चमेली राजा : तमिल लोक-कथा
Chameli Raja : Lok-Katha (Tamil)
फीकी हँसी हँसते हुए उसने चेन्नईराम को अपनी परेशानी बताई। चेन्नईराम ने असीम सागर के वक्ष पर खेलती फेनिल लहरों की ओर इशारा करते हुए कहा, देखो, इन तरंगिणियों को। नीचे अतल गहराई और ऊपर बलखाना, इठलाना, किनारों को छू-छू कर, उन्हें मोहित कर लौटना।’
मैंने देखा है, चेन्नईराम।’ उसने कहा, ‘जब-जब मरीना तट पर आया हूँ, उन्हें देखा है।’
‘और फिर भी कुछ नहीं समझ सके तुम! कुछ भी नहीं सीख सके इनसे।’
‘इसमें है ही क्या सीखने के लिए?’
‘इनकी स्वाभाविकता, प्राकृतिकता, स्वच्छंदता और साथ ही उच्छृंखलता। यही है जीवन। आज लोग प्राकृतिक नहीं रहे। उनका हर कार्य, व्यवहार अच्छादित है किसी सोच या स्वार्थ की चादर से। इस दबाव के कारण वे जो हैं, बस दिखाना नहीं चाहते, और जो दिखाते हैं, वे हैं नहीं। उनमें सुगंध नहीं। जब सुगंध नहीं तो वे महकेंगे कैसे?’
‘किंतु।’
‘किंतु-परंतु कुछ नहीं। तमिलनाडु की एक लोककथा सुनाता हूँ, सुनो, और समझने की चेष्टा करो।
एक राजा था। वात्सल्यपूर्ण लोरी की लहरियों में झूलता हुआ एक अबोध शिशु जिस प्रकार सुख-निद्रा को प्राप्त होता है या अभिसारिका की सुकोमल बाँहों के घेरे में बँधकर प्रेमी जिस अथक आनंद की प्राप्ति करता है, उसी प्रकार उस राज्य के निवासी अपने राजा के हँसने से वायुमंडल में प्रवाहित जूही की सुगंध में सराबोर हो अपना जीवन धन्य मानते थे। राजा के इस गुण के कारण ही लोग उसे ‘चमेली राजा’ कहते थे। किंतु चमेली की यह सुगंध तभी फैलती थी, जब वह प्राकृतिक हँसी हँसता था।
एक दिन महाराजाधिराज ने उसे अपने दरबार में उपस्थित होने की आज्ञा दी। राजा पूर्ण निष्ठा से महाराज की सेवा करता था, अत: उसे आश्चर्य तो अवश्य हुआ, किंतु फिर भी दरबार में पहुँचा।
महाराजाधिराज ने सस्नेह कहा, ‘राजन्! हमने सुना है कि जब तुम हँसते हो तो मुँह से चमेली अर्थात् जूही की सुगंध निकलती है, जो मीलों दूर फैलकर वायुमंडल को अपने आगोश में भरकर उसे महका देती है। हम तुम्हारे इस गुण की पुष्टि करना चाहते हैं और साथ ही यह आश्चर्य देखना भी चाहते हैं। इसलिए हमारा आदेश है कि तुम हँसो।’
‘चमेली राजा चित्रलिखित सा हो गया। उसने यह कल्पना भी नहीं की थी कि इस प्रकार का आदेश मिलेगा। उसने अनेक प्रयत्न किए, किंतु विफल। हँसी नहीं आई। वह क्या करे? हँसी, प्राकृतिक रूप से अपने आप ही आनी चाहिए, तभी चमेली की सुगंध फैलती है, अन्यथा नहीं।
महाराज ने उसे अनेक प्रकार से उत्साहित किया। पर राजा को हँसी नहीं आई। महाराज ने सोचा कि या तो यह मेरे आदेश की अवहेलना कर रहा हूँ, या इसमें वह गुण ही नहीं है। खैर, जो भी हो। उन्होंने उसे कारावास भेज दिया और पहरेदारों को खबरदार कर दिया कि यदि किसी कारण से उसे हँसी आ जाए, तो तुरंत सूचित करना।
जेल के पास एक झोंपड़ी थी। उसमें एक विक्लांग युवक रहता था। रात्रि का घना अंधकार छा जाने के पश्चात् महल से कोई रानी उस झोंपड़ी में आती और अंतिम प्रहर में वापस लौट जाती। राजा उस युवक का चेहरा तो नहीं देख पाता था, किंतु दीपक के मंदिम प्रकाश में उसे प्रतीक्षारत अवश्य देखता था। उसने सोचा कि महाराजा को यह बात बता देनी चाहिए, परंतु अपने प्रति महाराजा के व्यवहार को देखकर वह चुप ही रहा।
एक रात्रि रानी को आने में अति विलंब हो गया, युवक झोंपड़ी में उद्विग्न सा चक्कर काटने लगा। जब रानी आई तो उसने क्रोध में उसे मारना शुरू कर दिया। रानी चुपचाप मार खाती रही। यहाँ तक कि उस विक्लांग ने उसे अपनी एक टाँग से भी चोट पहुँचाई।
कहते हैं, प्यार में प्रेमी की मार भी फूलों सी लगती है। कुछ प्रेमिकाओं को तो प्रेमी की मार भी आनंदित करती है। खैर, जब युवक का गुस्सा शांत हो गया, तब रानी ने उसे हाथ पकड़कर बैठाया और साथ लाए मधुर-मिष्टान्नों की थाली से मनुहार सहित उसे खिलाना प्रारंभ कर दिया। युवक को भी अपने अधैर्य तथा क्रोध पर पछतावा हुआ। उसने रानी को बाँहों में भरकर कहा, ‘मुझे माफ कर दो प्रिये।’ मिलन में विलंब ने मेरी बुद्धि हर ली और मैंने पुष्प से शरीर को, क्षति पहुँचाई।’
रानी ने कहा, ‘नहीं प्रियतम, क्षमा नहीं माँगो। तुम्हारे लात-घूँसों और हाथों के स्पर्श से मुझे असीम आनंद की अनुभूति हो रही थी। मुझे लग रहा था, मानो मैंने सारे जहाँ की सैर कर ली।’
झोंपड़ी के पिछवाड़े एक धोबी बैठा हुआ था। युवक तथा रानी के संवाद को सुन रहा था। असल में उसका गधा खो गया था। उसे ढूँढ़ते-ढूँढ़ते वह थक गया था और सुस्ताने हेतु उस झोंपड़ी के पिछवाड़े पर जा बैठा था। उसने जब रानी के मुख से सुना कि ‘मैंने सारे जहाँ की सैर कर ली, तो वह चौंक उठा। उसे लगा कि इस औरत ने जब सारे जहाँ की सैर की है तो अवश्य कहीं-न-कहीं उसका गधा भी देखा होगा। वह उठकर झोंपड़ी के दरवाजे पर आया और दस्तक दी। दरवाजा रानी ने ही खोला। वह बोला—‘आप ने सारे जहाँ की सैर की है, यदि कहीं मेरा गधा देखा हो तो बताने का कष्ट करें। मैं उसे ढूँढ़ने में अपने आपको असमर्थ पा रहा हूँ।’
चमेली राजा जेल की खिड़की से यह तमाशा देख और सुन रहा था, क्योंकि झोंपड़ी जेल की दीवार के साथ ही थी। धोबी की बात सुनकर वह खिलखिलाकर हँस पड़ा और इतना हँसा, इतना हँसा कि हँसी रुकने का नाम ही न ले।
और जब प्राकृतिक हँसी का फुहारा फूटा तो झीलों तक चमेली की सुगंध फैलती चली गई। पहरेदार तुरंत राजमहल की ओर दौड़े और महाराज को यह खुशखबरी सुनाई। यह चमत्कार देखने के लिए स्वयं महाराज सहित राजमहल के लोग जेल की ओर दौड़ पड़े।
दूसरे दिन महाराजाधिराज ने राजा से हँसने का कारण जाना। राजा मौन रहा, पर बारंबार के आग्रह के पश्चात् उसने पूरी घटना सुना दी। महाराज को अपने व्यवहार पर पश्चात्ताप हुआ। उसने राजा को कैद से मुक्त कर दिया और अपार दौलत देकर सम्मानपूर्वक विदा किया। अपनी रानी को पर-पुरुष से संपर्क रखने के कारण कठोर दंड दिया।
कथा समाप्त हो गई। चेन्नाईराम ने अपने मित्र की ओर देखा। मित्र ने कहा कि अब उसे पता चला कि चेन्नईराम का सत्य और इस कहानी का सत्य दोनों एक हैं। प्राकृतिक रूप से किया गया काम ही सुगंधयुक्त होता है।
(साभार : डॉ. ए. भवानी)