चाँदनी के पैसों का पेड़ (बाल कहानी) : अनुराधा प्रियदर्शिनी
Chandani Ke Paison Ka Ped (Baal Kahani) : Anuradha Priyadarshini
प्रातः काल की बेला पूस का महीना कोहरे की चादर छाई हुई थी ठंड से सारे प्राणी से सिकुड़े से पड़े थे सूरज मानो अपनी राह भूल चुका था। तभी एक सत्तर साल की बुढ़िया चुल्हे में आग की चिंगारी सुलगाती है और अपनी पोती को जगाती है। उठो बिटिया उठो स्कूल जाना है।चाँदनी भी चहकती हुई उठ जाती है और अपनी दादी को प्यार करती है वो अपनी दादी की हरसंभव मदद करने का प्रयास करती है और बेवजह उनसे कोई जिद नहीं करती । सुबह जल्दी जल्दी तैयार होती है और अपने ही गांव के अन्य बच्चों के साथ स्कूल पहुंच जाती है।जब गांव के लोग उसकी और उसके दादी की दयनीय स्थिति का मजाक बनाने का प्रयास करते हैं तो चांदनी के लिए असहनीय हो जाता है उसको मालूम है दादी ने बहुत संघर्ष किया है और वो अपनी दादी को खुश देखना चाहती है। परिस्थितियों ने उस आठ साल की चाँदनी को बहुत ही समझदार बना दिया था। स्कूल से लौटकर वो अपना गृहकार्य बिना बोले ही पूरा करती है फिर बैठ जाती है दादी के पास उनके किस्से और कहानियाँ सुनने उसको असीम आनंद प्राप्त होता था अपनी दादी के मुँह से एक ही कहानी रोज रोज सुनना। दादी थी तो पुराने जमाने की परंतु सोच आधुनिक थी उनको भी किताबों का बहुत शौक था और वो हर साल प्रयाग के माघ मेले में जाती थी और वहां से नयी नयी धार्मिक किताबें लाया करती थी। वक्त के साथ उनकी दृष्टि कमजोर हो गई थी तो चाँदनी उन्हें उन किताबों को पढ़कर सुनाया करती थी। कभी राम तो कभी बुद्ध की कहानी यही उसका नियम था।आज का दिन थोड़ा विशेष था आज शहर से उसके मम्मी पापा आने वाले थे चाँदनी के तो पैर ही जमीन पर नहीं रूक रहे थे वो इस पड़ोस और स्कूल में सभी को बता चुकी थी और बहुत ही खुश थी लेकिन शाम होने वाली थी और जब कोई नहीं आया तो वो निराश हो गई थी और अपनी दादी के आँचल में छिपकर सुबक रही थी और दादी चाँदनी को भिन्न-भिन्न के दिलाशे दे रही थी और अपनी दादी से बात करते हुए चाँदनी कब सो गई उसको ख्याल ही नहीं था।
उसने दादी से बोला भी अब जब मम्मी आएंगी वो उनसे बात नहीं करेगी दादी भी मुस्कुरा कर रह गई। धीरे-धीरे समय गुजरता गया और करीब 15 दिनों के पश्चात उसकी मम्मी और पापा घर आए । चाँदनी दौड़कर मम्मी के गले लग गई और उनसे अपने गिफ्ट देखने लगी पैरों की पायल रूनझुन बजती हुई और एक बहुत ही सुन्दर सी फ्राक मम्मी ने चाँदनी को दिया। उसके आँखों में खुशियों की झलक देखी जा सकती थी।एक तो माँ का साथ मिला और इतने सारे उपहार।चाँदनी कुछ सोचकर बाहर जाती है और उसके हाथ में एक सिक्का भी था वो कनेर के पेड़ के नीचे ही एक छोटा सा गढ्ढा करती है और उसमें वो सिक्का रखकर मिट्टी से दबा देती है उसने देखा था किस भांति बीज से पौधा निकलता है और फल देता है और वो पैसों का पेड़ लगा रही थी जिससे फल के रूप में पैसे मिलते और उसको अपने मम्मी पापा और दादी सबके साथ रहने का मौका मिलता।वो बिना किसी को बताए समय समय पर वहां पानी भी देती लेकिन पैसे का बीज अंकुरित ही नहीं हो रहा था । धीरे-धीरे समय बीतता गया और सब पहले की भांति हो गया चाँदनी की मम्मी वापस शहर चली गई जहाँ उसके भाई और छोटी बहन मम्मी पापा के साथ रहती थे वही केवल रह गई अपनी दादी के साथ । इस बार मम्मी ने कहा था तुम्हारी प्राथमिक शिक्षा पूरी हो जाए फिर तुम भी हमारे साथ चलना शहर में। लेकिन चाँदनी दादी को छोड़कर नहीं जाना चाहती थी।उसको मालूम था दादी का संघर्ष और वो उन्हें अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी। और आशा भरी निगाहों से अपने लगाए पैसों के पेड़ को देखती है कब ये वृक्ष बनेगा और हम सब साथ रह पाएँगे।
आज उस घटना को दस साल हो चुके हैं चाँदनी के पापा का प्रमोशन भी हो गया था और परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक हो गई थी अब सब लोग साथ-साथ रह रहे थे । आज चाँदनी को अपने उस मुर्खतापूर्ण कृत्य पर हँसी आ रही थी परंतु वो किससे कहे पैसों का पेड़ भी होता है और उसपर फल भी आते हैं।आज वो उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात नौकरी करने लगी है कहाँ वो ऐसे परिवेश से निकली है जहाँ लड़कियों को पढ़ाया ही नहीं जाता किसी तरह बस इंटर की परीक्षा पास करवा दी जाती है बस।वो खुद को और दादी के दिए संस्कारों को कभी नहीं भुलने का संकल्प लिए कंधे पर बैग लटकाए निकल जाती है। आज भी वो अपनी दादी को प्यार करके निकली है जो अत्यंत जीर्ण हो चुकी हैं परंतु आज वो अत्यंत प्रसन्न थी।और चाँदनी को खुश होने का आशीर्वाद देती हैं।