चार दोस्त : हरियाणवी लोक-कथा
Char Dost : Lok-Katha (Haryana)
चार पक्के दोस्त थे। एक खाती था, एक दर्जी था, एक सुनार था और एक ब्राह्मण था। उनमें से किसी का काम नहीं चल रहा था। थे तो गुणी पर किस्मत आड़े आ रही थी। चारों ने मशविरा किया की हमारी, हमारे हुनर की यहाँ कद्र नहीं है, क्यों न परदेश जाकर किस्मत आजमाएं। यह सोचकर वे घर से निकल पड़े। पुराना जमाना था, पैदल जा रहे थे, चलते-चलते शाम हो गयी तो एक कुँए के पास रात-वासे के लिए ठहर गए।
भोजन के बाद सोने की तैयारी करने लगे। सुनार बोला, दोस्तों जंगल में जानवरों, चोर-उच्चकों का आना-जाना लगा रहता है, कहीं जानवर हमें खा जाए या चोर पूँजी चुरा ले, अतः हमें एक-एक पहर जाग कर पहरा देना चाहिए।
सब ने कहा, “हाँ भाई, ठीक कहते हो। हमको बारी-बारी से पहरे पर जागना चाहिए।”
लॉटरी निकाली गई, पहरे पर सबसे पहले खाती की बारी आई। वह जागने का प्रयत्न करने लगा किन्तु थकावट के कारण उसको नींद आने लगी। उसने सोचा कुछ काम करना चाहिए। खाती ने एक सूखे पेड़ से लकड़ी का टुकड़ा लिया, औजार निकाले, पहरा खत्म होते-होते उसने लकड़ी की एक खूबसूरत सुन्दर पुतली बना दी। पहरखत्म होते ही दर्जी को जगाकर खुद सो गया।
दर्जी ने देखा पुतली तो बहुत खूबसूरत है, उसने पोटली से रंग-बिरंगे कपड़े निकाले। पुतली का नाप लिया और पहर खत्म होते-होते चोली और घेरदार घाघरा तैयार कर पुतली को पहना दिया, ऊपर से लाल चुन्दडी ओढा कर पुतली खड़ी कर दी।
आधी रात के बाद बारी आई सुनार की, सो, वो क्यों पीछे रहता, उसने सोने के बोरला, झेला, कर्णफूल, नथ, हँसली, हार, चूड़ियाँ, चांदी की बाजनी पाजेब घड कर पुतली को पहना दिए। पुतली गहनों-कपड़ों में बहुत जीती-जागती युवती दिखने लगी।
चौथे पहर ब्राह्मण की बारी आई। वह पुतली को देखकर विचार में पड़ गया। उसने सोचा इन तीनों ने तो अपने हुनर का कमाल दिखा दिया, मझे भी कुछ करना चाहिए। वह मन्त्र बोलता हुआ उस पर जल छिड़कने लगा। सुबह होते-होते पुतली जीवित होकर सुन्दर युवती बन गई।
सवेरा होते ही सभी जाग गए और सुन्दर लड़की को अपने पास देखकर आश्चर्य करने लगे। फिर युवती पर हक जताकर आपस में झगडने लगे।
ब्राह्मण ने कहा, “मैंने इसे अपने मन्त्र-बल से जीवित किया है, भला मेरे जीवित करने से पहले यह एक काठ की पुतली ही तो थी इसलिए इस पर मेरा अधिकार है। मैं ही इसके साथ विवाह करूँगा।”
खाती बोला, “वाह जी! यह कैसे हो सकता है? पुतली तो मैंने बनाई थी अगर मैं पुतली न बनाता तो आप क्या कर लेते।” इसपर पहला हक मेरा है।
दर्जी बोला, “इसके कपड़े तैयार किए हैं। भला बेलिबास काठ की पुतली को पंडित जीवित करने की सोचता भी।”
अतः हक मेरा है, इसके साथ तो मैं ही विवाह करूँगा।”
सुनार ने कहा, “भाइयों! मैंने हजारों रुपयों का सोना खर्च करके इसके लिए गहने बनाए हैं। अब कैसे हो सकता है कि यह दूसरे के घर चली जाए? इसके साथ तो मैं ही विवाह करूँगा।”
चारों को लड़ते-झगड़ते देखकर कुछ राहगीर रुक गए। समझदार बूढ़ा बोला, “भाई, क्यों लड़ते हो? चलो राजा के पास चलते हैं, वह बहुत न्याय प्रिय है, सही न्याय करेगा।
सब पुतली को लेकर राज दरबार पहुँच गए। राजा ने कहा, पूरा मामला समझाकर कहो।” चारों ने बारी-बारी से अपने बयान दिए और लड़की के साथ विवाह करने का अपना अधिकार जताया।
राजा ने सबकी बातें समझकर अपने गुणी मंत्री से सलाह कर फैसला दिया, “खाती ने पुतली बनाई और ब्राह्मण ने इसको जीवित किया इसलिए दोनों इसके पिता समान हुए। भला पिता व पुत्री का भी विवाह होता है कहीं। अतः दोनों में से किसी का भी विवाह इस लड़की के साथ नहीं हो सकता। रही बात दर्जी की इसने कपड़े तैयार किए हैं। यह काम मामा का होता है। विवाह पर मामा “पीहर से भात के रूप में कपड़े लाता है। अत: मामा से विवाह नहीं हो सकता। अब बचा सुनार, विवाह करने वाला व्यक्ति ही वधु के गहने लाता है। गहने पहनाने वाला सुनार है। इस लड़की से विवाह सुनार ही कर सकता है।”
सबको यह न्याय स्वीकार करना पड़ा। सुनार ने लड़की से विवाह कर लिया।
(डॉ श्याम सखा)