चतुर सँपेरा : मोरक्को लोक-कथा

Chatur Sampera : Morocco Folk Tale

खुदा सुलतान जादी का भला करे कि एक बार उसका अपने महल में मन नहीं लग रहा था सो उसने अपने एक बाजा बजाने वाले को जिसका नाम मुहम्मद था बुलाया।

कुछ दिन उसने उस बाजा बजाने वाले के संगीत का आनन्द लिया और फिर अपने अच्छे मूड में आ गया। उसने फिर से हँसना शुरू कर दिया और सबसे हँसी मजाक करना शुरू कर दिया।

पर इस बात को बहुत दिन नहीं बीते थे कि वह अपने बाजा बजाने वाले से थक गया और उसने उस बदकिस्मत का सिर कटवा दिया।

फिर उसने अपने हार्प बजाने वाले को जिसका नाम जोसेफ था उसको बुलाया। पर कुछ दिनों में उसके हार्प का संगीत भी उसके कानों में चुभने लगा और उसने उस हार्प बजाने वाले का सिर भी कटवा दिया।

और भी बहुत सारे लोग सुलतान का दिल बहलाने के लिये आये पर हर बार वह केवल कुछ ही दिनों के लिये खुश होता उसके बाद वह फिर बेचैन और गुस्सा सा हो जाता। सो वह फिर अपने सिपाहियों को बुलाता और उनके सिर काटने का हुकुम दे देता।

ये हालात इतने बिगड़े कि अब उसके राज्य में हर आदमी बैठा बैठा काँपने लगता। हर आदमी यही सोचता कि पता नहीं कब सुलतान उसको बुला ले और फिर कुछ दिन बाद उसको तलवार से मारने का हुकुम दे दे।

जल्दी ही हर आदमी उस सुलतान के शहर को छोड़ छोड़ कर जाने लगा — कहानी कहने वाले, गाने बजाने वाले, नाचने वाले, मदारी आदि आदि।

लेकिन एक सुबह सेल्हम नाम का एक सँपेरा महल में आया और उसने बड़ी बहादुरी से यह ऐलान किया कि वह सुलतान का दिल बहलायेगा।

सुलतान के नौकर उसको सुलतान के पास ले आये। सुलतान ने भी उस सँपेरे की तरफ बड़े शौक से देखा जो अपनी बाँसुरी की धुन पर साँपों को खिलाता था। वह जब बाँसुरी बजाता था तो वे साँप उसके थैले, टाँगें और गरदन के चारों तरफ लिपट जाते थे।

उसने भी कुछ दिन सुलतान का दिल बहलाया पर बहुत दिन बीतने से पहले ही सुलतान का उससे भी दिल भर गया। वह अब उस सँपेरे को साँपों के साथ खेलते देखना नहीं चाहता था।

उस शाम सेल्हम जब अपनी बाँसुरी बजाने बैठा और उसके साँप इधर उधर घूमने लगे तो सुलतान बोला — “दोस्त, अब तुम्हारी यह बाँसुरी और तुम्हारे ये साँप काफी हो गये अब मैं अपने नौकरों को तुम्हारा सिर काटने का हुकुम दूँगा। ”

सेल्हम डर कर बोला — “जहाँपनाह, जैसे आपकी मरजी होगी वैसा ही होगा। पर आप मुझे एक मौका और दें। अगर आप मुझे एक मौका और देंगे तो यह आप ही के भले के लिये होगा। ”

सुलतान ने कहा — “ठीक है। मैं खुशी से तुमको एक मौका और दूँगा पर तुमको यह मौका मुझसे लेना पड़ेगा। तुमको यह मौका तब मिलेगा जब तुम कल मेरे सामने एक सवार और एक पैदल दोनों के रूप में एक साथ आओगे।

यह मेरा हुकुम है। और जो मेरा हुकुम नहीं मानते मैं उनको तलवार से मरवा दिया करता हूँ। ”

सेल्हम ने सुलतान को सिर झुकाया और चला गया। अगले दिन सुबह सवेरे उस सँपेरे को देखने से पहले सुलतान अपने छत पर खड़ा हुआ था।

जब महल के दरवाजे खुले तो सुलतान की आँखें तो फटी की फटी रह गयीं। वह कुछ बोल ही नहीं सका। सेल्हम एक बहुत ही छोटे से गधे पर चढ़ा दरवाजे में से हो कर अन्दर आ रहा था। इतना छोटा गधा सुलतान ने पहले कभी नहीं देखा था।

यह गधा इतना छोटा था कि कि सेल्हम के उस पर बैठने के बावजूद उसके दोनों पैर जमीन को छू रहे थे। सो जब वह सुलतान के सामने आया तो वह एक सवार भी था क्योंकि वह गधे पर सवार था और वह एक पैदल चलने वाला भी था क्योंकि उसके दोनों पैर जमीन से छू रहे थे।

सुलतान यह देख कर बहुत खुश हुआ और बोला — “बहुत अच्छे। तुमने वही किया जो तुम्हें करना था। पर अभी तुमने अपना काम पूरा नहीं किया है।

अगर तुम यह चाहते हो कि मैं तुमको तलवार वाले आदमी के हवाले न करूँ तो तुमको मेरे तीन सवालों के जवाब भी देने होंगे। मेरा पहला सवाल है – आसमान में कितने तारे हैं?”

सँपेरा बोला — “जहाँपनाह, आसमान में उतने ही तारे हैं जितने कि मेरे गधे के शरीर पर बाल हैं, उसकी पूँछ के बालों को छोड़ कर। आप चाहें तो गिन सकते हैं। ”

सुलतान उसकी तारीफ करते हुए बोला — “बहुत अच्छे। अब मेरा दूसरा सवाल है – हम धरती के कौन से हिस्से में हैं?”

सँपेरा बोला — “हम लोग धरती के बीच के हिस्से में है जहाँपनाह। ”

यह सुन कर सुलतान फिर हँस दिया और फिर बोला — “मेरा तीसरा और आखिरी सवाल। मेरी दाढ़ी में कितने बाल हैं?”

सँपेरा बोला — “आपकी दाढ़ी में उतने ही बाल हैं जितने बाल मेरे गधे की पूँछ में हैं। आप अपनी दाढ़ी कटवा दें और मैं अपने गधे की पूँछ कटवा देता हूँ फिर हम उनको साथ साथ गिन सकते हैं। ”

आखीर में सुलतान बोला — “नहीं नहीं, इसकी कोई जरूरत नहीं। तुम बहुत चतुर हो। ऐसा कोई सवाल नहीं जिसका जवाब तुम नहीं दे सकते। ”

उसने अपने एक दरबारी को बुलाया और उसको कुछ लाने के लिये कहा। कुछ ही देर में दरबारी वापस आया और उसने सेल्हम के हाथों में सोने के सिक्कों की एक थैली रख दी।

सँपेरे ने काफी झुक कर सुलतान को सलाम किया और बाहर खड़े अपने गधे के पास चला गया।

सुलतान एक बार फिर उस चतुर सँपेरे को अपने महल के दरवाजे से बाहर उस गधे पर सवार होते हुए और उसी समय पैदल चलते हुए देखने के लिये अपनी छत पर गया।

सेल्हम अपने उस छोटे से गधे पर सवार होते हुए और पैदल चलते हुए अपने घर की तरफ चलता चला जा रहा था।

(साभार : सुषमा गुप्ता)

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