छोटा निडर जौन : इतालवी लोक-कथा
Chhota Nidar John : Italian Folk Tale
एक बार की बात है कि इटली के एक शहर में एक बहुत ही निडर लड़का रहता था। उसका नाम था जौन। वह किसी से डरता नहीं था इसलिये सब उसको छोटा निडर जौन कह कर बुलाते थे।
एक बार उसको दुनियाँ देखने की इच्छा हुई तो उसने कुछ पैसे लिये और दुनियाँ देखने निकल पड़ा। चलते चलते वह एक सराय में आया और वहाँ आ कर उसने सराय के मालिक से खाना और रात भर रहने के लिये की जगह माँगी।
सराय का मालिक बोला — “आज तो पूरी सराय भरी हुई है। कोई जगह खाली नहीं है पर अगर तुमको डर न लगे तो मैं तुम्हें एक जगह ऐसी बता सकता हूँ जहाँ तुम आराम से ठहर सकते हो।”
छोटा निडर जौन बोला — “नहीं नहीं, मुझे डर नहीं लगता। मैं क्यों डरूँगा? तुम मुझे जगह बताओ।”
सराय का मालिक बोला — “लोग तो उस महल के बारे में सुन कर ही काँप जाते हैं क्योंकि वहाँ अभी तक जो भी गया वहाँ से ज़िन्दा वापस लौट कर नहीं आया। जो वहाँ बड़ी बहादुरी से रात गुजारने जाते हैं सुबह को वहाँ फ्रायर्स केवल उस आदमी की लाश लाने के लिये ही जाते हैं।”
जौन बोला — “कोई बात नहीं, मैं वहाँ जाऊँगा। तुम मुझे बस वह जगह बता दो कि वह जगह है कहाँ।”
सराय के मालिक ने उसको वह जगह बता दी और उसको एक लैम्प दे दिया। जौन ने उससे लैम्प लिया, पीने के लिये एक बोतल शराब ली और खाने के लिये एक सौसेज लिया और सीधा उस महल की तरफ चल दिया।
आधी रात को वह अपना खाना खाने के लिये खाने की मेज पर बैठा कि तभी उसने चिमनी से आती हुई एक आवाज सुनी — “क्या मैं इसे नीचे फेंक दूँ?”
जौन लापरवाही से बोला — “हाँ हाँ फेंक दो।”
तभी चिमनी में से अँगीठी के ऊपर एक आदमी की टाँग आ गिरी। जौन ने एक गिलास शराब पी।
कुछ पल बाद वही आवाज फिर बोली — “क्या मैं इसे नीचे फेंक दूँ?”
जौन ने फिर उसी लापरवाही से जवाब दिया — “हाँ हाँ फेंक दो।” और एक और टाँग चिमनी में से अँगीठी के ऊपर आ गिरी।
इसी तरह से वह आवाज पूछती रही और जौन उसको उसी लापरवाही से कहता रहा — “हाँ हाँ फेंक दो।”
आखिर वहाँ दो टाँगें और दो हाथ आ कर गिर गये और फिर एक धड़। जैसे ही वह धड़ नीचे आ कर गिरा दोनों बाँहें और दोनों टाँगें उस धड़ से जुड़ गयीं और वहाँ एक बिना सिर वाला आदमी उठ कर खड़ा हो गया।
फिर एक और आवाज आयी — “क्या मैं इसे भी नीचे फेंक दूँ?” और जौन ने उसको फिर उसी लापरवाही से जवाब दिया — “हाँ हाँ इसे भी फेंक दो, तुमसे कहा न।”
फिर एक सिर नीचे आ गिरा। नीचे गिर कर वह सिर कूदा और उस बिना सिर वाले धड़ पर जा कर लग गया। वह तो अब सचमुच में ही एक बहुत बड़े साइज़ का आदमी बन गया था।
जौन ने उसकी तरफ अपना शराब का गिलास उठा कर कहा — “तुम्हारी तन्दुरुस्ती के लिये।” और वह गिलास उसने एक ही साँस में खाली कर दिया।
वह बड़े साइज़ का आदमी बोला — “अपना लैम्प उठाओ और मेरे साथ आओ।”
जौन ने अपना लैम्प तो उठाया पर वह वहाँ से हिला नहीं। इस पर वह आदमी बोला — “तुम आगे चलो।”
जौन बोला — “नहीं तुम आगे चलो।”
आदमी चिल्लाया — “मैं कहता हूँ कि तुम आगे चलो।”
जौन भी चिल्ला पड़ा — “तुम आगे चल कर मुझे रास्ता दिखाओ तभी तो मैं चलूँगा। मुझे क्या पता तुम मुझे किधर ले जाना चाहते हो।”
इस पर वह बड़े साइज़ का आदमी आगे आगे चल दिया और जौन रास्ते पर रोशनी दिखाता हुआ उसके पीछे पीछे चल दिया।
वे लोग उस महल के कमरों पर कमरे पार करते चले गये। इस तरह उन दोनों ने करीब करीब पूरा महल पार कर लिया। आखीर में जा कर उनको नीचे जाने के लिये एक सीढ़ी मिली। वे लोग उस सीढ़ी से नीचे उतर गये। सीढ़ी के आखीर में एक दरवाजा था।
आदमी ने जौन से कहा — “इसे खोलो।”
जौन बोला — “तुम खोलो।”
सो उस आदमी ने अपने कन्धे के धक्के से वह दरवाजा खोला तो उसके अन्दर भी नीचे जाने के लिये एक घुमावदार सीढ़ियाँ थीं। वह आदमी बोला — “चलो नीचे चलो।”
जौन फिर बोला — “तुम आगे चलो।”
सो वह आदमी फिर आगे आगे चला और जौन उसके पीछे पीछे चला।
सीढ़ियाँ उतर कर वे दोनों एक तहखाने में आ गये। उस तहखाने में पत्थर का एक टुकड़ा रखा था। आदमी ने कहा — “इसे उठाओ।”
जौन बोला — “यह कोई छोटा सा पत्थर नहीं है जिसको मैं उठा सकूँ। तुम उठाओ।”
उस आदमी ने उस बड़े से पत्थर को ऐसे उठा लिया जैसे वह कोई बड़ा सा पत्थर न हो कर पत्थर की गोली हो। उस पत्थर के नीचे सोने से भरे तीन बरतन रखे थे।
वह आदमी बोला — “इन बरतनों को ऊपर ले चलो।”
जौन बोला — “तुम ले कर चलो।”
उस आदमी ने एक एक करके वे तीनों बरतन उठाये और उनको ऊपर ले गया। फिर वे दोनों उन तीनों बरतनों को ले कर उसी कमरे में आ गये जिसमें जौन पहले बैठा हुआ था और जिसमें अँगीठी लगी हुई थी।
वह आदमी बोला — “ओ छोटे जौन, अब इसका जादू टूट गया।” यह कहने के बाद उस आदमी की पहले एक टाँग निकली और चिमनी से उड़ कर बाहर चली गयी।
वह बोला — “इसमें से एक बरतन तुम्हारा है।” फिर उसकी एक बाँह निकली और वह भी चिमनी से हो कर ऊपर चली गयी।
वह फिर बोला — “यह दूसरा बरतन उन फ्रायर्स का है जो यह सोचते हुए कल सुबह तुम्हारे मरे हुए शरीर को लेने आयेंगे कि तुम मर गये हो।” यह कहने के बाद उसकी दूसरी बाँह भी चिमनी से उड़ कर ऊपर चली गयी।
वह फिर बोला — “यह तीसरा बरतन उस गरीब आदमी का है जो सबसे पहले यहाँ आयेगा।” इतना कहने के बाद उसकी दूसरी टाँग भी उड़ गयी और अब वह आदमी अपने धड़ पर बैठा रह गया।
वह फिर बोला — “यह महल तुम्हारा है तुम इसमें आराम से रहो।” यह कहने के बाद उसका धड़ भी उसके सिर से अलग हो कर चला गया।
अब केवल उसका सिर ही वहाँ रह गया। वह फिर बोला — “इस महल के मालिक और उनके बच्चे यहाँ से हमेशा के लिये चले गये हैं।” यह कह कर वह सिर भी चिमनी से हो कर बाहर निकल गया।
जब सुबह हुई तो बाहर शोर मचा। फ्रायर लोग यह सोच कर कि जौन तो अब तक मर गया होगा उसके मरे हुए शरीर को रखने के लिये एक ताबूत ले कर आये थे पर वहाँ तो उन्होंने जौन को खिड़की पर खड़े हो कर अपना पाइप पीते देखा तो वे तो आश्चर्य में पड़ गये।
जौन ने उनको अपनी सारी कहानी सुना दी और उनको उनका सोने से भरा बरतन दे दिया। इस तरह जो फ्रायर्स जौन की लाश ले जाने आये थे वे सोने से भरा बरतन पा कर बहुत खुश हुए।
सोने से भरा वह तीसरा बरतन उस गरीब आदमी को दे दिया गया जो वहाँ सबसे पहले आया।
जौन उस महल में बहुत साल तक रहा और उस सोने को इस्तेमाल करता रहा। पर एक दिन उसने अपने पीछे देख लिया तो उसको अपनी परछाँई दिखायी दे गयी। उसको देख कर वह इतना डर गया कि वहीं मर गया।
(मूल कथा: इतालो कैलवीनो)
(हिंदी रूपांतरण: सुषमा गुप्ता)