चिंग, चांग और सोने का टुकडा : चीनी लोक-कथा

Ching, Chang and a Piece of Gold : Chinese Folktale

एक बार की बात है कि चीन में दो दोस्त रहते थे। एक का नाम था चिंग और दूसरे का नाम था चांग। दोनों ही बड़े बड़े टोप पहनते थे, दोनों ही नीला सूती कोट पहनते थे और दोनों ही नंगे पैर रहते थे। पर चांग गले में पीले मोतियों की माला पहनता था और चिंग हरे मोतियों की।

दोनों ही दोस्तों को अपनी रोजी रोटी कमाने के लिये बहुत ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती थी इसलिये उनको ज़्यादा छुट्टियाँ नहीं मिल पाती थीं। परन्तु जब भी वे खाली होते तो एक दूसरे के साथ रहना ही पसन्द करते। किसी ने कभी उन्हें झगड़ते नहीं देखा। वे एक रेशम बुनने के कारखाने में काम करते थे। जब वहाँ का काम खत्म हो जाता तो वे अपना अपना चावल का कटोरा उठाते और किसी पेड़ की छाँह में जा बैठते। खाना खाते, हँसते, बोलते, और गप हाँकते।

अगर उनमें से किसी के पास ज़्यादा चावल होता तो वह दूसरे को जरूर देता। दोनों ही को एक दूसरे का साथ बहुत पसन्द था। एक दिन कारखाने के मालिक की शादी थी इसलिये उस दिन उसने अपने मजदूरों की छुट्टी कर दी और अपने खजांची को सभी को एक एक पैनी और देने का हुक्म दिया। मजदूर बड़े खुश हुए और लाइन बना कर अपनी अपनी पैनी लेने चल दिये।

मगर चांग और चिंग हाथ में हाथ डाल कर साथ साथ चल रहे थे। वे सबसे अन्त में थे। जब तक वे खजांची के पास अपनी पैनी लेने पहुँचे तब तक उसके पास सारी पैनी खत्म हो चुकी थीं और केवल एक ही पैनी बची थी।

यह देख कर खजांची बहुत शर्मिन्दा हुआ। शर्म से उसका चेहरा लाल हो गया। उसने अपने बडे, से थैले में इधर हाथ डाला, उधर हाथ डाला परन्तु वहाँ तो केवल एक ही पैनी थी।

यह तमाशा देख कर पास में खड़े मजदूर हँस पड़े परन्तु चिंग और चांग ने सिर झुका कर खजांची से कहा — “मालिक़ आप दुखी न हों। यह पैनी चाहे आप चांग को दें या चिंग को, बात एक ही है।

हम लोग पक्के दोस्त हैं — दो शरीर और एक जान, इसलिये एक ही हैं। इसी लिये आपके थैले में भी अब एक ही पैनी बची है और आपने वह एक पैनी जिस किसी को भी दी समझिये कि वह आपने दोनों को दी है।”

इतना कह कर चिंग ने उसके सामने अपना हाथ फैला दिया और चांग ने अपना हाथ उसके हाथ के ऊपर रख दिया और खजांची ने वह एक पैनी उन दोनों के हाथ पर रख दी।

खुशी खुशी वे दोनों दोस्त हाथ में हाथ डाले घूमते घूमते शहर में आये और फिर घूमते घूमते वे लोग खेतों की ओर निकल आये। सूरज इतनी ज़ोर से चमक रहा था कि पहाड़ों की चोटियाँ सोने में नहायी सी लग रहीं थीं। कभी कभी ठंडी हवा आ कर उन दोनों को सहला जाती और कभी कभी फूल पेड़ों से झर कर रास्ते में उनका स्वागत करते।

वे चुपचाप चले जा रहे थे।

चलते चलते वे चीड़ के जंगलों में आ पहुँचे। वहाँ की हरियाली देख कर वे मोहित हो गये और सड़क छोड़ कर जंगल के अन्दर घुस गये। अचानक एक चीड़ के फल जितने ही बड़े किसी टुकड़े की चमक देख कर वे रुक गये। उसकी चमक इतनी ज़्यादा थी कि वे अपनी आँखें मलने लगे। वह टुकड़ा एक पेड़ की जड़ के पास पड़ा था। दोनों ने एक साथ एक दूसरे से पूछा “यह क्या है?”

चांग ने कहा — “चिंग़ यह तो असली सोना है। दोस्त, मैं तुम्हारे भाग्य पर बहुत खुश हूँ। यह तुम्हारा है क्योंकि इसे पहले तुमने देखा है।” और चांग ने वह सोने का टुकडा, उठा कर चिंग के हाथ पर रख दिया।

लेकिन चिंग हँसा और बोला — “क्यों भाई, हम लोगों ने तो हमेशा ही अपनी हर चीज़ बाँटी है — अपना खाना, अपनी मजदूरी, अपनी छुट्टियाँ। फिर हम यह क्यों नहीं बाँटेंगे?”

चांग बोला — “नहीं चिंग़ वे सब छोटी छोटी चीजें, थीं मगर यह सोना तो बहुत कीमती है। मेरी बड़ी इच्छा है कि तू बहुत मालदार हो जाये। आज मेरी इच्छा पूरी हो गयी। ले तू ही इसे रख ले यह तेरा है।”

चिंग ने कहा — “मेरी भी यही इच्छा थी कि तू अमीर हो जाये। अब इस सोने ने चाहा तो तू खूब अमीर हो जायेगा। ले इसे तू ही रख ले, यह तेरा है।”

चांग का चेहरा तमतमा आया और वह ज़ोर से बोला — “मैं इसे नहीं रखूँगा, तू रख।”

चिंग को भी गुस्सा आ गया और वह गुस्से में बोला — “मैं इसे नहीं रखूँगा, तू रख।” चांग ने अपना पैर पटका और चिंग ने अपना सिर हिलाया।

यकायक दोनों ही आश्चर्य से एक दूसरे को देखने लगे। आज उन्हें यह क्या हो गया था। वे अपने जीवन में आपस में आज पहली बार लड़ रहे थे।

चिंग बोला — “ओह चांग़ यह क्या हो रहा है?”

यह कह कर वह सोने का टुकड़ा उसने जहाँ से उठाया था वहीं फेंक दिया और अपने हाथ में रखी पैनी को खुशी से देखते हुए हाथ में हाथ डाले वे दोनों फिर आगे बढ़ गये। उन्हें ऐसा लगा मानो इस लड़ाई में वे एक दूसरे को खो चुके हों।

समय गुजर रहा था। शाम का साया बढ़ रहा था। सूरज जाने की तैयारी में था।

चांग ने कहा — “चिंग भाई, घर जाने से पहले आओ थोड़ी देर कहीं बैठ लें। इस समय मौसम बड़ा अच्छा हो रहा है।” सो दोनों ही एक चीड़ के पेड़ के नीचे बैठ गये और सुस्ताने लगे। कुछ ही पलों बाद उन्हें किसी के कदमों की आहट सुनायी दी और उन्हें सामने से एक बूढ़ा आता दिखायी दिया। वह कह रहा था — “मेरे ऊपर दया कीजिये भाइयो। मैं एक बूढ़ा आदमी हूँ।”

उसकी आँखें भारी सी और थकी सी दिखायी दे रही थीं। उसने अपना काँपता सा हाथ आगे बढ़ाया और बोला — “मुझे कुछ खाने के लिये चाहिये, बहुत भूखा हूँ।”

चांग और चिंग ने उसकी तरफ निराशा से देखते हुए कहा — “हमें बहुत दुख है कि हमारे पास केवल एक ही पैनी है।”

यकायक चिंग को कुछ याद आया और वह बोला — “रुको भाई, देखो उस चीड़ के पेड़ के नीचे चीड़ के फल जितना बड़ा एक सोने का टुकड़ा पड़ा है तुम वह ले लो। तुम उसे पा कर बहुत अमीर हो जाओगे।”

वह बूढ़ा यह सुन कर बहुत खुश हुआ और उनको धन्यवाद देता हुआ उधर ही चल दिया जहाँ उन्होंने उसको वह सोने का टुकड़ा पड़ा बताया था। उसके जाने के बाद चिंग और चांग दोनों उस पेनी को खर्च करने के बारे में सोचते रहे।

कि एकाएक फिर एक ज़ोर की आवाज ने उनको चौंका दिया। वह बूढ़ा पैर पटकता हुआ चला आ रहा था — “ओ नालायक लड़को, तुमने मुझसे झूठ क्यों बोला? इतनी रात में मुझे जंगल में बेकार भेजने से तुम्हें क्या मिला? किसी भूखे गरीब को सताना क्या अच्छी बात है?”

चांग ने शान्त आवाज में कहा — “हमने झूठ नहीं बोला था भाई। जब हम इधर आ रहे थे तो हम उसे वहीं पेड़ की जड़ के पास ही छोड़ कर आये थे। अभी कुछ मिनटों पहले तो वह वहीं था।”

बूढ़े भिखारी ने कहा — “मगर वहाँ तो पुराना सा एक पीले रंग का सेब पड़ा था। भूख की वजह से मैंने उसे ही उठा कर काटा तो उसके बीच में तो एक कीड़ा बैठा था। तुम लोगों ने मुझे बहुत तंग किया यह अच्छा नहीं किया।”

चिंग ने कहा — “अच्छा भाई, यह लो तुम हमारी पैनी और आराम से खाना खाओ। लगता है तुम हमसे ज़्यादा भूखे हो।” बूढ़ा वह पैनी ले कर जल्दी से वहाँ से चला गया।

उसके जाने के बाद उन्होंने आपस में कहा — “आज रात के खाने की छुट्टी, चलो घर चलें।” और हाथ में हाथ डाल कर वे दोनों घर चल दिये।

चांग ने कुछ सोचते हुए कहा — “चिंग़ कितनी अजीब सी बात है कि उस बूढ़े को वह सोना नहीं मिला।”

चिंग बोला — “सो तो है, पर हमने तो उसे वहीं छोड़ दिया था।”

इतना कह कर चिंग ने उधर देखा तो आश्चर्य से उसकी तो आँखें फैल गयीं। वैसा ही एक और सोने का टुकड़ा वहाँ पड़ा था। दोनों ने झुक कर सोने के वे दोनों टुकड़े उठा लिये और एक दूसरे को देते हुए कहा — “प्यारे दोस्त, आखिर तुम्हें मैं यह कीमती भेंट देने में कामयाब हो ही गया।”

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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