चोरी की सजा : रूसी लोक-कथा
Chori Ki Saja : Russian Folk Tale
एक गांव में एक बूढ़ा किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था । उसका एक छोटा-सा खेत था । उस खेत में ही कुछ सब्जियां बोकर और उन्हें बेचकर किसान अपना व अपनी पत्नी का गुजारा करता था ।
एक बार किसान ने सोचा कि इस बार वर पुरे खेत में शलगम बोएगा । उसने अपनी पत्नी से पूछा - "मैं सोचता हूं कि इस बार खेत में शलगम बो दूं, तुम्हारा क्या खयाल है !"
पत्नी ने कहा, "शलगम की फसल अच्छी हो गई, तब तो हम आराम से रह सकेंगे, वरना भोजन के भी लाले पड़ जाएंगे ।"
"मैं फसल को समय पर पानी दूंगा, खूब देखभाल करूंगा तो फसल जरूर ही अच्छी होगी," किसान ने कहा । फिर किसान ने अपनी फसल खेतों में बो दी ।
किसान की किस्मत अच्छी थी कि इस बार शलगम की फसल बहुत अच्छी हुई । एक दिन बूढ़ा किसान खेत पर गया तो वह यह देखकर हैरान रह गया कि खेत में जगह-जगह शलगम के टुकड़े बिखरे पड़े हैं । उसने झुक कर देखा कि ढेरों शलगम फैली पड़ी हैं, परंतु सभी के छोटे-छोटे टुकड़े बचे पड़े हैं ।
किसान की समझ में नहीं आया कि यह कैसे हो सकता है । वह सोचने लगा कि यदि कोई आदमी शलगम चुराता तो पूरी ही उठा कर ले जाता । शलगम के टुकड़े करके तो किसी ने मेरा नुकसान करने की कोशिश की है । यह काम जरूर किसी दुश्मन का है । यह सोचते-सोचते वह घर पहुंच गया और अपनी पत्नी से बोला - "मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि हमारी दुश्मनी किससे है ?"
उसकी पत्नी बोली - "हमारी दुश्मनी तो किसी से नहीं, जरा खुलकर बताओ । बात क्या है ?"
किसान बोला - "किसी ने हमारा नुकसान करने की कोशिश की है । अपने खेत में ढेरों शलगम के टुकड़े पड़े हैं । अगर कोई चुराता तो शलगम ही निकाल कर ले जाता । यह तो किसी दुश्मन की चाल लगती है जो उसने शलगम के टुकड़े कर डाले । भला हमारा दुश्मन कौन हो सकता है ?"
उसकी पत्नी बोली - "लगता है तुम्हारा दिमाग बूढ़ा हो गया है, तभी दुश्मन की बात सोच रहे हो । भला हमारा दुश्मन कौन हो सकता है ? जरूर कोई जानवर हमारी फसल खा रहा होगा ।"
बूढ़े किसान को बुढ़िया की बात जंच गई और वह रात को पहरा देने खेत पर चला गया । वह हाथ में कुल्हाड़ी लिए खेत के किनारे घास में छिप कर बैठ गया । आधी रात में अचानक भालू आया और शलगम निकाल कर कुछ खाने लगा और कुछ फेंकने लगा ।
किसान ने आव देखा न ताव, अपनी कुल्हाड़ी जोर से भालू की तरफ मारी । कुल्हाड़ी भालू के पिछले पैर में लगी और उसका एक पैर कट कर गिर गया । भालू दर्द से चिल्लाता हुआ लंगड़ा कर जंगल की तरफ चला गया । उसके जाने के बाद किसान ने भालू की टांग उठाई और घर पर आ गया ।
बुढ़िया टांग देखकर खुश हुई । बुढ़िया ने टांग को धोकर उसकी खाल उतार दी । उसके बालों से ऊन बुन लिया और फिर टांग का मांस पकने रख दिया । किसान और पत्नी ने जम कर मांस का आनंद लिया ।
उधर, टांग कटने से परेशान भालू किसान से बदला लेने की सोचने लगा । वह जंगल में गया और एक पेड़ से लकड़ी तोड़ कर इसकी चौथी टांग बना ली और ठक-ठक की आवाज के साथ चलने लगा । फिर एक दिन मौका देखकर वह सुबह को किसान के घर पहुंच गया । वह बाहर से गीत गुनगुनाने लगा -
मेरी टूटी टांग
मुझे तू पहचान,
तूने अपाहिज मुझे बनाया,
आजा आजा बाहर आजा,
मुश्किल में है तेरी जान !
भालू की आवाज सुनकर किसान और उसकी पत्नी थर-थर कांपने लगे । वे जल्दी से दरवाजा बंद करने दौड़े परंतु भालू तब तक भीतर आ चुका था । दोनों लोग डर कर अलमारी के भीतर घुस गए ।
भालू घर में इधर-उधर गाना गाता और लंगड़ाता हुआ घूम रहा था । उसकी लकड़ी की टांग खट-खट की आवाज कर रही थी । अचानक उसकी लकड़ी की टांग निकल गई और वह अपना संतुलन खो बैठा ।
भालू घर की सीढ़ियों के पास बने तहखाने में जा गिरा । किसान को ज्यों ही भालू के तहखाने में गिरने की आवाज आई, उसने अलमारी से निकलकर तहखाने का दरवाजा बंद कर दिया ।
किसान की पत्नी घर के बाहर जाकर शोर मचाने लगी । सारे पड़ोसी इकट्ठा हो गए । सबने मिलकर भालू को मार डाला । अब किसान चैन से रहने लगा ।
(रूचि मिश्रा मिन्की)