चाँग कू लाओ का इम्तिहान : चीनी लोक-कथा
Chang Ku Lao’s Test : Chinese Folktale
चाँग कू लाओ एक बड़ा अक्लमन्द बूढ़ा था। उसका दिमाग बहुत तेज़ सोचता था। उसके तीन बेटे थे पर वे तीनों बहुत ही बेवकूफ और आलसी थे।
उसके दो बड़े बेटों की शादी हो चुकी थी और उनकी पत्नियाँ भी इत्तफाक से उतनी ही बेवकूफ थीं जितने बेवकूफ उसके बेटे थे। उसको मालूम था कि उसके बेटे अपनी बेवकूफी की वजह से अपनी देखभाल तो कर नहीं सकते थे तो फिर वे घर की देखभाल कैसे करेंगे यही सोच सोच कर वह बहुत चिन्तित रहता था कि उसके मरने के बाद उन सबका क्या होगा।
यह सब सोच कर उसने तय किया कि अपने तीसरे कम अक्लमन्द बेटे के लिये वह एक बहुत अक्लमन्द बहू देख कर लायेगा।
उसने ऐसी अक्लमन्द लड़की की बहुत तलाश की पर उसके लिये उसको कोई ऐसी ठीक सी लड़की ही नहीं मिल पा रही थी। अपने परिवार की भलाई के लिये फिर उसने एक तरकीब सोची और उसके अनुसार उसने पहले अपनी दोनों बड़ी बहुओं का इम्तिहान लेने का फैसला किया। उसने सोचा कि शायद इस तरह से वह उनमें अक्लमन्दी की कोई चिनगारी ढूँढ लेगा।
सो गर्मी के मौसम की एक सुबह को उसने अपनी दोनों बहुओं को बुलाया और उनसे कहा — “काफी दिन हो गये है तुम लोगों को अपने माता पिता के घर गये हुए। और मैं समझता हूँ कि तुम लोगों को उनकी याद भी आ रही होगी। है न?”
दोनों लड़कियों ने अपना सिर हाँ में हिलाया और उस बूढ़े ने अपनी बात जारी रखी — “तो तुम लोग जल्दी से अपना अपना सामान तैयार कर लो और अपने माता पिता के घर चली जाओ। पर जब मैं तुमको वापस आने के लिये कहूँ तुम लोग तभी चली आना।”
“जी पिता जी।”
वह फिर बोला — “बड़ी बहू, तुम तीन पाँच दिन रह सकती हो और छोटी बहू तुम सात आठ दिन रह सकती हो।” यह सुन कर दोनों लड़कियाँ इतनी खुश हुईं कि उन्होंने बिना सोचे समझे कि उनके ससुर ने उनसे क्या कहा था हाँ में बहुत ज़ोर से अपना सिर हिलाया और कमरे में से बाहर जाने लगीं।
जैसे ही वह कमरे से जाने लगीं तो चाँग कू लाओ ने उनसे एक बात और कही — “मैं चाहता हूँ कि तुम लोग जब वापस आओ तो मेरे लिये कोई भेंट जरूर ले कर आना। तुममें से एक मेरे लिये कागज में लिपटी आग ले कर आना और दूसरी मेरे लिये बिना टाँगों का मुर्गा।”
अब तक तो वे दोनों लड़कियाँ जाने के लिये इतनी ज़्यादा उतावली हो गयी थीं कि वे अपने ससुर की कही भेंटों पर भी राजी हो गयीं। हालाँकि उन्होंने उनके बारे में यह विचार भी नहीं किया कि वे भेंटें क्या हैं और वे उन्हें कैसे ले कर आयेंगीं।
केवल जब वे लड़कियाँ गाँव के बाहर सड़क पर एक दूसरे को बाई बाई कर के जा रही थीं तब उन्होंने एक दूसरे से पूछा कि वे किस बात पर अपने ससुर से हाँ कर के आयी हैं।
बड़ी बहू बोली — “मैं अपने मायके से तीन पाँच दिन में कागज में लिपटी आग साथ ले कर वापस लौटने के लिये कही गयी हूँ। पर मुझे तो यह बिल्कुल भी पता नहीं कि इस बात का क्या मतलब है।”
छोटी बहू बोली — “मेरा भी यही हाल है। मुझे भी नहीं पता कि ससुर जी मुझसे क्या चाहते हैं। और अगर मैं ठीक समय पर ठीक भेंट के साथ वापस न आयी तो वह समझेंगे कि मैं बेवकूफ हूँ।”
सो वे दोनों लड़कियाँ वहीं बैठ गयीं और अपनी अपनी गुत्थियाँ सुलझाने लगीं और तब तक उन गुत्थियों को सुलझाने की कोशिश करती रहीं जब तक कि उनका सिर दर्द नहीं करने लगा और फिर भी उनको उनका जवाब नहीं मिला।
यह सब देख कर छोटी बहू तो रोने लगी और थोड़ी देर बाद बड़ी बहू भी अपने आँसू नहीं रोक सकी।
दोनों बैठी वहाँ रो रहीं थीं कि वहाँ से एक सूअर मारने वाला कसाई और उसकी बेटी फ़ुंग कू गुजरे। उन दोनों को उन भोली भाली लड़कियों को रोते देख कर उन पर दया आ गयी तो फ़ुंग कू उनके पास गयी।
उसने उनसे पूछा — “क्या बात है, तुम लोग क्यों रो रही हो क्या तुम लोगों को किसी ने कुछ कहा है?”
बड़ी बहू बोली — “नहीं ऐसा तो नहीं है पर बात इससे भी कुछ ज़्यादा ही बुरी है। और सबसे बुरी बात तो यह है कि हम जब तक अपनी गुत्थी का हल न पा लें तब तक हम घर भी नहीं जा सकते।”
और उसके बाद उन दोनों लड़कियों ने अपनी अपनी कहानी उस लड़की को सुना दी।
फ़ुंग कू ने उनको तसल्ली देते हुए कहा — “तुम लोग चुप हो जाओ। रोने से गुत्थी का हल नहीं निकलेगा इसलिये रोओ नहीं। तुम्हारी गुत्थियों का हल बहुत आसान है। अगर हम तीन और पाँच को गुणा करें तो जवाब आता है पन्द्रह, सो तुम अपने मायके में पन्द्रह दिन के लिये रह सकती हो।
और अगर हम सात और आठ को जोड़ें तो भी जवाब आता है पन्द्रह। सो तुम भी पन्द्रह दिन के लिये अपने मायके में रह सकती हो। इसका मतलब यह है कि तुम दोनों पन्द्रह पन्द्रह दिन अपने अपने मायके में रह सकती हो।
और भेंटों की भी तुम चिन्ता न करो। कागज में लिपटी आग लालटेन को कहते हैं और बिना टाँग का मुर्गा एक ऐसा खाना है जो बीन के दही से बनता है। तुम समझ गयीं न?”
दोनों लड़कियाँ फ़ुंग कू की बात सुन कर बहुत ही खुश हो गयीं और उसको बहुत बहुत धन्यवाद दे कर वे अपने अपने रास्ते चली गयीं।
पन्द्रह दिन बाद जैसा कि चाँग कू लाओ ने कहा था उसके कहे अनुसार उसकी भेंटों के साथ वे लड़कियाँ घर लौटीं। चाँग कू लाओ उनकी तुरत बुद्धि से बड़ा खुश हुआ। उसको लगा कि उसने अपनी बहुओं को बेवकूफ समझ कर गलती की थी।
पर उन दोनों लड़कियों से सच छिपाया नहीं गया, बेवकूफ थीं न वे? और उन्होंने रास्ते में एक कसाई और उसकी लड़की के मिलने की बात अपने ससुर को बता दी। और यह भी बता दिया कि यह सब उसी लड़की ने उनको बताया था।
चाँग कू लाओ बोला — “अगर तुम लोग सच बोल रही हो तो इसका मतलब यह है कि वह लड़की बहुत अक्लमन्द लड़की होगी। और इसका मतलब यह भी है कि वह लड़की मेरे तीसरे बेटे की बहू बनने के लायक है।”
बस अगले दिन सुबह को चाँग कू लाओ उस कसाई से मिलने चल दिया पर जब तक वह उसकी दूकान पर पहुँचा तब तक वह कसाई तो बाजार जा चुका था सो उसकी बेटी फ़ुंग कू दूकान पर अकेली ही थी।
जब उस कसाई की बेटी ने चाँग कू लाओ को दूकान पर देखा तो उसने उससे बड़ी इज़्ज़त से पूछा — “नमस्ते सर, मैं आपके लिये क्या कर सकती हूँ?”
चाँग कू लाओ बोला — “मुझे एक पौंड एक ऐसी खाल चाहिये जो दूसरी खाल के सहारे से लगी हो और एक पौंड खाल ऐसी चाहिये जो दूसरी खाल को मार रही हो।”
यह सुनते ही फ़ुंग कू तुरन्त ही वहाँ से दूकान के पीछे अँधेरे में गायब हो गयी। पर तुरन्त ही वह वापस भी आ गयी और उसने कमल के पत्तों में लिपटे दो पैकेट उसको ला कर दे दिये।
चाँग कू लाओ ने एक पैकेट खोला तो उनमें से एक पैकेट में सूअर के कान थे और दूसरा पैकेट खोला तो उसमें सूअर की पूँछ थी।
एक बार फिर से उस लड़की ने अपनी अक्लमन्दी से चाँग कू लाओ की पहेली सुलझा दी थी। उसने तुरन्त ही अपना इरादा बना लिया था कि यही वह लड़की थी जिससे वह अपने तीसरे बेटे की शादी करेगा।
चाँग कू लाओ वह दोनों पैकेट ले कर घर चला गया और घर जा कर उसने देवताओं का पूजन किया। फिर उसने शादी करवाने वाले को बुलाया। उससे इस शादी की इजाज़त लेने के बाद गाँव के सरदार से शादी की शर्तें लिखवायी गयीं और उसने उस लड़की की शादी अपने तीसरे बेटे से कर दी।
शादी की बहुत बढ़िया दावत दी गयी। शादी के बाद फ़ुंग कू एक बहुत ही अच्छी पत्नी साबित हुई। उसकी अक्लमन्दी से घर में सब लोग मेल से रहे।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)