चिड़िया और कव्वा : हरियाणवी लोक-कथा

Chidiya Aur Kauwa : Lok-Katha (Haryana)

चिड़िया का घोंसला बंदर ने उजाड़ दिया था। चिड़िया गर्भ से थी, मरती क्या न करती। उसने कव्वे को देखा, जो अपने घोंसले में अकेला बैठा था। चिड़िया कव्वे से बोली, “कव्वे-कव्वे, कुछ दिन के लिए मुझे अपना घोंसला दे दे।”

कव्वा बोला, “तू मुझे बदले में क्या देगी?”

चिड़िया चुप हो गई उसके पास देने को कुछ न था।

कव्वा बोला, “सुन जब तेरे चीकले निकल आएं तो मुझे एक देने का वादा करेगी तो मैं तुझे घोंसला दे दूंगा। नहीं तो अपनी राह पकड़।”

मरती क्या न करती। चिड़िया बोली, “तू मुझे अपना घोंसला दे दे, जब मेरे चीकले हो जाएंगे तो एक तुझे दे दूंगी।” चिड़िया ने अंडे दे दिए तो कव्वा बोला, “अब तू अपने वादे अनुसार मुझे अपना एक चीकला खाने के लिए दे दे।” चिड़िया बोली, “पहले इनको अंडों से बाहर तो निकलने दो।” कुछ दिनों के बाद चीकले अंडों से बाहर निकल आए। कव्वे ने चिड़िया से फिर कहा तो चिड़िया बोली, “इनको अभी थोड़ा बड़ा होने दो।”

कुछ दिनों में चीकले बड़े हो गए तो कव्वे ने अपनी बात पुनः दोहराई। चिड़िया ने उसे टालने के लिए कहा, “पहले ये उड़ना तो सीख लें। इनके पंख आने दो, तब जरूर दूंगी।”

कुछ समय बाद बच्चों के पंख उग आए तो कव्वा फिर चिड़िया के पास गया और चीकले देने की बात कही।

अब चिड़िया को कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। कुछ सोचकर वह बोली, “ठीक है तो मेरा एक चीकला ले जा, लेकिन तू सड़ा-गला मांस खाकर आया है। जा, पहले अपनी गंदी चोंच को धोकर आ।

उसकी बात सुनकर कव्वा अपनी चोंच को साफ करने के लिए पनघट पर पहुंचा और पानी भरने के लिए आई हुई औरतों से बोला,

“तम पनिहारन, हम कागदास।”
देवो पाणिया, धोवे चुचरवा।
खावै चिड़ी के चीकले,
फराकावां पांख।”

तो पनिहारियां बोलीं, “हमारे पास घड़ा नहीं है। तुम कुम्हार के पास जाओ और घड़ा ले आओ। हम उसे भर देंगे।”

उनकी बात सुनकर कव्वा कुम्हार के पास गया और बोला,

“तुम कुमर-कुमर, हम कागदास।
तम कमर-कमर, हम कागदास।
घड़ो घड़कला
भरे पनिहारिन, धोवै चुचरवा।
खावै चिड़ी के चिकले,
फरकावां पांख।”

उसकी बात सुनकर कुम्हार बोला, “मेरे पास मिट्टी नहीं है। तुम जाकर मिट्टी ले आओ, मैं घड़ा घड़ दूंगा।”

गरज का मारा कव्वा मिट्टी के पास जाकर बोला,

“तुम मटड-मटड,
हम कागदास।
दयो मटडया,
घड़ो घड़कला।
भरे पनिहारिन,
धोवै चुचरवा,
खावै चिड़ी के चीकले
फरकावां पांख।”

वहां भी कव्वे को निराशा मिली क्योंकि मिट्टी ने कहा, “जा मिट्टी खोदने के लिए औजार हिरण का सींग लेकर आओ।”

तब वह हिरण के पास गया और बोला,

“तम हिरण-हिरण,
हम कागदास।
दयो सिंगला,
खोदे मटडिया।
घड़ो घड़कला,
भरे पनिहारिन,
धोवै चुचरवा।
खावै चिड़ी के चीकले,
फरकावां पांख।”

हिरण ने कहा, “जा, कुत्ते को बुला ला। वो सींग तोड़ देगा, तो सींग ले जाना।”

कव्वा गया कुत्ते के पास और बोला,

“तम कुतर-कुतर,
हम कागदास।
दयो कुतरिया,
तोडै हिरनवा।
खोदे मटड़वा,
घडो घड़कला,
भरे पनिहारिन,
धोवै चुचरवा।
खावै चिड़ी के चीकले,
फरकावां पांख।”

कुत्ते ने कहा, “भाई कागले, मैं तो कई दिन का भूखा हूं। शरीर में जान ही नहीं है। कहीं से दूध लाओ तो पीकर ताकत आए तो ही सींग तोड़ पाऊंगा।”

कव्वा उसके लिए दूध लेने भैंस के पास पहुंचा और बोला,

“तम भसर-भसर,
हम कागदास।
दयो दुधवा,
पीवे कुतरिया।
तोडै हिरनवा,
खोदे मटड़वा।
घड़ो घड़कला,
भरे पनिहारिन,
धोवै चुचरवा।
खावै चिड़ी के चीकले,
फरकावां पांख।”

भैंस भी भूखी थी। यह जानकर उसके लिए घास लेने गया और बोला,

“तुम घसर-घसर,
हम कागदास।
दयो घसरिया,
खावै भैंसरिया।
देवे दुधरिया,
पीवै कुतरिया।
तोड़े हिरनवा, खोदे मटडवा।
घड़ो घड़कला, भरे पनिहारिन, धोवै चुचरवा।
खावै चिड़ी के चीकले, फरकावां पांख।”

लेकिन घास खोदने के लिए औजार नहीं था। इसलिए वह खुरपा लेने के लिए लोहार के पास गया और बोला,

“तम लोहर-लोहर, हम कागदास।
दयो खुरपला, खोदे घसरिया।
खावै भैसरिया, दवे दुधरिया।
पीवै कतरिया. तोडे हिरनवा।
खोदै मटड़वा, घड़ो घड़कला।
भरे पनिहारिन,
धोवै चुचरवा।
खावै चिड़ी के चीकले, फरकावां पांख।”

कव्वे की बात सुनकर लोहार बोला, “खुरपा का बीटा बनाने के लिए लकड़ी नहीं है।”

यह सुनकर कव्वा जंगल में जाकर बोला,

“तुम लकड़-लकड़, हम कागदास।
दयो लकड़िया, खोदे घसरिया।
खावै भेंसरिया, दवे दुधरिया।
पीवै कुतरिया, तोड़े हिरनवा।
खोदे मटडवा, घड़ो घड़कला।
भरे पनिहारिन, धोवै चुचरवा।
खावै चिड़ी के चीकले, फरकावां पांख।”

पेड़ ने लकड़ी दे दी। लकड़ी लेकर वह लोहार के पास गया। लोहार ने उसे खुरपा बनाकर दे दिया।

लोहार बोला, “तुम इसे कैसे लेकर जाओगे?” तो कव्वा बोला, “इसे मेरी पीठ पर रख दो।” लुहार ने कहा बहुत गर्म है। लेकिन कव्वे को चीकले खाने की जल्दी थे , उसने कहा कोई बात नहीं मेरी पीठ पर रख दो। लोहार ने खुरपा गर्म-गर्म कव्वे की पीठ पर रख दिया। कुछ तो खुरपा भारी था और गर्म भी था। जैसे ही कव्वा उसे लेकर थोड़ा-सा ही उड़ा था कि उसकी पीठ जलने लगी और वह कांव-काव करके जमीन पर गिर पड़ा और वहीं जलकर तड़पते हुए मर गया। इस तरह चिड़िया के चीकले बच गये।

(डॉ श्याम सखा)

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