चालीस तिजोरियां : ईरानी लोक-कथा
Chalees Tijoriyan : Lok-Katha (Iran)
एक समय की बात है कि ईरान की राजधानी इसफान में एक युवक रहता था जिसका नाम अहमद था। उसकी पत्नी का नाम जमैल था। किसी व्यवसाय या शिल्पकला की कोई जानकारी उसे न थी। लेकिन उसके पास एक बेलचा और एक कुदाली थी। उसने अपनी पत्नी से कहा, "अगर एक आदमी गड्ढा खोद सकता है तो वह अपने निर्वाह योग्य पैसे भी कमा सकता है।"
लेकिन जमैल इतने से संतुष्ट न थी।
जैसा कि वह अकसर करती थी, एक दिन गर्म पानी में नहाने और दूसरी औरतों से बातें करने के लिए वह एक गर्म- हमाम गई। लेकिन दरवाज़े पर बैठी औरत, जो हमाम की प्रभारी थी, उससे बोली, "तुम अंदर नहीं जा सकती। बादशाह के राज-ज्योतिषी की पत्नी आई हुई है और उसने सारा हमाम ले रखा है।"
"वह अपने आप को क्या समझती है?" जमैल ने विरोध किया। "बस इसलिए कि उसका पति भविष्यवाणी कर सकता है!" लेकिन घर लौटने के अतिरिक्त वह कुछ न कर सकती थी, सारे रास्ते वह गुस्से से भभकती रही।
शाम के समय जब अहमद ने दिन भर की अपनी कमाई उसे दी तो वह बोली, "देखो इन थोड़े से सिक्कों को! अब मैं और सहन नहीं कर सकती। कल से तुम बाज़ार में ज्योतिषी का काम करोगे और लोगों को उनका भविष्य बताओगे।"
"जमैल, क्या तुम पागल हो गई हो?" अहमद ने कहा। "मुझे ज्योतिष के बारे में क्या पता है?"
"तुम्हें कुछ जानने की आवश्यकता नहीं है," जमैल ने कहा। "जब तुम्हारे पास कोई प्रश्न पूछने आएगा तो तुम पासा फेंक कर ऐसा कुछ बुदबुदा देना जो ज्ञानवर्धक लगे। अब या तो तुम ऐसा ही करोगे या फिर मैं पिता के घर चली जाऊँगी।"
अगले दिन अहमद ने अपना बेलचा और कुदाल बेच दिए और एक पासा और एक फलक और ज्योतिषी का चोगा खरीद लिया। फिर बाज़ार में हमाम के निकट आकर वह बैठ गया।
अपना सामान सजा कर वह बैठा ही था कि बादशाह के एक वज़ीर की पत्नी भागी-भागी उसके पास आई।
"ज्योतिषी, मेरी सहायता करो! आज मैं अपनी सबसे महंगी अँगूठी पहन कर हमाम में गई थी और वह खो गई है। मेहरबानी करके मुझे बताओ कि मेरी अँगूठी कहाँ पर है?"
अहमद थोड़ा घबरा गया और उसने पासा फेंका।
समझदारी की कोई बात कहने के लिए वह अपने दिमाग पर ज़ोर डाल रहा था कि उसकी नजर उस औरत की आस्तीन पर पड़ी। आस्तीन में उसे एक सूराख दिखाई दिया जहाँ से औरत की बाँह दिखाई दे रही थी।
एक सम्मानित महिला की बाँह दिखना अशोभनीय था इसलिए अहमद ने आगे झुक कर धीमे से कहा, "बेगम साहिबा, मुझे एक सूराख दिखाई दे रहा है।"
"क्या?" औरत ने पास आते हुए पूछा।
"सूराख! सूराख !"
"औरत का चेहरा खिल उठा। “बेशक, सूराख। "
वह हमाम की ओर वापस दौड़ी और वहाँ एक दीवार में उसने वह सूराख खोजा जहाँ उसने अपनी अँगूठी छिपा कर रखी थी। उसे अँगूठी मिल गई और फिर वह झटपट अहमद के पास आई।
“खुदा का शुक्र है !" उसने कहा। "तुम्हें पता था कि अँगूठी कहाँ है!" "और आश्चर्यचकित अहमद को उसने सोने का एक सिक्का ईनाम में दिया।
उस शाम जब जमैल ने सोने का सिक्का देखा और सारी कहानी सुनी तो उसने कहा, "समझ आया ? यह काम कितना आसान है !”
“आज तो खुदा मेहरबान था," अहमद ने कहा। "लेकिन दुबारा ऐसा करने का दुस्साहस मैं नहीं कर सकता।"
"बेकार की बात मत करो," जमैल ने कहा। "अगर तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे साथ रहूँ तो तुम कल फिर बाज़ार जाना।"
उस रात ईरान के बादशाह के महल के शाही खज़ाने में चोरी हो गई। सोने और जवाहरात से भरी चालीस तिजोरियाँ चालीस चोर चुरा कर ले गये।
अगली सुबह बादशाह को इस चोरी की सूचना दी गई। "राज-ज्योतिषी को अपने सहायकों के साथ मेरे पास आने को कहो,” उसने आदेश दिया।
राज- ज्योतिषी और उसके सहायकों ने बार-बार पासे फेंके और समझदारी के साथ बुदबुदाते रहे पर कोई भी चोरों का पता न लगा पाया।
“सब ढोंगी हैं!” बादशाह चिल्लाया। "इन को कैदखाने में डाल दो!"
बादशाह ने उस ज्योतिषी के बारे में सुन रखा था जिस ने उसके एक वज़ीर की पत्नी की अंगूठी ढूँढ दी थी। उसने अहमद को लिवा लाने के लिए दो सिपाहियों को बाज़ार भेजा। अहमद काँपता हुआ बादशाह के सामने हाज़िर हुआ।
"ज्योतिषी, " बादशाह ने कहा, "चालीस तिजोरियों में रखा मेरा खज़ाना चोरी हो गया। उन चोरों के बारे में तुम मुझे क्या बता सकते हो?"
अहमद ने झटपट चालीस तिजोरियों के बारे में सोचा। "शहंशाहे आलम, मैं आपको यह बता सकता हूँ कि चालीस चोर आये थे।"
"आश्चर्य है, ” बादशाह ने कहा। "मेरे एक भी ज्योतिषी को इस बात का पता न चला था। लेकिन अब तुम्हें मेरा खज़ाना और उन चोरों को ढूँढना होगा।"
अहमद घबरा गया। "मैं... पूरी कोशिश करूंगा, शहंशाहे- आलम। लेकिन इस में थोड़ा समय लगेगा।"
"कितना समय ?" बादशाह ने कहा।
“उह.... चालीस दिन, शहंशाहे आलम," अहमद ने कहा। उसने मन ही मन अनुमान लगाया कि अधिक से अधिक वह कितना समय मांग सकता था। "हर चोर के लिए एक दिन। "
"यह तो बहुत लंबा समय है!” बादशाह ने कहा। "ठीक है, तुम्हें चालीस दिन दिए। अगर तुम कामयाब हुए तो तुम्हें बहुत धन ईनाम में दूंगा, नहीं हुए तो दूसरों के साथ तुम भी कैदखाने में सड़ोगे।"
घर लौट कर अहमद ने जमैल से कहा, "देखो तुम ने मुझे किस मुसीबत में डाल दिया है? चालीस दिनों के बाद बादशाह मुझे कैदखाने में डाल देगा।"
"बेकार की बात कर रहे हो," जमैल बोली, "तिजोरियाँ ढूँढ़ निकालो। तुमने अंगूठी ढूँढ निकाली थी, नहीं ढूँढी थी क्या?"
"मैं तुम्हें बता रहा हूँ, जमैल। मैंने कुछ न ढूँढा था। वह तो बस खुदा की मेहरबानी थी। लेकिन इस बार कोई आशा नहीं है।"
अहमद ने कुछ सूखे खजूर लिए। उन में से चालीस गिन कर एक जार में रख लिए "इन में से एक खजूर मैं हर दिन शाम के समय खा लूँगा। इस तरह मुझे पता चल जायेगा कि चालीस दिन कब समाप्त हो गये हैं।"
अब हुआ ऐसा की बादशाह का एक नौकर उन चालीस चोरों में से एक था। उसने बादशाह और अहमद की बात सुन ली थी। उस शाम वह झटपट चोरों के अड्डे पर आया और उसने चोरों के सरदार को सारी बात बताई। "एक ज्योतिषी है जिसने कहा है कि वह चालीस दिनों में खज़ाने और चोरों को ढूँढ निकालेगा।”
"वह मूर्ख बना रहा है," सरदार ने कहा। "लेकिन हम कोई खतरा मोल नहीं सकते। अपना भेष बदल कर उसके घर जाओ और जो भी जानकारी पा सकते है लेकर आओ।"
नौकर अहमद के घर की छत पर चढ़ कर छिप गया और अहमद और उसकी पत्नी की बातें सुनने लगा। उसी समय अहमद ने जार से एक खजूर निकला और उसे खा गया। फिर उसने जमैल से कहा, "यह एक है।"
छत पर छिपा हुआ चोर भयभीत हो गया। वह तो सीढ़ियों में गिरते-गिरते बचा। वह झटपट अपने अड्डे की ओर भागा और सरदार से कहा, "उस ज्योतिषी के पास गज़ब की शक्ति है। मुझे देखे बिना ही वह जान गया कि मैं छत पर छिपा था। मैंने खुद सुना। उसने कहा, "यह एक है।"
"तुमने ऐसी कल्पना की होगी," सरदार ने कहा। "कल रात दो जने उसके घर जाना।”
अगली रात नौकर अपने एक साथी के साथ आया और दोनों अहमद के घर की छत पर छिप गये। जब वह उसकी बात सुन रहे थे, अहमद ने दूसरा खजूर खा लिया और कहा, "यह दो हैं।”
दोनों चोर गिरते-पड़ते वहाँ से भागे और अपने सरदार के पास वापस आये। "वह जानता था कि हम दोनों वहाँ पर हैं!" हमने उसे कहते सुना, "यह दो हैं।"
उससे अगली रात सरदार ने तीन चोरों को भेजा और उसके बाद चार को, फिर पाँच को, फिर छह को।
और इस तरह हर रात एक अतिरिक्त चोर गया और अंत में चालीसवीं रात सरदार ने कहा, "इस बार मैं भी तुम सब के साथ जाऊँगा।"
सभी चालीस चोर अहमद के घर की छत पर चढ़ कर छिप गये और उसकी बात सुनने लगे। अहमद ने जार में रखे आख़िरी खजूर को देखा और निराशा से उसे बाहर निकाला और खा गया। “चालीस। संख्या पूरी हो गई।"
जमैल उसके निकट ही बैठी थी। "अहमद, " उसने धीमी आवाज़ में कहा। "तुम्हें ज्योतिषी बना कर मैंने भूल कर दी। तुम वही हो जो तुम हो, तुम्हें कुछ और बनाने का मुझे प्रयास नहीं करना चाहिए था। क्या मुझे क्षमा कर सकते हो?"
“मैं तुम्हें क्षमा करता हूँ, जमैल। लेकिन मेरी भी गलती थी। मुझे वह नहीं करना चाहिए था जिसे करना बुद्धिमानी न थी। लेकिन अब इन बातों से कोई लाभ नहीं।"
तभी ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई। अहमद ने एक आह भरी। "बादशाह के सिपाही तो आ भी गये!" वह दरवाज़े के निकट गया और उसने कुँडी खोलते हुए ऊंची आवाज़ में कहा, "ठीक है, ठीक है, मैं जानता हूँ कि तुम यहाँ क्यों आये हो।"
उसने दरवाज़ा खोला। वह आश्चर्यचकित हो गया, बाहर चालीस आदमी थे जो घुटनों पर खड़े थे और अपने सिरों से ज़मीन को छू रहे थे।
"आप बेशक सब जानते हैं, ओ महान ज्योतिषी !" सरदार ने कहा। "आप से कुछ भी छिपा नहीं है। हम विनती करते हैं कि आप बादशाह को हमारे बारे में कुछ न बताएं।" अहमद हक्का-बक्का हो गया था पर उसे समझने में देर न लगी कि यही लोग चोर थे। उसने झटपट अपना दिमाग दौड़ाया और बोला, "ठीक है, मैं बादशाह को कुछ न बताऊँगा। लेकिन तुम्हें सारा का सारा खज़ाना लौटाना पड़ेगा।"
"तुरंत लौटा देंगे! तुरंत लौटा देंगे!" सरदार ने चिल्लाकर कहा।
रात बीतने से पहले चालीस चोर सोने और जवाहरात से भरी चालीस तिजोरियाँ उठा कर बादशाह के खजाने में ले आये।
अगली सुबह अहमद बादशाह के सामने हाज़िर हुआ। “शहंशाहे आलम, मेरी जादुई शक्ति या तो खज़ाने को ढूँढ सकती है या चोरों को, दोनों को नहीं। आप क्या चाहते हैं?"
"खजाना,” बादशाह ने कहा। "हालाँकि चोरों को छोड़ देना अच्छा न होगा। उनको सज़ा देने के लिए तेल उबल रहा है। ठीक है, मुझे बताओ कि खज़ाना कहाँ हैं और उसे लाने के लिए मैं अपने आदमी अभी भेज दूँगा।"
"इसकी कोई आवश्यकता नहीं है," अहमद ने कहा। उसने अपने हाथ हवा में लहराए और चिल्ला कर बोला, "पिश- पाश, विश-वाश मिश-माश। "
फिर उसने कहा, "मेरे जादू की ताकत से तिजोरियाँ अपनी जगह वापस पहुँच गई हैं।"
बादशाह स्वयं अहमद के साथ खज़ाने में गया। तिजोरियाँ खज़ाने में थीं। "तुम सच में इस समय के सबसे बड़े ज्योतिषी हो,” बादशाह ने कहा। "आज से तुम मेरे राज-ज्योतिषी बनाए जाते हो।"
“शुक्रिया, शहंशाहे-आलम," अहमद ने कहा "लेकिन अफसोस, यह मुमकिन नहीं है। आपकी इन तिजोरियों को ढूँढना और यहाँ वापस लाना बहुत ही मुश्किल था। मेरी सारी जादुई ताकत इस में खर्च हो गई। अब मैं दुबारा कोई भविष्यवाणी न कर पाऊँगा।”
"यह क्या हुआ!” बादशाह चिल्लाया। "फिर तो मुझे तुम्हारा ईनाम दोगुना कर देना चाहिए। यहाँ से दो तिजोरियाँ तुम ले लो।”
तो इस तरह अहमद जमैल के पास लौट आया, वह सुरक्षित था, धनी था और खूब समझदार हो गया था। कोई भी ज्योतिषी बता सकता था कि जीवन के बाकी दिन उन्होंने प्रसन्नता से बिताये।