चेखव की संवेदना (व्यंग्य) : हरिशंकर परसाई

Chekhov Ki Samvedna (Hindi Satire) : Harishankar Parsai

एंटन चेखव बहुत संवेदनशील व्यक्ति और लेखक थे। उनके फोटोग्राफ में उनकी गहरी भावपूर्ण आंखें उनकी संवेदना को बताती हैं। गोर्की तथा अन्य उनके समकालीनों ने उनके बारे में कहा है। गोर्की ने लिखा है कि ताल्सताय चेखव को देख कर कहते थे-देखो कितना कोमल है। उसकी अंगुलियां स्त्रियों की तरह है ।

चेखव अध्यापकों के प्रति बहुत सहानुभूति रखते थे। वे चाहते थे कि अध्यापकों की आर्थिक हालत अच्छी हो और उनकी प्रतिष्ठा हो; पर साथ ही वह चाहते थे कि अध्यापक छात्रों से स्नेह करें, उन्हें तंग ना करें, पीटे नहीं।गोर्की ने ही लिखा है, कुछ अध्यापक अपनी शिकायतें चेख को सुना रहे थे।एकाएक चेखव ने पूछा तुम्हारे क्षेत्र में वह कौन अध्यापक है, जो बच्चों को पीटता है? संयोग से वह वही अध्यापक था जो सबसे ज्यादा शिकायत कर रहा था।

चेखव की संवेदना व्यापक थी।साइबेरिया में जार की सरकार जिन लोगों को देश-निकाला दे देती थी वे अत्यंत कष्टमय जीवन जीते थे। उनकी हालत देखने चेखव खुद बेहद ठंडे साइबेरिया गये। वहां कैदियों की हालत देखी। वे बीमार होकर लौटे। उन्होंने उन लोगों के हालत पर एक किताब भी लिखी।

चेखव बनावट और पाखंड को एकदम पकड़ लेते थे। एक दिन तीन उच्च वर्गीय स्त्रियां सजी-धजी और इत्र से महकती उनके पास आईं। वे ऊंचा स्तर बताने के लिए कहने लगीं- चेखव साहब, ग्रीस और तुर्कों की लड़ाई में कौन जीतेगा ? चेखव ने कहा- जो अधिक ताकतवर होगा। वे इस बात को और आगे बढ़ा रही थीं। चेखव ने कहा- मुझे सेब का मुरब्बा पसंद है। आप में से कौन सेब का मुरब्बा अच्छा बनाती है ? तीनों एक साथ बोलीं- मैं बहुत अच्छा बनाती हूं। आपको ला कर दूंगी। उनके जाने के बाद चेखव ने गोर्की से कहा- हर आदमी को अपनी भाषा बोलनी चाहिए।

चेखव की कहानियों तथा नाटकों में गहरी संवेदना और पीड़ा भी है और कुछ रचनाओं में व्यंग्य भी। चेखव की संवेदना बहुत सूक्ष्म और बहुस्तरीय होती हैं । वह मानवीय मन में गहरी जाती है और इसलिए हर समय सभ्य होती है । समय के साथ चेखव की कहानियां पुरानी नहीं पड़ती। नित नई होती हैं।इसका कारण समकालीनता में भी मानव मन की शाश्वत स्थिति की पकड़ है ।उनकी एक कहानी है- तितली। छोटे शहर की एक लड़की है । वह स्थानीय कलाकारों के एक दल में है। वे सब लोग अपने को महान कलाकार मानते हैं और जिस आदमी का संबंध सरोकार कला से नहीं है उसे घटिया मानते हैं । अपनी दुनिया में मगन है । लड़की की शादी एक डॉक्टर से होती है ।वह हीनता का अनुभव करती है, दोस्तों के सामने। पति कलाकार नहीं है ।अब उनके घर कलाकारों का जमघट होने लगता है ।डॉक्टर बहुत प्रतिभावान है ।डिप्थीरिया का विशेषज्ञ है । आगे शोध कर रहा है । वह घर में उन अधकचरे कलाकारों की सेवा करता है ।उनके कमरे में आकर कहता है भोजन तैयार है । उसकी पत्नी उसे इस बात का उलाहना देती है कि वह कला में दखल नहीं रखता । आखिर वह जवाब देता है- हर आदमी हर काम नहीं कर सकता। यह तुम्हारे कलाकार मित्र डिप्थीरिया का इलाज नहीं कर सकते । वह पत्नी के लिए रंग बिरंगे कपड़े खरीदने के लिए अनुदान से पैसे कमाता है।

लड़की कलाकार मित्रों के साथ बाहर भी जाती है । एक दिन वह वहां से तार करती है कि मेरा अमुक गाऊन दे जाओ।

आखिर डॉक्टर को विश्वास हो जाता है कि वह उसके प्रति वफादार नहीं रही । वह अस्पताल में डिप्थीरिया के एक मरीज का मवाद नली से चूस लेता है ।घर जाता है । तड़पता है ।मर जाता है । उसका साथी उस तितली को बहुत डांटता है।

इस कहानी में डॉक्टर की सौम्यता, सहनशीलता और पत्नी के प्रति प्रेम है । उधर उसकी पत्नी खेलने वाली हलाकि गुड़िया बनी रहती है। उसमें तनिक भी समझ और संवेदनशीलता नहीं है । पूरी कहानी में गंभीर डॉक्टर सौम्यता और सहनशीलता से पत्नी की फरमाइशें पूरी करता है । उधर वे अधकचरे अहंकारी अमानवीय लोग जो अपने को महान कलाकार मानते हैं डॉक्टर की भलमनसाहत का शोषण करते हैं । आखिर वह दुर्घटना होती है की बहुत संभावना वाला डॉक्टर जो मानव जाति के भले के लिए चिकित्सा के क्षेत्र में शोध करता, अपना अंत कर लेता है, एक बहुत मामूली तितली के कारण।

चेखव की एक और कहानी है ।अंग्रेजी में शीर्षक है 'अन्ना ऑन द नेक' । गांव की बहुत गरीब घर की पर बुद्धिमती लड़की है- अन्ना । सुंदरी है । पर शहर के किसी होनहार युवक का ध्यान उस पर नहीं जाता । आखिर शहर के एक बड़े बाबू जो अधेड़ है, उससे शादी करने को राजी होते हैं ।बाबू को तारीफ में कहा जाता है वह सिद्धांतप्रिय आदमी है । उस भुखमरी-ग्रस्त परिवार में बाबू बहुत बड़ा आदमी माना जाता है । शादी हो जाती है । रेलवे स्टेशन पर दंपत्ति को विदा करने परिवार आता है । लड़की के पिता नशे में धुत्त हैं।

रेल चलती है । अधेड़ बाबू लड़की के प्रति प्रेम प्रकट करता है। पर लड़की रो रही है कि मेरे परिवार के पास शाम को खाने के लिए कुछ नहीं है। अपने घर में लड़की अपनी दीनता में दबी रहती है । पति बड़ा बाबू है। सिद्धांतवादी आदमी है । चेखव की ये लड़कियां अलग-अलग तरह की होती हैं। यह लड़की तितली सरीखी सपाट नहीं है। न एक कहानी की उस कस्बाई लड़की की तरह जिसमें प्रतिभाग नहीं है, पर वह महान संगीतज्ञ बनने का सपना देखती है । वह उसे चाहने वाले एक डॉक्टर से विवाह करने से इंकार कर देती है और मास्को चली जाती है। 5 साल बाद वह निराश होकर लौटती है और चाहती है कि डॉक्टर से शादी ही कर ले। डॉक्टर बदल चुका होता है। उसकी जिंदगी का ढर्रा दूसरा हो गया है। वह इन्कार कर देता है।

यह लड़की अन्ना दूसरे ढंग की है। दीन है, अपनी क्षमता जानती है। 'बाल' (नृत्य) मौसम आने वाला है । उसका पति उसे कहता है- अमुक प्रतिष्ठित महिला से सुझाव लेकर 'बाल' के लिए स्कर्ट बनवा लेना । पर वह जानती है ।वह बढ़िया स्कर्ट बनवाती है पहला प्रतिष्ठा-प्राप्त 'बाल' होता है । वह खूब नाचती है । वह सबसे अच्छा नाचती है। वह सुंदरी है । वह सर्वोत्तम नृत्य करने वाली मानी जाती है । उसे सांस्कृतिक रूप से चीजे बेचने के लिए कहा जाता है । वह खूब बेचती है ।

सबसे सम्मोहक और सफल अन्ना सुबह देर तक सोई है। उसके पति के विभाग का अधिकारी भी 'बाल' में नाचा था ।वह गुलदस्ता लेकर जाता है ।तब तक वह जाग चुकी है ।इधर यह बड़ा बाबू हड़बड़ा जाता है ।अधिकारी गुलदस्ता लेकर अन्ना के कमरे में जाता है ।उसे गुलदस्ता भेंट करता है ।तारीफ करता है । बधाई देता है । बड़े बाबू गदगद है । वे अन्ना के कमरे में जाते हैं । एक नृत्य उत्सव ने उनकी नजरों में अन्ना को उठा दिया । उधर अन्ना कल की अन्ना नहीं रही । वह अपनी और दूसरों की नजरों में बहुत चढ़ गई है । उसका पति उसके कमरे में जाता है और कहता है- साहब से मेरे बारे में दो शब्द कह देना।

अन्ना भड़क कर कहती है- बेवकूफ, बाहर निकल जाओ।

अपनी योग्यता दिखाने का एक मौका मिला तो अन्ना प्रतिभा दिखा कर बदल गई । अब वह परम स्वतंत्र हो गई। वह सैर सपाटे करती है। ऊंचे समाज में आती जाती है। वह घुड़सवारी करती है। घोड़े को तेज दौड़ाती हुई अपने गांव की तरफ से निकलती है। उसके भाई उसे रोकते हैं। पर उसका बाप कहता है- उसे मत रोको। अब वह नहीं रुकेगी।

विविध रंगों का चरित्र इस लड़की का है, जिसे चेखव ने बड़ी तटस्थता से चित्रित किया है।

यह संवेदना वहां भी है जहां वे व्यंग्य करते हैं। जिस पर व्यंग किया जाता है वह अंततः अपनी मजबूरियों के कारण वैसा विरोधाभासी व्यवहार करता है। वह कहानी है एक प्राइवेट स्कूल की। स्कूल में वार्षिक उत्सव चल रहा है। एक आदमी मुखौटा लगा कर दो तीन लोगों के साथ वहां आता है और अध्यापक/अध्यापिकाओं के सामने बदतमीजी करता है। वे लोग उसे तरह-तरह से प्रताड़ते हैं। सबको उस आदमी पर गुस्सा है। एकाएक वह आदमी मुखौटा उतार देता है। सब पहचानते हैं, वह प्रबंध समिति का अध्यक्ष है। गुस्से में भरे अध्यापक बदल जाते हैं। वे खुशामद करते हैं- हम तो पहले ही जानते थे कि ऐसा मजाक भैया जी के सिवा और कौन कर सकता है। हम भी गुस्से का नाटक कर रहे थे। वाह भैया जी…. क्या बात है…

कितनी करुण-मजबूरी है, अध्यापकों की !

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