चालाक चंदू : केरल की लोक-कथा

Chalaak Chandu : Lok-Katha (Kerala)

गणेश सेठ अपनी पत्नी और बेटी के साथ केरल के एक सुंदर गांव में रहता था। सेठ की पुत्री चंद्रिका विवाह योग्य हो गई थी। चंद्रिका का रिश्ता सेठ-सेठानी ने बचपन में ही तय कर दिया था। आज सेठजी शादी की तारीख़ तय करके आए तो बहुत ख़ुश थे। रात को अपनी पत्नी से बोले, “मैं चंद्रिका का ब्याह बहुत धूमधाम से करूंगा। उसके लिए एक नौलखा हार भी बनवाऊंगा।"

सेठानी बोली, “हां, चंद्रिका नौलखा हार में कितनी सुंदर लगेगी मगर आप हार बनावाएंगे किससे?”

“अपने चंदू सुनार से बनवाऊंगा। वो अपने बारीक काम और सफ़ाई के लिए पूरे केरल में मशहूर है," सेठजी बोले।

“केवल काम की सफ़ाई के लिए नहीं," सेठानी ने अपनी बड़ी-बड़ी आंखें मटकाते हुए कहा, “चंदू अपने हाथ की सफ़ाई के लिए भी बहुत मशहूर है। चंद्रिका के गहने उससे मत बनवाना।”
“ऐसा क्यों?” सेठजी ने पूछा।

“क्योंकि चंदू को आभूषण दिखाना या उससे कुछ बनवाना ख़तरे से ख़ाली नहीं। मेरी सहेली ज्योति ने उसे दस तोले की सोने की माला चमकाने को दी तो वो नौ तोले की रह गई। रमा ने मोतियों का हार बनवाया तो मोती नकली निकले, न जाने चंद्रिका के गहने बनाने में वो हमें कैसे ठगेगा। कुछ नकली निकला तो चंद्रिका के ससुराल में बहुत बेइज़्ज़ती होगी।"

सेठानी की बात सुन, सेठजी कुछ सोचने लगे। कुछ देर बाद बोले, “मैं चंद्रिका का हार तो चंदू से ही बनवाऊंगा। देखूं, वो मुझे कैसे ठगता है।"

“आप ऐसी भूल मत कीजिए। चंदू ने बड़े-बड़ों के छक्के छुड़ाए हैं और आप तो सीधे-सादे इंसान हैं। चंदू के सामने आपकी एक नहीं चलेगी। आपका ही नुकसान होगा।”

सेठजी मुस्कराते हुए बोले, “तुम फ़िक्र मत करो। मैं बहुत सावधान रहूंगा।”

अगले दिन सेठजी ने चंदू को बुलाया और उसे सारा काम समझा दिया। फिर वे बोले, “देखो चंदू, लोग कहते हैं कि तुम अपने काम में काफ़ी हेरा-फेरी करते हो। चंद्रिका के गहनों में मैं ठगा जाना नहीं चाहता, इसलिए मेरा एक आदमी हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा और तुम मेरे 'कायला' के पार बने मकान में काम करोगे।”

सेठजी की बात सुनकर चंदू दुखी हो गया। वह बोला, “सेठजी, मुझे इतना शर्मिंदा ना करिए। चंद्रिका बिटिया मेरी बेटी जैसी है। भला मैं उसके गहने बनाने में बेईमानी क्‍यों करूंगा? आप बस बता दें, मैं सब तैयार करके ले आऊंगा।” सेठजी बोले, “नहीं चंदू, अपनी बेटी के गहनों के मामले में मैं किसी पर विश्वास नहीं करूंगा। काम तुम्हें मेरे घर में, मुरली की निगरानी में ही करना होगा।"

अगले दिन से हार पर काम शुरू हो गया। हर रोज़ सवेरे सेठजी अधबना हार और बचा सामान तिजोरी से निकालकर चंदू को देते। फिर चंदू और मुरली नाव द्वारा कायला पार कर छोटे मकान में जाते। चंदू काम पर लग जाता और मुरली उसकी निगरानी में।

चंदू को सेठजी की बात का बुरा तो लगा था मगर वो यह सोचकर ख़ुश था कि उसका बनाया हार चंद्रिका के गले में बहुत ही सुंदर लगेगा। अब वह ख़ुशी-ख़ुशी हार बना रहा था। मगर मुरली उसे शांति से काम करने दे तब ना!

अगर चंदू सिर खुजलाता तो मुरली उसके बाल टटोलता, अगर वो अपने रूमाल में छींकता तो मुरली उसका रूमाल देखने को तैयार हो जाता। एक दिन जब खाना खाकर चंदू ने मुंह पोंछा, तो हद ही हो गई। मुरली चंदू की मूंछ में छिपे हीरे-जवाहरात ढूंढने लगा।

चंदू ने एक बार तो तय कर लिया कि वह गहने नहीं बनाएगा, मगर चंद्रिका बिटिया का ख्याल आते ही उसका दिल पसीज गया। उसने मन ही मन सोचा, 'हार बना लूं, फिर सेठजी और मुरली को मज़ा चखाऊंगा।' धीरे-धीरे अन्य आभूषण तैयार हो गए और तिजोरी में बंद हो गए। बस नौलखा हार को चमकाना बाक़ी था।

सवेरे-सवेरे, हार लेकर चंदू, मुरली कायला पार कर अपने-अपने काम पर लग गए। दोपहर तक हार सूरज जैसा चमकने लगा था।

हार को एक लाल रेशम के कपड़े से ढकी तश्तरी में सजा चंदू नाव में बैठ गया। मुरली नाव चलाने लगा। नाव कायला के बीच में पहुंची ही थी कि चंदू ने दूर से आते हुए सेठजी को देखा। ख़ुशी के मारे चंदू नाव में खड़ा हो गया और ज़ोर-ज़ोर से हाथ हिलाते हुए उन्हें बुलाने लगा।

“अरे-अरे-अरे! ये क्या कर रहे हैं,” मुरली ने घबराकर कहा। उसके देखते ही देखते, चंदू की हरकत के कारण नाव पलट गई। चंदू, मुरली और हार वाली तश्तरी सब पानी में जा गिरे।

बड़ी कठिनाई से नाव, मुरली और हार समेत चंदू सुनार को कायला से बाहर निकाला गया। उन्हीं भीगे कपड़ों में चंदू ने हार वाली तश्तरी सेठजी को सौंपी और अपना मेहनताना लेकर घर लौट गया।

सेठजी ख़ुशी से फूले नहीं समाए। पूरे गांव में ख़बर फैल गई कि सेठजी चंदू से तेज़ निकले।

शादी के दिन जब सेठानी ने चंद्रिका को हार पहनाने के लिए डिब्बा खोला तो उसका दिल धक से रह गया। वह चमकता हुआ हार काला पड़ गया था। जब सेठजी को यह पता चला तो उन्हें भी धक्का लगा।
आखिरकार चंदू सुनार ने उनको ठग ही लिया।

सेठजी ने तुरंत चंदू को बुला भेजा। चंदू भी हंसता हुआ आ गया। सेठजी के हाथ में असली हार रखते हुए बोला, “यह लीजिए आपका हार। मेरे वादा करने पर भी आपने मुझ पर विश्वास नहीं किया इसलिए आपको सबक़ सिखाने के लिए मैंने यह सब किया।”

“मगर-मगर,” सेठजी अचंभित होकर बोले, “आख़िर तुमने यह सब कब और कैसे कर लिया?"

“आपको याद है, जब नाव उलट गई थी? बस कायला के बीचोबीच मैंने नकली हार छिपा रखा था। जब मैं पानी में गिरा, तब मैंने हार बदल दिया। फिर, रात को आकर असली हार पानी से निकाल लिया।"

चंदू की चालाकी सुन, सेठजी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई।

(पौलोमी मिश्रा जिंदल)

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