चील की बेटी : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा
Cheel Ki Beti : Lok-Katha (Oriya/Odisha)
एक गाँव में एक अमीर कुम्हार था। उसकी कई बेटियाँ थीं। काफ़ी पूजा-पाठ करने के बाद भी उसे लड़का नहीं हो रहा था। एक दिन कुम्हार अपनी पत्नी को धमकाते हुए बोला, इस बार अगर लड़का नहीं होगा तो मैं तुम्हारा चेहरा नहीं देखूँगा।''
इंसान जो नहीं चाहता है, कई बार वही होता है। इस बार भी कुम्हारिन को लड़की पैदा हुई। क्या करे वह? उसे घर में रखेगी तो आफ़त। जल्दी से लड़की को हाँड़ी के अंदर रखकर मिट्टी का ढक्कन लगाकर नदी में बहा दिया।
एक केवट उसी नदी के किनारे मछली पकड़ रहा था। एक हाँड़ी को तैरता देखकर नाव से तुरंत वह हाँड़ी तक पहुँचकर उसे ले आया। ढक्कन खोलकर देखा तो उसके अंदर एक बच्ची रो रही थी। उसे हाथ में लेकर केवट लाड़-प्यार कर ही रहा था, ठीक उसी समय एक मादा चील झपट्टा मारकर उस बच्ची को ले गई। मादा चील बहुत दूर उड़ने के बाद एक पेड़ की डाली पर जाकर बैठी। उसने देखा कि वह मछली को नहीं, बल्कि एक इंसान के बच्चे को उठाकर ले आई है। वह बच्ची को अपने घोंसले में ले जाकर पालने लगी। किसी को कपड़ा या खाना ले जाते हुए देखती तो मादा चील झपट्टा मारकर उससे वह चीज़ें अपनी बेटी के लिए ले आती। राजकुमारी जब तालाब के किनारे ऐसे ही अपनी कई चीज़ें- साड़ी, ख़ुशबूदार तेल, सिंदूर, आलता, कपड़े, गहने आदि रखकर नहाती रहती तो मादा चील झपट्टा मारकर वह चीज़ें अपनी बेटी के लिए ले आती। इसी तरह से मादा चील के नीड़ में लड़की के दिन आराम से कट रहे थे।
यौवन के आते ही लड़की का चेहरा साफ़ दर्पण की तरह चमकने लगा। मादा चील एक दिन बोली, “बेटी, मैं तो जाने कितनी दूर-दराज़ तक आहार ढूँढ़ने के लिए जाती हूँ। तुम घर में अकेली रहती हो। अगर कभी कोई मुसीबत आए तो मुझे याद करके इस गीत को गाना, मैं आ जाऊँगी:
आ आ रे बयार आ जा
पीपल का पत्ता हिला जा
मेरी माँ को ले आ।”
एक दिन पेड़ की डाल पर बैठकर मादा चील की बेटी कंघी कर रही थी। उसके सात हाथ लंबे बाल नीचे लटक रहे थे। महाजन का लड़का उसी रास्ते से गुज़र रहा था। वह थोड़ी देर आराम करने के लिए उसी पेड़ के नीचे बैठ गया। उसी समय उसके सिर पर एक बाल आकर गिरा। महाजन का लड़का नापकर देखा तो सात हाथ लंबा बाल था। यहाँ तो कोई इंसान दिख नहीं रहा है। फिर यह बाल आया कहाँ से? ऐसा सोचकर ऊपर की तरफ़ नज़र डाली तो देखा एक दिव्य सुंदरी युवती बैठी है, “तू कौन है? अप्सरा है या प्रेतनी? देवी या फिर मानवी? क्यों तू पेड़ पर चढ़ी है?”
मादा चील की लड़की ने पहले कभी आदमी नहीं देखा था। क्या जवाब देना होगा, तय नहीं कर पाई, तब माँ को याद कर गाने लगी:
आ आ रे बयार आ जा
पीपल का पत्ता हिला जा
मेरी माँ को ले आ।
मादा चील हवा की गति से उड़कर लड़की के पास पहुँच गई और लड़की से पूछा, “क्यों पुकारा बेटी?” लड़की ने पेड़ के नीचे की तरफ़ इशारा किया। एक सुंदर युवक को पेड़ के नीचे बैठा देखकर मादा चील मन ही मन ख़ुश हो गई। यह मेरा दामाद होता तो अच्छा होता। महाजन के लड़के को बेटी का सारा इतिहास बताया। महाजन का लड़का बोला, “मेरे घर में काफ़ी धन-दौलत है। सात पत्नियाँ हैं। अगर तुम्हें कोई एतराज़ न हो तो तुम्हारी बेटी मेरी आठवीं पत्नी बनकर रहेगी।”
मादा चील महाजन के लड़के के प्रस्ताव पर राज़ी हो गई और महाजन के बेटे के साथ अपनी बेटी की धूम-धाम से शादी करवाई।
(साभार : ओड़िशा की लोककथाएँ, संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र)