चतुर छोरी : हरियाणवी लोक-कथा

Chatur Chhori : Lok-Katha (Haryana)

एक गरीब आदमी था। उसने एक सेठ से पांच हजार रुपये उधार लिए, इस वादे पर कि पांच वर्ष के बीतने से पहले वापिस कर दूंगा। पांच वर्ष बीत जाने के बाद भी जब उस व्यक्ति ने रुपए नही दिए तो सेठ ने अदालत में कचहरी में गुहार लगाई। राजा ने अपने कारिंदे को उस व्यक्ति के घर भेजा कि जाकर उसे बुला लाओ। लेकिन वहां वह व्यक्ति नहीं मिला। जब भी कारिंदा जाता, वह व्यक्ति बहाना बनाकर उसे वापिस भेज देता। एक दिन राजा फिर उस व्यक्ति के घर गया। वहां उसे उस व्यक्ति की एक छोटी बेटी मिली। राजा ने उससे पूछा, “तुम्हारा बापू कहां है?”

लड़की बोली, “राजा जी! मेरा बापू तो आसमान का पानी रोकने गए हैं।”

राजा ने फिर पूछा, “बेटी! तुम्हारा भाई कहां है?”

लड़की बोली, “जी, वो बिना लड़ाई किए लड़ने गया है।”

कारिंदे ने आजिज आकर पूछा, “बेटा! तुम्हारी मां कहां है?”

लड़की ने कहा, “वो तो एक से दो करने गई है।”

कारिंदा गुस्से में बोला, “फिर तू यहां बैठी क्या कर रही है?”

लड़की हंस कर बोली, “जी, मैं तो बैठी संसार को देख रही हूं।”

कारिंदे ने आकर सारी बात राजा को बात दी और कहा, “लगता है उसका दिमाग खराब है।” राजा को बड़ा अजीब लगा। उसने सोचा चल कर देखते हैं।

राजा ने आकर उससे पूछा तो वही जवाब मिले। राजा समझ गया कि लड़की यूं तो किसी बात का सीधा जवाब नहीं देगी, इसलिए मतलब जानने के लिए प्यार से फुसलाना पड़ेगा। राजा ने प्यार से पूछा, “बेटी! तुमने जो जवाब दिए, उनका मतलब क्या है? मैं मतलब नहीं समझ सका। तुम मुझे सीधे-सीधे उनका मतलब समझाओ।”

लड़की ने भी मुस्कुरा कर पूछा, “अगर मैं मतलब समझा दूं तो आप मझे क्या देंगे?”

राजा के मन में सारी बातों को जानने की तीव्र इच्छा जाग्रत हो चुकी थी। वो बोला, “जो मांगोगी, वही दूंगा।”

तब लड़की बोली, “अगर मेरे पिताजी का उधार चुका दें, तो मैं आपको सारी बातों का अर्थ बता दूंगी।”

राजा ने कहा, “मेरा वादा रहा।” लड़की बोली, “महाराज! आज मैं काम में लगी हूं, कल आएं।”

राजा अगले दिन फिर उस व्यक्ति के घर गया। आज वहां घर के सारे लोग मौजूद थे। वह आदमी, उसकी पत्नी, बेटा और उसकी बेटी भी। राजा को देखते ही लड़की ने पूछा, “महाराज! आपको अपना वचन याद है ना?”

राजा बोला, “हां, मुझे याद है। तुम अगर सारी बातों का अर्थ बता दो तो मैं तुम्हारे पिताजी का सारा कर्ज चुका दूंगा।”

लड़की बोली, “मैंने कल कहा था कि पिताजी स्वर्ग का पानी रोकने गए हैं। इसका अर्थ था कि वर्षा हो रही थी और हमारे घर की छत से पानी टपक रहा था। पिताजी पानी रोकने के लिए छत की मरम्मत कर रहे थे। अब आप कहेंगे कि वर्षा आसमान से गिरती है और यह भी सब मानते हैं कि स्वर्ग आसमान में ही है।

मेरी दूसरी बात, मेरा भाई बिना लड़े लड़ाई करने गया है। इसका अर्थ है कि वो खेत में कांटेदार झाड़ी की बाड़ लगाने गया है। अब बोझड़े काटेगा तो कांटे लड़ेंगे, उसे खरोंचे लगेंगी, जख्म हो जाएंगे। तो लड़ाई में ही तो जख्म होते हैं।

मेरी तीसरी बात तो याद होगी?”

राजा बोला, “हां, तुमने कहा था कि तुम्हारी मां एक के दो करने गई हुई है।”

लड़की बोली, “जी, वो चने दल कर दाल बनाने गई थी। तो दाल बनाना यानि दलना यानि एक चने को दो बनाना है या नहीं।”

राजा ने कहा, “चलो अब बताओ, तुम घर बैठे संसार कैसे देख रही थी?”

लड़की हंसती हुई बोली, “राजा जी! तो उस समय मैं भात पका रही थी और उसमें से एक चावल निकाल कर देख रही थी कि भात पूरी तरह पका है कि नहीं। इसका मतलब है कि कोई भी पकते भात से एक चावल देखकर जान लेता है कि पूरा चावल पका है कि नहीं। संसार को मैं घर बैठी देख रही थी।” यह कहकर लड़की चुप हो गई।

राजा ने लडकी की बद्धिमानी से प्रसन्न होकर कहा. “बेटी! तम वाकई बहुत चतुर हो। पर यह बातें तो तुम मुझे कल भी बता सकती थी, फिर तुमने मुझे आज क्यों बुलाया?”

लड़की हंसकर बोली, “मैं तो बता ही चुकी हूं कि कल जब आप आए थे तो मैं भात बना रही थी। अगर मैं बातों में लग जाती तो भात या तो कच्चा रह जाता या जल जाता, तो मां मुझे पीटती। फिर घर में कल कोई भी नहीं था। अगर मैं बताती कि आपने कर्ज माफ कर दिया है तो मेरी बात का कोई विश्वास नहीं करता। आज स्वयं आपके मुंह से सुनकर इन्हें इसका विश्वास हो जाएगा। वहीं खुशी भी होगी।”

राजा लड़की की बात सुनकर बहुत ही प्रसन्न हुआ। उसने जेब से 10 अशर्फियां निकालकर लड़की को दी और उसके पिता का कर्ज शाही खजाने से दिलवा दिया। साथ ही उसने लड़की की पढ़ाई हेतु वजीफा भी बांध दिया।

(डॉ श्याम सखा)

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