छोटी बूढ़ी दादी : कैनेडा की लोक-कथा
Chhoti Boodhi Dadi : Lok-Katha (Canada)
एक छोटी बूढ़ी दादी एक जंगल के किनारे के पास रहती थी। वह आस पास के शैतान बच्चों को ठीक से बरताव करना सिखाती थी।
एक दिन एक माँ अपनी छोटी सी बेटी को दादी के पास ले कर आयी और बोली — “माँ, मेरी बेटी को भी कुछ सिखा दो यह मेरे घर के कामों में बिल्कुल भी सहायता नहीं करती।”
दादी मुस्कुरायी और बोली — “ठीक है इसे छोड़ जा मेरे पास। मैं सिखा दूँगी।” बच्ची की माँ चली गयी और दादी ने बच्ची को सिखाना शुरू कर दिया।
अगले दिन वे दोनों जंगल में लकड़ियाँ चुनने गये। उनके जाने के बाद एक छोटा भालू दादी की झोंपड़ी के पास आया और उसके आस पास चक्कर काटने लगा। इतने में ही एक छोटा कुत्ता आ गया
और भालू से बोला — “छोटे भालू, तुम इस झोंपड़ी के आस पास चक्कर क्यों काट रहे हो?”
छोटा भालू बोला — “तुम्हें इससे क्या? तुम चाहो तो तुम भी चक्कर काट लो।” और फिर दोनों दादी की झोंपड़ी के चारों तरफ चक्कर काटने लगे।
इतने में एक छोटा हिरन उधर आ निकला और उन दोनों से बोला — “ओ छोटे भालू और छोटे कुत्ते, तुम लोग दादी की झोंपड़ी के आस पास क्यों घूम रहे हो?”
भालू और कुत्ते ने जवाब दिया — “तुम्हें इससे क्या, तुम चाहो तो तुम भी घूम सकते हो।” और फिर तीनों दादी की झोंपड़ी के चारों तरफ घूमने लगे।
इतने में एक मुर्गा आया और उसने उन तीनों से पूछा — “छोटे भालू, छोटे हिरन और छोटे कुत्ते, तुम सब दादी की झोंपड़ी के चारों तरफ चक्कर क्यों काट रहे हो?”
तीनों बोले — “तुम चाहो तो तुम भी आ जाओ। तुमको कौन मना कर रहा है।” और इस तरह फिर चारों दादी की झोंपड़ी के चारों तरफ चक्कर काटने लगे।
इतने में एक केटली का ढक्कन उधर से गुजरा। उन सबको इस तरह से चक्कर काटते देख कर उसने उनसे पूछा — “ओ छोटे भालू, छोटे कुत्ते, छोटे हिरन, और मुर्गे, आप सब लोग इस तरह दादी की झोंपड़ी के चारों तरफ चक्कर क्यों काट रहे हैं?”
वे सब एक आवाज में बोले — “तुम्हें इससे क्या, तुम चाहो तो तुम भी चक्कर काट लो।” सो अब पाँचों दादी की झोंपड़ी के चारांे तरफ चक्कर काटने लगे।
इतने में एक पिन और कोलतार आये और उन पाँचों को इस तरह चक्कर काटते देख कर आश्चर्य से पूछने लगे — “ओ छोटे भालू, छोटे कुत्ते, छोटे हिरन, मुर्गे और केटली के ढक्कन। आप सब लोग इस तरह दादी की झोंपड़ी के चारों तरफ चक्कर क्यों काट रहे हैं?”
वे सब फिर एक साथ बोले — “तुम्हें इससे क्या लेना देना है तुम चाहो तो तुम भी आ कर चक्कर काट लो न।” सो अब वे सातों दादी की झोंपड़ी के चारों तरफ चक्कर काटने लगे। चक्कर काटते काटते उन सातों को शाम हो गयी। अब उन सबको नींद आने लगी। दादी अभी तक घर नहीं लौटी थी सो वे दादी की झोंपड़ी में घुस कर सोने की जगह तलाश करने लगे। छोटा भालू दादी के बिस्तर पर सो गया। छोटा कुत्ता दादी के पालने में सो गया। छोटा हिरन दादी के ओवन के ऊपर चढ़ गया। मुर्गा उड़ कर अलमारी के ऊपर बैठ गया।
केटली का ढक्कन चिमनी में ऊपर चढ़ गया और कोलतार दियासलाई की डिबिया में दुबक कर बैठ गया। पिन को समझ में नहीं आया कि वह कहाँ जाये सो वह एक तौलिये में लग कर बैठ गयी।
उसी समय दादी और वह लड़की जंगल से लकड़ी ले कर वापस लौटे और सोने की तैयारी करने लगे। जब वे बिस्तर में घुसने की कोशिश कर रहे थे तो भालू ने उनको अपना पैर मार कर इतना डरा दिया कि वे दोनों कूद कर वहाँ से हट गये।
उन्होंने पालने में घुसने की कोशिश की तो वहाँ से कुत्ता भौंका और उसने उनको काट लिया। वे चिल्लाये — “कौन हो तुम?” फिर उन्होंने ओवन के ऊपर जगह ढूँढी तो वहाँ से छोटे हिरन ने उनको डरा दिया। दादी स्टोव के पास अपने आपको गरम करने के लिये गयी तो ऊपर से केटली का ढक्कन उसके सिर पर गिर पड़ा।
दादी डर गयी और बोली — “आज मेरी झोंपड़ी में यह सब क्या हो रहा है। उसने सोचा कि उसे लैम्प जला कर देखना चाहिये कि उसकी झोंपड़ी में आज यह सब क्या हो रहा है।”
सो लैम्प जलाने के लिये उसने दियासलाई की डिबिया उठायी। दादी ने डिबिया खोली ही थी कि उसका हाथ कोलतार से चिपक गया और वह उससे अपना हाथ ही नहीं छुड़ा सकी।
किसी तरह उसने कोलतार से अपना हाथ छुड़ाया और हाथ धोने गयी तो हाथ धो कर जब उसने हाथ पोंछने के लिये तौलिया उठाया तो पिन उसके हाथ में इतनी ज़ोर से चुभी कि वह तो दर्द के मारे चीख ही पड़ी।
इतने में मुर्गा उड़ कर उसके पास आया और बोला — “आज का दिन बहुत बुरा है न दादी।”
इस बात ने तो दादी को इतना ज़्यादा डरा दिया कि वह तो बेहोश हो कर वहीं गिर गयी।
दादी के गिरने से लड़की इतनी ज़्यादा डर गयी कि अपनी माँ के पास भाग गयी। उस दिन से उसने अपनी माँ का कहना मानना शुरू कर दिया। माँ दादी की इस एक दिन की ट्रेनिंग से बहुत खुश थी।
(अनुवाद : सुषमा गुप्ता)