चतुर रोहक : जगदीशचन्द्र जैन

उज्जयिनी नगरी के पास नटों का एक गाँव था। वहाँ भरत नाम का नट रहता था। उसके रोहक नाम का एक पुत्र था जो बड़ा बुद्धिमान था।

उज्जयिनी के राजा के चार सौ निन्यानबे मन्त्री थे, एक मन्त्री की कमी थी। राजा ने सोचा कि जो उसकी परीक्षा में सफल होगा, उसे वह प्रधानमन्त्री का पद देगा।

राजा ने गाँववालों को कहला भेजा कि गाँव के बाहर जो बड़ी शिला पड़ी हुई है, उसका एक मण्डप बनाकर तैयार करो। लोगों की समझ में न आया कि जमीन में गड़ी हुई शिला का मण्डप कैसे बनाया जाए? जब रोहक को मालूम हुआ तो उसने अपने पिता से कहा, “पिताजी, यह कोई बड़ी बात नहीं है। पहले शिला के चारों तरफ की जमीन खोदिए, और फिर चारों कोनों में चार खम्भे लगाकर शिला के नीचे की जमीन को खोद डालिए, शिला का मण्डप बन जाएगा।” लोगों ने ऐसा ही किया। राजा मण्डप देखकर बहुत प्रसन्न हुआ।

कुछ दिन बाद राजा ने गाँववालों के पास एक मेंढ़ा भिजवाया, और कहला भेजा कि यह मेंढ़ा पन्द्रह दिन बाद भी वजन में उतना ही रहे, न घटे न बढ़े। रोहक से पूछा गया। उसने मेंढ़े को एक भेड़िए के सामने बाँध दिया और उसे घास खिलाता रहा। घास खाते रहने से मेंढ़े का वजन घटा नहीं, और भेड़िए के डर से बढ़ा नहीं। इस प्रकार पन्द्रह दिन के पश्चात् राजा का मेंढ़ा उसे लौटा दिया गया।

एक दिन राजा ने एक मुर्गा भेजा और आदेश दिया कि बिना दूसरे मुर्गों की सहायता के इसे लड़ाकू बनाकर भेजो। रोहक ने मुर्ग़े के सामने एक बड़ा दर्पण रखा। मुर्ग़ा दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देखता और उसे दूसरा मुर्ग़ा समझ उसके साथ युद्ध करता। इस प्रकार मुर्ग़े को लड़ाकू बनाकर उसे लौटा दिया गया।

एक दिन राजा ने कहलवाया कि तुम लोग बालू की रस्सी बनाकर भेजो। रोहक ने गाँववालों से कहा कि तुम लोग राजा से जाकर कहो, “महाराज, यदि राजभवन में कोई बालू की रस्सी हो तो उसे नमूने के तौर पर भेज दें, उसे देखकर हम दूसरी रस्सी तैयार कर देंगे।”

कुछ दिन बाद राजा ने एक बूढ़ा हाथी भेजा और कहा कि इसके समाचार देते रहना, परन्तु यह आकर कभी न कहना कि हाथी मर गया है। संयोग से हाथी उसी रात को मर गया। अगले दिन रोहक से पूछकर गाँव के लोगों ने राजा से निवेदन किया, “महाराज, हाथी न कुछ खाता है, न पीता है, और न उसकी साँस ही चलती है।” राजा ने पूछा, “तो क्या हाथी मर गया है?” उन्होंने उत्तर दिया, “महाराज, यह तो हम नहीं कह सकते, आपके ही मुँह से यह शोभा देता है।”

एक दिन राजा ने कहलवाया कि गाँव के एक कुएँ को यहाँ शीघ्र भेज दो। रोहक ने उपाय बताया कि तुम लोग राजा से जाकर कहो, “पहले आप नगर के कुएँ को भिजवा दें, दोनों साथ-साथ चले आएँगे।”

कुछ दिन बाद राजा ने कहलवाया कि गाँव के पूर्व में स्थित वन को पश्चिम में बना दो। रोहक के कहने से सब लोग वन के पूर्व में जाकर रहने लगे। अतएव वह वन गाँव के पश्चिम में हो गया।

रोहक की बुद्धिमत्ता देखकर राजा बहुत चकित हुआ। उसने रोहक को बुलाया। परन्तु राजा की शर्त थी कि रोहक न शुक्ल पक्ष में आए, न कृष्ण पक्ष में, न रात को, न दिन को, न छाया में, न धूप में, न आकाश में होकर, न पैदल चलकर, न गाड़ी-घोड़े पर सवार होकर, न सीधे रास्ते, न उल्टे रास्ते, न नहाकर, न बिना नहाये, परन्तु आना उसे अवश्य चाहिए। जब रोहक को यह मालूम हुआ, तो उसने सुबह उठकर कण्ठ तक स्नान किया, और गाड़ी के पहियों के बीच एक मेंढ़ा जोत, उस पर सवार हो, चलनी की छतरी लगा, एक हाथ में मिट्टी का पिण्ड लेकर, अमावस के दिन, सन्ध्या के समय राजा के दर्शन के लिए चल पड़ा। रोहक को देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ, और उसने रोहक को अपने पास रख लिया।

एक दिन राजा ने रात्रि के प्रथम प्रहर में रोहक से पूछा, “रोहक, तू जागता है या सोता है?”

रोहक, “महाराज, जाग रहा हूँ।”

राजा, “क्या सोच रहा है?”

रोहक, “महाराज, सोचता हूँ कि पीपल के पत्ते का डण्ठल बड़ा होता है या उसके ऊपर का भाग?”

राजा, “तो क्या सोचा?”

रोहक, “दोनों बराबर है।”

यह कहकर रोहक सो गया।

रात्रि के दूसरे पहर में राजा ने फिर रोहक से पूछा, “रोहक, तू जागता है या सोता है?”

रोहक, “जाग रहा हूँ, और सोच रहा हूँ कि बकरी के पेट में मल गोल-गोल कैसे पैदा हो जाता है?”

राजा, “फिर क्या सोचा?”

रोहक, “वायु से।”

यह कहकर रोहक फिर सो गया।

रात्रि के तीसरे पहर में राजा ने फिर रोहक से पूछा, “रोहक, तू सोता है या जागता है?”

रोहक, “मैं जाग रहा हूँ और सोचता हूँ कि गिलहरी के शरीर पर कितनी काली रेखाएँ होती हैं और कितनी सफेद? और उसका शरीर लम्बा होता है या उसकी पूँछ?”

राजा, “तुमने क्या निर्णय किया?”

रोहक, “महाराज, जितनी उसके शरीर पर सफेद रेखाएँ होती हैं, उतनी ही काली होती हैं, और उसका शरीर और पूँछ दोनों बराबर हैं।”

यह कहकर रोहक फिर सो गया रात्रि के चौथे प्रहर में राजा ने फिर रोहक को आवाज दी। परन्तु रोहक गाढ़ी निद्रा में सो रहा था। उसने कोई उत्तर नहीं दिया। राजा ने उसे छड़ी की नोक से जगाकर पूछा, “रोहक, सोते हो या जागते हो?”

रोहक, “महाराज, जाग रहा हूँ।”

राजा, “क्या सोच रहे हो?”

रोहक, “सोच रहा हूँ आपके कितने पिता हैं?”

राजा, “कितने हैं?”

रोहक, “महाराज, पाँच। सुनिए, आपका पहला पिता है राजा, दूसरा है कुबेर, तीसरा चाण्डाल, चौथा धोबी और पाँचवाँ बिच्छू।”

राजा, “सो कैसे?”

रोहक, “देखिए, आप न्यायपूर्वक राज करते हैं, इससे आप राजा के पुत्र हैं। दान में आप कुबेर के समान हैं, इसलिए कुबेर के पुत्र हैं। क्रूरता में आप चाण्डाल के समान हैं, इसलिए आप चाण्डाल के पुत्र हैं। सबकुछ हरण करने में आप धोबी के समान है, अतएव धोबी के पुत्र हैं, और सोते हुए को आप छड़ी की नोक से उठा सकते हैं, अतएव आप बिच्छू के पुत्र हैं।”

राजा रोहक की बुद्धिमत्ता से अत्यन्त प्रसन्न हुआ, और उसे प्रधानमन्त्री का पद दे दिया।

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