चलते-फिरते : विश्वंभरनाथ शर्मा 'कौशिक'
Chalte-Phirte : Vishvambharnath Sharma Kaushik
स्थान-रूस का रेजेव नगर
(रेजेव की जर्मन फौज का कमाण्डर अपने सामने एक नक्शा फैलाये बैठा है-दो अन्य अफसर चिन्तित मुद्रा में सामने उपस्थित हैं।)
कमाण्डर-(सिर उठाकर ) हमको रेजेव नगर खाली करना ही पड़ेगा।
एक अफसर-अगर न खाली किया जाय तो ?
कमाण्डर-क्यों न खाली किया जाय ! हम रेजेव को दूसरा स्टा- लिनग्राड नहीं बनाना चाहते । अगर हम घिर गये तो हमारी भी वही दशा होगी, जो स्टालिनग्राड में घिरी हुई सेना की हुई।
दूसरा अफसर--आप ठीक कहते हैं श्रीमान् ! हमको यहां से हटने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।
कमाण्डर-तुम लोग जाकर सेना को यहाँ से कूच करने के लिए तैयार करो।
दोनों अफसर-बहुत अच्छा ! हाईल हिटलर !
कमाण्डर-हाईल हिटलर !
(सैनिकों का कैम्प)
सैनिक-सुना है यहाँ से पीछे हटने का हुक्म होने वाला है ।
दूसरा सैनिक---हाँ मैंने भी सुना है। परन्तु ऐसा क्यों किया जा रहा है। क्या रूसी सेना जो इधर आ रही है इतनी ताकतवर है कि हम उसका मुकाबला नहीं कर सकते।
तीसरा सैनिक---नहीं यह बात नहीं है। अब हमारे लिए यहाँ का मौसम ठीक नहीं रहा।
दूसरा सैनिक--मौसम ठीक कैसे नहीं रहा?
तीसरा सैनिक---अभी तक सर्दी का मौसम था। अब बसन्त आ रहा है।
पहला सैनिक---परन्तु बसन्त तो हमारे अनुकूल होना चाहिए।
तीसरा सैनिक पहले रहता था अब नहीं रहा।
दूसरा सैनिक--यह क्यों?
तीसरा सैनिक---(धीरे स्वर में ) सुना है कि अब फौज की कमाण्ड हिटलर के हाथ में नहीं रही।
पहला सैनिक---तो इससे क्या हुआ?
तीसरा सैनिक--इससे यह हुआ कि अब सब मामला उलटा हो गया है।
दोनों सैनिक---(हँसते हुए ) बड़े मसखरे हो।
तीसरा सैनिक---ऐसा मत कहना सबसे बड़ा तो कमाण्डर है।
स्थान---रूस में हिटलर का हेड क्वार्टर
( हिटलर गोरिंग तथा डा० गोबिल्स से वार्तालाप कर रहा है )
हिटलर---इस बार मैं नात्सी वर्षगाँठ पर बलिन पाकर अपना भाषण न कर सकूंगा। गोरिंग मेरी ओर से तुम भाषण कर देना और गोबिल्स तुम भी कुछ कह देना।
गोरिंग---आपके न जाने से जर्मन जनता को सन्देह तथा निराशा होगी।
हिटलर--ओह! अगर इतना भी नहीं कर सकते कि अपनी वक्तृता से उस सन्देह तथा निराशा को उत्पन्न होने का अवसर न दो तो फिर तुम लोग किस मर्ज की दवा हो।
गोरिंग---लेकिन फ्यूहरर! जो मज़ पैदा करता है वही उसे दूर करना भी जानता है।
हिटलर--इसका क्या मतलब?
गोरिंग---धृष्टता को क्षमा कीजिएगा। आपने ही जरमन जनता को बड़ी लम्बी लम्बी आशाएँ दिला रक्खी हैं---उनसे लम्बे चौड़े वादे कर रक्खे हैं।
हिटलर---ओह! क्या बात करते हो। जनता बेवकूफ होती है। एक होशियार आदमी उसे जिस समय जिधर चाहे घुमा सकता है।
गोबिल्स---इस घुमाने-फिराने के काम में हमारी अपेक्षा फ्यूहरर अधिक पटु हैं।
हिटलर---तुम लोगों को भी होना चाहिए।
गोरिंग---'चाहिए' का प्रश्न ही तो बड़ा कठिन है। जो होना चाहिए बहुधा वह नहीं होता। यदि होता तो अब तक रूस कभी का फतह होगया होता।
हिटलर---गोरिंग, मैं तुम्हारे व्यंग को भली भांँति समझता हूँ। लेकिन तुम्हें याद रखना चाहिए कि हम मनुष्यों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं--प्रकृति पर नहीं।
गोरिङ्ग---हाँ यह ठीक है और साथ ही यह भी ठीक है कि हम कुछ आदमियों को कुछ समय के लिए बेवकूफ बनाये रख सकते हैं, परन्तु सब आदमियों को सदैव बेवकूफ नहीं बनाये रख सकते।
हिटलर---यदि हम बेवकूफ बनाने के तरीकों को बदलते रहें तो बहुत दिनों तक बेवकूफ बनाये रख सकते हैं।
गोरिङ्ग---वह कैसे?
हिटलर---जैसे इस समय जनता से यदि कहा जाय कि जरमनी की हार जरमन जनता का सर्वनाश कर देगी, उनका अस्तिव मिटा देगी- अतः हमें अपने सर्वस्व की बाजी लगा कर इस युद्ध को जीतने का प्रयत्न करना चाहिए, तो मेरा खयाल है इसका प्रभाव जरमन जनता का उत्साह बढ़ाने में विजयों के संवाद से भी अधिक अच्छा पड़ेगा।
गोबिल्स---यह बिल्कुल ठीक है। सर्व साधारण को बेवकूफ बनाने की कला खूब जानते हैं।
हिटलर---तो बस जाओ! जैसा मैंने कहा है वैसा करो। मैं रूसी मोरचे से हट नहीं सकता, केवल इतना कह देने से जनता शान्त हो जायगी और मेरी अनुपस्थिति से निराशा तथा सन्देह उत्पन्न न होगा।
[गोरिंग तथा गोबिल्स हिटलर के केम्प के बाहर आकर ]
गोरिङ्ग--वाकई फ्यूहरर लोगों को बेवकूफ बनाने की कला खूब जानता है।
गोबिल्स---मेरा भी खयाल यही हैं।
गोरिङ्ग---खयाल! प्रमाण रहते हुए खयाल नहीं विश्वास होना चाहिए।
गोबिल्स---प्रमाण कैसा?
गोरिङ्ग--हम दोनों बेवकूफ बने चले जा रहे हैं। इससे अधिक प्रमाण और क्या होगा।
स्थान---बर्लिन का एक घर ( तीन पुरुष तथा एक स्त्री बैठे वार्तालाप कर रहे हैं )
स्त्री--अब तो बर्लिन पर शत्रु के हवाई हमले प्रति दिन भयानक होते जा रहे हैं।
पुरुष---"उस दिन अँग्रेजी ब्राडकास्ट सुना था?"
दूसरा पुरुष---( अोठों पर उंगली रख कर ) चुप! दीवार के भी कान होते हैं।
स्त्री---( धीमें स्वर में ) मैंने सुना था। कह रहा था कि अब जरमनी पर ऐसे तीव्र हवाई हमले होंगे कि जरमनी-निवासी 'दया करो! क्षमा करो!' की चीत्कार मचाने लगेंगे।
तीसरा पुरुष---यहाँ से कहीं टल चलना चाहिए।
स्त्री---कहाँ चला जाय-सभी जगह तो हवाई हमले हो रहे हैं।
दूसरा---किसी देहात में चला जाय। हवाई हमले केवल शहरों पर होते हैं।
स्त्री---मेरी समझ में नहीं आता कि सन्धि क्यों नहीं कर ली जाती।
पहला---सन्धि को नाम न लेना! हमारा फ्यूहरर विजय के लिए लड़ रहा है।
स्त्री--विजय! विजय के तो कोई लक्षण दिखाई नहीं पड़ते।
पहला---दिखाई कैसे नहीं पड़ते---शत्रुओं की विजय के लक्षण तो दिखाई पड़ने लगे हैं।
स्त्री---तो उससे हमें क्या सरोकार, हमें तो अपनी विजय से सरोकार है।
पहला---वह सरोकार क्यों नहीं, पहले हम अपनी विजय के लिए लड़ रहे थे--अब शत्रुओं की विजय के लिए लड़ रहे हैं।
स्त्री---शत्रुओं की विजय कैसी? तुम न जाने क्या कह रहे हो।
पहला---अब हम इसलिए लड़ रहे हैं कि शत्रुओं की विजय न होने पावे---अब समझी! हा! हा! हा!
स्थान---एक जर्मन अस्पताल
(एक जख्मी जर्मन सैनिक सन्निपात में बक रहा है)
एक डाक्टर तथा दो नर्स खड़ी हैं।
जख्मी सैनिक---ओफ! कितनी सर्दी! मैं गला जा रहा हूँ। वह देखो मेरी उंँगलियाँ गल कर गिर गई---मैं बन्दूक कैसे चलाऊँगा। मुझे बचाओ। इस सर्दी से बचाओ। ( कुछ क्षण चुप रहकर ) हिटलर कहाँ है---उसे पकड़ कर मेरे सामने लाओ। उसी पिशाच ने हमें इस मुसीबत में डाला है। हिटलर को पकड़ लाओ---अभी लाओ।
डाक्टर---बड़ी बुरी बात है।
एक नर्स---इसी तरह बकता है।
डाक्टर---अगर यह हिटलर की जगह स्टालिन का नाम लेने लगे तो फिर कोई हर्ज नहीं।
दूसरी नर्स---परन्तु यह अपने होश में थोड़ा है।
डाक्टर----होश में हो या न हो-फ्यूहरर का नाम लेने का इसे कोई हक नहीं-यह तो बगावत है।
पहली---तो फिर क्या किया जाय डाक्टर।
डाक्टर---कोशिश करो कि स्टालिन का नाम लेने लगे।
( डाक्टर जाता है )
[कुछ देर में सैनिक फिर बकने लगता है]
सैनिक---हिटलर को पकड़ लाओ! अभी मेरे सामने लाओ।
नर्स---स्टालिन का नाम लो स्टिफिन्सन। क्या स्टालिन को पक- ड़वा कर तुम्हारे सामने लाया जाय?
सैनिक---स्टालिन! कौन स्टालिन! उसने क्या किया। नहीं मैं किसी स्टालिन-विस्टालिन को नहीं जानता। मैं फ्यूहरा को चाहता हूं हिटलर को--वही हमारी सब दुर्गति का कारण है। देखो मेरे हाथ की उंगलियाँ गल कर गिर गई हैं।
दूसरी नर्स---हिटलर का नाम मत लो स्टिफिन्सन!
सैनिक---क्यों न लूं---क्या मैं उससे डरता हूँ। जो मौत से नहीं डरता वह किसी से नहीं डरता। हिटलर को लाओ हिटलर को।
(डाक्टर का कमरा)
डाक्टर--तो वह बकना बन्द नहीं करता?
नर्स---नहीं डाक्टर! हमने उससे स्टालिन का नाम लेने को कहा, परन्तु वह नहीं माना फ्यूहरर का ही नाम ले रहा है।
डाक्टर---( मेज पर घूसा मार कर ) और उसके आस-पास पड़े हुए सैनिक उसकी यह बकवास सुन रहे हैं।
नर्स चुप खड़ी रही।
डाक्टर---तब तो इसे खत्म करना पड़ेगा।
नर्स---लेकिन वह जरमन है डाक्टर।
डाक्टर---कोई भी हो। उसके बकने का प्रभाव दूसरे सैनिकों पर खराब पड़ेगा।
नर्स---क्या सैनिक नहीं जानते कि वह अपने होश में नहीं है।
डाक्टर---जानते हों, या न जानते हों। चाहे होश में कहे जांय या बेहोशी में---शब्दों में बड़ी ताकत है। एक बेहोश आदमी के शब्द भी अत्यन्त अच्छा-बुरा प्रभाव डाल सकते है।
नर्स---ऐसा तो ओ....।
डाक्टर---चुप रहो। मैं डाक्टर हूँ---मैं इन बातों को तुम से अधिक अच्छा समझ सकता हूँ।
(डाक्टर कागज उठाकर कुछ लिखता है।)
डाक्टर---जाओ, यह दवा उसे पिला दो।
नर्स--( नुसखा देखकर ) क्या जहर! ओ! डाक्टर वह एक जरमन है।
डाक्टर---बस खामोश। इस समय वह एक पागल है जो फ्यूहरर का विरोधी है बस हमारे लिए इतना ही काफी है। जाओ!
नर्स---जैसी आज्ञा!
(दूसरे दिन)
(दो आहत सैनिक, जिनके पलरे एक दूसरे के निकट हैं---बात कर रहे हैं)
एक सैनिक---(धीमे स्वर से) स्टिफिन्सन मर गया।
दूसरा सैनिक---हाँ रात में बेचारा चल बसा। उसे सन्निपात भी तो हो गया था।
पहला---न कहीं सन्निपात! वह तो सन्निपात का ढोंग कर रहा था।
दूसरा---क्यों?
फ्यूहरर के विरुद्ध अपने उद्गार निकालने के लिए। मेरी उसकी सलाह हो चुकी थी। उसने कहा था पहले मैं पागल बनता हूँ---दो तीन दिन में तुम बन जाना।
दूसरा---अच्छा तो क्या तुम भी पागल बनने वाले थे।
पहला---हाँ
दूसरा---कब से?
पहला--आज से!
दूसरा--तो आज से बनोगे?
पहला---ऊ हुक? अब मैंने अपना इरादा बदल दिया है।
दूसरा---सो क्यों?
पहला--इसलिए कि यह नात्सी पागल को भी नहीं बख्शते।