चूहे का अहसान : मिजोरम की लोक-कथा
Choohe Ka Ahsaan : Lok-Katha (Mizoram)
पुराने जमाने में मिजो जनजातियां भोजन के लिए मक्का, ज्वार-बाजरा, फल-फूल, साग-सब्जियों एवं विभिन्न पशु-पक्षियों के मांस का ही सेवन करती थी। धान के बारे में उन्हें नही मालूम था, उसकी खेती से वे अनजान थे।
एक दिन वानहकपा (मिजो जाति का राजा) ने प्रजा को बुला कर कहा - "जब तक तुम लोग मक्का और बाजरा पर निर्भर रहोगे, तब तक फसलों को बरबाद और खराब करने वाले कीड़े "मडमुआया" पर ही निर्भर रहोगे। इसलिए तुम लोग चावल को अपना मुख्य भोजन बना लो। तुम लोग किस तरह के चावल को अपना भोजन बनाना पंसद करोगे?" बुहकिरिरूम या बुडचडरूम? ये सुन वहां के लोग हैरान रह गए।
राजा ने फिर कहा, "बुहकिरिरूम बहुत स्वादिष्ट होता है और इसे खाते समय किसी सब्जी की जरूरत नहीं। बुडचडरूम थोड़ा कड़ा होता है मगर इसके साथ सब्जी बहुत स्वाद लगती है।
इसके बाद राजा ने उन्हे बुहकिरिरूम चावल चखने को दिया। वो चावल इतना स्वादिष्ट लगा कि कई लोग अपनी जिह्वा को भी चबा गए।
तब लोगों ने घबरा कर कहा कि बुहकिरिरूम खा कर तो हम बिना जिह्वा के हो जाएंगे इसलिए हम बुहचडरूम चावल ही चुनते हैं।
उस समय मिजोरम में धान नहीं होता था। धान "तुइहयम" (महासागर) के उस पार होता था। धान के बीज को तुइहयम के उस पार से प्राप्त करना कठिन कार्य था क्योंकि तुइहयम का पानी बहुत ही ठंडा था। इसको प्राप्त करने के लिये बड़ी देर तक मंत्रणा हुई। अंत में एक सुअर, जो काफी फुर्तीला और सहनशील था, उसे तुइहयम के उस पार भेजने का फैसला हुआ।
फिवोंक ने महासागर पार कर ही लिया मगर धान के बीज जमीन की संकरी दरारों में फंसे थे, जिसे निकलने में फिवोंक असफल रहा। फिवोंक के वापस आने पर सब लोगों ने इस समस्या पर पुनर्विचार किया और चूहे (सजू) को भेजने का निश्चय किया।
सब लोगों ने कहा कि, "चूहे भाई तुम्हारी जीभ बहुत लंबी है, तुम सूअर के ऊपर चढ़ जाओ। वह तुम्हें तुइहयम को तैर कर पार करा देगा फिर तुम धान के बीज को संकरी दरारों से निकल लेना और तुम दोनों धान के बीज को वापस ले आना।"
उन लोगों के अनुरोध पर चूहा तैयार हो गया। वो फिवोंक के ऊपर बैठ गया और दोनों ने तुइहयम को पार किया। उसने संकरी दरारों में फंसे बीज को बड़ी आसानी से निकाल लिया। फिर दोनों वापस आ गए। उन दोनों को वापस आया देख सब बहुत खुश हुए।
चूहे ने गर्व से कहा कि धान का बीज लाने की वजह से वह सबसे पहले धान खाएगा। लोगों ने उसे समझाया कि ये एक ही धान का बीज है। अगर तुम इसे खा लोगे तो ये खत्म हो जाएगा। इसलिए सबसे पहले इसे बो देते हैं, जिससे नई फसल उगेगी और धान की मात्रा बढ़ जाएगी तब तुम भरपेट चावल खा लेना। इसलिए जब तक फसल नहीं आती तुम इसे नहीं खाओगे।"
लोगों के कहने पर चूहा मान गया। इसके बाद से ही मिजोरम में धान की फसल उगने लगी। आज भी मिजो समाज धान का बीज लाने के लिए चूहे के अहसान मंद हैं और वहां के बुर्जुग आज भी कहते हैं।" जब अन्नघर में चूहे चावल खाते हैं तो उन्हें मारना नहीं चाहिए और उन्हें शुभ समझ कर छोड़ देना चाहिए।
(अंजू निगम)
धान की सर्वप्रथम प्राप्ति
पुराने जमाने में मिजो जनजातियाँ भोजन के रूप में मुख्य रूप से मक्का, ज्वार बाजरा, फल-फूल, साग-सब्जियों एवं | विभिन्न पशु-पक्षियों से प्राप्त मांस का ही सेवन करती थीं।
उस समय मिजोरम में धान की खेती नहीं होती थी और मिजो जनजातियों के लोग चावल से अनजान थे। एक दिन 'वानहकपा' (प्रथम मिजो मुखिया या राजा) ने अपनी प्रजा को बुलाकर उनसे कहा कि 'जब तक तुम लोग मक्का और बाजरा पर निर्भर रहोगे, तब तक तुम लोग इन फसलों को खराब और बरबाद करनेवाले कीड़े-मकोड़े 'मङमुआया' की दया पर ही रहोगे। इसलिए तुम लोग चावल को अपना मुख्य भोजन बना लो। तुम लोग इन दो प्रकार के चावलों में से किस चावल को अपने लिए पसंद करोगे - बुहकिरिरूम या बुहचडरूम ?' यह बात सुनकर सभी लोग अवाक् होकर एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। तब राजा ने फिर कहा, बुहकिरिरूम बहुत स्वादिष्ट होता है और इसे खाते समय इसके साथ किसी भी सब्जी की जरूरत नहीं पड़ती है। 'बुहचडरूम' थोड़ा कड़ा तो होता है, मगर इसके साथ सब्जी बहुत स्वादिष्ट लगती है। ' तत्पश्चात् राजा ने उन्हें 'बुहकिरिरूम' चावल चखने के लिए दिया। वह चावल उन्हें खाने में इतना स्वादिष्ट लगा कि चखनेवाले कुछ लोग अपनी जिह्वा को भी चबाकर चबाकर खा गए। यह देख कर उन लोगों ने घबराकर कहा कि 'यह चावल (बुहकिरिरूम) तो इतना स्वादिष्ट है कि यदि हम इसको चुनेंगे तो हम सभी बिना जिह्वा के हो जाएँगे। इसलिए हम लोग बुहचडरूम चावल को ही चुनते हैं। '
परंतु उस समय मिजोरम में चावल (धान) नहीं होता था । धान 'तुइहयम' (महासागर) के उस पार ही होता था। धान के बीज को 'तुइहयम' (महासागर) के उस पार से प्राप्त करना बहुत ही कठिन कार्य था, क्योंकि 'तुइहयम' (महासागर) का पानी बहुत ही ठंडा था । मिजो समाज की मान्यताओं के अनुसार प्रारंभ में जब पृथ्वी पर जीव-जंतुओं की उत्पत्ति हुई, तब सभी जीव-जंतु एक साथ ही आपस में मिल-जुलकर रहते थे। इसलिए उसको कैसे प्राप्त किया जाए, इसके लिए उनमें बड़ी देर तक मंत्रणा होती रही। अंत में एक सूअर (फिवोंक), जो काफी सहनशील एवं फुर्तीला था, को तुइहयम (महासागर) के उस पार इस कार्य के लिए भेजने का निश्चय किया गया। सभी लोगों के अनुरोध पर उस सूअर (फिवोंक) ने हिम्मत दिखाते हुए महासागर को तैरकर पार तो कर लिया, मगर धान के बीज जमीन की सँकरी दरारों के बीच गिरकर फँसे हुए थे, जिसे वह लाख प्रयासों के बाद भी निकालने में सफल नहीं हो पाया। अंत में निराश होकर वह खाली हाथ वापस लौट आया।
तब फिर सब लोगों ने मिलकर इस समस्या पर पुनर्विचार किया और अंत में एक चूहे (सजू) को भेजने का निश्चय किया गया। उन लोगों ने चूहे से कहा, 'चूहा भाई, तुम्हारी जिह्वा बहुत लंबी है। तुम सूअर के ऊपर चढ़ जाओ । वह तुम्हें तुइहयम (महासागर) को तैरकर पार करा देगा और फिर तुम धान के बीज को संकरी दरारों से निकाल लेना। फिर तुम दोनों धान के बीज को लेकर वापस आ जाना।' उन लोगों के अनुरोध पर चूहा भी तैयार हो गया। वह सूअर (फिवोंक) के ऊपर चढ़कर बैठ गया। फिर एक बार सूअर (फिवोंक) तुइहयम (महासागर) को तैरकर पार कर गया और उसके ऊपर बैठा चूहा भी उस पार पहुँच गया। उस पार पहुँचकर चूहे ने सँकरी दरार से धान के बीज को बड़ी आसानी से निकाल लिया। फिर उसे लेकर दोनों वापस आ गए। उन्हें वापस आया देखकर सभी लोग बहुत खुश हुए।
इसी बीच चूहे ने गर्व के साथ कहा, 'धान का बीज लाने वाला होने के नाते मैं सबसे पहले इसको खाऊँगा।' उसकी इस बात को सुनकर दूसरे लोगों ने उसे समझाते हुए कहा, 'नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकते। यह एक ही बीज है। अगर तुम इसे खा जाओगे तो यह समाप्त हो जाएगा। इसलिए सबसे पहले हम लोग इसको बोएँगे। जब इससे नई फसल उगेगी तो इसकी मात्रा बहुत बढ़ जाएगी। तब तुम अन्नागार से धान ( चावल ) लेकर भरपेट खा सकते हो। इसलिए जब तक इसकी फसल नहीं आती, तब तक तुम उसे नहीं खाओगे।' लोगों के समझाने पर चूहा मान गया। इसके बाद ही मिजोरम में धान की खेती प्रारंभ हुई।
चूहे द्वारा सर्वप्रथम धान का बीज उपलब्ध कराने के कारण मिजो समाज अपने आपको उसका (चूहे का) एहसानमंद मानता है। इसी कारण से मिजो बुजुर्ग अकसर कहते हैं कि 'जब अन्नागार में चूहे चावल (धान) खाते हैं तो उन्हें मारना नहीं चाहिए और इसे शुभ समझ कर उन्हें छोड़ देना चाहिए।'
(संजय कुमार)