चूहे जादूगर से अनमोल रतन ले आए : कर्नाटक की लोक-कथा

Choohe Jadugar Se Anmol Ratan Le Aye : Lok-Katha (Karnataka)

एक शहर में बाप-बेटा रहते थे। बेटा बेकार, वह कोई नौकरी नहीं करता। बाप कमाकर लाता, दोनों मिल-बैठकर खाना खाते थे। एक दिन बाप बैठकर सोचता है कि यह कुछ कमाता नहीं, कुछ काम नहीं करता, इसकी शादी कर देने से शायद कुछ काम करेगा, तो हम लोग मिल-बैठकर खाना खा सकते हैं। इस तरह सोचकर वह कुछ रुपए इकट्ठा करता है। फिर उन्हें घर में रखकर वह बेटे से इस तरह कहता है, “बेटा, मैंने पैसे जमा कर यहाँ पेटी के अंदर रखे हैं। उनकी हिफाजत ठ‌ीक से करना। मैं पड़ोस के गाँव माडकान हल्ली (गाँव) जाकर अनाज ले आता हूँ।” यह कहकर वह गाँव के लिए आगे बढ़ जाता है।

बाप के उधर जाते ही, घर में जो पैसे रखे थे, बेटा उन्हें लेकर शहर से बाहर निकल गया। वहाँ पर एक सपेरा साँप का खेल दिखा रहा था। वह बेटा उससे पूछता है कि इस साँप का क्या दाम होगा? फिर उस सपेरे को पचास रुपए देकर उससे साँप खरीदता है।

डाली में साँप को रखकर वह थोड़ी दूर आगे बढ़ता है। वहाँ एक आदमी बिल्ली बेच रहा है। उससे वह उस बिल्ली के दाम में पूछता है। वह ‘पचास रुपए’ कहता है। वह उसे पचास रुए देकर बिल्ली खरीदता है और आगे बढ़ जाता है। वहाँ पर एक आदमी कुत्ते को बेच रहा था। वह उसे भी पचास रुपए में खरीद लेता है। फिर इन सब जानवरों को साथ लेकर घर लौटता है। बीच में उसे एक चूहा मारनेवाला मिलता है। उसे भी वह पचास रुपए देकर खरीदता है। अब उसके साथ चार जानवर हो गए। वह इन सब जानवरों को पालता रहता है। माडकान हल्ली से उसका बाप अनाज की बोरी उठाकर घर की तरफ बढ़ता है और सोचता है कि वह जल्दी से बेटे की शादी रचा देगा। घर आकर देखता क्या है कि चार जानवर आ गए हैं। बेटे से वह पूछता है कि बेटा, बता ये जानवर हमारे घर कहाँ से आए?

बेटा कह देता है कि मेरी शादी के लिए घर में तुमने जो पैसे जमा करके रखे थे, मैंने उन पैसों से ही ये जानवर खरीदे हैं।

सुनकर उसके बाप की छाती फटने लगती है। वह कहता है, “हाय, तुम्हारी शादी करने के लिए बहुत मेहनत कर पैसे इकट्ठा किए थे, तुमने सब बरबाद कर दिए।”

अब क्या किया जा सकता था? बेटे को डाँटकर चुप हो जाता है।

फिर, उन चारों जानवरों को दोनों लोग पालते रहते हैं। बाप दूसरे गाँव से कर्ज पर अनाज उठा लाया था। अब वह भी खत्म होने को आया। कुत्ते को रागी (मड़ुआ) का मांड नहीं मिल रहा था, साँप को दूध नहीं, वही हालत बिल्ली की, चूहे की भी। तो उसने क्या किया, कुत्ता और बिल्ली को शहर की सीमा के बाहर छोड़ आया।

अब साँप के लिए बाँबी ढूँढ़ने जाता है, चूहे को नदी में छोड़ आया। फिर थोड़ी दूर पर बाँबी दिखाई पड़ी। अब यह साँप को उसमें छोड़ने आगे बढ़ा। तभी साँप ने कहा, “मालिक! तुमने आज तक मेरी देखभाल की है। तुम्हारे उपकार को मैं भला कैसे भूल सकता हूँ? ऐसा करो कि तुम यहाँ थोड़ी देर यहाँ रुके रहो। इस बाँबी में मेरे पिता नागराज रहते हैं, मैं उनसे मिलकर तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूँ।” इतना कहकर वह साँप अंदर गया। अंदर जाकर छोटे साँप ने अपने पिता से सारी आप बीती बात बताई। उसने अपने पिता से कहा और यह विनती की कि तुम्हारे सिर पर जो अनमोल रत्न है, उसे इसे दे दो, तब उसके उपकार का यह सही उपहार होगा।

नागराज ने अपने बेटे की सलाह मानकर उसके हाथ अपनी मुकुट मणि दे दी।

छोटा साँप उसे लेकर बाहर आया, अपने यजमान को उसने नागमणि देकर कहा, “इसे ले जाओ। जब जो भी तुम्हारा खाना खाने का मन करेगा, इससे कहो, तुरंत यह तुम्हें वह सब खिला देगी।”

तब नागमणि को लेकर अपने घर गया। उसे मणि के सामर्थ्य की परीक्षा करने का मन हुआ। उसने मणि से कहा, ‘मुझे खाने को खिचड़ी चाहिए। तुरंत खिचड़ी लड़के के सामने थी। बाप-बेटे दोनों ने उसे खाया। रोज इसी तरह उसके सामने माँग पेश करता, उस चीज को पाकर बाप-बेटा दोनों खा लेते। यह क्रम काफी दिनों तक चलता रहा। फिर एक दिन बाप ने कहा, “बेटा, हमारी यह झोंपड़ी बहुत छोटी पड़ रही है। तुम ऐसा करो, कुछ नारियल के पत्ते तोड़ लाओ, एक-दो बाँस की डंडी भी ले आओ। मैं खुद इन चीजों के लिए चादर फैला दूँगा।” बेटे ने जवाब दिया, “बाबा मैं तो घर में रहता ही नहीं, फिर तुम्हें बड़ा मकान क्यों चाहिए? मैं सामान तो ला दूँगा, मगर मैं उसके आगे कोई काम नहीं करूँगा।” यह कहकर वह घर के बाहर निकलकर किसी दूसरे गाँव बसने का मन बनाकर चल पड़ा।

वहाँ पर एक गाँव था। उस गाँव के एक किनारे पर बूढ़ी कुब्जा का एक बगीचा था। उसने वहाँ फुलवारी बना रखी थी। उन फूलों को छुड़ाकर उस शहर के राजा को रोज पहुँचाती थी। उस युवक को रास्ते में वह बगीचा दिख गया। फिर वह वहाँ पर आया।

उसके मकान के आगे आकर आवाज देता है। पूछता है कि अंदर कौन रहता है। वहाँ अंदर वही बुढ़िया थी। पूछती है, “कौन है, क्या चाहिए?” जवाब आता है, “खूब प्यास लगी है, पानी चाहिए।” बुढ़िया ने अंदर से पानी लाकर दिया और पूछा, “कौन से गाँव के हो, कहाँ जा रहे हो?” वह अपने गाँव का नाम बतलाकर कहता है, “मैं तो नौकरी की तलाश में निकला हूँ, कुछ मजदूरी कर पेट भरना चाहता हूँ।” तब बुढ़िया कहती है, “मेरे यहाँ काम करते रहो। मैं तुम्हें मजदूरी दूँगी, खाना भी खिलाऊँगी।” उस जवान आदमी को बुढ़िया की बात भा गई। फिर उसी के यहाँ रहने लगा।

उस शहर के राजा की बेटी बारह साल की होती है। अभी उसकी शादी नहीं हुई थी। राजा ने एक शर्त लगा रखी थी कि मेरे महल के आगे एक कुआँ है। जो युवक उस कुएँ में मोती-मणिक भर देगा, उसे अपनी बेटी देकर शादी रचाऊँगा।

उस राज्य में एक जादूगर था। उसे राजा का ढिंढोरा सुनाई दिया। उसने कहा, “मैं कुएँ में मोती-मणिक भर देता हूँ। उसी तरह उसने जादू से कुएँ के आधे भाग में मोती-मणिक भर दिए। राजा ने आकर इसका परीक्षण कर देखा, कुएँ का आधा भाग मोती-माणिक से भरा था, तभी कुब्जा बुढ़िया के घर से यह लड़का भी वहाँ आकर देखता है, जैसे ही वह लड़का कुएँ में झाँकता है, जादू सारा खत्म हो जाता है, कुआँ पहले जैसा ही हो जाता है।

जादूगर अपने से बड़े जादूगर को देखकर डर से भाग जाता है।

अगले दिन दोबारा राजा ढिंढोरा पिटवाता है। कुब्जा बुढ़िया के घर के पास ढिंढोरा पिटता है। तब यह जवान लड़का पूछता है कि यह ढिंढोरा किसलिए? बुढ़िया उसे सारी बात बताती है। तब लड़का कहता है, “मैं यह काम करता हूँ। अभी देखो, यह नागमणि पकड़ों, जवान से बुढ़िया कहती है, “देखो सभी जानते हैं कि मैं यहाँ अकेली रहती हूँ। मैं रोज राजा की बेटी के लिए फूल छुड़ाकर दे आती हूँ। अब इस स्पर्धा में भाग लेने पर पता नहीं, राजा क्या कहते होंगे?” उस पर वह कहता है, “डरने की कोई बात नहीं, कहना कि मेरे घर मेरा पोता आया है, वही स्पर्धा में भाग लेना चाहता है।”

बुढ़िया राजा के पास जाकर वही बात कहती है। यह लड़का गाना गाते उस रात नागमणि लेकर कुएँ के पास पहुँचता है। अपनी हथेली में नागमणि रखकर कहता है (आदेश देता है) कि कुएँ में मोती-माणिक भर दो।

तुरंत कुआँ मोती-माणिक से भर जाता है। सुबह होते ही राजा कुएँ के पास आकर देखता है, मोती-माणिक, यह देखकर राजा की आँखें चौंधियाँ जाती हैं। तब वह राज्य भर में तोरण बाँधकर, फूलों से शहर को सजाकर इस लड़के से अपनी बेटी की शादी धूमधाम से रचा देता है।

अब राजा की बेटी-दामाद राजमहल में खुशी से रहने लगते हैं।

राजमहल में रहकर यह लड़का ऊब जाता है और शिकार खेलने की इच्छा से एक दिन जंगल में जाता है। तब साँप द्वारा दिया गया अनमोल रत्न वह कुब्जा बुढ़िया के घर हिफाजत से रखकर जाता है।

यह सब वह जादूगर छिपकर देखता रहता है। जंगल की तरफ लड़के के निकलते ही जादूगर भिखमंगे का भेष बनाकर भीख माँगने आता है। राजकुमारी सूपड़ी भर मोती-माणिक भिक्षा में डालने बाहर आती है। तब जादूगर कहता है, “मुझे मोती-माणिक नहीं चाहिए। उस खिड़की के पास अंदर से एक रत्न दिखाई दे रहा है। तुम उसे भिक्षा में डाल दो। मेरे लिए उतना काफी है।” लड़की वही करती है। जादूगर नागमणि पाकर घर लौट आता है।

वहाँ जंगल में वह लड़का यह भूलकर कि नागमणि घर में छोड़ आया हूँ, अपनी जेब में तलाशता है, जब वह नहीं मिलती है, वह घर लौट आता है। घरवाली से पूछता है कि यहाँ जो रत्न रखा था, उसका क्या हुआ?

लड़की सारी बातें उसे कहती है। लड़के को पत्नी पर बहुत गुस्सा आता है। वह उसे खूब पीटकर कहता है, “आज से मेरा-तुम्हारा रिश्ता खत्म हुआ।”

जादूगर आधी रात के समय जादू करता है। उससे राज्य और पलंग इसके पास आ गए। आते ही वह पलंग पर बैठकर सोचता है कि यहीं बैठे रहने से मैं इस लड़की के घरवाले के हाथ फँस सकता हूँ। इसलिए तुरंत ‘चूहा राज्य की पासवाली गुफा चलो’ कहा। तुरंत पलंग के साथ वह गुफा में पहुँच गया।

तब तक सुबह हो गई। लड़का देखता क्या है कि यहाँ बीवी-पलंग कुछ भी नहीं है। तब लड़का अपने ससुर से कहता है। राजा दामाद पर क्रोधित होकर उसी को दोष देकर पूछता है कि तू ही बता मेरी बेटी कहाँ है? राजा को अपने दामाद पर शक होता है। कहता है, “मैं तुम्हें सात दिन का समय देता हूँ। तब तक किसी भी हालत में तुम्हें मेरी बेटी को यहाँ लाना ही होगा।”

इतना कहकर उस पर इस शंका से कि यह कहीं भाग जाएगा, उसे एक कमरे में बंद कर ताला लगा देता है। खाना-पानी कुछ भी नहीं देता। इस तरह लड़का मुसीबत में फँस जाता है।

इस मुसीबत के समय उसे अपने उस कुत्ते की याद आती है। तब कुत्ता बिल्ली के पास जाकर कहता है कि बिल्ली बहन, सुनो, वह लड़का जिसने हमें पिष्ट-दूध देकर पाला था, अब मुसीबत में फँसा है, चलो, अभी हम उसके पास चलते हैं और उसे मुसीबत से बाहर निकालेंगे।

तब इन जीवों ने उसकी मदद करने का उपाय सोचा और सीधे उसी जगह पर आए, जहाँ राजा ने उसे नजरबंद कर रखा था। उस कमरे की छत पर वे जीव चढ़े और गवाक्ष से झाँककर उसे देखा। उससे बात की कहा, “हम तुम्हारी मदद करने आए हैं। चिंता मत करो, हम तुम्हें इस मुसीबत से बाहर निकालेंगे। कहो, हमें अब क्या करना होगा?” तब उसने उन बंधुओं से कहा, “तुम लोग उस जादूगर को पकड़ो और उसके पास जो नागमणि है, उसे छुड़ा लाओ।”

तब बिल्ली, कुत्ता और चूहा शहर में आते हैं। शहर की सीमा के दोनों तरफ वे बैठ गए। तभी दूसरे कई चूहे शहर में आए। इन तीनों जीवों को देखकर उन्हें डर लगा। सोचा कि ये हमें खा जाएँगे। इसीलिए वे चूहे के सामनेवाले मकान में घुसकर बैठ गए।

कुछ दिन बीते। चूहों को भी खूब भूख लगी। तब कुछ छछूँदरों ने आपस में बातचीत कर कि हम इन लोगों से पूछेंगे कि ये इतने दिनों से यहाँ इस तरह क्यों बैठे हैं, वह इन जीवों के पास आई, पूछा, “बताओ भाई लोग, तुम यहाँ क्यों आए हो? हमसे क्या चाहते हो?”

तब इन तीनों ने जवाब दिया। कहा, “कुछ नहीं, यहाँ पर पहाड़ के ऊपर एक गुफा है। वहाँ पर एक जादूगर है। उसके पास म‌ाणिक रत्न है। उसे लाकर हमें देना होगा। हमारी बात मानो तो ठीक, नहीं तो हम तुम्हारे पूरे शहर को बरबाद कर डालेंगे।” इन बड़े-बड़े चूहों ने इनकी बात मानने का आश्वासन दिया।

तब सभी चूहे गुफा के पास आए। ढूँढ़ते हैं, माणि रत्न कहीं नहीं मिलता। उन चूहों में से एक छोटी पूँछवाला चूहा था। जादूगर के चहेरे के पास जाकर उसने झाँककर देखा, तब उसे जादूगर की नाक में माणिक रत्न दिख गया। उस छोटी पूँछवाले चूहे ने उसकी नाक पर छलाँग मारी। उससे जादूगर को जोर की छींक आई। उसके छींकते ही नागमणि नाक से नीचे गिर गई। चूहे उस नागमणि को उठाकर पहाड़ से नीचे आते हैं और बिल्ली को उसे सौंप देते हैं। तब ये जीव चूहों को यह कहकर कि हम तुम्हारा उपकार कभी नहीं भूलेंगे, नागमणि को लेकर राजा के शहर में आते हैं।

आते समय रास्ते में जोर की बारिश हो जाती है। थोड़ा आगे बढ़ते हैं, वहाँ पर एक नदी मिलती है। नदी को बिल्ली पार नहीं कर पाती। नदी के उस पार से जाने में बहुत समय लगता, तब तक राजा का दिया समय निकल जाता और लड़के को राजा मार देता। तब क्या करते?

कुत्ते ने कहा, “फिर वह नागमणि मेरे हाथ दे दो, नहीं तो मैं नहीं आऊँगा।”

“ऐसा क्यों?” दूसरे जीवों ने पूछा। कुत्ता कहता है कि तुम लोग ही वहाँ पहुँच पाओगे तो लड़का समझेगा कि तुम्हीं लोगों ने उसकी मदद की है। इसलिए मुझे वह नागमणि सौंप दो। कहा, “तुम लोगों को मैं ही तो पार कराता हूँ। तुम इसे कहाँ रख पाओगे? तुम मुँह में रखोगे तो नदी में गिर जाएगी। मैं उसे अपने कान में रखूँगा। इससे लड़के का भला होगा।”

कुत्ते ने हठ नहीं छोड़ा। उसने कहा, “तुम नागमणि मुझे सौंप दो, तो ही मैं उस पार आऊँगा।”

इस तरह कुत्ते को नागमणि दी गई। अब कुत्ता बिल्ली को पीठ पर बिठाकर नदी में उतरा। चूहा पहले से ही नदी में घुस गया। तीनों ने इस तरह नदी पार कर ली। कुत्ता नागमणि को मुँह में रखकर आया था। पार करते समय नागमणि फिसलकर नदी में गिर गई थी।

तीनों को चिंता हुई कि अब क्या किया जाए? बिल्ली ने कुत्ते से कहा, “तुम हमारी बात मानते तो यह नौबत नहीं आती। राजा का दिया वादा आज खत्म हो रहा है, क्या किया जाए?”

चूहे ने बिल्ली की बात सुनकर कहा, “देखो, उसने अन्न देकर हम लोगों को पाला है। अब राजा उसे सूली पर चढ़ा देगा। हमें इस समय उसके उपकार का ऋण चुकाना चाहिए।”

इस तरह कहकर चूहा फिर से नदी में कूद पड़ा। तलाशकर नागमणि ले आया। कहा, “इसे जल्दी ले जाकर उस लड़के की जान बचा दो।”

तब बिल्ली और कुत्ता नागमणि को लेकर शहर आते हैं। तब तक उसको सूली पर चढ़ाने की तैयारी हो रही होती है।

ये दोनों दौड़कर आते हैं और उस लड़के के हाथ मणिक्य रत्न को लाकर देते हैं।

नागमणि के मिलते ही लड़के ने उसे अपनी हथेली पर रखकर कहा, “मेरी पत्नी/घरवाली अब जहाँ भी हो, तुरंत मेरे पास आ जाए।”

तब पलंग के साथ सुबह-सुबह राजकुमारी राजा के यहाँ आ पहुँचती है। राजा बेटी को देख बहुत खुश होता है। कहता है, “मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हारी वजह से अपने जमाई को बहुत कष्ट दिया।”

तब दामाद को भी अपने ससुर पर प्रेम हो आता है। राजा पूरे राज्य को दामाद और बेटी के हाथ सौंपता है। तब वह लड़का अपने बाप को भी शहर बुला लेता है। परिवार के साथ सुखी जीवन जीता है। राजपाट की भी देखभाल करता है।

(साभार : प्रो. बी.वै. ललितांबा)

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