चन्द मुकालमे : सआदत हसन मंटो

Chand Mukalame : Saadat Hasan Manto

“अस्सलाम-ओ-अलैकुम”
“वाअलैकुम अस्सलाम”
“कहीए मौलाना क्या हाल है”
“अल्लाह का फ़ज़ल-ओ-करम है हर हाल में गुज़र रही है”
“हज से कब वापस तशरीफ़ लाए”
“जी आप की दुआ से एक हफ़्ता होगया है”
“अल्लाह अल्लाह है आप ने हिम्मत की तो ख़ान-ए-काअबा की ज़यारत कर ली। हमारी तमन्ना दिल ही में रह जाएगी दुआ कीजिए ये सआदत हमें भी नसीब हो।”
“इंशाअल्लाह वर्ना मैं गुनहगार किस क़ाबिल हूँ।”
“मेरे लायक़ कोई ख़िदमत”
“किसी तकलीफ़ की ज़रूरत नहीं हाँ देखिए ज़रा कान कीजिए उधर मेरे हाँ खांड की दो बोरियां हैं। मेरी बे-शुमार लोगों से जान पहचान है किसी को ज़रूरत हो तो मुझ से फ़र्मा दीजिए। आप मेरा मतलब समझ गए होंगे। दाम वाजिबी होंगे”

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“लीजिए जनाब हमारी ख़िदमात का सिला मिल गया”
“क्या वैसे मुबारक हो”
“सौ सौ मुबारक कंपनी ने नौकरी से जवाब दिया।”
“हाएं ये कब की बात है”
“एक महीना हो गया है”
“ला-हौल-व-ला मुझे मालूम ही नहीं था ”
“दो सौ मुलाज़िमों की छांटी हुई थी ना ”
“बहुत अफ़सोस की बात है कोई एहतिजाज वग़ैरा हुआ था।”
“सैकड़ों हड़तालें हुईं जलूस निकले कई मर्तबा लोगों ने भूक हड़ताल की, वादे हुए मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात।”
“तअज्जुब है किसी के कान पर जूं तक न रेंगी”
“अल्लाह रहम करे।”
“अल्लाह रहम नहीं करेगा। वो दिन लद गए। जब वो माइल-ए-ब-करम हुआ करता था। इतने आदमी हैं वो किस किस की हाजत-रवाई करे। मेरा तो ख़याल है ऊपर आसमानों पर भी राशनिंग सिस्टम हो गया है”

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“मैं इस बद-ज़ात से क्या कहूं साफ़ मुझे दग़ा दे गया ”
“कैसे ?”
“हराम-ज़ादे ने वादा किया। और दोनों गाड़ियां ठिकाने लगा दीं।”
“इस की वजह”
“मैंने उस का एक काम किया था इस के इव्ज़ में उस ने मुझ से वादा किया था कि वो मुझे एक बयोक कार जो उस के पास आने वाली थी आधी क़ीमत पर दे देगा”
“और जो तुम ने उस का काम किया था वो लाखों का था।”
“इसी लिए तो कहता हूँ ब्लडी स्वाइन ने मेरे साथ धोका किया लेकिन मैं उस से बदला लूंगा। ख़ुद बयोक मेरे घर पहुंचा के जाएगा।”

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“बावर्ची को बुलाओ जल्दी बुलाओ हम उस से बात करना मांगता है।”
“हुज़ूर हाज़िर हूँ”
“ये तुम ने आज कैसे वाहियात खाने पकाए हैं”
“हुज़ूर।”
“हुज़ूर के बच्चे इस प्लेट से बेगम साहब ने एक ही निवाला उठाया था कि उन्हें मतली आ गई।”
“हुज़ूर मुम्किन है कोई गड़बड़ होगई हो। माफ़ी चाहता हूँ”
“माफ़ी के बच्चे उठाओ सालन बाहर फेंक आओ ”
“हम नौकर खालेंगे सरकार।”
“नहीं बाहर डस्टबिन में डाल दो और तुम सज़ा के तौर पर भूके रहो।”
“उठिए बेगम हम किसी होटल में चलते हैं।”

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“अम्मां अब गुज़ारा कैसे होगा यहां लते बदन पर झूलने का ज़माना आगया है।”
“तू ठीक कहती है बेटा”
“सारा बाज़ार ही मंदा है”
“क्यों ?”
“लोगों के पास रुपया जो नहीं”
“लेकिन जो सड़कों पर इतनी शानदार मोटरें चलती हैं ये जो औरतें तन पर ज़र्क़-बर्क़ लिबास पहने होती हैं ये कहाँ से आता है (अम्मां)”
“उन लोगों के पास है”
“तो फिर बाज़ार क्यों मंदा है”
“अब उन लोगों ने अपने आपस ही में हमारा धंदा शुरू कर दिया है।”
“डार्लिंग ”
“जी ”
“सारी दुकानें छान मारीं मगर तुम्हारे साइज़ की मीदम फ़ोर्म बरीज़र न मिल सकी”
“ओह ! हाओ सैड मेरा साइज़ ही किया वाहियात सा है।”
“दावत तो जनाब ऐसी होगी कि यहां की तारीख़ में यादगार रहेगी। लेकिन एक अफ़सोस है कि फ़्रांस से जो मैंने शैम्पेन मंगवाई थी वक़्त पर न पहुंच सकेगी”
“अजी सुनिए तो ”
“ओह आप मुझे बड़ा ज़रूरी काम है। माफ़ फ़रमाईए।”
“माफियां तुम लाख मर्तबा मांग चुके हो। वो मेरा सौ रुपय का क़र्ज़ अदा करो जो तुम ने आज से क़रीब क़रीब एक साल हुआ लिया था।”
“मैं फिर माफ़ी चाहता हूँ मेरी बीवी बीमार है दवा लेने जा रहा हूँ”
“मैं इन घुस्सों में आने वाला नहीं ख़ुदा की क़सम अगर आज मेरा क़र्ज़ अदा न हुआ तो सर फोड़ दूंगा तुम्हारा।”
“आप क्यों इतनी ज़हमत उठाएँ मैं ख़ुद ही इस दीवार के साथ टक्कर मार के अपना सर फोड़े लेता हूँ। ये लीजिए।”
“ये चरस की लत तुम्हें कहाँ से पड़ी”
“क्या बताऊं यार अब तो इस के बग़ैर रहा ही नहीं जाता।”
“मैंने तुम से पूछा था कि लत कहाँ से पड़ी तुम ने कुछ और ही हाँकना शुरू कर दिया है”
“भाई ये लत मुझे जेल में लगी”
“जेल में वहां तो एक मक्खी भी अंदर नहीं जा सकती”
“भाई मेरे वहां मगरमच्छ भी जा सकते हैं हाथी भी जा सकते हैं अगर तुम्हारे पास दौलत है तो आप वहां एक दो हाथी भी साथ रख सकते हैं”
“पहेलियां न भुजवाओ। बताओ ये चरस वहां कैसे पहुंच सकती है”
“वैसे ही जैसे हम वहां पहुंच सकते हैं मेरे अज़ीज़ जेल ख़ाना सिर्फ़ उन लोगों के लिए जेल ख़ाना है जो साहब-ए-इस्तिताअत नहीं जो दौलतमंद मुजरिम हैं उन को वहां हर क़िस्म की मुराआत मिल सकती हैं और मिलती हैं”
“अगर तुम चाहो तो तुम्हें वहां शराब मिल सकती है गांजा मिल सकता है अफ़यून दस्तयाब हो सकती है। अगर तुम बड़े रईस हो तो अपनी बीवी को भी वहां बुला सकते हो। जो रात भर तुम्हारी मुट्ठी चापी करती रहेगी।”
“जेल ख़ानों में एक ख़ाकी मार्कीट होती है जो ब्लैक मार्कीट से ज़्यादा ईमानदार है।”
“कर्नल साहब आप की उम्र कितनी होगी।”
“मेरा ख़्याल है पैंसठ के क़रीब होगी आप की”
“आप झूट बोलते हैं माशा अल्लाह अभी जवान हैं मेरी उम्र मेरी उम्र यही पच्चीस छब्बीस बरस के क़रीब होगी।”
“तो हम दोनों सच्च बोल रहे हैं”
“मुझे लिप स्टिक से नफ़रत है मालूम नहीं औरतें उसे क्यों इस्तिमाल करती हैं इस से होंटों का सत्यानास हो जाता है।”
“मुझे ख़ुद इस से नफ़रत है”
“लेकिन तुम्हारे होंटों पर तो ये वाहियात चीज़ मौजूद है ख़ून की तरह सुर्ख़ हो रहे हैं।”
“ये सुर्ख़ी मेरे अपने होंटों की है। यानी मस्नूई नहीं”
“तो आओ एक बोसा ले लूँ।”
“बड़े शौक़ से”
“परे हटिए अब मुझे नहीं मालूम था कि मर्द भी लिप स्टिक इस्तिमाल करते हैं।”
“वो कैसे”
“ज़रा आईने में अपने होंट मुलाहिज़ा फ़रमाईए”
“साहब आप से कोई मिलने आया है”
“कह दो साहब घर में नहीं हैं”
“बहुत अच्छा जनाब।”
“चला गया ”
“जी नहीं चली गई ”
“क्या मतलब।”
“जी वो एक ऐक्ट्रीयस थी जिस का नाम ................ ”
“भागो भागो जल्दी उस को बुला के लाओ और कहो तुम ने झूट बोला था कि मैं घर पर नहीं हूँ ”
“आप आजकल कहाँ ग़ायब रहते हैं”
“बेगम एक यतीम बच्चा है उस को देखने कभी कभी चला जाता हूँ”
“इस यतीम बच्चे से आप को इतनी दिलचस्पी क्यों है”
“यतीम जो हुआ ”
“आप की जेब में इस का फ़ोटो भी मौजूद रहता है”
“इस लिए इस लिए ”
“कि वो आप का यतीम बच्चा है”
“नॉन सेंस् ”
“आप की क़मीस पर सुर्ख़ धब्बा कैसे लगा।”
“मेरी क़मीस पर कहाँ है”
“दाहिने हाथ। गिरेबान के क़रीब ”
“ओह मैं जब दफ़्तर में किसी ज़रूरी मसले पर ग़ौर कर रहा होता हूँ तो मुझे किसी बात का होश नहीं रहता ये लाल पेंसिल का निशान है जिस से मैंने खुजला लिया होगा।”
“जी हाँ लेकिन इस में से तो मैक्स फैक्टर की ख़ुशबू आरही है।”
“तुम आजकल किस की बीवी हो”
“कल तो मिस्टर की थी आज छुट्टी पर हूँ”
“आप मैदान-ए-जंग में जा रहे हैं ख़ुदा आप का हाफ़िज़-ओ-नासिर हो लेकिन मुझे कोई निशानी देते जाईए।”
“मेरी निशानी तो तुम ख़ुद हो”
“नहीं कोई ऐसी चीज़ देते जाईए जिस को देख कर अपना दिल बहलाती रहूं”
“मैं वहां से भेज दूँगा।”
“क्या चीज़ ”
“वो ज़ख़्म जो मुझे लड़ने के दौरान आयेंगे”
“आप की बेगम कैसी हैं”
“ये तो आप को मालूम होगा। अपनी बेगम के बारे में मुझ से दरयाफ़्त फ़र्मा सकते हैं”
“वो कैसी हैं”
“पहले से बेहतर और ख़ुश हैं। उन की तबीयत बहुत पसंद आई।”
“यार तुम इतनी औरतों से याराना कैसे गांठ लेते हो”
“याराना कहाँ गांठता हूँ बाक़ायदा शादी करता हूँ”
“शादी करते हो”
“हाँ भाई मैं हराम-कारी का क़ाइल नहीं शादी करता हूँ और जब उकता जाता हूँ तो हक़-ए-महर अदा कर के उस से छुटकारा हासिल कर लेता हूँ”
“इस्लाम ज़िंदाबाद”
(1956)

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