छींकने वाला पेड़ : लेबनान की लोक-कथा

Chheenkne Wala Ped : Lebnon Folktale/Folklore

बस्ती के बाहरी छोर पर एक घना पेड़ था । उस पर कई पक्षियों ने अपने घोंसले बना रखे थे। बड़ा पेड़ होने के कारण वहाँ पक्षी खूब उतरते थे। शाम के समय तो वहाँ पक्षियों का खूब कलरव सुनाई देता था। लेकिन धीरे-धीरे सब बदल गया । परिन्दे पेड़ को छोड़ कर जाने लगे। पेड़ को परिन्दों का साथ अच्छा लगता था। वह समझ न पाया कि एकाएक पक्षियों ने उसे छोड़कर जाने का फैसला क्यों कर लिया।

असल में पेड़ के पीछे ऊँचाई पर एक सड़क गुजरती थी। हाल ही में वहाँ एक नाला बना दिया गया था। उस नाले में पीछे वाली बस्ती का गन्दा पानी बहता हुआ आकर सीधा पेड़ के ऊपर गिरने लगा था। इससे पेड़ के पत्ते सदा गीले रहने लगे। गन्दे पानी के कारण पेड़ से बदबू उठने लगी। भला हर समय गन्दे पानी की बौछार से नहाने वाले पेड़ पर परिन्दे कैसे रह सकते थे । केवल परिन्दे ही छोड़कर नहीं गए, चौबीसों घण्टे गन्दे पानी की बौछार झेलते रहने से पेड़ भी बीमार हो गया। अब अक्सर ही पेड़ के पास से गुजरने वालों को छींकने की आवाजें सुनाई देने लगीं। दिन के समय तो खैर किसी का ध्यान छींकने की आवाज़ की तरफ नहीं जाता था, लेकिन रात के अन्धेरे में पेड़ से उभरने वाली छींक की आवाज वहाँ से जाने वालों का भयभीत कर देती ।

लोग उसे भुतहा पेड़ कहने लगे। पेड़ के भुतहा प्रचारित होते ही बहुत से लोगों ने पेड़ के पास आना छोड़ दिया । परिन्दे तो उसे पहले ही छोड़ गए थे । अब लोग भी वहाँ भूत-प्रेत का वास मानकर दूर-दूर रहने लगे थे। रात के अन्धेरे में कोई भी अकेले वहाँ से गुजरने की हिम्मत नहीं करता था। इस तरह अच्छा, घना पेड़ गन्दे पानी के कारण भुतहा पेड़ के रूप में बदनाम हो गया । पेड़ सुनता और उसका मन दुख से भर उठता। वह सोचता- 'भला, इसमें मेरा क्या दोष ।' वह भी अपने छींकने से परेशान था। लेकिन पेड़ क्या कर सकता था भला । हाँ देवता से प्रार्थना अवश्य किया करता था ।

बरसात के मौसम में तो नाले में बहुत पानी आ जाता था और तब पेड़ के ऊपर गन्दे पानी की एक मोटी धार हर समय गिरने लगती थी । बस्ती में ऐसे कई लोग थे जिन्हें पेड़-पौधों से प्यार था । उन्होंने कहा - "पेड़ पर गन्दे पानी को गिरने से रोकना चाहिए। यह बुरी बात है । गन्दे पानी के बहाव के लिए हमें नया नाला बनाना चाहिए, जो पेड़ से दूर गहरे नाले में सीधा गिरे।" लेकिन जिस जमीन पर नया नाला बनाने की बात सोची गई, वह बस्ती के एक बहुत अमीर आदमी की थी।

अमीर आदमी ने सुना तो बोला- “एक पेड़ को बचाने के लिए गन्दे पानी का नाला मैं अपनी जमीन पर कभी नहीं बनाने दूँगा।” उसे पेड़-पौधों से वैसे भी कोई लगाव नहीं था। लोगों ने उसे समझाना चाहा, पर वह भला कहाँ मानने वाला था ।

बरसात का मौसम था। एक दिन तेज बारिश शुरू हुई तो होती ही रही । कई दिन तक लगातार पानी गिरता रहा । तभी लोगों ने देखा कि बरसात का पानी बस्ती में भरने लगा है। जैसे-जैसे समय बीता पानी ऊँचा होता गया । अब तो पानी बस्ती के मकानों में भी घुसने लगा था ।

लोगों ने जाकर देखा बरसाती पानी वाला नाला न जाने कैसे रुक गया था। उसमें पानी आगे जाने के स्थान पर उल्टा बस्ती में वापस आ रहा था । पता चला पेड़ के ऊपर गिरने वाली पानी की धार बन्द थी, यानी नाला रुक गया था। बन्द नाले को खोलने की कोशिश की गई, पर नाला नहीं खुला । देखने पर नाले में कहीं कोई अवरोध या रुकावट नजर नहीं आ रही थी । पर फिर भी उसके मुँह से पानी बाहर नहीं गिर रहा था । लगता था जैसे किसी ने नाले के मुँह पर एक पारदर्शी दीवार बना दी है। देखने पर नाले में आर-पार दिखाई देता था। कहीं कूड़ा भी अटका हुआ नहीं था, फिर भी न जाने क्यों बहुत कोशिश करने पर भी पानी नाले के मुँह से बाहर निकलकर पेड़ के ऊपर नहीं गिर रहा था ।

बारिश का सबसे ज्यादा पानी तो अमीर आदमी की हवेली में भर गया था। पहली मंजिल पूरी तरह बाढ़ के पानी में डूब गई। बस्ती में भरा पानी बाहर निकालने के लिए कोई और तरीका खोजना जरूरी था ।

आखिर अमीर को अपना हठ छोड़ना पड़ा। अपनी जमीन के एक हिस्से पर नया नाला बनाने की बात उसने स्वीकार कर ली । रात-दिन नया नाला बनने लगा। नया नाला पेड़ से परे सीधे गहरे बड़े नाले में गिरना था । नया नाला बनकर तैयार हो गया। बरसाती पानी का मुँह नए नाले की तरफ मोड़ दिया गया । बस्ती में भरा पानी तेजी से निकलने लगा। लोगों ने चैन की साँस ली । उनके घरों में अब बरसात का पानी नहीं आ रहा था ।

बाद में उस पेड़ पर गिरने वाले पुराने नाले का मुँह पूरी तरह बन्द कर दिया गया। कड़ी धूप में पेड़ के पत्ते सूख गए। हर समय उसमें से उठने वाली दुर्गंध भी जाती रही। फिर पेड़ ने महसूस किया कि उसमें से रह-रहकर निकलने वाली छींक की आवाज भी अपने आप बन्द हो गई है।

अब रात में पेड़ के पास से गुजरने वालों को पेड़ से छींकने की डरावनी आवाज नहीं सुनाई देती थी। उनका डर दूर हो गया। पेड़ पर गन्दा पानी गिरना बन्द हुआ तो पेड़ को छोड़कर चले गए पक्षी फिर लौट आए। उन्होंने पेड़ की डालियों पर नए घोंसले बना लिये ।

लोगों ने पेड़ को भुतहा पेड़ कहना छोड़ दिया। पेड़ खुश था, लोग हैरान थे कि पेड़ से सुनाई देने वाली छींकने की आवाज कैसे बन्द हो गई। इसका रहस्य कोई नही जान पाया। लेकिन पेड़ को पता था कि उसके दुखी मन की प्रार्थना उसके देवता ने अवश्य सुन ली थी। तभी तो हो सका था यह चमत्कार !

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