‘‘ठीक है, परंतु इन सज्जनों ने मेरे दो प्रश्नों का जवाब अभी तक नहीं दिया है। मैंने चोरी क्यों की? मुझे हत्यारा किसने बनाया?’’

उस रात उसने भरपेट खाना खाया। कहने लगा, ‘‘जीवन के छत्तीस साल गुजर गए हैं।’’ आखिरी मिनट तक याचिका दायर करने से इनकार करता रहा, परंतु एक सिस्टर के कहने पर, जिसने उसकी बहुत सेवा की थी, ऐसा करने की अनुमति दे दी। उसने अपने हृदय से उसको पाँच फ्रैंक का सिक्का भेंट किया।

उसके साथी कैदी, जैसा कि हम पहले ही देख चुके हैं, उसके प्रति पूरी तरह से निष्ठावान् थे। उन्होंने उसके भागने के लिए पूरा इंतजाम कर दिया था। उन्होंने उसकी अँधेरी कोठरी में हवा के लिए बने छोटे से झरोखे से कील, थोड़ी तार, बाल्टी का एक हैंडल फेंक दिया था। क्लाड इन चीजों की मदद से आजाद हो सकता था, परंतु उसने वे सब चीजें वार्डर को सौंप दीं।

8 जून, 1832 को हत्या के सात महीने, चार दिन बाद अदालत के लेखाकार ने आकर बताया कि उसकी जिंदगी का केवल एक घंटा और बाकी था। उसकी याचिका खारिज हो गई थी।

‘‘सचमुच!’’ क्लाड ने शांत स्वर में कहा, ‘‘कल रात मुझे अच्छी नींद आई, निस्संदेह अगला एक घंटा उससे ज्यादा अच्छा गुजरेगा।’’

पहले पादरी आया, फिर जल्लाद। पादरी के प्रति उसने आदर प्रकट किया, उसकी बातों को ध्यान से सुना। मन में अत्यधिक पश्चात्ताप था कि उसे धार्मिक प्रशिक्षण का लाभ नहीं मिल पाया था और अतीत में किए गए कर्मों के लिए स्वयं को दोषी मानता रहा।

जल्लाद के प्रति भी उसका व्यवहार शिष्ट था। वास्तव में उसने अपना सबकुछ त्याग दिया था—अपनी आत्मा पादरी को दे दी थी तथा शरीर जल्लाद को।

बाल काटते समय किसी ने कहा कि हैजा तेजी से फैल रहा था। ट्रायस किसी भी क्षण इस महामारी की चपेट में आ सकता था। क्लाड बातचीत में हिस्सा लेते हुए मुसकराकर कहने लगा, ‘‘एक बात कहना चाहता हूँ, मुझे हैजे से कोई खतरा नहीं है।’’ उसने कैंची के दो टुकड़े कर दिए थे। बचा हुआ टुकड़ा उसने जेलर को देकर कहा कि वह उसे एल्बीन को दे दे। एक टुकड़ा उसकी छाती में दबा पड़ा था। उसने इच्छा प्रकट की कि उसका दिन का खाना उसके दोस्त को दे दिया जाए। उसने अपने पास केवल सिस्टर का दिया हुआ पाँच फ्रैंक का सिक्का रखा, बाँधे जाने पर उसने सिक्के को अपने दाएँ हाथ में रख लिया था।

पौने आठ बजे जैसा कि ऐसे अवसर पर होता है, जेल में एक शोकमग्न जुलूस निकला। धीमे, लेकिन दृढ़ कदमों से क्लाड ग्युक्स धीरे-धीरे फाँसी के तख्ते पर चढ़ गया। उसकी आँखें पादरी के हाथ में रखी—कष्टों की प्रतीक सलीब पर लटकी प्रभु यीशु की प्रतिमा पर टिकी थीं। वह पादरी तथा जल्लाद का आलिंगन करना चाहता था—एक को धन्यवाद देने के लिए तथा दूसरे को क्षमा के लिए। जल्लाद ने उसको पीछे धकेल दिया था। उस राक्षसी मशीन के साथ बँधने से पहले क्लाड ने पाँच फ्रैंक का सिक्का पादरी के हाथ में रखकर कहा, ‘‘गरीबों के लिए।’’

आठ बजे के घंटे बजने बंद होते ही उस तेजस्वी, बुद्धिमान आदमी पर घातक वार हुआ और उसका सिर धड़ से अलग हो गया। मृत्युदंड के लिए छुट्टी का दिन चुना गया था, क्योंकि उस दिन यह देखने के लिए ज्यादा लोग मौजूद रहते हैं। फ्रांस के छोटे शहर फाँसी की सजा देने पर ज्यादा गौरवान्वित होते हैं। उस दिन फाँसी की कल्पना से भीड़ इतना अधिक उत्तेजित थी कि एक टैक्स अधिकारी तो एक तरह से मर ही गया था। सार्वजनिक स्थल पर फाँसी देने से इस प्रकार का प्रशंसनीय प्रभाव पड़ता ही है।

हमने किसी अन्य बात की अपेक्षा एक कठिन समस्या का समाधान ढूँढ़ने के दृष्टिकोण से क्लाड ग्युक्स का जीवन-वृत्त प्रस्तुत किया है। उसके जीवन से संबद्ध दो पक्ष विचारणीय हैं—पतन से पूर्व तथा पतन के बाद का जीवन। उसकी शिक्षा-दीक्षा क्या थी, उसको दंड क्या मिला, सामान्यतः समाज को इसमें रुचि रखनी चाहिए। वह व्यक्ति प्रतिभासंपन्न था, उसकी स्वाभाविक मनोवृत्ति अच्छी थी। फिर कमी क्या थी? प्रमुख समस्या इस बिंदु के इर्द-गिर्द घूमती है। इसका समाधान समाज को सुदृढ़ आधार प्रदान कर सकता है।

समाज को व्यक्ति की प्रकृति-प्रदत्त स्वाभाविक वृत्ति को समझना चाहिए। क्लाड ग्यूक्स को ही लेते हैं। बुद्धिमान तथा सहृदय होते हुए भी खराब वातावरण में रहने के कारण चोर बन गया। समाज ने उसे जेल में बंद कर दिया। वहाँ पर वह अधिक दुष्ट, अंततः हत्यारा बनने पर विवश हो गया। क्या वास्तव में वह दोषी है अथवा स्वयं हम? इन प्रश्नों पर गंभीरतापूर्वक विचार करना बहुत जरूरी है। ऐसा न करने पर इस अत्यधिक महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व पर कर्तव्य पालन से पीछे हटने के लिए बाधित होना पड़ेगा। तथ्य हमारे सामने हैं। यदि सरकार इस पर विचार नहीं करती तो वह कैसी सरकार है!

अधिकारी पूरे साल काम में व्यस्त रहते हैं। बिना किसी जिम्मेवारी के, बदलते पदों, बजट प्रस्तुत करने का काम; जिसे मैं नहीं जानता, न ही जानना चाहता हूँ, अफसर की कुरसी पर बैठे एक पंसारी के आदेश पर परेड में जाने के लिए तैयार रहना; काउंटर-द-लबाऊ के घुड़सवार के रूप में सैनिक वर्दी पहनने का अधिनियम पारित करना ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं। घरों की सुरक्षा अथवा व्यवस्था बनाए रखने के लिए नियमित रूप से गश्त लगानेवालों पर कोई आपत्ति नहीं, परंतु इस प्रकार की परेड तथा साधारण नागरिकों को सैनिकों के वेश में नकलचियों की तरह शोर-गुल करने की निरर्थकता पर विचार प्रकट करना चाहता हूँ—

जनता के प्रतिनिधियों व मंत्रीगणो! महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आपको प्रत्येक विषय पर विवेकसम्मत होना चाहिए, भले ही उसका अंत अर्थहीन हो। जिस बारे में कम जानकारी हो, उस पर तर्क-वितर्क करना चाहिए। शासको तथा विधायको! आप अपना समय उच्चस्तरीय तुलना में अधिक व्यतीत करते हैं, उससे आप एक ग्रामीण अध्यापक के चेहरे पर मुसकराहट ला सकते हैं। आप कहेंगे कि यह सब आधुनिक सभ्यता का प्रभाव है, जिसके कारण व्यभिचार, पितृहत्या, बालहत्या तथा विष देने की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। इसका अर्थ है कि आप जोकासटा फेड्रा ओडोपिस, मेडिया अथवा रोडोगुना के बारे में नहीं जानते। इन प्रख्यात वक्ताओं ने कारनेल तथा रेसिन पर लंबी-चौड़ी बहस की तथा उग्र साहित्यिक आलोचना के कारण फ्रेंच भाषा में अक्षम्य गलतियाँ कर बैठे। वास्तव में यह सब आवश्यक है, परंतु मेरे विचार में इनसे अधिक महत्त्वपूर्ण विषय भी हैं। इस सब निरर्थक वाद-विवाद के बीच यदि कोई व्यक्ति खड़ा होकर प्रतिनिधियों को निम्नलिखित शब्दों में संबोधित करे तो उनका जवाब क्या होगा—

‘‘शांत! बातचीत में मशगूल लोग कृपया शांत हो जाएँ। क्या आप प्रश्न जानते हैं? आप इस बारे में कुछ नहीं जानते। प्रश्न है—लगभग एक साल पहले पैनरस में एक व्यक्ति को न्याय के नाम पर टुकड़े-टुकड़े कर डाला था; डिजान में एक महिला का सिर धड़ से अलग कर दिया गया; सेंट जेकस में अगणित मृत्युदंड दिए जाते हैं, क्यों? यही प्रश्न है। आप नेशनल गार्ड्स की वर्दी पर सफेद बटन लगाएँ या पीले, इस बात की तुलना में सुरक्षा श्रेष्ठ है। अन्य विषयों पर वाद-विवाद करते हैं, इस प्रश्न पर भी अपनी इच्छानुरूप समय निकालकर विचार कर सकते हैं।

‘‘दाईं ओर तथा बाईं ओर बैठे सज्जनो! जनता का बहुत बड़ा भाग कष्ट सहन कर रहा है। गणतंत्र हो अथवा राजतंत्र, सच्चाई यही रहती है। जनता पीड़ित होती है, लोग भूखे मरते हैं, सर्दी में ठिठुरते हैं। इन कष्टों के कारण वे अपराध का रास्ता अपनाते हैं; लड़के गुलाम बन जाते हैं, लड़कियाँ बदनाम बस्तियों में बस जाती हैं। आपके यहाँ कितने अधिक अपराधी और कितने अधिक बदकिस्मत इनसान हैं!

‘‘इस सामाजिक नासूर का क्या कारण है? आप रोगी के समीप हैं, उसके रोग का उपचार कीजिए। आप कसूरवार हैं। अब इस विषय पर गंभीरतापूर्वक विचार कीजिए।

‘‘जब आप कानून पारित करते हैं, तब क्या वे नीतिसम्मत तथा रोगनाशक होते हैं? आपकी आधी आचार-संहिता एक सामान्य प्रक्रिया का परिणाम होती है।

‘‘जख्म को गरम लोहे से दागने पर वह गल जाता है। परिणाम क्या होता है? आप अपराधी पर जीवन भर के लिए अपराध का ठप्पा लगा देते हैं; दोनों को मित्र, दो अभिन्न साथी बना देते हैं। आपराधिक जेल एक ऐसा फफोला है, जिसमें से जितना ज्यादा मवाद निकलता है, वह उतना ही तेजी से फैलता जाता है। मृत्युदंड एक प्रकार से समाज का एक अंग काटने की क्रूर प्रक्रिया है।

‘‘अतः ठप्पा लगाना, दंडनीय गुलामी, मृत्युदंड सब एक समान हैं। आपने ठप्पा लगाने की प्रक्रिया बंद कर दी है, शेष को भी समाप्त कर दीजिए। जब आप ने गरम लोहा रख दिया है, तब हथकड़ी और कुल्हाड़ी किसलिए?

‘‘अपराध तथा कष्टों को जन्म देनेवाली टूटी सीढ़ी को हटा लो। अपने कानून में संशोधन करो; अपनी जेलों का पुनर्निर्माण करो, अपने जजों को बदलो, वर्तमान समय के अनुरूप कानून बनाओ।

‘‘आपका झुकाव अर्थव्यवस्था पर है; प्रतिवर्ष इतने ज्यादा लोगों के सिर कलम करने में इतने उदार मत बनो। जितना वेतन आप अस्सी जल्लादों को देते हैं, उतने वेतन में छह सौ स्कूल अध्यापकों की नियुक्ति कर सकते हो। इस पर विस्तारपूर्वक विचार करें तो ज्ञात होगा कि बच्चों के लिए स्कूल और पुरुषों के लिए वर्कशॉप होंगे।

‘‘आप जानते हैं कि यूरोप के किसी अन्य देश की तुलना में फ्रांस में कम लोग शिक्षित हैं? कल्पना कीजिए स्विट्जरलैंड में शिक्षित हैं; बेल्जियम में शिक्षित हैं; डेनमार्क में शिक्षित हैं; आयरलैंड में शिक्षित हैं; फ्रांस में नहीं हैं। यह एक शोचनीय स्थिति है।

‘‘इन दंडनीय जेलों में जाकर प्रत्येक अपराधी के जीवन की संक्षिप्त रूपरेखा, सिर के आकार का निरीक्षण कीजिए। उस प्रकार के सिर नीच पशुओं में कितने उपलब्ध होंगे? देखिए—वनबिलाव है, बिल्ली है, बंदर है, गिद्ध है, लकड़बग्घा है। निस्संदेह, पहले इसमें प्रकृति का दोष था, परंतु प्रशिक्षण के अभाव ने अपराध को बढ़ावा दिया। इन लोगों को उचित शिक्षा दीजिए तथा अपरिष्कृत मस्तिष्कों में छिपी क्षमताओं को विकसित कीजिए। उन लोगों के बारे में उनको प्राप्त अवसरों के आधार पर राय बनाओ। रोम तथा ग्रीक के प्रशिक्षित लोगों की भाँति उन लोगों की बुद्धि को परिष्कृत करो।

‘‘फ्रांसवासियों को प्रशिक्षित करने के बाद उनके भीतर उच्चतर भावनाओं का विकास करो। आधे-अधूरे ज्ञान की अपेक्षा अज्ञानता बेहतर है। याद रखो—‘कंपेयर, मैथियु’ से ज्यादा उपयोगी, ‘कॉन्स्टीट्यूशनल’ से ज्यादा लोकप्रिय तथा 1830 के घोषणा-पत्र से ज्यादा ध्यानपूर्वक पढ़ने योग्य पुस्तक है—बाइबल।

‘‘आप जनता के लिए कुछ भी कर लें, बहुसंख्या सदैव निर्धन तथा दुखी रहेगी। उनका काम है भारी बोझ वहन करना तथा सहन करना; सभी कष्ट गरीबों के लिए, सभी खुशियाँ अमीरों के लिए।

‘‘ऐसा है यह जीवन, क्या राज्य को कमजोर और असहाय वर्ग का साथ नहीं देना चाहिए?

‘‘इन सब दुःखों के बीच यदि आप केवल आशा की थोड़ी सी किरणें बिखेर पाएँ, गरीब आदमी को बताएँ कि यह ऐसा स्वर्ग है, जहाँ पर प्रसन्नता का साम्राज्य है, ऐसा साम्राज्य है, जिसमें वह सहभागी बन सकता है; उसको आप ऊपर उठाएँ; वह अनुभव करे कि वह भी धनी व्यक्ति की खुशियों में सहभागी है। प्रभु यीशु ने यही शिक्षा दी थी। इस बारे में वे वाल्टेयर से ज्यादा जानते थे।

‘‘जो लोग काम करते हैं तथा जो कष्ट उठाते हैं, उनको एक अलग दुनिया की आशा दो तो वे धैर्यपूर्वक आगे बढ़ते जाएँगे। आशा के सोपान पर ही धैर्य आता है।

‘‘अपने सभी गाँवों में बाइबल की नीतियों का प्रचार-प्रसार करिए, प्रत्येक झुग्गी-झोंपड़ी में बाइबल हो, ऐसा बीज बोने पर एक सुंदर समाज विकसित होगा।

‘‘सद्गुणों को प्रोत्साहित करिए, उससे बंजर भूमि में बहार आ जाएगी।

‘‘वह व्यक्ति कुछ निश्चित कारणों से हत्यारा बन गया था, यदि उसके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता तो वह अपने देश की उपयोगी सेवा कर सकता था।

‘‘लोगों को प्रोत्साहित करो, उनका जीवन स्तर उठाओ, उनकी अज्ञानता दूर करो, उनकी नैतिकता को संरक्षण प्रदान करो, उन्हें सक्षम बनाओ, इस प्रकार के व्यक्तियों के लिए आपको तलवार अथवा कुल्हाड़ी की जरूरत नहीं पड़ेगी।’’

(अनुवाद : प्रमिला गुप्ता)

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