चोर : पंजाबी लोक-कथा

Chor : Punjabi Lok-Katha

एक गाँव में चार चोर रहते थे और वे प्रायः इकट्ठे ही चोरी किया करते थे। एक बार उन सबने मिल कर एक योजना बनाई कि हम आगे से कभी किसी भी निर्धन व्यक्ति के घर में चोरी नहीं किया करेंगे। उन्होंने सोचा कि केवल आज ही किसी निर्धन के घर चोरी कर लेते हैं, परन्तु उनमें से किसी एक ने कहा कि नहीं, हम चोरी राजा के महल में ही करेंगे। शेष तीनों ने सोचा कि राजा तो हमें गहरा आघात पहुँचाएगा, परन्तु योजना बनाते समय एक चोर राजा के महल में चोरी करने के लिए तैयार हो गया। वह चोर पहले तो अपने मामा के घर गया, फिर उसने चोरी करने के लिए लौहार से लोहे की कुछ खूटियाँ बनवा लीं और राजा के महल की ओर बड़े सधे हुए कदमों से चल पड़ा।

राजा के महल में प्रत्येक मिनट के बाद एक घण्टी बजाकरती थी। उन चोरों ने उसी एक मिनट के बीच वे सभी खूटियाँ दीवार में ठोकनी आरम्भ कर दीं। इस तरह खूटियों पर पड़ती हुई हथौड़े की आवाज़ उसी घण्टी की आवाज़ में खो जाती थी और किसी को भी यह पता न चला कि राजा के महल के पीछे की ओर दीवार पर खूटियाँ ठोकी जा रही हैं।

इस तरह चोर राजा के महल के अन्दर प्रविष्ट हो गया और उसने देखा कि राजा और वज़ीर दोनों ही मदिरा के नशे में बिल्कुल बेहोश पड़े हुए हैं। चोर ने वज़ीर के सोते हुए ही उसकी गर्दन काट ली । इसके बाद उसने राजा के पलंग के नीचे से सोने की ईंटें निकाल लीं और अपने मामा के घर आ गया। दूसरे दिन जब राजा को यह पता चला, तो राजा ने हुक्म दिया कि यदि कोई हमारे इस शहर से बाहर जाता है, तो वह मेरा गुनाहगार होगा। चोर साधु बन कर बाहर निकला और उसके हवन का धुआँ देखकर राजा के सिपाहियों ने देखा कि कुटिया में एक साधु बैठा हुआ है। उन्होंने उससे पूछा, “बाबा ! आप यहाँ कैसे ? साधु ने कहा कि, “मैं तो एक निर्धन व्यक्ति हूँ। दूसरे लोगों से भिक्षा आदि माँग कर अपनी गुजर-बसर किया करता हूँ।" यह सुनकर उस साधु से सिपाहियों ने पूछा कि "बाबा, तुमने इधर कोई चोर जाते हुए तो नहीं देखा ?" साधु ने कहा, "नहीं, मैंने तो नहीं देखा।”

जब सिपाहियों ने उसे बताया कि “वह पकड़ा नहीं जा रहा है।" तो साधु बने हुए उस चोर ने कहा, “तुम अपना घोड़ा मुझे दे दो और तुममें से एक व्यक्ति मेरी पोशाक पहन ले और मैं सिपाही की पोशाक पहन लेता हूँ। इसके बाद मैं उस चोर को पकड़ कर ले आऊँगा।” एक सिपाही ने अपनी पोशाक और घोड़ा साधु को दे दिये। अब साधु ने सिपाही का रूप धारण कर लिया और वह घोड़ा लेकर चल पड़ा। सिपाही बने साधु की उसके मित्र प्रतीक्षा ही करते रहे, परन्तु वह न आया।

चोर अपने मामा के घर पहुँच गया और दूसरे दिन उसके साथ चोरी करने के अपराध में उसका मामा भी उस जाल में फँस गया। लड़के ने अपने मामा का सिर काट लिया और उसे अपने साथ ही लेता गया।

दूसरे दिन राजा ने नगर भर में यह घोषणा कर दी कि यदि उस चोर ने अपनी माँ का दूध पीया है, तो वह मृतक व्यक्ति को रोकर जाए। चोर फिर से गुजरी बन कर आया और कुछ रोटियाँ हाथ में पकड़ कर राजा के महलों की तरफ जाने लगा तो सिपाहियों ने कहा, "तुम कहाँ जा रही हो?" राजा की आज्ञा है कि ऊपर कोई नहीं जा सकता। उसने कहा, "मैं तो गली में से रोटियाँ इकट्ठी कर रही थी।" सिपाही ने कहा कि "फिर तुम ऊपर सीढ़ियाँ क्यों चढ़ रही थी ?" तो वह गुजरी कहने लगी कि “यहाँ मेरे रिश्तेदार काम करते हैं। सिपाही ने कहा, "तुम आज वहाँ नहीं जा सकतीं।" उसने वहीं अपने मामा की लाश पर रोटियाँ गिरा दी और रोने लगी। कुछ समय पश्चात् उसने वहाँ से रोटियाँ उठाई और वहाँ से चली गई।

जब राजा ने पूछा कि यहाँ पर कोई रोने तो नहीं आया तो सिपाहियों ने कहा, “यहाँ एक गुजरी आई थी, जो हमारे इन्कार करने पर यहाँ पर रोने लग गई थी।" राजा ने कहा, "वही तो चोर था।"

दूसरे दिन राजा ने ऐलान कर दिया, “मैं चोर के साथी की चिता दरिया के किनारे पर लगा रहा हूँ। यदि उस चोर ने अपनी माँ का दूध पीया है, तो वह अपने साथी के धड़ के साथ उसका सिर जोड़कर जाए।"

चोर ने सुनकर एक योजना बनाई। वह चोर अपने शेष साथियों को भी ले आया और राजा के सेवकों से कहने लगा कि, “यह राजा की पुत्री है। इसे बच्चा पैदा नहीं हो रहा, इसे दरिया में स्नान करना है। यदि इसे स्नान करने न दिया गया तो राजा सपरिवार दण्ड देगा।" चोर ने अपने मामा की चिता के पास जाकर उसके धड़ के साथ सिर जोड़ दिया और वह वैसे ही डोली में बैठकर वापस आ गया।

सांझ के समय राजा ने जब आकर अपने सेवकों से पूछा कि यहाँ पर कोई आया तो नहीं था, तो सेवकों ने कहा, "यहाँ तो सिर्फ आपकी पुत्री आई थी?" राजा ने कहा, "वही तो चोर है।"

चोर के मामा का संस्कार करने के पश्चात् राजा ने ऐलान कर दिया कि यदि उस चोर ने अपनी माता का दूध पीया है, तो वह आकर फूल भी चुनेगा। चोर अफीमची बनकर भांग घोटने का कार्य करने लगा और वह श्मशान घाट के पास आकर बैठ गया। वह कितनी ही देर भांग घोंटता रहा। फिर सिपाहियों ने पूछा, “भई ! तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?" यह सुनकर उसने कहा, "अमली का और क्या काम होता है, भांग बनानी और अपने नशे की पूर्ति करनी।" सिपाही कहने लगे कि राजा का आदेश है कि यहाँ पर कोई नहीं आ सकता। यह सुनकर उसने कहा, "मैं यहाँ नहीं आया, बल्कि मैं तो रहता ही श्मशान घाट में हूँ।"

बातों-ही-बातों में चोर ने सिपाहियों को अपने साथ कर लिया और उन्हें भांग पिला दी। भांग पीकर सिपाही बेहोश होकर गिर पड़े, तो चोर ने अपने मामा के फूल भी चुन लिए और सिपाहियों की आधी-आधी दाढ़ी काट ली, फिर श्मशान की राख लेकर उनके मुँह पर मल दी और आराम से चल पड़ा। आगे जाकर वह एक पण्डित बन गया और गाँव में घूमना आरम्भ कर दिया। उसने गाँव में यह बात फैला दी कि कुछ समय पश्चात् इस गाँव में भूत-प्रेत आएंगे। तुम अँगारे और पत्थर तैयार रखो। जब वे तुम्हारे गाँव पर आक्रमण करेंगे, तो तुम लोग भी अंगारों और पत्थरों से उन पर आक्रमण कर देना। इस तरह तुम्हारी जान भी बच जाएगी और वह भाग भी जाएंगे। उधर जब राजा के सिपाहियों को होश आया तो उन्होंने अपना हुलिया बिगड़ा हुआ देखा तो वे हैरान हो गए, परन्तु जब उन्होंने ध्यान से देखा तो वे सहम गए, क्योंकि वहाँ से कोई फूल चुनकर ले गया था। सभी सिपाही एक-दूसरे को कहने लगे कि, “तुम्हारे मुँह को क्या हुआ है ?" अब जब उन्हें ये बात समझ में आई कि वे भूत जैसे बन गए हैं, तो अपने-अपने मुँह छिपा कर वे लोग घर की तरफ भागे। अभी वे थोड़ी दूर ही गए थे कि उनके सिर पर आग बरसने लगी। लोग भूत-भूत चिल्लाने लगे।

कुछ समय पश्चात् जब बेहोश होने की अवस्था में एक ने अपना नाम लिया और उसने अपने बड़े भाई को बुलाया तो उस गाँव वालों को पता चला कि ये तो हमारे ही गाँव के हैं। जब गाँव वालों ने पूछा, "तुम्हारा ये हाल किसने किया है ?" तब सभी ने जाकर राजा को अपना हाल सुनाया और कहा कि चोर ने तो हमारी दाढ़ी काट डाली।

उसके अगले दिन जब दरबार लगा, तो राजा ने कहा कि, "जो मेरा चोर है, उसे मैं अपना आधा राज्य दे दूंगा और उससे अपनी पुत्री का विवाह कर दूंगा।" यह सुनकर एक ने कहा, “महाराज ! मैं आपका चोर हूँ। यह सुनकर राजा ने उससे पूछा, “तुम्हारी पहचान क्या है ? तो उसने राजा की चुराई हुई सभी वस्तुएँ वापस कर दी। अब राजा ने अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दिया और उसे आधा राज्य प्रदान कर दिया।इस प्रकार अब वह चोर हँसी-खुशी से रहने लगा।

साभार : डॉ. सुखविन्दर कौर बाठ

  • पंजाबी कहानियां और लोक कथाएँ
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां