चतुर बन्दर : बुंदेली लोक-कथा
Chatur Bandar : Bundeli Lok-Katha
एक नदी थी।उस नदी के किनारे गूलर का एक विशाल पेड़ था, जिसकी जड़ें दूर तक फैली थीं, कुछ जड़ें तो नदी में भी चली गईं थीं।
नदी साल भर कल कल बहती।
गूलर के उस पेड़ अनेक पक्षियों का बसेरा था।उसी पेड़ पर एक बंदर भी रहता था।बन्दर और पक्षी, कुछ उसी पेड़ से, कुछ इधर उधर से भोजन जुटाते, नदी में पानी पीते और मस्त रहते।
कुछ दिनों बाद नदी में कहीं से एक मगरमच्छ आ गया।बन्दर से उसकी मित्रता हो गयी, दोनों घण्टों बतियाते।
दोस्ती तो थी पर मगरमच्छ की नीयत हमेशा पक्षियों या बन्दर का भोजन बना लेने की बनी रहती।
उड़ने वाले पक्षियों को भोजन बनाना कठिन समझ कर मगरमच्छ ने बन्दर पर ही ध्यान केंद्रित किया।
मगरमच्छ को मालूम था कि बन्दर नदी में पानी पीने के लिए रोज नीचे आता है सो एक दिन वह घात लगाकर पानी में छिप कर बैठ गया।
बन्दर पानी पीने आया जैसे ही उसने नदी में दो कदम रखे कि मगरमच्छ ने लमक कर उसका एक पैर जकड़ लिया।
बन्दर स्थिति भाँप गया पर उसने आपा नहीं खोया, धैर्य रखा।वह बोला, 'मगर मामा आज सवेरे सवेरे आप मेरे पैर क्यों छूना चाहते हैं, क्या रहस्य है, मामे ?....लेकिन मामा आप हैं बड़े बुद्धू।"
" क्यों ?'
बन्दर झूमता हुआ मस्ती में बोला-
"मगर मामा, मगर मामा बड़े नकली।
मेरे पैर के धोखे में जड़ पकड़ी।।"
मगरमच्छ हड़बड़ा गया और उसने बन्दर का पैर छोड़कर नदी में पास ही में फैली गूलर की जड़ कस कर पकड़ ली।
अपना पैर छूटते ही बन्दर छलाँग मारते हुए भाग कर पेड़ पर चढ़ गया और आँखे मटकाते हुए बोला-
मगर मामा, मगर मामा बड़े असली।
मेरा पैर छोड़ कैं जड़ पकड़ी।।
(साभार : डॉ आर बी भण्डारकर)