चाँद एवं सूरज की कथा : बांग्ला/बंगाली लोक-कथा
Chand Evam Sooraj Ki Katha : Lok-Katha (Bangla/Bengal)
बहुत दिनों पहले की बात है। तब पृथ्वी दूसरे प्रकार की थी। उसकी अनेक बातों के संदर्भ में हम लोग कुछ भी नहीं जानते हैं । अभी हम देखते हैं कि सूर्य आसमान पर है और जल पृथ्वी में। पहले लेकिन ऐसा नहीं था ।
पहले सूर्य एवं जल इसी पृथ्वी पर आस-पास रहते थे। दोनों में खूब मित्रता थी । एकदम लँगोटिया यार जैसी। एक दिन भेंट न होने पर उनका मन छटपटाने लगता था । उनके बीच ऐसा प्रेम-भाव देखकर बहुतों को भीषण ईर्ष्या होती थी, लेकिन उनको कुछ बोलने का साहस किसी में न था । सूर्य और जल दोनों परम शक्तिशाली थे। किसी में इतनी शक्ति न थी कि ऐसे सामर्थ्यवानों को कोई छेड़ दे।
दोनों आस-पास ही रहते थे। सूर्य प्रायः प्रतिदिन अपने मित्र से मिलने उसके घर जाता था। जी- खोलकर दोनों गप्पें मारते । नाना प्रकार के गप्प उनके पास थे, फिर अपने सुख-दुःख की कथा तो थी ही ।
बहुत दिनों तक ऐसा ही चलता रहा । हठात् एक दिन सूर्य के मन में एक बात आई कि मैं तो रोज अपने मित्र से भेंट करने उसके घर जाता हूँ, किंतु उसका मित्र तो एक दिन भी उससे मिलने उसके घर नहीं आया। आने की बात भी कभी उसने नहीं कही। यह बात मन में आते ही सूर्य तुरंत अपने मित्र के घर पहुँचा। पहुँचते ही उसने सीधे अपने मन की बात कही। अपने मन का दुःख प्रकट करते हुए सूर्य ने जल से कहा, "मित्र, यह तुम्हारा कैसा व्यवहार है ! मैं रोज तुम्हारे घर आता हूँ, लेकिन क्या तुम्हारा एक दिन भी मेरे घर आना उचित नहीं था ? "
सूर्य की शिकायत सुनकर जल ने हँसकर कहा, "लगता है, इतने दिनों के बाद तुम्हारे मन में यह बात आई, इसीलिए तुम्हारा मन दुःखी है।"
सूर्य ने कहा, "इस कारण दुःखी होना क्या गलत है ? तुमने क्या यह उचित किया है ?"
जल ने हँसते-हँसते कहा, "इसमें इतना दुःखी होने की क्या बात है ? तुम मेरे घर आओ या मैं तुम्हारे घर जाऊँ, एक ही बात है। भेंट होना ही असल बात है।"
इस बात से सूर्य संतुष्ट नहीं हुआ। उसने कहा, “सो तो ठीक है, लेकिन तुम एक बार भी मेरे घर नहीं जाओगे, यह क्या बात हुई ?"
इसी तरह सूर्य बहुत देर तक हठ करता रहा तो बाध्य होकर जल ने कहा, “मित्र, मेरी बात सुनो! तुम रोज मेरे घर आते हो। क्या मेरी इच्छा तुम्हारे घर जाने की नहीं होती है ? मेरी भी खूब इच्छा होती है, किंतु क्या करूँ, मैं खुद अपना शत्रु हो गया हूँ। तुम क्रोध न करना मित्र ! मेरे अनेक चर - अनुचर हैं। कहीं जाना हो, तो बिना इन्हें साथ लिए जाना संभव नहीं । किंतु सबको लेकर यदि तुम्हारे घर जाऊँगा, तब तो तुम्हें अपना घर छोड़कर भागना पड़ेगा, क्योंकि सब जल में डूब जाएगा । तुम्हारी ऐसी क्षति हो, क्या मैं ऐसा चाहूँगा? इसीलिए मन में व्यथा लिए मैं चुपचाप रहता हूँ । तुम्हारे आने से तुम्हारा संग पाकर मैं आनंदित हो जाता हूँ।"
जल की सारी बातें सुनकर भी सूर्य अपनी जिद पर अड़ा रहा। दरअसल उसके मन में यह धारणा बन गई थी कि जल की इच्छा उसके घर जाने की नहीं है इसीलिए नाना प्रकार के बहाने बना रहा है। अंततः जल को हार मानकर बोलना पड़ा, “ठीक है, जब तुम इतना बोल रहे हो तो आऊँगा तुम्हारे घर, लेकिन पहले तुम्हें एक काम करना पड़ेगा ।"
जल उसके घर जाएगा, यह सुनकर सूर्य बहुत खुश हुआ। उसके मन में जल के प्रति जो दुर्भावनाएँ घूम रही थीं, वे दूर हो गईं। सूर्य गद्गद होकर बोला, “क्या करना है, बोलो ?"
जल ने कहा, “मैं तुम्हारे घर आऊँगा । तुम एक काम करना । तुम अपने घर के बाहर चारों ओर बहुत ऊँचा आँगन बनवाना और उस आँगन को घेरकर बहुत ऊँचा करके एक मजबूत बाँध बना देना। मेरे संगी-साथी तो अनगिनत हैं। बहुत बड़े आकार का आँगन न होने पर वे अटेंगे नहीं। तुम तो जानते ही हो कि छोटी-मोटी जगह में हम लोग रह नहीं पाते हैं । फिर ईश्वर की कृपा से हमारी शक्ति भी तो कम नहीं है।"
सूर्य ने कहा, "यह कौन-सा बड़ा काम है ! तुम मेरे घर आओगे, तुम्हें थोड़ी सी भी असुविधा न हो, यह देखना तो मेरा कर्तव्य है । मित्र, तुम्हारी सुख-सुविधा के लिए मैं सब कर सकता हूँ। विशाल आकार का आँगन बनाना तो सामान्य बात है । बहुत ऊँचा और मजबूत बाँध भी बनवा दूँगा। तुम चिंता मत करो। मैं खुद आकर तुम्हें ले जाऊँगा ।" यह कहकर सूर्य अत्यंत आनंदित होकर अपने घर पहुँचा और यह सुसंवाद अपनी पत्नी को दिया।
चाँद सूर्य की पत्नी थी। सुनकर वह भी बहुत खुश हुई। वह बोली, "तब और देर किस लिए? कल से ही काम पर लग जाया जाए। आपके मित्र जल अपने संगी-साथियों के साथ हमारे घर आएँगे। उन लोगों को यहाँ किसी प्रकार की असुविधा होगी, तो हमारी लज्जा की कोई सीमा न रहेगी।"
उसके बाद सूर्य और चाँद मिलकर कुछ दिनों तक आँगन एवं बाँध तैयार करवाने के कार्य में जुट गए। अन्य कार्यों की ओर ताकने का समय भी न रहा उनके पास । खाने-पीने तक की सुध नहीं। मित्र उसके घर आएगा, इसी खुशी में वे उन्मत्त थे। बहुत दिनों तक अथक परिश्रम के उपरांत एक दिन आँगन बनाने का काम खत्म हुआ। खूब ऊँचा करके बाँध भी बनवाया गया । सब ओर से ठीक से देखने के उपरांत वे संतुष्ट हुए कि हाँ, मित्र जल के लिए उपयुक्त जगह तैयार हो गई। उनका इतने दिनों का परिश्रम सार्थक हुआ। ऐसी व्यवस्था देखकर मित्र जल भी बहुत खुश होगा |
दूसरे दिन उत्साहपूर्वक सूर्य जल के घर पहुँचा । जल ने बहुत दिनों से सूर्य को नहीं देखा था इसीलिए उसने कहा, “मित्र, उस दिन के बाद आज तुम्हारे दर्शन हो रहे हैं। मैं इस सोच में था कि पत्नी के साथ कहीं घूमने तो नहीं चले गए ?"
सूर्य बोला, “ जाऊँगा और कहाँ ! घर में ही था, पर इधर आने की फुर्सत नहीं मिल रही थी । "
जल ने आश्चर्य से पूछा, “क्या कह रहे हो ? हठात् इतना क्या काम आ गया ?"
सूर्य ने कहा, “तुम्हें आने का निमंत्रण दिया था । उसके लिए तो व्यवस्था करनी थी न ? मैं अपनी पत्नी के साथ इतने दिनों तक आँगन एवं बाँध तैयार कर रहा था। तुमने जैसा कहा था, उसी तरह आँगन एवं बाँध बनाया है। अब किसी भी दिन तुम आ सकते हो।"
मित्र की बात सुनकर जल अत्यंत खुश हुआ। वह सूर्य के घर जाने के लिए राजी हो गया। फिर भी, एक बार जानना चाहा, “ मित्र अन्यथा न लेना । तुमने बहुत बड़ा आँगन बनाया है तो ? और खूब ऊँचा करके मजबूत बाँध बनाया है तो ? तुम तो जानते ही हो कि मैं अकेला नहीं हूँ । अनेक संगी-साथियों के साथ मेरी एक अजब दुनिया है । "
उस ओर से सूर्य एकदम निश्चिंत था । बहुत बड़ी जगह लेकर उसने आँगन बनाया था। बाँध भी एकदम मजबूत था । वह अत्यंत आनंदित होकर बोला, “मैंने क्या किया है, क्या नहीं किया है, एक बार आओगे तभी तो समझ पाओगे। तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं । अब चलो। "
तब जल सूर्य के घर की ओर रवाना हुआ। सूर्य रास्ता दिखाते हुए आगे-आगे चला। उसके पीछे जल कल-कल, कुल-कुल करता हुआ चला और उसके साथ तैरती हुई चलीं नाना प्रकार की मछलियाँ, मगरमच्छ, व्हेल, शार्क, ऑक्टोपस और अनेक प्रकार के जलचर, जिसकी कोई गिनती न थी । मित्र के घर के आँगन के पास आकर जल निश्चिंत हुआ । आँगन बहुत बड़ा था । बाँध भी बहुत मजबूत बना था। कुल कुल, कल-कल ध्वनि के साथ जल उछाल मारकर आँगन में प्रवेश कर गया। जल में छोटे, मझोले, बड़े आकार के अनेक जलचर कुलबुला रहे थे। देखते-ही-देखते जल ठेहुने तक पहुँच गया। जल में थोड़ी लहरें भी उठने लगीं। जल ने कहा, “मित्र, तुम्हारा बाँध मजबूत है तो ? मैं अंदर आऊँ या यहाँ से लौट जाऊँ ?”
सूर्य ने जोर देकर कहा, " चिंता की बात नहीं है। तुम संकोच क्यों कर रहे हो ? बाँध एकदम निरापद है । "
आँगन में लहरों के साथ और जल घुसा, साथ में जलचर भी । जल अंदर प्रवेश करता रहा। देखते- ही-देखते उसका स्तर एक आदमी की ऊँचाई के बराबर हो गया । लहरें भी ऊँची उठने लगीं। मछलियों की चंचलता, उछल-कूद और बढ़ गई। जल बाँध के सिर तक पहुँच गया। जल ने चिंतित होकर कहा, “मित्र, मेरे और भी लोकजन बाकी हैं। क्या तुम चाहते हो कि सब तुम्हारे घर में प्रवेश करें ?"
सूर्य ने कहा, "बिल्कुल, क्यों नहीं प्रवेश करेंगे ?"
उसके बाद जल का वेग प्रबल हो गया । साँय - साँय कर जल प्रवेश करने लगा। उसके साथ अनेक जाने-अनजाने जलचर भी प्रवेश करने लगे। सूर्य एवं चंद्र ने पहले कभी भी इतने प्रकार के और इतनी बड़ी संख्या में जलचरों को नहीं देखा था ! जल में प्रचंड शब्दों के साथ उत्ताल लहरें उठने लगीं। जल की अवस्था को देखकर सूर्य एवं चंद्र को डर लगने लगा । उनके मुख की हँसी गायब हो गई। दोनों बाँध के ऊपर बैठ गए। नीचे खड़े रहने का उनमें साहस नहीं हुआ। जल का स्तर क्रमशः बढ़ रहा था । कहीं बाँध न टूट जाए। परिस्थिति को जल ने भी समझा । उसने सोचा कि अब और आना ठीक नहीं होगा । कहीं मित्र विपत्ति में नहीं पड़ जाए। जल ने कहा, “मित्र, तुम्हारे घर आने की बात थी। मैं आया, अब तो तुम्हारा क्षोभ मिट गया होगा। अब जाता हूँ। मेरे और भी लोगों का आना बाकी है, पर रहने दो। मुझे लगता है कि मेरा अब लौट जाना ही उचित होगा ।"
सूर्य बोला, “मित्र, यह क्या कह रहे हो ? तुम्हारे लोग बाहर क्यों रहेंगे ? ऐसा कभी होता है ? तुम्हारा अभी जाना नहीं चलेगा।"
परिस्थिति अच्छी नहीं है, यह समझकर भी जल कुछ बोला नहीं कि मित्र के मन को कष्ट होगा । जल सामने से प्रवेश करता जा रहा था । उसके साथ अनेक जलचर भी प्रवेश कर रहे थे। देखते-ही- देखते जल बाँध के सिर पर पहुँच गया। उसके बाद बाँध के ऊपर से चारों ओर बहने लगा। चारों ओर सिर्फ जल-ही-जल। जल का आना जारी रहा, इसके साथ जलचरों के झुंड भी । जल बढ़ता गया, अब चारों ओर सिर्फ जल-ही-जल । जल छोड़ अन्य कुछ नजर नहीं आ रहा था। चाँद - सूर्य अत्यंत मुश्किल में पड़ गए। कहीं खड़े होने की जगह नहीं। यह क्या हो गया ? दोनों का मुँह एकदम छोटा हो गया । अंत में निरुपाय होकर चाँद एवं सूर्य आसमान में चले गए एवं दोनों वहीं रह गए।
इधर जल चारों ओर फैल गया। जमीन नाम की कोई चीज नहीं बची।
चाँद और सूर्य जो आसमान में गए उसके बाद फिर कभी वे पृथ्वी पर नहीं उतरे। लेकिन वे पृथ्वी को भूल भी नहीं सके। आखिर युगों-युगों पुराना निवास स्थान था उनका । पृथ्वी के प्रति अपनी आसक्ति के कारण ही उसे मन भरकर देखने के लिए अभी भी चाँद और सूर्य प्रतिदिन, प्रतिरात पृथ्वी के आसमान में चक्कर लगाते रहते हैं। सूर्य दिन में चक्कर लगाता है और चाँद रात में।