चालाकी : सिक्किम की लोक-कथा
Chalaki : Lok-Katha (Sikkim)
एक समय की बात है। दो भाई साथ-साथ रहते थे। बड़ा भाई बहुत ही विशाल शरीर का मालिक था, पर वह दिमाग से बड़ा कमजोर था, जबकि छोटा भाई कमजोर शरीर का मालिक होते हुए भी बुद्धि में बड़ा शातिर था। एक बार दोनों भाई कुनैन की दवा लेकर तिब्बत में व्यापार को निकले। वे यहाँ से कुनैन की दवा लेकर जाते, बदले में वहाँ से नमक का सौदा करके लौटते। तीस किलोमीटर तक की यात्रा के बाद उन्हें बड़ी थकान महसूस होने लगी, जिसके कारण उन्होंने वहीं विश्राम करने का निर्णय लिया। रात काफी हो चुकी थी और उन्हें विश्राम के लिए एक पेड़ के सिवा कोई उचित स्थान नहीं मिल रहा था। अंत में उस पेड़ के नीचे ही रात गुजारने का फैसला किया गया। छोटे भाई ने अपने भाई से पानी माँगा। बड़ा भाई पानी की तलाश में निकल गया। चलते-चलते बड़ा भाई ऐसे स्थान पर पहुँचा, जहाँ एक शेर हिरन का शिकार कर रहा था और बड़ा भाई समझ बैठा कि कोई बड़ी बिल्ली है, जो हिरन को मारने जा रही है; क्योंकि उसने आज तक शेर को देखा नहीं था और न ही उसके बारे में कोई समझ रखता था। इतनी बड़ी बिल्ली को देखकर वह स्वयं बहुत अचंभे में था।
उसने वापस लौटकर अपने भाई से कहा, “भाई, मैंने एक बड़ी बिल्ली देखी! जानते हो, वह किसका शिकार कर रही थी? वह बिल्ली एक बड़े हिरन का शिकार कर रही थी।” छोटे भाई को अपने बड़े भाई की बात सुनकर यकीन नहीं आया और जिज्ञासावश उस स्थान की ओर चल पड़ा। दोनों दौड़ते हुए उस बिल्ली को देखने उस स्थान पर पहुँचे, पर तब तक शेर वहाँ से जा चुका था। जब वे वहाँ पहुँचे, उन्होंने वहाँ केवल मृत हिरन को ही देखा। छोटे भाई ने कहा, “इस हिरन को हम अपने साथ ले जाते हैं और इसे खाते हैं।” वे उसे अपने निवास पर ले आए। उन्होंने आग जलाई और हिरन का स्वादिष्ट भोज तैयार किया।
जल्द ही शेर को अपने शिकार की गंध पहचान में आ गई, वह उसे खोजते हुए वहाँ आ पहुँचा। हिरन का शिकार शेर ने किया था और उसे खाने का अधिकार भी शेर का ही था। छोटे भाई और शेर के मध्य घमासान युद्ध होने लगा था। छोटा भाई बड़ा ही दुबला-पतला कमजोर था, शेर को परास्त करना उसके बस की बात नहीं थी। मूर्ख बड़ा भाई, उसे इस लड़ाई से कोई मतलब नहीं था, वह तो शिकार के ऊपर ही अपना मन साधे हुए था। वह हिरन के भोज के लिए ही चिंतित था, उसे किसी के हार-जीत और मरने से कोई मतलब नहीं था। वह खबरदार कर रहा था कि जो कोई मेरे मांस को गिराएगा, मैं उसे छोड़ूँगा नहीं। छोटे भाई में शेर को हरा पाने का सामर्थ्य नहीं था और वह यह भी जानता था कि बाहुबल से सशक्त उसके बड़े भाई में शेर को परास्त करने की ताकत है, पर वह भोज के सिवा कुछ सोच नहीं रहा है। छोटे भाई ने तुरंत उस भोज को जमीन पर गिरा दिया। क्रोधित भाई ने शेर का मुकाबला किया। उसने मजबूती से शेर की पूँछ पकड़कर उसे ऐसा पछाड़ा कि पूँछ उखड़कर हाथों में आ गई। शेर अपने जीवन को बचाने के लिए वहाँ से भाग निकला और दोनों भाई पुनः अपनी यात्रा पर आगे निकल पड़े।
(साभार : डॉ. चुकी भूटिया)