छुट्टी (कश्मीरी कहानी) : आफ़ाक अजीज़

Chhutti (Kashmiri Story) : Afaq Aziz

साढ़े दस भी बज गए। काफी देर हो गई। पता नहीं वह क्यों नहीं आया। वैसे उसे देर से आने की आदत तो है, मगर इतनी देर उसने कभी नहीं की है। जरूर कोई न कोई बात होगी। हो सकता है कि वह आया हो। मैंने उसे नहीं देखा हो और वह चला भी गया हो!

नहीं-नहीं, यह नहीं हो सकता। सवाल ही पैदा नहीं होता। और फिर से उस ओर से आनेवाली सभी बसों पर नजर डाली थी। हाँ, बाकी दिनों की अपेक्षा आज उस तरफ से कम ही बसें आ रही थीं। मैंने सोचा कि मैं क्यों न बड़े अड्डे पर जाकर यह मालूम करूं कि क्या सुबह से उस रूट से चलनेवाली कोई बस आई भी या नहीं।

बस-अड्डा लगभग खाली था। केवल कुछ ही बसें खड़ी थीं। मैंने अड्डे के मुखिया से पूछा-"क्यों जी, सभी रूटों पर बसें चल रही हैं?"
उसने इकरार में जवाब दिया, लेकिन साथ ही एक शर्त भी रखी-“केवल उस रूट पर बसें नहीं चल रही हैं जिसके बारे में तुम जानना चाहते हो।"

मैं हैरान हुआ। उसे कैसे पता चला कि मैं किस रूट के बारे में जानना चाहता था? सोचा कि उससे पूछ ही लूँ। लेकिन फिर खयाल आया कि इस वक्त ऐसी कोई बहस शुरू करना ठीक नहीं रहेगा। मैंने अनुमान लगाया कि इसने मुझे हर रोज बस पर चढ़ते-उतरते देखा होगा, इसलिए यह शायद सिर्फ न मुझे पहचानता हो, बल्कि मेरा रूट भी जानता होगा। खैर, मैंने उससे बसें न चलने का कारण पूछा। उसका जवाब था-"उस साइड में हालात खराब हैं।"
"कैसे हालात?" मैंने अड्डे के उस मुखिया से पूछा। "पथराव हो रहा है। दुकानें बंद हैं और ट्रैफिक भी।"

बस अड्डे के मुखिया के ये शब्द सुनकर मैं परेशान हो गया। मेरी आँखें भी परेशान होकर मित्र की राह देखने लगीं। इधर धूप ने भी मुझे काफी परेशान किया था। मगर मेरी सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि वह क्यों नहीं आया?

यह बचपन का मेरा एकमात्र मित्र था। रात के कुछ घंटे एक-दूसरे से अलग रहने को छोड़ हम कभी भी एक-दूसरे से जुदा नहीं होते थे। पहली कक्षा से ही हमें क्लास में साथ-साथ बैठने की आदत पड़ गई थी। आधी छुट्टी में हम यम्बरजल कैंटीन में कुछ खा-पी लेते थे और इधर-उधर की बातें करते रहते थे।

उसकी मिलनसारी, शराफत और भलमनसाहत मेरे दिमाग में घूम रही थी। मुझसे रहा नहीं गया। मैं फिर अड्डे के मुखिया के पास गया और उससे पूछा-"जब उस साइड के हालात खराब हो गए, उस वक्त क्या बजा था?"
"दस बजे थे।

सुनकर मैं और भी उदास और भयभीत हो गया। अजीब और अशुभ विचार मन में आने लगे। निराशा ने मुझे घेर लिया। अब उसके आने की कोई सम्भावना नहीं थी। अभी तक उसने आधे घण्टे से अधिक देर नहीं लगाई थी, मगर इस समय तो उसने हद ही कर दी थी।

हम दोनों हर रोज इसी अड्डे से दस-पचपन की बस पकड़ते थे। उसे कब का आ जाना चाहिए था, मगर कहीं ऐसा तो नहीं है कि हालात बिगड़ने की वजह से वह घर से ही न निकला हो? वैसे वह ऐसा आदमी नहीं है। हाँ, यदि सुबह नाश्ते के समय ही हालात खराब हो जाएँ तो उस सूरत में घर से बाहर कदम रखनेवाला नहीं है।नहीं-नहीं, यह बात भी असम्भव है। वह कम-से-कम मेरे पास पहुँचने के लिए कोई-न-कोई जतन जरूर करता। खुदा जाने मामला क्या है! इंतजार करते-करते मेरे घुटने भी थक गए। अब तो पहला पीरियड ही खत्म हो चुका होगा। सोचा, अब चलना ही ठीक रहेगा। मगर दिल थोड़े ही मानता! वह ज़रूर आएगा, मगर...मगर मुझे क्या दिनभर उसका वहीं इंतजार करना होगा?

हाँ, मुझे इंतजार करना ही होगा। हो सकता है कि वह मेरे जाते ही आ जाए! क्या तब वह मेरी तरह ही परेशान नहीं होगा? मैं बैठ गया और नजरें उस दिशा की ओर केंद्रित की जिधर से वह आता था। वहाँ से आने वाली बसों की जैसे लाइन लगी थी। मैं बहुत खुश हुआ। हालात शायद सुधर गए हैं। वह अब आता ही होगा। मैंने एक बस वाले से हालात के बारे में सवाल किया। उसने जवाब दिया-"हालात तो बिल्कुल नॉर्मल हैं। कहीं कोई झगड़ा-फसाद नहीं हुआ है। बाजार और दुकानें खुली हैं।"

जब मैंने उससे यह सवाल किया कि उस रूट पर अभी तक ट्रैफिक क्यों चालू नहीं था तो वह बोला- ज़बरदस्त रश के कारण एक्जिबिशन मोड़ पर पैंतालीस मिनट तक ट्रैफिक जाम हो गया।" मैंने जब उसका ध्यान ट्रैफिक के दो घण्टे तक बंद होने के तथ्य की ओर दिलाया तो उसने कहा-"पुलिस ने सभी बसों-गाड़ियों के ड्राइवरों से सारे कागजात ले लिये। असल में उन्हें 'चाय-पानी' चाहिए, ड्राइवर की गलती हो चाहे न हो।"
मेरी जबान बस वाले से बतिया रही थी, लेकिन आँखें अपने मित्र को खोज रही थीं। बसें आती रहीं, लेकिन वह नहीं आया।

मेरा इन्तजार अब खुद मुझे भी अजीब-सा लगने लगा। मेरे पूरे दो घंटे उसकी प्रतीक्षा में बीत गए थे। दूसरा पीरियड भी खत्म हो गया होगा, मगर वह?-वह मेरे राजों का राजदार था और मैं उसके। मैं गुमसुम उसी के खयालों में खोया था कि आवाज आई :

कल सोमवार, दिन के दो बजे सुलेमान टैंक के नीचे कश्मीरी जबान के खैरख्वाहों का एक अहम जलसा होगा जिसमें मादरी जबान की एहमियत, कौमी पहचान और कश्मीरी जबान को स्कूलों में पढ़ाए जाने के मसलों पर बहस होगी।

यह ऐलान सुनकर मैं हैरान भी हुआ और स्तब्ध भी रह गया कि क्या आज इतवार मतलब 'छुट्टी' है?

(अनुवादक : हरिकृष्ण कौल)

  • कश्मीरी कहानियां और लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : भारत के विभिन्न प्रदेशों, भाषाओं और विदेशी लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां