चतुर बेटी : उज़्बेक लोक-कथा
Chatur Beti : Uzbek Folk Tale
बहुत समय पहले एक बूढ़ा अपनी बारह साल की लड़की के साथ रहता था। संपत्ति के नाम पर बूढ़े के पास एक ऊँट, एक घोड़ा और एक गधा ही थे। बूढ़ा पहाड़ से लक़ड़ी काटकर शहर में बेचता और उसकी बेटी घर संभालती ।
एक बार बूढ़ा अपने ऊँट पर लक़ड़ी लादकर बाजार पहुँचा । एक मोटा ज़मींदार उसके पास आया और पूछने लगा :
"लक़ड़ी क्या भाव बेचोगे ?"
बूढ़े ने तीन तंगा1 माँगे ।
मोटा जमींदार बोला :
"तुम 'सारे' का दस तंगा लो और लक़ड़ी मेरे घर पहुँचा दो ।"
बूढ़ा खुशी-खुशी लक़ड़ी लेकर मोटे जमींदार के घर पहुँचा ।
बूढ़े को वायदे के अनुसार दस तंगा मिल गये । उसने लक़ड़ी जमीन पर डाली और जाने लगा।
अचानक मोटा जमींदार बोला :
"ऊँट यहीं बाँध जाओ !"
बूढ़ा चक्कर में पड़ गया :
"ऊँट तो मेरा है ।"
"नहीं,"। मोटा जमींदार बोला। "मैंने सौदा ऊँट सहित 'सारा' खरीदा है। अगर ऐसा न होता, तो भला मैं तुम्हारे जैसे बेवकूफ़ को दस तंगा देता ।"
वे लोग काफ़ी समय तक बहस करते रहे और अंत में निर्णय के लिए काजी के पास पहुँचे ।
काजी ने बूढ़े से पूछा :
"क्या यह सच है कि तुम ने 'सारे' माल का सौदा किया था ? "
"हाँ, पर मेरे ऊँट की कीमत तो तीन सौ तंगा है ।"
"अब मैं कुछ नहीं कर सकता। ग़लती तुम्हारी है, तुम्हें 'सारे' का सौदा नहीं करना चाहिए था ।"
काजी ने ऊँट मोटे जमींदार को दिलवा दिया और बेचारा बूढ़ा आंखों में आँसू भरे अपने घर पहुँचा।
उसने अपनी बेटी को इस बारे में कुछ नहीं बताया ।
दूसरे दिन बूढ़ा अपने घोड़े पर लक़ड़ी लादकर फिर बाजार आया। मोटा जमींदार भी वहीं मौजूद था।
"लक़ड़ी क्या भाव है ?"
"तीन तंगा ।"
मोटा जमींदार बोला : " 'सारे' माल का दस तंगा दूँगा।"
बूढ़ा कल की बात बिलक़ुल भूल गया और उसने सौदा मंजूर कर लिया ।
बूढ़े को घोड़े से भी हाथ धोने पड़े।
वह बहुत दुःखी होकर घर पहुँचा, पर बेटी को उसने फिर भी कुछ नहीं बताया। तीसरे दिन बूढ़ा अपने गधे पर लक़ड़ी लादकर बाजार रवाना होनेवाला ही था कि बेटी बोली :
"पिता जी, कल आप बिना घोड़े के वापस लौटे थे और परसों बिना ऊँट के आज लोग आपसे गधा भी छीन लेंगे। आज लक़ड़ी बेचने मैं जाऊँगी।"
बूढ़ा मान गया। लड़की लक़ड़ी गधे पर लादे बाजार पहुँची। मोटा जमींदार आया और पूछने लगा :
"लक़ड़ी क्या भाव है ?"
लड़की ने तीन तंगा माँगे ।
मोटा ज़मींदार बोला :
" 'सारे' माल का पाँच तंगा दूँगा ।"
लड़की बोली :
आप क्या लक़ड़ी के बदले में 'सारा' एक साथ देंगे ?"
"ठीक है, मुझे मंजूर है । लक़ड़ी लेकर मेरे घर आओ।"
जमींदार के घर पहुँचकर लड़की ने लक़ड़ी जमीन पर डाल दी और पूछने लगी : "आपके गधे को कहाँ बाँधूँ ?"
मोटे जमींदार ने उसे जगह बता दी ।
लड़की ने गधा बाँधकर लक़ड़ी की कीमत मांगी।
मोटे जमींदार ने कीमत देने के लिए हाथ लड़की की ओर बढ़ाया ही था कि उसने फट से जमींदार का हाथ पकड़ लिया और कहने लगी :
"जब हमने सौदा तय किया था, तो आपने कहा था कि आप लक़ड़ी के बदले में 'सारा' एक साथ देंगे। अब मैं पैसे आपके हाथ सहित लूँगी।"
उनमें बहस होने लगी। शोरगुल सुनकर पड़ोसी दौड़े आये और उन दोनों को लेकर काजी के पास पहुँचे ।
काजी ने बहुत घुमा-फिराकर बात की मोटे जमींदार को बचाने के लिए हजारों चालें चली, पर लड़की अपनी बात पर अड़ी ही रही।
लोग चिल्लाने लगे :
"लड़की सच कहती है ! लड़की चतुर है !"
क़ाज़ी ने काफ़ी देर सोचकर फ़ैसला किया : "तुम अपना हाथ उसे दे दो।" मोटा ज़मींदार रोने-चिल्लाने लगा : "मैं बिना हाथ के जिंदा कैसे रहूँगा ।"
"अच्छा, तो फिर हाथ के बदले में ५० अशरफियाँ दो ।"
मोटे ज़मींदार को गिनकर पचास अशरफ़ियाँ लड़की को देनी पड़ीं।
मोटे जमींदार से रहा नहीं गया और वह बोल उठा :
"अच्छा, आओ हम दोनों शर्त लगाते हैं। जो झूठ बोलने में बेहतर साबित होगा, हारनेवाला उसे पचास अशरफ़ियाँ और देगा ।"
"ठीक है,” लड़की बोली, "पर जमींदार साहब आप मुझसे उम्र में बड़े हैं इस लिए आप ही शुरू कीजिये ।"
मोटा जमींदार आराम से बैठ गया, खाँसा और बोलने लगा : "एक बार मैंने गेहूं बोया । उस बार मेरी फ़सल इतनी अच्छी हुई कि जो भी मेरे खेत में ऊँट या घोड़े पर चढ़कर घुसता, तो दस दिन तक बाहर निकलने का रास्ता नहीं ढूंढ़ पाता। एक बार मेरे खेत में चालीस बकरे घुस आये और खो गये। जब गेहूँ पक गया, तो मैंने फ़सल काटने के लिए मजदूर लगाये । गेहूँ काटा गया, गाह लिया गया, पर बकरों का कोई निशान भी नहीं मिला। एक बार मैंने अपनी पत्नी को रोटी पकाने के लिए कहा और खुद बैठकर कुरान पढ़ने लगा। जब रोटी पक गयी, तो मैंने एक टुकड़ा तोड़ा और खाने लगा। अचानक मेरे दाँतों के बीच में से 'में-में' की आवाज़ आयी। फिर मेरे मुंह में से एक बकरा निकलक़र भागा और उसके बाद एक-एक करके बाकी बचे ३६ बकरे भी भाग निकले। बकरे इतने मोटे हो गये थे कि हर बकरा चार साल के साँड़ जैसा दिखाई देता था ।"
लड़की ने ताली पीटी और हँसकर बोली :
"बहुत अच्छे ! आपने तो एक सच्चा किस्सा सुनाया। ऐसी घटनाएं तो दुनिया में रोजाना होती रहती हैं। अब आप मेरा किस्सा सुनिये। एक बार मैंने गाँव के बीचोंबीच जमीन खोदी और इसमें कपास का सिर्फ़ एक बीज बो दिया। आपके ख्याल से क्या पैदा हुआ ?.. एक बहुत ही बड़ा पेड़, जिस की छाया गाँव के चारों ओर एक दिन के सफ़र के बराबर दूरी तक पड़ती थी। जब कपास पक गयी, तो मैंने उसको चुनने के लिए पाँच सौ हट्टी-कट्टी, फुर्तीली औरतें लगायीं । साफ़ की हुई कपास बेचकर मैंने चालीस बड़े ऊँट खरीदे और उन पर क़ीमती कपड़ों के थान लादकर अपने दो भाइयों के साथ बुखारा भेजा। तीन साल से मुझे उनकी कोई खबर नहीं थी। अभी कुछ दिन पहले ही मुझे उनके मारे जाने का बुरा समाचार मिला है। अब आप लोग ही फ़ैसला करें," उसने आस-पास खड़े लोगों से चिल्लाकर कहा । "इस मोटे जमींदार ने मेरे मंझले भाई का लबादा पहन रखा है, जिसे पहनकर वह बुखारा गया था। यानी इसी जमींदार ने ही मेरे भाइयों की हत्या करके उनकी सारी चीजें और सारे ऊंट हथिया लिये !"
मोटा जमींदार दुविधा में पड़ गया अगर वह लड़की की कहानी सच माने तो उस पर हत्या का मुक़दमा चलाया जायेगा और उसका सिर काट दिया जायेगा और अगर कहे कि उसकी बात झूठी है, तो शर्त के अनुसार उसे ५० अशरफ़ियाँ देनी होंगी।
उसने काफ़ी देर सोच-समझ लेने के बाद गिनकर पचास अशरफियाँ लड़की को दे दीं, और बोला :
"मैं अपने जीवन में पहली बार बेवकूफ़ बना हूँ।"
और लड़की अपना ऊँट, घोड़ा और गधा लेकर हँसी-खुशी अपने पिता के पास चली गयी।
1. तंगा चांदी का सिक्का ।