चालीस चोर और एक गंजा : उज़्बेक लोक-कथा

Chalees Chor Aur Ek Ganja : Uzbek Folk Tale

बहुत समय पहले एक गंजा आदमी रहता था। एक बार वह अपने बैल को चराने के लिए चरागाह में छोड़ने जा रहा था । सहसा चालीस चोर निकलकर आये और उसका बैल छीनकर ले गये। दूसरे दिन गंजा अपने गधे को लेकर चोरों के पास पहुँचा और बोला :

"मेरे गधे की लीद की जगह रोजाना मुझे सोने की एक हजार अशरफियां मिलती हैं ।"

चोरों ने गंजे पर विश्वास करके उसे एक हजार अशरफ़ियां दीं और गधा खरीद लिया । सबसे पहले वे गधे को अपने सरदार के पास ले आये, जिससे वे बहुत डरते थे। सरदार को जब गधे की खूबी मालूम पड़ी तो वह उसे चौबीस घंटे खिलाता रहा। सुबह होते-होते उसे नींद आ गयी। जब उसकी नींद खुली तो उसने देखा कि वह गधा तो दूसरे गधों जैसा ही है। पर फिर भी उसने यह जाहिर न होने दिया कि उसके साथ धोखा हुआ है और कहने लगा :

"मैंने गधे को जहाँ बांधा था, वहाँ मुझे आज दो हजार अशरफियाँ मिलीं।"

बाक़ी चोर भी बारी-बारी से गधे को खिलाने लगे। और तब तक खिलाते रहे, जब तक उन सबको यह मालूम न हो गया कि गंजे ने उन्हें बेवकूफ़ बना दिया ।

उन्होंने गंजे को जान से मार डालने की ठानी। गंजे को उनका इरादा पहले से मालूम पड़ गया, पर वह बिलकुल भी नहीं घबराया। उसने एक भेड़ काटकर उसकी अंतड़ी में उसका खून भरा और अपनी पत्नी के गले में उसे बांधकर बोला :

"मैं तुझसे जो करने को कहूँ, तू उसका बिलकुल उल्टा करना। फिर मैं तलवार का वार करूँगा और तू मरने का ढोंग करना इसके बाद मैं डंडा मारूँगा और तू उठकर अपना काम करने लगना ।"

उसने इतना कहा ही था कि चोर वहाँ आ धमके। चोरों का सरदार गरजा :

"तूने हमें धोखा दिया, हम तुझे जान से मार डालेंगे ! "

पर गंजे ने ऐसा ढोंग रचा मानो वह उन्हें मेहमान मानकर उनकी आवभगत कर रहा हो ।

"चूल्हा जला!" उसने अपनी पत्नी को आवाज़ देकर कहा ।

उसकी पत्नी ने फ़ौरन चूल्हे पर पानी छिड़क दिया और आग बुझ गयी। गंजा आग-बबूला हो उठा और अपने पिता की पुरानी तलवार उठाकर उसने अपनी पत्नी की गर्दन पर वार किया। तलवार का वार लगते ही पत्नी की गरदन से खून के फ़वारे छूटने लगे और वह वहीं मर गयी। गंजे ने डंडा उठाकर कई बार पत्नी को मारा और उसकी पत्नी फ़ौरन "जिंदा" होकर अपना काम करने लगी। चोर यह नजारा देखकर हैरत में पड़ गये। उन्होंने सोचा कि डंडा जादूई है और उसे गंजे से जबरन छीनकर भाग गये। अपने अड्डे पर पहुँचकर उन्होंने अपनी-अपनी पत्नियों को मार डाला और फिर उन्हें डंडे से मारने लगे, पर वे मुर्दा ही पड़ी रहीं। चोरों को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने गंजे से फिर बदला लेने की ठानी। पर गंजे ने फिर एक चाल चली। वह अपनी मां से बोला :

"आज चोर आयेंगे, पर उनके आने से पहले तुम कब्र खोदकर मुझे उसमें जिंदा ही दफ़ना दो।"

उसके घरवालो ने गंजे को दफना दिया और उसके कहने के अनुसार उसमें एक छेद भी छोड़ दिया। चोर आये तो घरवाले बोले :

"गंजा आज मर गया। हमने उसे दफना दिया है।

चोरों को विश्वास नहीं हुआ। वे क़ब्र के पास पहुँचे और उसमें से धुआं निकलता देखकर उन्होंने सोचा : "इसका मतलब है गंजे को उसके किये की सजा मिल रही है।" जब वे क़ब्र के पास शोर करने लगे, तो अचानक कब्र में से धुआं निकलना बंद हो गया। चोर एक-एक करके छेद में से अंदर झांककर देखने लगे। गंजा उनकी आंखों में पिसी मिर्च झोंकने लगा।

"अरे, यह बदमाश धोखेबाज तो जिंदा है !" चोरों का सरदार चिल्लाया और उसने कब्र खोद डालने का हुक्म दिया। उन्होंने क़ब्र खोदी ही थी कि गंजा लपककर भाग पड़ा। चोरों ने अपने घोड़ों पर उसका पीछा करके उसे पकड़ लिया। उन्होंने उसे पीट-पीटकर अधमरा कर दिया और एक बोरे में बन्द करके नदी में फेंकने चले। पर उसी समय चोरों को तीतरों का एक झुंड दिखाई दिया और वे उन्हें पकड़ने के लिए चारों दिशाओं में भागे । इसके थोड़ी देर बाद ही बोरे में बंद गंजे के पास से एक सौदागर अपनी भेड़ें हांकता हुआ गुजरा। गंजा बोरे के छेद में से सौदागर को देखते ही रोने-चिल्लाने लगा: "मुझे खान नहीं बनना, मुझे सेनानायक नहीं बनना !" सौदागर यह आवाज़ सुनते ही रुक गया और पूछने लगा :

"तुम कौन हो और बोरे में घुसकर क्यों बैठे हो ? "

"मैं एक ग़रीब आदमी हूँ, गंजा बोला, "मुझे जबरन एक शहर का खान बनाना चाहते हैं। मैंने मना किया तो मुझे बोरे में बांधकर जबरदस्ती उस शहर ले जा रहे हैं। मैं नहीं चाहता तो भी मुझे खान बनाना चाहते हैं ।"

"अगर तुम खान नहीं बनना चाहते, तो मैं बनने के लिए तैयार हूँ !" सौदागर बोला और उसने बोरा खोल डाला। गंजा बोरे में से निकल आया और बोरे में उसकी जगह सौदागर ने ले ली। गंजे ने कसकर बोरे को बंद करके गांठ लगायी और सौदागर की भेड़ें लेकर चलता बना ।

थोड़ी देर बाद चोर वापस आये। उनके हाथ एक भी तीतर न लगा था, इसलिए वे बहुत गुस्से में थे। बोरे को घोड़े पर लादकर वे नदी की ओर चल दिये। बोरे में बंद सौदागर बारबार चिल्लाता रहा: "मैं खान बनना चाहता हूँ, मैं सेनानायक बनना चाहता हूँ !" गुस्से में पागल चोरों ने सौदागर की खूब पिटाई की और उसे नदी में फेंक दिया।

एक बार जब चोर चोरी करके गंजे के पासवाली नदी के किनारे से गुज़र रहे थे, तो उन्होने देखा कि गंजा बड़े मज़े से भेड़ें हांककर ले जा रहा है। चोरों का डर के मारे बुरा हाल हो गया, कांपते-कांपते उन्होंने गंजे से पूछा :

"अरे भई, हमने तो तुम्हें नदी में फेंक दिया था और तुम यहाँ बड़े मज़े में जिंदा घूम रहे हो और भेड़ें चरा रहे हो ।"

गंजा ज़ोर से हंसकर बोला :

"अरे, तुम लोग पूरे बुद्ध हो, तुमने मुझे फेंकते समय मेरे हाथ में डंडा भी नहीं दिया। मैं बड़ी मुश्किल से किसी तरह हांक हांककर इन भेड़ों को नदी के तल से बाहर लेकर आया हूँ ।"

चोरों को गंजे की बात पर विश्वास हो गया। वे गंजे की मिन्नत करने लगे :

"तुम हम सबको भी नदी में फेंक दो हम भी वहाँ से भेड़ों के झुंड लेकर आना चाहते हैं ।"

गंजा बोला :

"तो फिर चलो, सब एक-एक बड़ी लाठी हाथ में ले लो।"

चोर फ़ौरन लाठियां लेकर गंजे के पास पहुँचे।

"अच्छा, अब इसी जगह से नदी में छलांग लगाओ !" गंजा तेज बहती नदी की ओर इशारा करके बोला। चोरों ने आपस में सलाह करके फ़ैसला किया :

"हममें सबसे ताक़तवर और बहादुर हमारा सरदार है। सबसे पहले वही नदी में कूदेगा । अगर वह न डूबा और वहाँ वास्तव में भेड़ों के झुंड दिखाई दिये तो वह हमें भी बुला लेगा । "

चोरों का सरदार नदी में कूद गया और जैसे ही वह डूबने लगा उसने घबराकर हाथ ऊपर उठाया। चोरों ने सोचा कि सरदार उन्हें भी कूदने का इशारा कर रहा है और वे भी एक के बाद एक नदी में कूद गये। सबके सब नदी में डूबकर बह गये। गंजे ने चोरों से पीछा छुड़ाने के बाद उनके सारे चोरी के माल पर कब्जा कर लिया और सारी जिंदगी सुख-चैन से जिया ।

  • उज़्बेकिस्तान की कहानियां और लोक कथाएं
  • भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां